अपने बड़बोले
सदस्यों के मुंह पर दीजिए लगाम
राजेश त्रिपाठी
जनआकांक्षाओं
के रथ पर सवार होकर जिस दिन अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की सत्ता पायी, लोगों की
खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उन्हें लगा कि भ्रष्टाचार और अनाचार के घटाटोप में आशा
की एक किरण जगमगायी। तब लगा था कि अरविंद अब आंदोलन राह छोड़ सत्ता को गंभीरता से
लेंगे लेकिन उनका अदम्य जुझारूपन उन्हें यह भूलने ही नहीं देता कि वे आंदोलनकारी
नहीं अब एक राज्य के मुख्यमंत्री हैं और अब उनका एकमात्र उद्देश्य अपनी उन
क्रांतिकारी योजनाओं को लागू करना होना चाहिए जिसकी घोषणा को गंभीरता से लेकर
लोगों ने उन्हें सत्ता सौंपी है। अब यह और बात है कि मुख्यमंत्री होने के बाद भी
अपनी लड़ाई सड़क तक ले जाने के लिए कुछ लोगो उनकी तारीफ भी कर रहे हैं। उनका कहना
है कि कोई मुख्यमंत्री तो ऐसा आया जो जनता की हक की लड़ाई के लिए रात-रात भर सड़क
पर भीगता रहा। लोक्न कांग्रेस से लगा कर भाजपा तक के नेता उनके इस रुख के लिए
उन्हें पानी पी-पी कर कोस रहे हैं। उनकी आलोचना में कई नेता तो शालीनता की हद बाहर
कर ऊल-जलूल शब्दावली भी प्रयोग करने में नहीं चूके। दरअसल हमारे देश की राजनीति ही
ऐसी हो गयी है कि अब विरोध भी इतना उग्र होने लगा है जिसकी कोई सीमा नही। राजनीति
में तारी यह उग्रता ही चुनावों में बढ़ती हिंसा का कारण है। अपने आका नेताओं के
रुख को देख कर कार्यकर्ता भी इतने जोश में आ जाते हैं कि वे येन-केन प्रकारेण अपने
दल को जिताना चाहते हैं। अरविंद को या उनके कार्यकर्ताओं को ऐसा कुछ नहीं करना
पड़ा क्योंकि उनके पीछे प्रबल जनसमर्थन था। दिल्ली की जनता परिवर्तन चाहती थी और
उन्हें लगा कि अरविंद से बेहतर फिलहाल कोई नहीं। यही वजह है कि अरविंद को उतनी
सीटें मिलीं जिसकी लोगों ने कल्पना भी नहीं की थी। लेकिन एक कमी रह गयी। लोगों ने
उन्हें इतनी सीटें दीं जो सरकार बनाने के लिए काफी नहीं थीं और उनको उसी कांग्रेस
का समर्थन लेना पड़ा जिसकी आलोचना करके वे चुनाव जीते थे। विरोधियों ने उनके इस
कदम की भी भरपूर आलोचना की कि जिसको लानत भेजते थे उन्हीं की बांह क्यों थाम ली।
कांग्रेस कह रही है कि दिल्ली की जनता पर दोबारा चुनाव का बोझ न पड़े इसलिए
उन्होने अरविंद को सरकार बनाने में समर्थन दिया। वैसे अरविंद के हाल के सड़क में
उतरने से कांग्रेसी खफा हैं और वे समर्थन के मुद्दे पर पुनर्विचार करने का मन भी
बना रहे हैं। पी. चिदंबरम जैसे वरिष्ठ नेता तक ने कह दिया कि 'आप' पार्टी को
समर्थन देना गैरजरूरी था। वैसे यह आपका और आपकी पार्टी का सौभाग्य है कि कांग्रेस
लोकसभा चुनावों से पहले 'आप' से समर्थन वापस लेने का जोखिम नहीं उठायेगी। वह भी
जानती है कि ऐसा करके वह आपके प्रति जनता की सहानुभूति बढ़ा देगी और अपने लिए
जनरोष उभार देगी। लोग सीधे सवाल करेंगे कि 'आप' की सरकार अच्छा काम करना चाहती थी
उसे असमय शहीद कर दिया गया।
वैसे अब
आपको भी राज-धरना छोड़ कर राजधर्म की ओर वापस आना होगा। अगर कहीं कोई गैरकानूनी
चीज हो रही है तो उसे कानून से ही दूर करने की कोशिश कीजिए। आप सड़क पर हमेशा
उतरते रहेंगे तो सचिवालय का काम कौन देखेगा। कम से कम अपने किसी भी काम से लोगों
को उंगली उठाने का मौका तो मत दीजिए। 'आप' के प्रति पूरे देश में उम्मीद की जो लहर
है उसके नायक आप ही हैं। आप से पूरे देश को उम्मीद है और उस पर खरा उतरना आपकी
जिम्मेदारी भी है कर्तव्य भी। कारण, लोग 'आप' का पर्याय मानते हैं आपको। आपने सही
कदम उठाये, सही ढंग से सत्ता चलायी तो संभव है आज नहीं पांच साल बाद लोग आपको देश
की बागडोर भी सौंप दें। उस ओर बढ़े कदमों को सही दिशा में ही जानें दें, लोगों को
यह कहने का मौका न दें कि उनका नेता तो सड़क की राजनीति से उबर ही नहीं पा रहा। कहीं
कुछ गड़बड़ होता है तो वहां भी आपके नेताओं या मंत्रियों को संयम से काम लेना
चाहिए। बेवजह कानूनी पचड़े में फंसना या ऊल-जलूल बयान देना आपको और आपकी पार्टी को
कभी भी मुश्किल में डाल सकता है। हाल की घटनाएं जिम्मेदार हैं कि आपके कई बड़बोले
नेताओं ने ऊल-जलूल बयान देकर अपनी और आपकी मुश्किल बढ़ा दी है। कहीं किसी ने
मानहानि का मामला ठोंक दिया तो फिर आप और आपके वे नेता मानहानि का मुकदमा लड़ेंगे
या दिल्ली की सत्ता पर ध्यान देंगे। मत भूलिए अब इलेक्ट्रानिक मीडिया है जो आपके
कहे का दस्तावेज है। आप आज कह कर कल मुकर नहीं सकते न्यूज चैनल वाले आपकी वह क्लिप
चला कर आपको अपने कहे पर कभी भी शर्मसार कर सकते हैं। एक बात और नेताओं की यह बड़ी
चालाकी भरी आदत है कि वे सरे आम जनता के सामने किसी भी व्यक्ति को जलील या अपमानित
कर देते हैं और बाद में कहते हैं कि यह तो उनका व्यक्तिगत बयान था। अरे भाई तो
क्या देश का कानून व्यक्तिगत तौर पर आपको यह आजादी देता है कि आप किसी को अपशब्द
करें या उसकी फूहड़ खिल्ली उठाये। आपसे निवेदन है कि अपने बड़बोले या वाचाल
साथिय़ों के मु्ह पर लगाम दीजिए। अगर ऐसा न हुआ तो आज नहीं तो कल ये आपके लिए बड़ी
मुसीबत का सबब बन सकते हैं।
आपसे
जनता ने उम्मीद की है तो आप अब उसके पैमाने पर खरा उतरने की कोशिश कीजिए। आप और
आपके साथी वाणी पर नियंत्रण रखें, लोगों का दिल जीतने का काम करें। भारत देश के
सुसंस्कृत नागरिक की तरह व्यवहार करें, आपसे उम्मीद रखनेवाली जनता इतना ही तो
चाहती है। हमारा विश्वास है कि आप जैसे दृढ़प्रतिज्ञ और अदम्य व्यक्ति के लिए यह
नामुकिन तो नहीं हां वर्तमान परिस्थितियों में कुछ कठिन अवश्य हो सकता है। अपने
स्वास्थ्य का ध्यान रखिए, आपके सामने हिमालय जैसी कई चुनौतियां मुंह बाये खड़ी
हैं, उनसे लड़िए और विजयी होइए, हमारी यही कामना है। मत भूलिए एक बेहतर सरकार, एक
सक्षम प्रशासन और सुदृढ़, सुचारु, जनोनमुखी व्यवस्था देकर ही आप दिल्ली की सत्ता
और देश के लोगों के दिलों में राज कर सकते हैं। दूसरा कोई रास्ता नहीं
अच्छी नसीहत भरी पोस्ट है राजेश जी । नए संगठन को कदम भी फ़ूंक फ़ूंक कर रखना होगा , रखना चाहिए कम से कम भारतीय लोकतंत्र में .....
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