धरती कांपी आकाश हिला रोये थे जवाहर लाल।
बापू को क्यों मारा हर लब पर था यही सवाल।।
सहम गयी थी सारी दुनिया, मानवता हुई बेहाल।
अंतिम यात्रा पर निकला जब भारत का लाल।।
चक्र थम गया समय का, आंखों में था नीर।
सही नहीं जा रही थी, असह रही वह पीर।।
लाखों आंखें नम थीं, लाखों दिल गमगीन।
बापू को खोया तो जैसे भारत हो गया दीन।।
तेरे इस प्रयाण दिवस पर नवा रहे हैं शीश।
आदर्शों पर चलें आपके हमकों दें आशीष।।
सदियों तक रहेगा कायम बापू तेरा नाम।
महामना, हे शांतिदूत, करते तुम्हें प्रणाम।।
हे महामना , शांति और अहिंसा के दूत तुम्हे प्रणाम , शत शत प्रणाम
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