बलात्कार, नारी उत्पीड़न की बढ़ती घटनाओं
पर विश्व भी उठा रहा है सवाल
-राजेश त्रिपाठी
यत्र नार्यास्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता की अवधारणा देनेवाले देश में आज अगर सबसे दमित, सबसे उत्पीडित और शोषित समाज का कोई अंग है तो वह है नारी। पुरुष प्रधान समाज में आज नारी सबसे अधिक पीड़ित और वंचित है। मानाकि आज नारी आगे बढ़ी है, उसे समानता का अधिकार भी मिला है लेकिन गांव-देहात की अशिक्षित महिलाएं, कन्याएं आज भी पीड़ित, शोषित हैं। उन पर आयेदिन बलात्कार, दहेज उत्पीडन की खबरें सुनने को मिलती हैं। कई प्रदेशों में तो इन दिनों सामूहिक बलात्कार और फिर हत्याओं की खबरों की जैसे बाढ़ आ गयी है। जिन प्रदेशों में ये शर्मनाक, दर्दनाक घटनाएं हो रही हैं वहां के मुखिया या अन्य नेता इसका दोष समाचारपत्रों या समाचार चैनलों पर मढ़ते हैं। उनका कहना है कि मीडिया अगर इन खबरों को ना उछाले तो इतना हो-हल्ला नहीं हो। यानी घटनाएं रोकने पर वे गंभीर नहीं इस बात से खफा हैं कि ऐसी खबरें बाहर क्यों आ जाती हैं। उत्तर प्रदेश जिसके लिए कभी उत्तम प्रदेश का नारा दिया जाता था आज सामूहिक बलात्कार, बलात्कार और उसके बाद हत्याओं की खबरों के लिए सुर्खियों में है। वहां के सत्ता के आका कहते हैं कि बलात्कार तो हर राज्य में होते हैं फिर उत्तर प्रदेश को लेकर ही हाय-तौबा क्यों। वाह बहुत खूब अपराधों को तार्किक ठहराने का यह तर्क भी खूब है। यह उस जनता, उन कन्याओं के साथ भद्दा मजाक है जो आयेदिन दबंगों की हवश और फिर पुलिस निष्क्रियता का शिकार होती हैं। यह तर्क देकर ये नेता यही जताना चाहते हैं ना कि अगर बलात्कार और हत्य़ाएं दूसरे राज्यों में होती हैं तो फिर उनके राज्यों में होने से हाय-तौबा क्यों। इनकी यह भी शिकायत है कि ये खबरें मीडिया क्यों उछालता है। इन नेताओं को यह नहीं भूलना चाहिए की मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना गया है और जहां भी अनीति, अनाचार या अत्याचार है मीडिया उसे अवश्य उजागर करेगा। सत्ता के धृतराष्ट्रों को यह बतायेगा कि आंखें खोलो और राज्य में होते अनर्थ को रोको। होना यह चाहिए था कि शासक या अधिकारी इन घटनाओं को रोकने की प्राणपण कोशिश करते लेकिन इसके हलका करके लेने और इन्हें किसी न किसी तरह से दबाने में ही सारा जोर लगाया जा रहा है।
उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले के कटरा गांव की दो नाबालिग लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार और फिर पेड़ पर फांसी से लटका कर उनकी हत्या के मामले से न केवल देश बल्कि विदेश तक सकते में है। इस मामले की जांच में शुरू में जिस तरह से ढीला रुख अपनाया गया उस पर भी सवाल खड़े किये जा रहे हैं। केंद्र तक ने इस घटना को गंभीरता से लिया और राज्य सरकार से घटना की पूरी जानकारी मांगी। ये दोनों नाबालिग कन्याएं सुबह शौच के लिए गांव से बाहर गयी थीं जब उनके साथ ये दर्दनाक और वहशियाना वारदात हुई। नरेंद्र मोदी अपने भाषणों में अगर देवालय से पहले शौचालय बनाने की बात कर रहे थे तो वे ऐसा कहते हुए पूरी तरह से प्रासंगिक और तार्किक थे। इसे भले ही रूढ़िवादी लोग दूसरा रंग दें लेकिन मोदी अपने हर भाषण में यह कहते सुने गये कि मां-बहनों को आज भी शौच के लिए बाहर जाना पड़ता है, यह शर्म की बात है। वाकई गांव-देहात में महिलाओं की इसके लिए कितनी परेशानी झेलनी पड़ती है यह सिर्फ और सिर्फ वही जानती हैं। अपने-अपने क्षेत्र से चुन कर गये सांसदों को अपनी सांसद निधि का बड़ा हिस्सा अपने क्षेत्र के गांवों में शौचालय बनाने में इस्तेमाल करना चाहिए। आखिर कब तक देश की आधी आबादी का एक बड़ा हिस्सा इस कष्ट को भोगने को विवश होगा।
बदायूं गैंगरेप और हत्या की घटना से पूरा विश्व सकते में है। यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून तक ने इसकी भर्त्सना की है। उत्तर प्रदेश में महिलाओं पर रोज हो रहे यौन हमले दुनिया में भारत की छवि पर कालिख पोत रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र ने एक के बाद एक हमलों और उन पर नेताओं के संवेदनहीन बयानों पर अचरज जतया है। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून ने खास तौर पर यूपी के बदायूं में दो नाबालिग लड़कियों के साथ हुए वहशी बलात्कार और कत्ल का जिक्र करते हुए चिंता जतायी है, इतना ही नहीं बान की मून ने बलात्कार को नौजवान लड़कों की गलती बताने वाले मुलायम सिंह यादव के बयान की भी निंदा की और कहा कि इस तरह के बयानों को तरजीह नहीं दी जानी चाहिए। बान की मून ने कहा कि पिछले दो हफ्तों में हमने पूरी दुनिया में महिलाओं और लड़कियों पर भयावह हमले देखे हैं। चाहे नाइजीरिया से पाकिस्तान हो या फिर कैलीफोर्निया से लेकर भारत हो। लेकिन मैं खास तौर पर हैरान हूं भारत में उन दो नाबालिग लड़कियों के बलात्कार और हत्या से जो सिर्फ इस वजह से घर से बाहर निकलीं थीं क्योंकि उनके घर में शौचालय नहीं था। हमें लड़के तो लड़के हैं उनसे गलती हो जाती है जैसे बयानों को ठुकराना होगा, ये लहजा सिर्फ नुकसान ही पहुंचाएगा। हमें सबको समझाना होगा कि महिलाओं के खिलाफ अपराध हम सबको गर्त में ले जाते हैं। ये अपराध शांति, सुरक्षा और विकास के मुद्दों से जुड़े हैं, ये अपराध मानवाधिकारों का उल्लंघन हैं। मैं अपनी आवाज उठा रहा हूं, मैं चाहता हूं कि आप सब मेरे साथ अपनी आवाज उठाएं और ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग करें। हमें यौन हिंसा किसी भी रुप में मंजूर नहीं।वहीं अमरीका ने भी साफ कह दिया है कि भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा डरावनी है। अमरीका ने कहा कि जो भी इस तरह कि हिंसा का शिकार हो रहे हैं उनके साथ उसकी पूरी संवेदना है।
महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं न सिर्फ निंदनीय अपितु भयावह वह वहशियाना हैं। इन्हें रोकने के लिए हर तरह से कोशिश होनी चाहिए। देखा यह गया है कि ऐसी घटनाओं की शिकार अक्सर उस वर्ग की महिलाएं या लड़कियां होती हैं जो समाज के शोषित, वंचित, कमजोर तबके से आती हैं। ऐसे लोगों में न तो पुलिस तक जाने का साहस होता है ना ही उन दबंगों के खिलाफ आवाज उठाने का जो ऐसी वारदातों को अंजाम देते हैं। ऐसे तबके की बहुत सी पीडित स्त्रियां इस अपमान को खून का घूंट समझ चुपचाप झेल जाती हैं। थाने या पुलिस तक रिपोर्ट उन्हीं की पहुंच पाती हैं जिन्हें गांव या किसी महिला या सामाजिक संगठन की मदद मिल पाती है। अक्सर देखा गया है कि इस तरह की घटनाओं में पीड़िता और उसके परिवार को धमकियां दी जाती हैं कि अगर पुलिस में रिपोर्ट की तो अंजाम अच्छा नहीं होगा। इस खौफ से बहुत से लोग इस अपमान को चुपचाप बरदाश्त करने के अलावा कुछ नहीं कर पाते। नारी के साथ बलात्कार हत्या से भी बड़ा अपराध है क्योंकि इसकी पीडित महिला को जिंदगी भर शर्मिंदगी की मौत तिल-तिल कर मरना होता है। जबकि जो अपराध उस पर हुआ उसके लिए वह किसी भी तरह से दोषी नहीं है। अपराध करनेवाला रसूख वाला हुआ तो वह आजाद घूमता रहता है और उसकी सतायी लड़की या स्त्री अपराधी की तरह मुंह छिपा कर परिवार और समाज के तानों के नश्तर झेलने को विवश होती है। समाज में यह सूरत बदलनी चाहिए। मातृशक्ति को खोया सम्मान और अधिकार नहीं मिलेगा तो समाज भी नहीं टिक सकेगा। जो बलात्कार जैसा अपराध करता है, उसको कानून जो सजा दे वह दे लेकिन समाज को भी सजा देनी चाहिए। वह सजा उसको समाज से बहिष्कृत करके दी जा सकती है। कोई परिवार न उसे अपनी लड़की दे और न ही उससे किसी भी तरह का रिश्ता रखे। वह समाज से पूरी तरह से काट दिया जाये ताकि उसे अपने अपराध और पाप का बाकी जिंदगी एहसास होता रहे। होता यह है कि ऐसे अपराध करके भी लोग शान से जीते रहते हैं। उनके खिलाफ कोई गवाही देने की हिम्मत नहीं करता और गवाही के बगैर हमारा कानून कुछ कर नहीं सकता। इस तरह पीडिता अन्याय झेल कर भी घुट-घुट कर जिंदगी जीने को विवश होती रहती है।
समझ में यह नहीं आता कि इस सामाजिक बुराई के खिलाफ लगातार एक अभियान क्यों नहीं छेड़ा जाता। जहां ऐसी घटनाएं होती हैं वहां कुछ दिन हो-हल्ला मचता है और फिर सब कुछ ठंडा पड़ जाता है लेकिन जिसने अपमान का यह दंश झेला है उसकी जिंदगी तो हमेशा के लिए वीरान और अंधेरी हो जाती है। एक विडंबना यह भी है कि समाज सतायी हुई महिला को भी दोषी की तरह देखता और ताने कसता है। इससे उसकी जिंदगी और दूभर हो जाती है। दिल्ली के निर्भया कांड ने पूरे देश के मानस को झकझोर दिया था और विरोध का एक ऐसा तूफान उठा था जिससे प्रशासन भी सत्वर कदम उठाने को विवश हुआ था। इस देश की माताओं-बहनों को इज्जत से जीने और सुरक्षा का अधिकार दिलाने का वातावरण तैयार करने के लिए कितनी निर्भयाओं की बलि चाहता है यह देश। कब थमेगा महिलाओं पर यह जुल्म । पूरा विश्व आज हम पर थुक रहा है। हम जो शांतिदूत, विश्वगुरु और न जाने क्या-क्या कहलाने का गौरव रखते थे आज पतन के उस गर्त में जा रहे हैं जहां से उबरना आसान नहीं होगा। पश्चिम के भोगलिप्सा से ऊबे युवाओं को शांति की तलाश में भारत आना पड़ा था और हम उसी भोगलिप्सा में डूब कर भौतिक सुख को ही सच्चा सुख मानने की गलती कर रहे हैं।
बलात्कार पीडित महिला के साथ एक बार ही बलात्कार नहीं होता। अगर उसे जीवित छोड़ दिया गया तो फिर उसे मामले में हर पेशी में शाब्दिक बलात्कार का दंश झेलना पड़ता है। उससे इस तरह के सवाल किये जाते हैं जो सभ्य समाज में महिलाओं से पूछना उनका अपमान करना है। अब वक्त आ गया है कि बलात्कार के मामलों की सुनवाई के लिए फास्ट कोर्ट बनाये जायें और इससे जुड़े अपराधियों को जल्द से जल्द और सख्त से सख्त सजा दी जाये। जो लोग ऐसे अपराधियों को बचाने के लिए सतही तर्क देते हैं उनसे यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि ऐसी ही घटना अगर उनके अपने किसी के साथ हो तो क्या तब भी उनके मुंह से उनके समर्थन की आवाज निकलेगी। कम से कम अपराध के मामले में तो लोगों को गंभीर और तार्किक होना चाहिए। जो निर्दोष है उसकी रक्षा हर हाल में होनी चाहिए लेकिन जो अपराधी है , जिसकी दोषसिद्धि हो गयी है उसके प्रति सहानुभूति और सतायी गयी महिला के प्रति उदासीनता ही इन घटनाओं में वृद्धि की एक मूल वजह है। होना यह चाहिए कि सतायी हुई महिला को पूरा समर्थन मिले, उसे यह जताया जाये कि जो कुछ हुआ उसमें उसका रंचमात्र अपराध नहीं और वह समाज में पूरे सम्मान से जीने की हकदार है। बलात्कार की घटनाओं को दबाने या उससे जुडे अपराधियों को बचाने, उनके समर्थन में सहानुभूतिपूर्ण बयान देने से भी ऐसी घटनाओं में वृद्धि होती है। जब नेता ही अपराधियों को समर्थन में बोलने लगें तो जाहिर है कि मनोबल तो उनका बढ़ेगा ही। अगर उन्हें कानूनन सजा न मिले तो वे वैसा अपराध बार-बार करेंगे जिससे वे साफ बच जाते हैं। शातिर अपराधी दिमाग से काम नहीं लेते वे तो क्षणित उत्तेजना के उफान पर जघन्य कार्य कर जाते हैं और फिर अपने बचाल के लिए धमकाने से लेकर तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं। बलात्कारी विकृत मानसिकता के शिकार होते हैं और उनकी इस विकृति से समाज में सडांध उत्पन्न होती है। यह समाज का वह अंग हैं जिनमें अगर सुधार न लाया जा सके तो उन्हें समाज से दूर कानून के हवाले करना व उनकी सही परिणति तक पहुंचाना ही श्रेयष्कर होगा।
बलात्कार रोकने के लिए स्कूली स्तर से ही सेक्स प्रशिक्षण देना शायद अब जरूरी हो गया है लेकिन यह शिक्षा शरीर विज्ञान, प्रजनन और सेक्स से जुड़े ऐसे प्रसंगों की सम्यक शिक्षा पर आधारित होनी चाहिए जो शिक्षा पाने वाले को स्वस्थ यौन जीवन जीने की प्रेरणा दे न कि इसके वहशी रूप की ओर धकेले। सेक्स शिक्षा को गंभीरता से लेना चाहिए, इसके लिए पाठ्यक्रम को इस तरह से तैयार किया जाना चाहिए ताकि वह न जुगुप्सा जगाये न उत्तेजना अगर कुछ जगाये तो सेक्स से प्रति सही जानकारी और तदनुसार जीने की कला।
बलात्कार के मामलों में उत्तर प्रदेश में तो हद ही हो गयी है। हाल ही में यहां अलीगढ़ के सिविल लाइन क्षेत्र में एक महिला सिविल जज के साथ बलात्कार और हत्या के प्रयास का मामला दर्ज कराया गया है। जिन दो व्यक्तियों के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दायर करायी गयी है उनके बारे में आरोप है कि उन्होंने जज को कीटनाशक का छिड़काव कर बेहोश कर दिया और उनके कपडे फाड़ दिए। आरोपियों ने उनके साथ बालात्कार और हत्या की कोशिश की। जज को अलीगढ़ मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया है। इस सिलसिले में आरोपियों के खिलाफ गंभीर धाराओं में मामला दर्ज कराया गया है। पुलिस मामले की छानबीन कर रही है। यह घटना यह साबित करने के लिए काफी है कि अपराधियों के हौसले इतने बढ़ गये हैं कि वे सिर्फ शोषित दमित तबके ही महिलाओं ही नहीं अपितु उच्च पदों पर काम कर रही महिलाओं तक पर हमला करने लगे हैं। इन घटनाओं को रोका न गया तो गांव-घरों से महिलाओं का बाहर निकलना भी मुश्किल हो जायेगा। वैसे इसकी भी कोई गारंटी नहीं कि वे घर के भीतर रह कर भी सुरक्षित रहेंगी।
बलात्कार से पीड़ित महिलाओं के मामलों के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट के अलावा ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए महिला जजों की नियुक्ति करना भी जरूरी है। ऐसी सुनवाई में पूछताछ के लिए महिला वकीलों को रखा जाये। इस पूछताछ में या पीड़ित महिला के बयान देते वक्त कक्ष में सिर्फ और सिर्फ महिला अधिकारी हों वे चाहे पुलिस से हों या लीगल डिपार्टमेंट से। ये सारी सुनवाई आन कैमरा होनी चाहिए। पीडित महिला से अगर महिला अधिकारी सवाल-जवाब करेंगी तो शायद उसे उतनी झिझक और शर्मिंदगी का एहसास नहीं होगा जैसा कि पुरुष अधिकारियों द्वारा की गयी पूछताछ से होता है। ऐसे अधिकारी पूछताछ इतने अशालीन ढंग से करते हैं कि पीड़ित महिला घबरा जाती है। इसके अलावा इन घटनाओं की बाढ़ देख कर यह जरूरी हो गया है कि महिला कल्याण मंत्रालय की ओर से इनकी रोकथाम और अपराधियों को उचित और सख्त से सख्त सजा दिलाने के लिए जल्द से जल्द कदम उठाये जायें। इसके अलावा बलात्कार जैसे मामलों की निपटारे के लिए अलग प्रकोष्ठ (सेल) बनाये जाने चाहिए जिनमें सिर्फ और सिर्फ महिला अधिकारियों को ही रखा जाये। एक पीड़ित महिला का दर्द जितना एक दूसरी महिला समझ सकेगी उतना पुरुष नहीं समझ सकेगा। पुरुष के सामने पीड़ित महिला शर्मिंदगी के डर से खुल कर अपनी विपदा सुनाने से हिचकेगी। बलात्कार का अपराध जिस गति से बढ़ रहा है उसके प्रति सरकार और समाज को तुरत सचेत हो इसे रोकने के हर संभव प्रयास करने चाहिए। समाज के हर वर्ग, हर सदस्य को यह सोचना चाहिए कि आज जो किसी दूसरे साथ हुआ है मुमकिन है कल वह उनके साथ भी हो जाये। ऐसा सोच दूसरे के दुख को अपना मान कर इस अपराध के खिलाफ अपने तईं जो संभव हो प्रयास अगर समाज करेगा तभी मातृशक्ति की रक्षा हो सकेगी। नेताओं को भी अब जुबान पर लगाम देनी होगी। अपराधियों के समर्थन में दिया गया कोई भी बयान उनकी पीठ ठोंकने के समान है जो उन्हें यह अपराध कर्म करने को और प्रोत्साहित करेगा। जो पुलिस अधिकारी बलात्कार पीड़ित का बयान दर्ज करने में आनाकानी करते हैं या अपराधी को बचाने की कोशिश करते हैं उन्हें भी समान रूप से दोषी माना जना चाहिए। कारण, अपराधी को बचाना, संरक्षण देना या उसके अपराध को कम करके आंकना भी तो अपराध ही है। इन सारे पक्षों को एक साथ दुरुस्त करने से ही बलात्कार की घटनाओं पर नियंत्रण पाया जा सकता है। क्या यह समाज इतना पतनशील हो गया है कि माताओं-बहनों को सम्मान से जीने का अवसर भी यहां नहीं मिल सकता। अगर यही हाल रहा तो आनेवाला कल आज से भी भयावह होनेवाला है। जिन्हें भारत की गरिमा, इसके गौरव और सम्मान की फिक्र है वे खोल से बाहर आयें और इस अपराध के खिलाफ जहां हैं, जैसे हैं डट कर खड़े हों।
महिलाएं राष्ट्र के निर्माण में और परिवार के ढांचे को संभालने, संवारने में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभा रही हैं। वे समाज का अभिन्न और अनिवार्य अंग हैं उन्हें वैसे ही सम्मान मिलना चाहिए। अगर महिलाओं को उचित सम्मान न मिला और उनका ऐसे ही अपमान होता रहा, उन्हें ऐसे ही हमलों का शिकार होना पड़ा तो एक दिन भारत को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। जो राष्ट्र अपनी
आधी आबादी की रक्षा नहीं कर सकता, उसकी गरिमा, अस्मिता को अक्षुण्ण नहीं रख सकता वह और कुछ भी करे खुद पर गर्व तो नहीं कर सकता। आज स्थिति यह है कि नारियों पर अत्याचार की बढ़ती घटनाओं पर पूरा विश्व हम पर थूक रहा है। क्या हमारे शासन-प्रशासन और समाज व्यवस्था में इतना भी दम नहीं कि वह पाप की इस अंधेरी सुरंग से उबर कर एक ऐसे समाज का निर्माण करे जो समानता, सम्मान और समरसता व सह अस्तित्व के सिद्धांत पर जीने का पक्षधर हो? अगर आप मेरे विचारों से सहमत हैं तो कृपया इस बारे में अापकी टिप्पणियों से ही सही इन विचारों में सहभागी बनें।
उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले के कटरा गांव की दो नाबालिग लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार और फिर पेड़ पर फांसी से लटका कर उनकी हत्या के मामले से न केवल देश बल्कि विदेश तक सकते में है। इस मामले की जांच में शुरू में जिस तरह से ढीला रुख अपनाया गया उस पर भी सवाल खड़े किये जा रहे हैं। केंद्र तक ने इस घटना को गंभीरता से लिया और राज्य सरकार से घटना की पूरी जानकारी मांगी। ये दोनों नाबालिग कन्याएं सुबह शौच के लिए गांव से बाहर गयी थीं जब उनके साथ ये दर्दनाक और वहशियाना वारदात हुई। नरेंद्र मोदी अपने भाषणों में अगर देवालय से पहले शौचालय बनाने की बात कर रहे थे तो वे ऐसा कहते हुए पूरी तरह से प्रासंगिक और तार्किक थे। इसे भले ही रूढ़िवादी लोग दूसरा रंग दें लेकिन मोदी अपने हर भाषण में यह कहते सुने गये कि मां-बहनों को आज भी शौच के लिए बाहर जाना पड़ता है, यह शर्म की बात है। वाकई गांव-देहात में महिलाओं की इसके लिए कितनी परेशानी झेलनी पड़ती है यह सिर्फ और सिर्फ वही जानती हैं। अपने-अपने क्षेत्र से चुन कर गये सांसदों को अपनी सांसद निधि का बड़ा हिस्सा अपने क्षेत्र के गांवों में शौचालय बनाने में इस्तेमाल करना चाहिए। आखिर कब तक देश की आधी आबादी का एक बड़ा हिस्सा इस कष्ट को भोगने को विवश होगा।
बदायूं गैंगरेप और हत्या की घटना से पूरा विश्व सकते में है। यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून तक ने इसकी भर्त्सना की है। उत्तर प्रदेश में महिलाओं पर रोज हो रहे यौन हमले दुनिया में भारत की छवि पर कालिख पोत रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र ने एक के बाद एक हमलों और उन पर नेताओं के संवेदनहीन बयानों पर अचरज जतया है। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून ने खास तौर पर यूपी के बदायूं में दो नाबालिग लड़कियों के साथ हुए वहशी बलात्कार और कत्ल का जिक्र करते हुए चिंता जतायी है, इतना ही नहीं बान की मून ने बलात्कार को नौजवान लड़कों की गलती बताने वाले मुलायम सिंह यादव के बयान की भी निंदा की और कहा कि इस तरह के बयानों को तरजीह नहीं दी जानी चाहिए। बान की मून ने कहा कि पिछले दो हफ्तों में हमने पूरी दुनिया में महिलाओं और लड़कियों पर भयावह हमले देखे हैं। चाहे नाइजीरिया से पाकिस्तान हो या फिर कैलीफोर्निया से लेकर भारत हो। लेकिन मैं खास तौर पर हैरान हूं भारत में उन दो नाबालिग लड़कियों के बलात्कार और हत्या से जो सिर्फ इस वजह से घर से बाहर निकलीं थीं क्योंकि उनके घर में शौचालय नहीं था। हमें लड़के तो लड़के हैं उनसे गलती हो जाती है जैसे बयानों को ठुकराना होगा, ये लहजा सिर्फ नुकसान ही पहुंचाएगा। हमें सबको समझाना होगा कि महिलाओं के खिलाफ अपराध हम सबको गर्त में ले जाते हैं। ये अपराध शांति, सुरक्षा और विकास के मुद्दों से जुड़े हैं, ये अपराध मानवाधिकारों का उल्लंघन हैं। मैं अपनी आवाज उठा रहा हूं, मैं चाहता हूं कि आप सब मेरे साथ अपनी आवाज उठाएं और ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग करें। हमें यौन हिंसा किसी भी रुप में मंजूर नहीं।वहीं अमरीका ने भी साफ कह दिया है कि भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा डरावनी है। अमरीका ने कहा कि जो भी इस तरह कि हिंसा का शिकार हो रहे हैं उनके साथ उसकी पूरी संवेदना है।
महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं न सिर्फ निंदनीय अपितु भयावह वह वहशियाना हैं। इन्हें रोकने के लिए हर तरह से कोशिश होनी चाहिए। देखा यह गया है कि ऐसी घटनाओं की शिकार अक्सर उस वर्ग की महिलाएं या लड़कियां होती हैं जो समाज के शोषित, वंचित, कमजोर तबके से आती हैं। ऐसे लोगों में न तो पुलिस तक जाने का साहस होता है ना ही उन दबंगों के खिलाफ आवाज उठाने का जो ऐसी वारदातों को अंजाम देते हैं। ऐसे तबके की बहुत सी पीडित स्त्रियां इस अपमान को खून का घूंट समझ चुपचाप झेल जाती हैं। थाने या पुलिस तक रिपोर्ट उन्हीं की पहुंच पाती हैं जिन्हें गांव या किसी महिला या सामाजिक संगठन की मदद मिल पाती है। अक्सर देखा गया है कि इस तरह की घटनाओं में पीड़िता और उसके परिवार को धमकियां दी जाती हैं कि अगर पुलिस में रिपोर्ट की तो अंजाम अच्छा नहीं होगा। इस खौफ से बहुत से लोग इस अपमान को चुपचाप बरदाश्त करने के अलावा कुछ नहीं कर पाते। नारी के साथ बलात्कार हत्या से भी बड़ा अपराध है क्योंकि इसकी पीडित महिला को जिंदगी भर शर्मिंदगी की मौत तिल-तिल कर मरना होता है। जबकि जो अपराध उस पर हुआ उसके लिए वह किसी भी तरह से दोषी नहीं है। अपराध करनेवाला रसूख वाला हुआ तो वह आजाद घूमता रहता है और उसकी सतायी लड़की या स्त्री अपराधी की तरह मुंह छिपा कर परिवार और समाज के तानों के नश्तर झेलने को विवश होती है। समाज में यह सूरत बदलनी चाहिए। मातृशक्ति को खोया सम्मान और अधिकार नहीं मिलेगा तो समाज भी नहीं टिक सकेगा। जो बलात्कार जैसा अपराध करता है, उसको कानून जो सजा दे वह दे लेकिन समाज को भी सजा देनी चाहिए। वह सजा उसको समाज से बहिष्कृत करके दी जा सकती है। कोई परिवार न उसे अपनी लड़की दे और न ही उससे किसी भी तरह का रिश्ता रखे। वह समाज से पूरी तरह से काट दिया जाये ताकि उसे अपने अपराध और पाप का बाकी जिंदगी एहसास होता रहे। होता यह है कि ऐसे अपराध करके भी लोग शान से जीते रहते हैं। उनके खिलाफ कोई गवाही देने की हिम्मत नहीं करता और गवाही के बगैर हमारा कानून कुछ कर नहीं सकता। इस तरह पीडिता अन्याय झेल कर भी घुट-घुट कर जिंदगी जीने को विवश होती रहती है।
समझ में यह नहीं आता कि इस सामाजिक बुराई के खिलाफ लगातार एक अभियान क्यों नहीं छेड़ा जाता। जहां ऐसी घटनाएं होती हैं वहां कुछ दिन हो-हल्ला मचता है और फिर सब कुछ ठंडा पड़ जाता है लेकिन जिसने अपमान का यह दंश झेला है उसकी जिंदगी तो हमेशा के लिए वीरान और अंधेरी हो जाती है। एक विडंबना यह भी है कि समाज सतायी हुई महिला को भी दोषी की तरह देखता और ताने कसता है। इससे उसकी जिंदगी और दूभर हो जाती है। दिल्ली के निर्भया कांड ने पूरे देश के मानस को झकझोर दिया था और विरोध का एक ऐसा तूफान उठा था जिससे प्रशासन भी सत्वर कदम उठाने को विवश हुआ था। इस देश की माताओं-बहनों को इज्जत से जीने और सुरक्षा का अधिकार दिलाने का वातावरण तैयार करने के लिए कितनी निर्भयाओं की बलि चाहता है यह देश। कब थमेगा महिलाओं पर यह जुल्म । पूरा विश्व आज हम पर थुक रहा है। हम जो शांतिदूत, विश्वगुरु और न जाने क्या-क्या कहलाने का गौरव रखते थे आज पतन के उस गर्त में जा रहे हैं जहां से उबरना आसान नहीं होगा। पश्चिम के भोगलिप्सा से ऊबे युवाओं को शांति की तलाश में भारत आना पड़ा था और हम उसी भोगलिप्सा में डूब कर भौतिक सुख को ही सच्चा सुख मानने की गलती कर रहे हैं।
बलात्कार पीडित महिला के साथ एक बार ही बलात्कार नहीं होता। अगर उसे जीवित छोड़ दिया गया तो फिर उसे मामले में हर पेशी में शाब्दिक बलात्कार का दंश झेलना पड़ता है। उससे इस तरह के सवाल किये जाते हैं जो सभ्य समाज में महिलाओं से पूछना उनका अपमान करना है। अब वक्त आ गया है कि बलात्कार के मामलों की सुनवाई के लिए फास्ट कोर्ट बनाये जायें और इससे जुड़े अपराधियों को जल्द से जल्द और सख्त से सख्त सजा दी जाये। जो लोग ऐसे अपराधियों को बचाने के लिए सतही तर्क देते हैं उनसे यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि ऐसी ही घटना अगर उनके अपने किसी के साथ हो तो क्या तब भी उनके मुंह से उनके समर्थन की आवाज निकलेगी। कम से कम अपराध के मामले में तो लोगों को गंभीर और तार्किक होना चाहिए। जो निर्दोष है उसकी रक्षा हर हाल में होनी चाहिए लेकिन जो अपराधी है , जिसकी दोषसिद्धि हो गयी है उसके प्रति सहानुभूति और सतायी गयी महिला के प्रति उदासीनता ही इन घटनाओं में वृद्धि की एक मूल वजह है। होना यह चाहिए कि सतायी हुई महिला को पूरा समर्थन मिले, उसे यह जताया जाये कि जो कुछ हुआ उसमें उसका रंचमात्र अपराध नहीं और वह समाज में पूरे सम्मान से जीने की हकदार है। बलात्कार की घटनाओं को दबाने या उससे जुडे अपराधियों को बचाने, उनके समर्थन में सहानुभूतिपूर्ण बयान देने से भी ऐसी घटनाओं में वृद्धि होती है। जब नेता ही अपराधियों को समर्थन में बोलने लगें तो जाहिर है कि मनोबल तो उनका बढ़ेगा ही। अगर उन्हें कानूनन सजा न मिले तो वे वैसा अपराध बार-बार करेंगे जिससे वे साफ बच जाते हैं। शातिर अपराधी दिमाग से काम नहीं लेते वे तो क्षणित उत्तेजना के उफान पर जघन्य कार्य कर जाते हैं और फिर अपने बचाल के लिए धमकाने से लेकर तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं। बलात्कारी विकृत मानसिकता के शिकार होते हैं और उनकी इस विकृति से समाज में सडांध उत्पन्न होती है। यह समाज का वह अंग हैं जिनमें अगर सुधार न लाया जा सके तो उन्हें समाज से दूर कानून के हवाले करना व उनकी सही परिणति तक पहुंचाना ही श्रेयष्कर होगा।
बलात्कार रोकने के लिए स्कूली स्तर से ही सेक्स प्रशिक्षण देना शायद अब जरूरी हो गया है लेकिन यह शिक्षा शरीर विज्ञान, प्रजनन और सेक्स से जुड़े ऐसे प्रसंगों की सम्यक शिक्षा पर आधारित होनी चाहिए जो शिक्षा पाने वाले को स्वस्थ यौन जीवन जीने की प्रेरणा दे न कि इसके वहशी रूप की ओर धकेले। सेक्स शिक्षा को गंभीरता से लेना चाहिए, इसके लिए पाठ्यक्रम को इस तरह से तैयार किया जाना चाहिए ताकि वह न जुगुप्सा जगाये न उत्तेजना अगर कुछ जगाये तो सेक्स से प्रति सही जानकारी और तदनुसार जीने की कला।
बलात्कार के मामलों में उत्तर प्रदेश में तो हद ही हो गयी है। हाल ही में यहां अलीगढ़ के सिविल लाइन क्षेत्र में एक महिला सिविल जज के साथ बलात्कार और हत्या के प्रयास का मामला दर्ज कराया गया है। जिन दो व्यक्तियों के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दायर करायी गयी है उनके बारे में आरोप है कि उन्होंने जज को कीटनाशक का छिड़काव कर बेहोश कर दिया और उनके कपडे फाड़ दिए। आरोपियों ने उनके साथ बालात्कार और हत्या की कोशिश की। जज को अलीगढ़ मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया है। इस सिलसिले में आरोपियों के खिलाफ गंभीर धाराओं में मामला दर्ज कराया गया है। पुलिस मामले की छानबीन कर रही है। यह घटना यह साबित करने के लिए काफी है कि अपराधियों के हौसले इतने बढ़ गये हैं कि वे सिर्फ शोषित दमित तबके ही महिलाओं ही नहीं अपितु उच्च पदों पर काम कर रही महिलाओं तक पर हमला करने लगे हैं। इन घटनाओं को रोका न गया तो गांव-घरों से महिलाओं का बाहर निकलना भी मुश्किल हो जायेगा। वैसे इसकी भी कोई गारंटी नहीं कि वे घर के भीतर रह कर भी सुरक्षित रहेंगी।
बलात्कार से पीड़ित महिलाओं के मामलों के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट के अलावा ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए महिला जजों की नियुक्ति करना भी जरूरी है। ऐसी सुनवाई में पूछताछ के लिए महिला वकीलों को रखा जाये। इस पूछताछ में या पीड़ित महिला के बयान देते वक्त कक्ष में सिर्फ और सिर्फ महिला अधिकारी हों वे चाहे पुलिस से हों या लीगल डिपार्टमेंट से। ये सारी सुनवाई आन कैमरा होनी चाहिए। पीडित महिला से अगर महिला अधिकारी सवाल-जवाब करेंगी तो शायद उसे उतनी झिझक और शर्मिंदगी का एहसास नहीं होगा जैसा कि पुरुष अधिकारियों द्वारा की गयी पूछताछ से होता है। ऐसे अधिकारी पूछताछ इतने अशालीन ढंग से करते हैं कि पीड़ित महिला घबरा जाती है। इसके अलावा इन घटनाओं की बाढ़ देख कर यह जरूरी हो गया है कि महिला कल्याण मंत्रालय की ओर से इनकी रोकथाम और अपराधियों को उचित और सख्त से सख्त सजा दिलाने के लिए जल्द से जल्द कदम उठाये जायें। इसके अलावा बलात्कार जैसे मामलों की निपटारे के लिए अलग प्रकोष्ठ (सेल) बनाये जाने चाहिए जिनमें सिर्फ और सिर्फ महिला अधिकारियों को ही रखा जाये। एक पीड़ित महिला का दर्द जितना एक दूसरी महिला समझ सकेगी उतना पुरुष नहीं समझ सकेगा। पुरुष के सामने पीड़ित महिला शर्मिंदगी के डर से खुल कर अपनी विपदा सुनाने से हिचकेगी। बलात्कार का अपराध जिस गति से बढ़ रहा है उसके प्रति सरकार और समाज को तुरत सचेत हो इसे रोकने के हर संभव प्रयास करने चाहिए। समाज के हर वर्ग, हर सदस्य को यह सोचना चाहिए कि आज जो किसी दूसरे साथ हुआ है मुमकिन है कल वह उनके साथ भी हो जाये। ऐसा सोच दूसरे के दुख को अपना मान कर इस अपराध के खिलाफ अपने तईं जो संभव हो प्रयास अगर समाज करेगा तभी मातृशक्ति की रक्षा हो सकेगी। नेताओं को भी अब जुबान पर लगाम देनी होगी। अपराधियों के समर्थन में दिया गया कोई भी बयान उनकी पीठ ठोंकने के समान है जो उन्हें यह अपराध कर्म करने को और प्रोत्साहित करेगा। जो पुलिस अधिकारी बलात्कार पीड़ित का बयान दर्ज करने में आनाकानी करते हैं या अपराधी को बचाने की कोशिश करते हैं उन्हें भी समान रूप से दोषी माना जना चाहिए। कारण, अपराधी को बचाना, संरक्षण देना या उसके अपराध को कम करके आंकना भी तो अपराध ही है। इन सारे पक्षों को एक साथ दुरुस्त करने से ही बलात्कार की घटनाओं पर नियंत्रण पाया जा सकता है। क्या यह समाज इतना पतनशील हो गया है कि माताओं-बहनों को सम्मान से जीने का अवसर भी यहां नहीं मिल सकता। अगर यही हाल रहा तो आनेवाला कल आज से भी भयावह होनेवाला है। जिन्हें भारत की गरिमा, इसके गौरव और सम्मान की फिक्र है वे खोल से बाहर आयें और इस अपराध के खिलाफ जहां हैं, जैसे हैं डट कर खड़े हों।
महिलाएं राष्ट्र के निर्माण में और परिवार के ढांचे को संभालने, संवारने में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभा रही हैं। वे समाज का अभिन्न और अनिवार्य अंग हैं उन्हें वैसे ही सम्मान मिलना चाहिए। अगर महिलाओं को उचित सम्मान न मिला और उनका ऐसे ही अपमान होता रहा, उन्हें ऐसे ही हमलों का शिकार होना पड़ा तो एक दिन भारत को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। जो राष्ट्र अपनी
आधी आबादी की रक्षा नहीं कर सकता, उसकी गरिमा, अस्मिता को अक्षुण्ण नहीं रख सकता वह और कुछ भी करे खुद पर गर्व तो नहीं कर सकता। आज स्थिति यह है कि नारियों पर अत्याचार की बढ़ती घटनाओं पर पूरा विश्व हम पर थूक रहा है। क्या हमारे शासन-प्रशासन और समाज व्यवस्था में इतना भी दम नहीं कि वह पाप की इस अंधेरी सुरंग से उबर कर एक ऐसे समाज का निर्माण करे जो समानता, सम्मान और समरसता व सह अस्तित्व के सिद्धांत पर जीने का पक्षधर हो? अगर आप मेरे विचारों से सहमत हैं तो कृपया इस बारे में अापकी टिप्पणियों से ही सही इन विचारों में सहभागी बनें।
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