रहने दें अभी थोड़ा-सा भरम
o क्या हम ऐसा करके अपने
दुश्मन की मदद नहीं कर रहे?
o क्या वह इससे आपके हथियारों
का काट नहीं बना लेंगे
o वे हथियार जिन पर आप नाज कर
रहे हैं।
o वह दुश्मन देश जिसके सिर पर
एक सशक्त देश का हाथ है।
o जो लगातार हमारे यहां
आतंकवादी घुसपैठ करा रहा है।
o आखिर हम रक्षा भेद
किसी पर क्यों जाहिर करें।
o कहावत भी है ‘ बंद मुट्ठी लाख की खुल गयी तो खाक की’ ।
o टीवी में लाइव कमेंट्री का
हस्र मुंबई हमले में हम देख चुके हैं।
o हाल ही एक चैनल ने एलओसी
में लगनेवाली तकनीक दिखायी।
o जाहिर है जिसे डरा रहे
हैं वह इसका जवाब खोज रहा होगा।
o तकनीक पर सिर्फ आपकी
पहुंच नहीं,कोई भी इसे पा सकता है।
o मीडिया को भी देश की रक्षा
के बारे में संयम बरतना चाहिए।
o सब कुछ दिखाना नहीं, देशहित
में जरूरी हो तो छिपाना सीखिए।
राजेश त्रिपाठी
एक प्रसिद्ध टीवी
चैनल पर एक कार्यक्रम देख कर यह पोस्ट लिखने को विवश हुआ हूं। चैनल का नाम देना
जरूरी नहीं समझता । जिन लोगों ने यह शो देखा होगा वह नाम तक भी पहुंच जायेंगे। इस
विवाद में क्यों पड़ना। बात देशहित की है इसलिए लिखना अपना परम कर्तव्य और एक धर्म
समझता हूं। पहले उस कार्यक्रम के बारे में बताता चलूं फिर उससे पड़नेवाले संभावित
प्रभावों पर भी अपनी अल्पबुद्धि से कुछ लिखूंगा। बरसों से हमारा देश पड़ोसी देश की
ओर से एलओसी के पार से करायी जा रही आतंकवादियों की घुसपैठ से बेहाल और तबाह है।
दूसरे देश की ओर से प्रायोजित आतंकवाद में हजारों निरीह जानें गयीं, हमारे तमाम
वीर सैनिक शहीद हुए लेकिन यह आफत थमने की बजाय बढ़ती ही जा रही है। कोई भी महीना,
हफ्ता ऐसा नहीं जाता जब सीमा पार से देश में घुसपैठ और आतंकवादियों से सुरक्षाबलों
की मुठभेड़ और सैनिकों के शहीद होने की खबरें ना आती हों। लाख कोशिशों के बाद भी
घुसपैठ नहीं रोकी जा पा रही है। भारत संयुक्त राष्ट्र में भी इस बात को जोरदार ढंग
से पेश कर चुका है कि उसका पड़ोसी देश आतंकी पाल रहा है, वहां उनके ट्रेनिंग सेंटर
चल रहे हैं, मुंबई हमले के गुनहगार वहां खुलेआम घूम रहे हैं लेकिन फिर भी कोई फर्क
नहीं पड़ रहा। पड़ोसी देश ‘उलटा चोर कोतवाल को
डांटे’ की तर्ज पर उलटे भारत को ही सवालों
में घेर रहा है। वह अपने यहां कुछ हिस्सों में होनेवाली हिंसा के लिए भारत को ही
दोषी ठहरा रहा है। यह दावा वह संयुक्त राष्ट्र में भी कर चुका है।
अब टीवी चैनल ने
खबर यह दिखायी कि भारत ने कोई नयी तकनीक विकसित की है जिसे वह एलओसी में तैनात
करने जा रहा है। यह तकनीक ऐसी है जिसे रिमोट से कंट्रोल किया जा सकेगा और यह सीमा पार
से घुसपैठ करनेवालों को अपनी विशेष प्रणाली से तुरत भांप लेगी। उनकी तस्वीर उसके
पैनल में उभरेगी और इसके उपकरण स्वयं निशाना साध कर घुसपैठिए या उनके उपकरण नष्ट
कर देगा। इसमें सैनिकों की भूमिका लगभग नगण्य होगी इस तरह से ऐसी घटनाओं में होने
वाली सैनिकों की प्राण हानि से बचा सकेगा। मैंने तो संक्षेप में लिखा लेकिन टीवी
चैनल ने पूरे विस्तार के साथ, ग्राफिक डिटेल से, विजुअल्स के साथ इस उपकरण को
दिखाया। यह चैनल विश्व के अधिकांश भाग में देखा जाता है। टीवी चैनल वालों से पूछा
जा सकता है कि इसे दिखा कर क्या दुश्मनों को आप यह संदेश नहीं दे रहे कि लो हमने
बना लिया तुम्हारे लिए यमराज, हिम्मत है तो खोजो इसका जवाब। हमारे चैनल वालों और
जिनने भी इस उपकरण का डिटेल आप तक पहुंचाया है उनसे विनम्र निवेदन है आप किसी
मुगालते में ना रहें, इस तरह से अपने मुंह मियां मिट्ठू बनना और अपनी ताल ठोंकना
देश के लिए घातक हो सकता है। मीडिया को कुछ तो संयम बरतना चाहिए। कम से कम जहां
सवाल देश की रक्षा का है वहां तो कोई सीमारेखा खींचनी चाहिए।
इसके साथ ही चैनल ने यह दिखाया कि किस तरह से एलओसी के पास लेजर की
दीवारें लगायी गयी हैं और कैसे उनसे घुसपैठिए पकड़े जायेंगे। जाहिर है यह
प्रोग्राम उस देश में जिसे आप डरा रहे हैं किसी न किसी ने जरूर देखा होगा। उन
लोगों ने भी देखा हो सकता है जिनको आप इन दीवारों से डरा रहे हैं। जाहिर है उन
लोगों ने आपके इस अभेद्य व्यूह को तोड़ने की तैयारियां शुरू कर दी होंगी। यह मत
भूलिए कि तकनीक तक सिर्फ आपकी ही पहुंच नहीं है। आज इंटरनेट की मदद से घातक हथियार
बनाने की तकनीक तक सबको उपलब्ध है। इसके अलावा जिसके पास पैसे हैं उनके लिए विश्व
में कुछ भी नामुमकिन नहीं है। फिर कुछ देश तो ऐसे हैं जो हथियारों के व्यापारी
हैं। उन्हें पैसे पाकर किसी को भी हथियार बेचने में संकोच नहीं होगा। आपने जो
तकनीक दिखाय़ी आपके दुश्मन उसकी काट की तैयारी करने में लग जायेंगे। आखिर हम रक्षा
संबंधी तैयारियों या प्रगति को गुप्त क्यों नहीं रख सकते। आप मत भूलिए ‘ बंद मुट्ठी लाख की खुल गयी तो खाक की’। आप से लोग तभी तक डरेंगे
जब तक आप खामोश हैं। वे समझ नहीं पायेंगे कि आपके दिल में क्या पक या पल रहा है।
आप ढोल की तरह बज गये तो समझिए आपने मात खायी। क्योंकि आपने तो अपना सब कुछ जाहिर
कर दिया अब आपका प्रतिद्वंद्वी इतना भी बेवकूफ नहीं कि वह आपका जवाब ना तैयार कर
सके। मानाकि मीडिया, प्रेस और अभिव्यक्ति
की आजादी गणतंत्र की पवित्र अवधारणा है लेकिन देशहित में अगर इसमें कुछ छिपाना
जरूरी हो तो शायद यह अन्याय नहीं बल्कि एक जिम्मेदारी और परम कर्तव्य होना चाहिए। सब
कुछ दिखाना नहीं, देशहित में जरूरी हो तो छिपाना सीखिए।
टीवी पर किसी आतंकवादी हमले का सीधा प्रसारण
क्या अनर्थ कर सकता है यह हमने मुंबई के 26/11 के हमले में देखा था। जब
तकरीबन सारे टीवी चैनल अपना सारा काम छोड़ मुंबई के ताज होटल और दूसरी जगह कैमरे
जमा कर बैठ गये थे। वे लगातार आतंकवादियों के हमले के साथ ही सुरक्षाबलों की
तैयारियों और उनके पल-पल के मूवमेंट की लाइव कवरेज दिखा रहे थे। इस लाइव प्रसारण
को पड़ोसी देश में बैठे हमलावरों के आका देख रहे थे और उन विजुअल्स के अनुसार
हमलावरों को निर्देश दे रहे थे कि सुरक्षाबल किसी दिशा की ओर बढ़ रहे हैं और उनको
कहां-कहां और कैसे इन सुरक्षाबलों से बचते हुए हमला करना है। सरकार को जब इस बात
का आभास हुआ तो बाकायदा टीवी चैनलों के लिए एक आदेश जारी हुआ कि हमलों का लाइव
प्रसारण बंद किया जाये। प्रसारण बंद हुआ लेकिन तब तक मुंबई तबाह हो चुकी थी। कई
निरीह जानें जा चुकी थीं। कई पुलिस अधिकारी शहीद हो चुके थे। क्या हासिल हुआ इस
सीधे प्रसारण से
मीडिया की भूमिका
समाचार प्रदान करने की है, जहां अनीति, अनाचार है उस पर चोट करने और उसे उजागर
करने की है। लेकिन क्या मीडिया की भूमिका अपने देश की रक्षा के बारे में नहीं है? क्या उसे रक्षा संबंधी
किसी संवेदनशील मामले को दिखाने से पहले चार बार सोचना नहीं चाहिए कि इसे दिखाने
का परिणाम क्या हो सकता है। जो प्रसारण दूर-दूर तक जाता है वह एक बड़ा नुकसान भी
कर सकता है। हम मीडिया की स्वतंत्रता के पक्षधर हैं पर अगर यह देश के लिए घातक है
तो ऐसी स्वतंत्रता से परहेज करेंगे। दिखाने के लिए और भी है दुनिया में चिकित्सा
के क्षेत्र में नयी प्रगति, दुनिया में तेजी से पैर पसारता आतंकवाद, घोटाले, हवाले
और ना जाने क्या-क्या । हम अपनी रक्षा तैयारियों का भेद नहीं खोलेंगे तो क्या
पत्रकारिता अपवित्र हो जायेगी या अपना मूल्य खो देगी। मत भूलिए कि आप पत्रकार होने
के पहले इस देश के वासी हैं और इसका अच्छा-बुरा,इसके हित से आप भी जुड़े हैं। उनकी
रक्षा आपकी पहली जिम्मेदारी है और पत्रकारिता उसके बाद आती है। देश से बड़ी नहीं
है पत्रकारिता किसी दल किसी नेता से बड़ी जरूर है लेकिन देश की कीमत पर इसको कतई
नहीं स्वीकार किया जा सकता। एक प्रश्न यह भी कि रक्षा-संबंधी ऐसी जानकारियां जिनका
मीडिया तक पहुंचना जरूरी नहीं वह कौन पहुंचाता है। अगर यह काम संबंधित विभाग का है
तो शायद वहां भी संयम की जरूरत है। देशहित में कुछ बातें अगर गुप्त रखनी जरूरी हों
तो गुप्त रखी जानी चाहिए। यह पोस्ट लिखने को मजबूर हुआ अगर आपको देश से प्यार है
तो इस पर आपकी राय मेरे लिए पाथेय साबित होगी।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन देश का संकट, संकट में देश - ११११ वीं बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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