हे प्रभु अब तो आओ
हे अविनाशी, घट-घट वासी, शिवशंकर त्रिपुरारी।
आन बचाओ भारत को इस पर संकट है भारी।।
माताओं, बहनों का प्रभु जी रहा नहीं अब मान।
इनको रौंद रहे हैं निशदिन जाने कितने शैतान।।
धर्म रहा न मानवता ही अब प्रभु देखी जाती।
पैसे ओहदे से अब सबकी इज्जत लेखी जाती।।
अब कैलाश पड़ा है सूना कब आयेंगे आप।
दिन पर दिन बढ़ते जाते मानव के संताप।।
आर्यावर्त अब खो रहा अपनी पहली पहचान।
इस भूखंड की रक्षाहित अब आओ भगवान।।
पीड़ित हैं भक्त तुम्हारे, हे प्रभु नहीं सताओ।
बहुत देर हो जायेगी, हे प्रभु अब तो आओ।।
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