Saturday, January 11, 2014

'आप' के जनता दरबार में हडकंप के संकेत



 अपनी शिकायतें सुनाने को आकुल भीड़ हुई बेकाबू

 राजेश त्रिपाठी
जनता के द्वारा,जनता के लिए सरकार 'आप' ने दी तो लेकिन लगता नहीं कि उसकी राह आसान होगी। डाइरेक्ट डेमोक्रेसी का अरविंद केजरीवाल का यह अभिनव प्रयोग सराहनीय और साधुवाद का परिचायक है लेकिन इससे जुड़े तमाम 'लेकिन' के जवाब खोजना भी जरूरी है। दिल्ली विधानसभा का सत्र खत्म हुआ तो अरिवंद ने क्रांतिकारी एलान किया कि उनकी सरकार अब सड़क पर लोगों की फरियाद सुनेगी। ऐसा पहला प्रयोग शनिवार 11 जनवरी को किया गया। अरविंद और उनके मंत्रियों ने जितने लोगों के आने की उम्मीद की थी उससे कहीं बहुत ज्यादा भीड़ जुट गयी। एक अनुमान के अनुसार तकरीबन 10 हजार लोग सचिवालय के सामने जुट गये। खुद अरविंद केजरीवाल ने भी बाद में इसके बारे में कहा कि उन्हें इतनी भीड़ की उम्मीद नहीं थी। उन्होंने खुद माना कि व्यवस्था सही नहीं थी, उसे सुधारना पडेगा। उन्होंने कहा कि लोग उनकी टेबुल तक चढ़ आये थे उसके बाद उन लोगों को दरबार बीच में छोड़ कर जाना पड़ा। उन्होंने आश्वस्त किया कि अब लोगों को कतार से खड़े होने को कहा जायेगा।
      जो भी 'आप' का पहला जनता दरबार अव्यवस्था के चलते फ्लाप रहा। इसके चलते अब फिलहाल सोमवार तक दरबार का कार्यक्रम टाल दिया गया है और कुछ नया इंतजाम करे के बाद ही दरबार फिर शुरू होगा। हुआ यह की अनियंत्रित भीड़ वहां लगे हुए बैरिकेड तड़ आगे बढ़ने लगी और अफरा-तफरी का माहौल हो गया। अरविंद कुछ भी कहें लेकिन हकीकत यह है कि जनता नए इस तरह की आजादी का स्वाद पहली बार चखा है जब वे अपनी परेशानियां सीधे मंत्रियों या मुख्यमंत्री से कह पा रहे हैं। इसका अवसर वह खोना नहीं चाहते। ऐसे में वे व्यावहारिक चीजें भी भूल जाते हैं कि सरकार का अपना दायित्व अलग होता है अगर अरविंद और उनके नेता इतने खुले हुए हैं, लोगों को सहज उपलब्ध हैं तो लोगों को भी उनकी अपनी तरफ से पूरी मदद करनी चाहिए। अरविंद को यह नहीं भूलना चाहिए कि आम आदमी उन्हें सफल देख, सत्ता में आया देख खुश है लेकिन जो कभी सत्ता में थे, चाहे किसी भी दल के हों खुश नहीं हैं। उनके सीने पर सांप लोट रहे हैं कि कैसे एक बार के प्रयास में ही अरविंद जैसा आम आदमी सत्ता के सिंहासन तक पहुंच सका। वे उन्हें जल्द से जल्द असफल होते देखना चाहते हैं ताकि आम आदमी के उत्कर्ष की कहानी आगे बढ़ने के बजाय अकाल काल के गाल में समा जाये। अरविंद के पक्ष में यह बड़ी बात है कि उनके साथ आम आदमी है जिससे देश बनता है। चंद नेताओं या नौकरशाहों का अर्थ देश नहीं। देश की वंदना करनी है तो लालबहादुर शास्त्री का 'जय जवान जय किसान' नारा ही सबसे उपयुक्त है। किसान देश का अन्नदाता है और जवान देश का रक्षक। किसान है तो हम आश्वस्त हैं कि देश भूखा नहीं मरेगा, जवान हैं तो हम बेफिक्र हैं कि हमारी सीमाएं और हमारा देश सुरक्षित है। इनेस बनता है हिंदुस्तान, भारत या इंडिया। उन चंद नेताओं से नहीं जो कुर्सी पाने के लिए सारी हदें पार कर जाते हैं।
      अरविंद केजरीवाल के सामने भी कांग्रेस का सहारा लेकर सरकार बनाने की मजबूरी आयी। वे सरकार बनाने से इनकार भी कर सकते थे लेकिन जन आकांक्षाओं के चलते उन्हें वह भी करना पड़ा जिसके लिए शायद वे मन से राजी नहीं थे। इसके लिए उनके विरोधी उन्हें आज भी कोसते हैं और शायद अपनी आखिरी दम तक कोसते रहेंगे लेकिन अरविंद को इससे तब तक कोई फिक्र नहीं जब तक आम आदमी का साथ उन्हें मिला हुआ है। कारण, अगर खुदा न खास्ता उनकी सरकार गिरी भी तो उन्हें उसी आम आदमी के पास जाना है और तब संभव है वे अपार बहुमत लेकर आ जाये और आसानी से अपनी योजनाएं पूरी कर पायें।
      जनता दरबार का प्रयोग अच्छा है लेकिन इसके लिए सड़क नहीं बल्कि किसी और जगह को चुना चाहिए। अरविंद केजरीवाल जिन मुहल्ला सभाओं की बात कर रहे हैं उन्हें मजबूत करें और उन्हें ही अपने-अपने मुहल्ले के लोगों को शिकायतें लेने को कहें और वे सरकार तक पहुंचा दें। गांवों या दूर दराज के लोगों को कहा जाये कि वे अपने ग्राम प्रधान या  आम आदमी के किसी स्थानीय सदस्य को अपनी शिकायतें दें जो उनको सरकार तक पहुंचा देंगे। क्षेत्र के विधायक भी जनता की शिकायत सरकार तक पहुंचा सकते हैं। इससे लोगों की बात भी सरकार तक पहुंच जायेगी और अरविंद और उनके साथी बेवजह की परेशानी और ग्लानि से भी बच जायेंगे। 10 हजार की भीड़ में कहीं हड़कंप से कोई अप्रिय घटना हो जाती तो अरविंद और उनकी सरकार विरोधियों को निशाने में होते। वैसे कांग्रेस की ओर से आनन-फानन टिप्पणी आयी कि 'अरविंद को अब समझ में आयेगा।' जाहिर है इसमें प्रशंसा तो कहीं है नहीं व्यंग्य या कटाक्ष भरपूर है। भाजपा भी पीछे नहीं रही। भाजपा के एक सदस्य यह कहते नजर आये कि 'केजरीवाल अगर म्युनिसपैलिटी के बाबू, स्वास्थ्य विभाग के बाबू या इसी तरह के काम करने लगेंगे तो कैसे होगा। वे मुख्यमंत्री हैं उन्हें वैसे ही काम करना चाहिए।' वैसे जो लोग अरविंद के जनता दरबार पर शिकायत उठा रहे हैं उन्हें यह ध्यान में रखना चाहिए कि कई राज्यों के मुख्यमंत्री जनता की परेशानियां सुनने के लिए जनता दरबार लगाते हैं। उन पर तो कोई सवाल  नहीं करता क्या अरविंद को इसलिए घेर जा रहा है कि उन्होंने कई जमे-जमाये नेताओं को उनकी औकात बता दी है? कुछ लोग यह भी कहते नजर आये कि 'आप' के लोगों को शासन करने का अनुभव नहीं इसीलिए वे बात-बात में असफल हो रह रहे हैं। अब यह तो अरविंद के लिए चुनौती है कि वे सफल हो कर अपने विरोधियों का मुंह धुआं कर दें। भारत में 'आप' के इस नये प्रयोग की सफलता की कामना हर वह व्यक्ति करेगा जो सड़ी गली और स्वार्थी व्यवस्था से ऊब चुका है।
      भीड़ अनियंत्रित हुई तो लोगों के हाथ के शिकायती पत्र जमीन पर बिखर गये। भीड़ छंटी तो लोग अपनी शिकायतें खोजने में लगे ताकि उन्हें अरविंद तक पहुंचा कर अपनी मुसीबत से निजात पा सकें। लोग तमाम तरह की शिकायतें लेकर आये थे जिनमें कई ऐसी भी थीं जो शायद सरकार जल्द न निपटा पाती लेकिन लोग चाहते हैं कि उनका आम आदमी सत्ता में आया है तो फिर उनकी सारी परेशानियां दूर होनी चाहिए। वैसे अरविंद बी पहले ही कह चुके हैं कि उनके पास जादू की छड़ी नहीं कि वे पल भर में सारी समस्याएं दूर कर दें लेकिन उनका प्रयास तो प्रशंसनीय है लेकिन उन्हें वक्त दिया जाना चाहिए। आपने दूसरी सरकारों को वर्षों का समय दिया इन्हें कुछसमय तो दीजिए। ये तो काम करते नजर आ रहे हैं।
      भीड़ नियंत्रित होने के बाद जनता दरबार में आकर अरविंद ने खुद लोगों को संबोधित किया और व्यवस्था के चरमराने के लिए जनता से माफी मांगी। ऐसा शायद ही कभी हुआ हो। भारतीय गणतंत्र में अगर यह डाइरेक्ट डेमक्रेसी का क्षण आया है तो फिर इसे धैर्य के साथ आगे बढ़ना देना चाहिए। इस प्रयोग को नाकाम करने के लिए नेताओं की पूरी जमात लगी है। अरविंद पर रोज-रोज नेताओं की ओर से उछाले जाने वाले व्यंग्य इसके गवाह हैं। लोग आम आदमी के इस प्रयोग से हतप्रभ और भौंचक हैं और चाहते हैं कि यह जल्द पराभव को प्राप्त हो ताकि उनकी सुविधावादी, अवसरवादी राजनीति फलती-फूलती रहे। अरविंद केजरीवाल को पल-पल चौकस, सतर्क और सावधान रहना है कि उनकी तरफ से कोई ऐसा कदम न उठाया जाये जो उन्हें परास्त करने के लिए उनके विऱोधियों के हाथ में ब्रह्मास्त्र की तरह हो। जनता दरबार के इस तरह फ्लाप होने की घटना ने उन्हें चेता दिया होगा कि लोकप्रिय होने या अलग दिखने के लिए आपाधापी या जल्दबाजी में किये गये कामों का असर उलटा भी पड़ सकता है। इतनी बड़ी भीड़ जुटने का सीधा-सा अर्थ है कि साधौ दुखिया सब संसार। इतने बड़ें समाज के दुख दूर करने के लिए एक अरविंद केजरीवाल काफी नहीं, हर शहर, हर गांव, हर मोहल्ले हर गली में अरविंद केजरीवाल पैदा करने होंगे ताकि सबको न्याय मिले, इज्जत की जिंदगी मिले और उन्हें जिंदगी बोझ या मुसीबत न लगे। जो जहां है वहीं से देश को सुधारने में अपने तईं प्रयास शुरू कर दे। देश के हर नागरिक को अपना कर्तव्य समझना होगा और इस बदली हुई स्वच्छ सार्थक व्यवस्था को पोषण और प्रोत्सागन के लिए जी-जान से जुट जाना होगा। आम आदमी के सदस्यता अभियान के बारे में देश भर में उभरी अपार जनरुचि और उत्सुकता इस बात की द्योतक है कि जनता व्यवस्था में परिवर्तन चाहती हैं और उसे यह सुयोग अरविंद व उनके उत्साही साथियों की टीम ने दी है। आनेवाले लोकसभा चुनावों में केंद्र की सत्ता में 'आप' आये न आये लेकिन केंद्र की सत्ता पर उत्सुक दृष्टि बनाये कई लोगों का समीकरण वह अपनी सफलता से जरूर गड़बड़ा देगी। 'आप' भारत के राजनीति का वर्तमान तो है ही यही भविष्य है। जो आज विरोध कर रहे हैं वे सिर्फ इसलिए कर रहे हैं कि उनके कदमों तले की जमीन कहीं सरकती नजर आ रही है। हर सच्चा भारतीय 'आप' के प्रयोग के साथ खड़ा होगा और वह चाहेगा कि यह सफल हो और सिर्फ दिल्ली तक सीमित न रह कर पूरे देश में फैले और देश में एक नयी राजनीतिक संस्कृति और व्यवस्था के उदय का द्योतक बने। यह अवश्य है कि अब अरविंद और उनकी सरकार को सरकार की तरह दिखना और काम करना चाहिए वरना उन्हें घेरने के अनेक लोग तैयार हैं। उनके पहले फ्लाप जनता दरबार की ही चारों ओर आलोचना शुरू हो गयी है। कुछ लोग उस पर विद्रूप और मजाक भी करने लगे हैं। अरविंद को समझना होगा कि सड़क क आंदोलन से निकल वे सदन तक पहुंच गये हैं और सदन के कुछ नियम और उसके आचरण मानना उनकी विवशता नहीं कर्तव्य.है । उन्हें अपने इस कर्तव्य के प्रति गंभीर और प्रतिबद्ध होना चाहिए। हम और पूरा देश यह उम्मीद करता है कि उनका यह डाइरेक्ट डेमोक्रेसी का प्रयोग पूरी तरह सफल और देश के लिए ऩयी आशा की किरण बने।

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