वर दे वीणावादिनी वर दे, मन-बुद्धि अब निर्मल कर दे।
है अज्ञान का घोर अंधेरा, ज्ञान ज्योति ज्योतित कर दे।।
वरदे वीणावादिनि वरदे.......
मानव अपना गुण भूल गया,वह अहंकार में फूल गया।
मानव सेवा ही सच्ची सेवा,यह मूलमंत्र वह भूल गया।।
वादों और विवादों में, अब इस कदर कैद हैं अज्ञानी।
अपना कर्तव्य तो भूल गये, करते हैं वह मनमानी।।
इनकी जड़ता को कर दूर, अब इनमें श्रेष्ठ भाव भर दे।
वर दे वीणावादिनी वर दे, मन-बुद्धि अब निर्मल कर दे।
कमलासन में तुम विराजो हे शुभ्रवसना हे कल्याणी।
तुम जिस पर कर दो कृपा, निर्मल हो उसकी वाणी।।
तुम करुणा की देवी तुम शुभदा तुम अति महान।
तुम करो कृपा तो जड़बुद्धि को भी मिले ज्ञान।।
अपनी कृपा से हे माता, जग को सुंदर कर दे।
वर दे वीणावादिनी वर दे, मन-बुद्धि अब निर्मल कर दे।
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