Tuesday, June 10, 2014

सरकार को निश्चिंत होकर काम करने का माहौल दें

देश में बनाये रखें,समरसता, सौजन्य और सर्व धर्म समभाव का अनुपम भारतीय आदर्श
-राजेश त्रिपाठी
    महामहिम राष्ट्रपति के संसद के दोनों सदनों के सम्मिलित अधिवेशन में दिये गये अभिभाषण से यह स्पष्ट हो गया कि नरेंद्र मोदी के नेतृ्तव वाली केंद्रीय सरकार चुनाव घोषणापत्र में किये अपने वायदों के प्रति संकल्पवान और सजग है। उसके अब तक के कदम दिखाते हैं कि उसने दिशा में और ,सोच-समझ कर काम करने का प्रयास शुरू कर दिया है। शहरों से लेकर गांवों तक में वह क्रांतिकारी परिवर्तन लाने के लिए कृतसंकल्प है। लेकि सरकार का यह संकल्प मूर्त रूप तभी होगा जब इसके लिए सबका साथ मिले। मोदी जी ने भी अपने चुनावी अभियान के वक्त यही नारा दिया था -सबका साथ सबका विकास। मोदी सरकार अपार जनादेश लेकर बहुमत से सत्ता में आयी है। यह न तो जोड़-तोड़ की सरकार है न ही इसे बैसाखियों की जरूरत है इसे
अपना काम करने के लिए अगर किसी चीज की जरूरत है तो देश मे शांति और सौहार्द के वातावरण की ताकि इसका ध्यान सिर्फ और सिर्फ विकास पर ही लगे न कि देश इधर -उधर भड़कती हिंसक घटनाओं को संभालने में। यह तय है कि सत्ता में जब ऐसे अभूतपूर्व परिवर्तन होते हैं तो इससे देश की बड़ी आबादी खुश होती है लेकिन कुछ लोगों को इससे जलन और पीड़ा भी होती है। यह स्वाभाविक भी है जरूरी नहीं कि देश की अधिकांश जनता के विचार बाकी लोगों को भी मान्य हों। इससे समाज के कुछ तबकों में भय का माहौल बनता है। हाल की कुछ घटनाओं ने ये खतरनाक संकेत दिये हैं कि कहीं-कहीं कुछ लोग सामाजिक समरसता, आपसी भाईचारे और समाज के विभिन्न तबकों के बीच सौहार्द को बिगाड़ने के लिए हिंसक घटनाएं कर रहे हैं। ऐसी कोई भी घटना देश के हित में कतई नहीं कही जा सकती। विविधता में एकता हमारे भारत की विशेषता है और यही इसकी सुंदरता है जिसके लिए विश्व इसे सराहता है। अगर हम इसे ही खो देंगे तो हमारे पास गर्व करने के लिए क्या बचेगा। कोई भी जाति अपने आप पर तभी गर्व कर सकती है जब दूसरों को भी उसके कार्यों उसके प्रयास पर गर्व हो। उसका हर कदम सामाजिक समरसता और सौहार्द को बढ़ावा देने को उठा कदम हो। हिंसा किसी भी प्रकार की हो और इसका शिकार कोई भी हो वह  निंदनीय है। अक्सर देखा यह जाता है कि किसी छोटी-सी बात का बतंगड़ बना कर उस झगड़े को ऐसा तूल दिया जाता है कि उसमें निर्दोष लोगों का भी नुकसान होता है। अगर किसी को किसी की हरकत से शिकायत है तो उसे महल्ले या शहर के चंद बुजुर्गों या गुणी-मानी व्यक्तियों के साथ बैठ कर सलटा लेना चाहिए। किसी भी हालत में झगड़े को संघर्ष या वैमनस्य की आग फैलाने के उपक्रम के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। दंगे या फिजूल का संघर्ष जान-मान की हानि तो करता ही है, यह सामाजिक सौहार्द के ताने-बाने को भी तोड़ देता है जिसे दोबारा जोड़ने में सदियां गुजर जाती हैं। याद रखिए एक बार किसी का किसी विश्वास उठा और प्रेम के बीच घृणा के बीज पड़ गये तो फिर वापस सौहार्द शायद ईश्वर भी नहीं लौटा पायेंगे।
    मोदी सरकार के सत्ता संभालने के बाद से कई राज्यों में राजनीतिक हिंसाओं का न थमनेवाला दौर, कुछ राज्यों में अचानक आयी बलात्कार, हत्याओं और दूसरे तरह के अपराधों की बाढ़ यह जताती है कि कुछ शक्तियां हैं जो केंद्र की सरकार को स्थिर नहीं रहने देना चाहतीं।  वे राज्यों में अशांति फैला कर केद्र सरकार को अपने उद्देश्य से भटकाना और राज्यों की कानून व्यस्था के पचड़े में फंसाना चाहती हैं। हमारा संघीय गणतंत्र है जहां कुछ मामलों को छोड़ कर अन्य मामलों में केंद्र रा्ज्य पर सीधे हस्तेक्षेप भी नहीं कर सकता। वह ऐसी आपराधिक घटनाओं पर राज्यों से रिपोर्ट मांग सकता है। उनसे ताकीद कर सकता है कि वे कानुन व्यवस्था की स्थिति संभाले। विशेष परिस्थितियों में ही केंद्र राज्य सरकारों के खिलाफ कदम उठा सकता है। ऐसे में लगता यही है कि ये सारी घटनाएं सुनियोजित तरीके से की जा रही हैं ताकि केंद्र को परेशान किया जा सके, इनके खिलाफ जनांदोलन हो और देश अशांत हो। आज केंद्र सरकार कुछ करने को गंभीर दिखती है, उसे पांच साल के लिए जनादेश मिला है इसलिए हर  एक का कर्तव्य है कि उसे काम करने का सही माहौल दें।
    दंगे, संघर्ष या सामाजिक, जातीय विद्वेष किसी समाज या देश को कहीं नहीं ले जाते। इन सबसे देश का विकास सदियों पीछे चला जाता है। समाज में भी दुराव-अलगाव का ऐसा भाव आ जाता है जो किसी भी समाज के लिए हितकर नहीं है। अब जबकि तीन दशक बाद देश ने किसी एक दल को पूर्ण बहुमत प्रदान किया है तो यह देश की इच्छा है, उसकी पसंद है अब इसमें किसी के सीने पे सांप लोटता हो तो वह अपनी सोच का इलाज करे। यह आज की हकीकत है कि भाजपा को देश ने अभूतपूर्व जनादेश दिया है और उसे सत्ता सौंपी है। यह सबको (दुखी और भारी मन से ही सही) मान लेना चाहिए। यही देश और समाज के हित में है। विपक्ष को चाहिए कि वह भी जनादेश की कद्र करे और सरकार को जनहित के कार्य करने, नयी योजनाएं कार्यान्वित करने में मदद दे।
    सरकार की कई योजनाएं काफी महत्वपूर्ण और क्रांतिकारी हैं। जैसे 100 स्मार्ट शहर बसाना, रेल परिवहन में सुधार-विकास, गांवों को आत्मनिर्भर बनाना, वहां मूलभूत सुविधाएं पहुंचना, नदियों को जोड़ना, गंगा पुनरुद्धार, सभी राज्यों में एम्स की स्थापना, कृषि के क्षेत्र में युगांतकारी परिवर्तन की योजना व अन्य जनहितैषी योजनाएं ऐसी हैं कि अगर इनमें से आधी भी साकार हो जायें तो देश का कायाकल्प हो जायेगा। लेकिन इसके लिए देश में शांति और सौहार्द का वातावरण चाहिए। मोदी जी ने सबका साथ सबका विकास व एक भारत, श्रेष्ट भारत का नारा दिया था जिसमें कहीं भी कोई शक की गुंजाइश हो। मोदी जी ने किसी जाति का नहीं बल्कि सभी भारतीयों का साथ मांगा है। जिनके तनिक भी बुद्धि है उन्हें यह समझने में कष्ट नहीं होना चाहिए की सभी भारतीयों में हर वर्ग, हर जाति, हर संप्रदाय का व्यक्ति शामिल है, इससे कोई भी नहीं छूटता। जो विकास, देश की जो सत्ता जातियों पर आधारित है वह सबसे न्याय नहीं कर सकती। सर्वांगीण विकास, सार्विक विकास ही पूर्ण और सार्थक विकास है। ऐसे विकास का नारा ही मोदी जी ने दिया है। सरकार तो अभी शुरू ही हुई है, दूसरों को इतना मौका दिया, इन्हें भी पांच साल देकर देखिए। उन्हें जनादेश मिला है. देश की जनता ने उन्हें दिल्ली की सत्ता तक भेजा है, वे किसी की दया या मेहरबानी से नहीं आये। हां, उन पर किसी ने मेहरबानी की है तो भ्रष्टाचार, महंगाई, घोटाला और अनाचार से ऊबी जनता ने खुद तो इस संकट से उबारने के लिए उन्हें भेजा है।
    विपक्ष की भी संसदीय लोकतंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका होती है लेकिन यह भूमिका सकारात्मक होनी चाहिए सिर्फ विरोध के लिए विरोध नहीं होना चाहिए। लोकतंत्र का यह तकाजा है कि अगर सरकार कोई सार्थक कदम उठा रही है तो विपक्ष को उसका साथ देना चाहिए, हर सही कदम का भी विरोध करना बेमानी और लोकतंत्र के साथ ज्यादती है। जनता ने आपको इसलिए तो नहीं भेजा कि आप जनहित की योजनाओं में भी अडंगा लगाने बैठ जायें। एक नया माहौल देश को मिला है तो यह जनता, सांसदों और जनप्रतिनिधियों का यह कर्तव्य है कि अगर विकास का नया रथ आगे बढ़ने को है तो उसमें सहयोग दें। हां, जब भी जनविरोधी, देश विरोधी या अनिचित कदम सरकार उठाती है तो एक सजग, सतर्क विपक्ष की तरह उसका जम कर विरोध करें। देखिएगा अगर आप स्वयं में यह परिवर्तन करने में सफल रहे तो जनता आपको भी सराहेगी। देश की दशा दिशा बदलने के है, विकास के इस पुण्य कार्य को आगे बढ़ाने में हर भारतीय जाति, धर्म, संप्रदाय के भेदभाव से ऊपर उठ कर एक सच्चे भारतीय के रूप में सहभागी बने। सोच यह होनी चाहिए कि हम किसी जाति धर्म के हों पहले भारतीय हैं। पहले देश, बाद में समाज या जाति।
   

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