आ गया है इसको लेकर गंभीर चिंतन-सुधार का समय
राजेश त्रिपाठी
अशालीन
आचारण के अलावा धर्म को आज के तथाकथित संतों ने व्यापार बना लिया है। लोगों को
त्याग और दान की शिक्षा देने वाले ये तथाकथित संत भोगी, लोभी और लंपट हैं। ये
धर्मभीरु लोगों को आसानी से अपना शिकार बनाते हैं और उनसे अच्छा दान-भेंट पाते हैं
जबकि संत को सिर्फ अपने पेट भरने और तन ढं
कने से काम रखना चाहिए। उनके लिए संग्रह वृत्ति, लोभ, धन संग्रह सर्वथा अनुचित
है। संत शब्द के जो अर्थ मिलते हैं वे हैं-पवित्र आत्मा, परोपकारी, सदाचारी,
त्यागी, महात्मा, व परमतत्व का ज्ञाता। माना यहां तक गया है कि संत वह है जो अपने
शिष्य को प्रभु भक्ति का मार्ग बताता है, उसके मानस के कलुष को धोकर उसकी वाणी और
विचारों में पवित्रता लाता है। गोस्वामी तुलसीदास ने भी संतों की महिमा गायी है।
राम से जब भरत संतों के लक्षण पूछते हैं तो श्रीराम उन्हें जवाब देते हैं- संतन के संतन से लच्छन सुन भ्राता। अगनित श्रुति पुरान
विख्याता।। संत-असंतन्हि कै
असि करनी। जिमि कुठार चंदन आचरनी।। काटई परशु मलय सुनु भाई। निज गुन देई सुगंध
बसाई।। विषय अलंपट सील
गुनाकर। पर दुख दुख सुख सुख देखे पर।। कोमल चित्त दीनन्ह पर दाया। मन वचन क्रम मम
भगति अमाया।। सबहिं
मानप्रद आपु अमानी। भरत प्रान सम ममते प्रानी।।
विगत काम मम नाम परायन। संति विरति विनती
विगत काम मम नाम परायन। संति विरति विनती
संत
का पहला लक्षण है जितेंद्रिय होना। जिसकी इंद्रिय वश में नहीं, जिसकी भोगलिप्सा और
वासना की प्यास नहीं मिटी उसे इस कठिन मार्ग पर चलना ही नहीं चाहिए। उसे तो
ग्रहस्थ के रूप में अपना कर्तव्य पालन करना चाहिए और सुख-चैन की जिंदगी जीनी
चाहिए। जो संत के आदर्श के प्रति संकल्पित हो उसे ही यह चोला धारण करना चाहिए
बेकार में छद्म नहीं जीना चाहिए कि आप दिखने की कोशिश कुछ करें और यथार्थ में कुछ
और हों। ऐसी कई उदाहरण हैं कि ऐसा छद्म ज्यादा दिन नहीं टिकता और जब भेद खुल जाता
है तो आदमी कहीं का नहीं रहता, वह दुनिया में मुंह तक दिखाने लायक नहीं रहता। जो
कल तक भगवान की तरह पुजता था, उस पर लोग थू-थू करने लगते हैं।
अब
वक्त आ गया है कि भारत का संत समाज, भारत के विचारक, धर्म धुरीण लोग अपने बीच के
इन छद्मवेशी लोगों को पहचाने और इनका वहिष्कार करें ताकि संत समाज बदनाम होने से
बच जायें। पिछले कुछ दिनों में तथाकथित संतों के जो कुकृत्य उजागर हुए हैं, उनमें
कई को तो सेक्स रैकेट तक चलाते पकड़ा गया। कुछ को महिलाओं से संबंध होने के आरोपों
में पकड़ा गया। इससे पूरे देश क्या विश्व में संत नामक पुनीत शब्द बदनाम हुआ। वो
कहते हैं न कि एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है यहां मछली क्या कहें जाने
कितने मगरमच्छ पल रहे हैं जो जनता को छल रहे हैं और उस समाज को दूषित कर रहे हैं
जिसका नाम लेकर वे अपना धंधा चला रहे हैं। जनता का भी यह कर्तव्य है कि वह
ढोंगियों और असली संतों व कथावाचकों को पहचाने और अपने स्तर पर उनका बहिष्कार और
तिरस्कार करे। यह जरूरी हो गया है कि अब देश को इस कलंक से बचाया जाये क्योंकि अभी
नहीं तो बहुत देर हो चुकी होगी और न जाने कितना अनर्थ और हो जाये। प्रभु जनता को
नीर-छीर विवेक करने की शक्ति दे, देश की ललनाओं को इन संत रूप भेड़ियों से
सुरक्षित रखें इसके अतिरिक्त हम और क्या कह या कर सकते हैं। इन ढोंगियों ने तो देश
को कहीं का नहीं छोड़ा। यह समाज में उस नासूर की तरह हैं जिसका अगर इलाज न किया
गया तो वह स्थायी भाव से समाज से जुड़ जायेगा।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - रविवार - 13/10/2013 को किसानी को बलिदान करने की एक शासकीय साजिश.... - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः34 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra
ReplyDeleteविचारणीय पक्ष रखा है आपने परम्परा के आलोक में। एक मछली सारे तालाब को गंदा न कर पाए यही हमारे आपकी कोशिश हो वैसे ही मूल्यहीना राजनीति ने सब कुछ निगल लिया है इधर से तो आस बनी रहे।
ReplyDeleteप्रासंगिक दोहन आज की प्रदूषित समाज का।
ReplyDeleteविचारणीय पक्ष रखा है आपने .
ReplyDeleteनई पोस्ट : रावण जलता नहीं
नई पोस्ट : प्रिय प्रवासी बिसरा गया
विजयादशमी की शुभकामनाएँ .