जिन्हें नाज है हिंद पर वो कहां हैं?
राजेश त्रिपाठी
* कुछ लोगों के लिए अचानक
इतना ‘पराया’ क्यों हो गया देश !
* हो गया या कुछ निहित स्वार्थी ऐसी तस्वीर पेश कर रहे हैं !
* जो देश में आग लगा उस पर घी डाल रहे हैं क्या देशप्रेमी हैं?
* देश के प्रति प्यार दिखाने का उनका यह कैसा अंदाज है?
* अब जरूरत है जाति,धर्म,संप्रदाय से परे देश का भला सोचने की!
* भारत के प्रति विश्व का नजरिया बदला है, और हम क्या कर रहे हैं?
* देश में जो कुछ चल रहा है उससे इसके दुश्मनों का भला होगा।
* विश्व में भारत की छवि खराब होगी, पता नहीं इसमें किसका लाभ है।
* कुछ निहित स्वार्थी लोग उन देशी-विदेशी ताकतों के हाथों खेल रहे हैं
जो अपने
हित के लिए भारत को अस्थिर देखना चाहती हैं।
* कोई भी दल हो, कोई भी पक्ष हो सबसे ऊपर देश है।
* देश ही अस्थिर हो गया तो कहां रहेगा पक्ष और क्या करेगा विपक्ष।
इसे लेख को शुरू करने से पूर्व यह
साफ कर दूं कि मैं इस देश का एक सामान्य नागरिक हूं। मैं जब भी सोचता हूं जाति,
धर्म, संप्रदाय से उठ कर अपने देश की सुख-शांति, उसकी रक्षा की बात सोचता हूं।
मेरी यह अटूट धारणा है कि अगर देश सुरक्षित है तो मेरा हर भारतवासी सुरक्षित है। देश
में शांति है तो हर घर, हर कोने में शांति होगी। देश समृद्ध होगा तो उसका लाभ हर
देशवासी को मिलेगा। देश की सर्वांगीण प्रगति ही मेरा काम्य है। अपनी सामन्य बुद्धि
से मेरी यह धारणा है कि हर देशवासी को अपने से पहले देश के भले की बात सोचनी चाहिए
क्योंकि देश का भला होगा तो देशवासी उससे
कैसे वंचित रह सकता है। एक वक्त था जब लोगों का सोच जाति, धर्म, संप्रदाय के सीमित
दायरे में कैद था। अब वक्त बदला है, लोग देश के विकास के प्रति जागरूक हुए हैं और
उनके सोच ने भी सम्यक दृष्टि पा ली है जिसमें पहले देश बाद में कुछ और है। मैं
किसी दल, किसी व्यक्ति विशेष का पूजक नहीं पर मैं उन लोगों में से भी नहीं जो
सच्चाई से मुंह चुराते हैं। सच्चाई यह है कि 2014 में भारत में सत्ता परिवर्तन के
बाद से भारत के प्रति विश्व का नजरिया बदला है। विश्व के बड़े-बड़े उद्योगपति,
आईटी के दिग्गज भारत आये और यहां निवेश के प्रति आकृष्ट हुए। जाहिर है अगर वे अपने
व्यवसाय का विस्तार भारत में करेंगे तो यहां के युवाओं को काम मिलेगा। याद नहीं
आता इससे पहले भारत के प्रति विदेश के उद्यमियों ने इतनी उत्सकुता दिखायी हो। नरेंद्र
मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद विदेश में भारत की जो साख बढ़ी है उसकी चर्चा
पूरे विश्व में हो रही है। मोदी से एक व्यक्ति के रूप में किसी को जो भी शिकायत हो
लेकिन आज वे देश के प्रधानमंत्री हैं, विश्व ने उन्हें इस रूप में सम्मान दिया है इसलिए
हर व्यक्ति और दल को चाहे-अनचाहे उनके पद को सम्मान देना चाहिए और देश के हित में
उठे उनके हर उचित कदम का समर्थन करना चाहिए। अगर वे देश की भलाई में उठे कदमों के
समर्थन का विरोध करते हैं तो इसका मतलब होगा कि उनके लिए देश की प्रगति से बड़ा
व्यक्तिगत स्वार्थ है। आज जनता प्रबुद्ध है वह जानती है कि देश की भलाई के लिए कौन
अपरिहार्य है और उसने यह 2014 में दिखा दिया है। इस तथ्य को उन लोगों को भी जो
मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से दुखी हैं, दिल भारी करके मान लेना चाहिए।
सौभाग्य से हमारा देश गणतंत्र है और यहां देश की जनता के हाथ में अपनी पसंद की
सरकार चुनने का हक है। उसने 2014 में अपनी सरकार चुन ली है, संसद ना चलने देना,
जनता की चुनी सरकार के हर कदम पर अडंगा लगाना उस जनता का अपमान है जिसकी ये सरकार
है। जहां भी देश विरोधी फैसला हो रहा है उसका विरोध भी संसद में बहस से हो सकता है
पर केवल विरोध के लिए विरोध करना ना स्वच्छ विरोध की पहचान है और ना ही स्वस्थ गणतंत्र की।
अब इस पोस्ट के
शीर्षक ‘जिन्हें नाज है हिंद
पर वे कहां है’? पर आता हूं। सचमुच
आज मेरे दिल में यही सवाल आता है कि कहां चली गयी वह पीढ़ी जो देश के लिए जान
लुटाने तक को सहर्ष तैयार थी। आज उसके सामने उसके देश के कुछ स्वार्थी तत्व
वैमनस्य के बीज बो रहे हैं, भाईचारे के सुदृढ़ ताने-बाने को तोड़ रहे हैं और वह
पीढ़ी खामोश है। मेरा आशय उन बुजुर्गों से है जो गंगा-जमनी संस्कृति के अलमबरदार
रहे हैं । जो राम-रहीम को बांटने नहीं साथ लेकर चलने के पक्षधर हैं। भारत के इस
आदर्श को पूरी दुनिया ने सराहा है। दुनिया के कई ऐसे देश हैं जहां वर्षों से
जातिगत दंगे चल रहे हैं, हजारों लोगों की जानें गयी हैं। कम से कम हम तो अपने इस
शांतिदूत भारत को उस तरह की आग में झोंकने का काम ना करें। बुजुर्ग पीढ़ी शायद खुद
को इसलिए अप्रासंगिक मान रही है क्योंकि वह आज की जेट युग की पीढ़ी से तादाम्य
नहीं बैठा पा रही । ऐसे में मेरी उम्मीद
उस युवा पीढ़ी पर टिक जाती है जो बहुत ही उदार है, जो जाति-पांति, धर्म-संप्रदाय
के पचड़े से ऊपर उठ कर प्रगति और विकास की बात सोचती है। यह धर्म को लेकर भी एक
उदार और नया सोच रखती है। इसके लिए धर्म ना कट्टरता का प्रतीक है और ना ही विकास
के पथ में ही बाधक है।इनमें से ज्यादातर तो धार्मिक कार्यों या सिद्धांतों के
प्रति उदासीन दिखते हैं। मेरी विनती इनसे भी है कि ये अपने देश को स्वार्थी तत्वों
की चालों से बचायें, ये तत्व राजनीति से भी हो सकते हैं और दुश्मन देशों के एजेंट
भी हो सकते हैं जो भारत को विकसित होते, महाशक्तियों की पंक्ति में खड़ा होते नहीं
देखना चाहते। ये यहां यह प्रचार कर रहे हैं कि देश अशांत है, धार्मिक असहिष्णुता
है और इसका फायदा देश-विदेश के देश के दुश्मन उठा रहे हैं। मैं सागर में एक छोटी बूंद की तरह हूं लेकिन
इस अल्पबुद्धि के दिमाग में भी यह बात साफ हो गयी है कि अगर हम अपने देश की खराब
छवि पेश करते हैं तो यहां निवेश आना बंद हो जायेगा, भारत के प्रति विदेश में जो
अच्छा माहौल बना है वह खत्म हो भारत आज आगे
बढ़ रहा है और इससे उसके दुश्मनों की छाती पर सांप लोट रहा है। वे उसे येन-केन
प्रकारेण अशांत और अस्थिर देखना चाहते हैं ताकि उसका विकास रथ रुक जाये और वह आगे
ना बढ़ सके। इसके लिए सीमा पार से प्रायोजित आतंकवाद में हम हजारों जाने खो चुके
हैं, हजारों जवानों, सुरक्षाकर्मियों को शहीद कर चुके हैं। हमारे दुश्मन हमारे
धैर्य की परीक्षा ले रहे हैं, उन लोगों ने हमारे देश में अपने एजेंट छोड़ रखे हैं
जिनका काम भारत को अशांत रखना है। वे धर्म, संप्रदाय के बीच खाइयां पैदा करने में
जुटे हैं ताकि भारत को भीतर ही भीतर तोड़ा जा सके। लेकिन उन्हें पता नहीं कि यह
रहीम का देश है, यह रसखान की भूमि है जिन्होंने भक्तिरस के गीत गाये। यह पीर और
औलियाओं की धरती है जिन्होंने मोहब्बत का पैगाम दिया। यहां नफरत के लिए कोई जगह
नहीं है। यहां राम-रहीम साथ-साथ भाई की तरह रहते आये हैं। यहां अपना एक व्यक्तिगत
अनुभव आपसे साझा करने का मोह संवरण नहीं कर पा रहा। तब मैं बहुत छोटा था, शायद पहली
कक्षा में पढ़ता था। हमारे पास के गांव में प्राइमरी विद्यालय था जहां मैं पढ़ता
था। अचानक हमारे शिक्षक की मृत्यु हो गयी और विद्यालय तब तक के लिए बंद हो गया जब
तक किसी दूसरे शिक्षक की नियुक्ति ना हो। मेरे सामने सवाल आ गया कि पूरे साल क्या
करें। मेरे माता-पिता ने एक जुगत लगायी कि क्यों ना बेटे को एक मील दूर एक दूसरे
गांव आलमपुर में मौलवी साहब के पास भेज दिया जाये। वहां यह अपने मुसलिम भाइयों के
साथ वर्णमाला सीखता रहेगा। मौलवी साहब हिंदी भी जानते थे। तय कार्यक्रम के अनुसार
हम आलमपुर में मौलवी साहब के सुपुर्द कर दिये गये। वहां हमारे दोस्त और सहपाठी
सारे मुसलिम भाई थे । हम अपने पहले के स्कूल में प्रार्थना करते थे ‘हे प्रभु आनन्ददाता
ज्ञान हमको दीजिए।‘ प्रार्थना यहां भी
होती लेकिन उसके शब्द और भाषा बदल गयी। हम मौलवी साहब के यहां जो शब्द पढ़ाई के
शुरुआत में कहते थे वह थे-‘ पहला कलमा तैयब का ला इलाहाइल्लाह’। वक्त काफी बीत गया इसलिए माफ करें यह पूरा याद नहीं लेकिन
इसे भी मैं पूरी अकीदत के साथ पढ़ता था। उन मुसलिम भाइयों के साथ हम मोहर्रम में
गम मनाते और ईद में साथ बैठ कर सिवैयां खाते थे, कभी वे हमें पराये नहीं लगे, वैसा ही प्रेम वैसी ही आत्मीयता। सुख ही नहीं
एक-दूसरे के गम में भी हम शामिल होते थे। कौमें कभी आपस में लड़ना नहीं चाहतीं कुछ
स्वार्थी लोग इन्हें लड़ा कर और फिर इनके जख्मों में मरहम लगा कर अपना उल्लू सीधा
करना चाहते हैं। दुख की बात यह है कि हमारे समाज को भी इनकी चाल समझ नहीं आती।
इनसे बच कर रहना और अपने हर धर्म के भाई को गले लगाना ही श्रेयष्कर है। आग लगाने
से बेहतर है प्रेम को बढ़ावा देना क्योंकि आग लगेगी तो वह राम का घर भी जलायेगी,
रहीम का भी वह धर्म जाति नहीं पहचानती, उसका धर्म तो जलाना है। वह यह नहीं सोचेगी
कि घर गरीब है, अमीर का या नेता या किसी मजलूम या मुफलिस का। सभी के हित में है कि
अगर कहीं घृणा या विद्वेष की आग लगती है तो उसे बुझाया जाये, उस पर पानी डाला
जाये।
देश आज प्रगति
के पथ पर है, विदेश के लोगों का भी इसके प्रति नजरिया बदला है लेकिन हमारे देश में
कुछ लोग यह तस्वीर पेश कर रहे हैं जैसे यह देश रहने लायक नहीं रहा, हर दिशा में
आफत ही आफत है। क्या आपको भी ऐसा लग रहा है अगर नहीं तो ऐसी ताकतों, ऐसे तत्वों को
अपनी सामर्थ्य पर परास्त और निरस्त कीजिए जिन्हें देश की प्रगति पच नहीं रही। देश
है तो हम सब हैं, मत भूलिए कई पड़ोसी शक्तियों जिनमें
एक बड़ी शक्ति भी है, उसे भारत में शांति या उसका आगे बढ़ना बरदाश्त नहीं। हमारा फर्ज है कि हम देश के बढ़ते कदमों को और गति दें तथा देश में और देश से बाहर राष्ट्रविरोधी तत्वों शक्तियों को हर तरह से परास्त करें। भाजपा और दूसरे दलों के कुछ मुंहफट नेताओं और सदस्यों से भी विनती है कि वे देशहित के बयान दें, अपनी जिह्वा पर नियंत्रण रखें, बोलना ही है तो प्रेम की बोली बोलें, जहर ना घोलें वरना वे भी देश की प्रगति में बाधक माने जाएंगे। देश विभाजन का दर्द हर वर्ग, संप्रदाय, जाति ने भोगा है, झेला है, कई परिवार दो हिस्सों में बंट कर रह गये हैं और एक-दूसरे को मिलने से तरस रहे हैं। कुछ नेताओं की महत्वाकांक्षाओं ने उन्हें यह पीढ़ियों का दर्द दिया है। जो यहां रह गये चाहे जिस धर्म, संप्रदाय के हों हमारे भाई हैं उनसे वैसा ही व्यवहार होना चाहिए। यह बात सब पर लागू होती है किसी एक या खास धर्म, संप्रदाय पर नहीं। यह देश सबका है इसे सभी को बचाना और आगे बढ़ाना है। देश और देशवासियों के प्रति प्यार प्रदर्शित करना है तो उनके प्रगति के वाहक बनिए। कोई उनके हित के आड़ें आये तो ढाल पर कर तन जाइए। ऐसे ही भारत की हम कामना करते हैं और चाहते हैं कि हर देशवासी की भावना ऐसी ही हो। आमीन।
एक बड़ी शक्ति भी है, उसे भारत में शांति या उसका आगे बढ़ना बरदाश्त नहीं। हमारा फर्ज है कि हम देश के बढ़ते कदमों को और गति दें तथा देश में और देश से बाहर राष्ट्रविरोधी तत्वों शक्तियों को हर तरह से परास्त करें। भाजपा और दूसरे दलों के कुछ मुंहफट नेताओं और सदस्यों से भी विनती है कि वे देशहित के बयान दें, अपनी जिह्वा पर नियंत्रण रखें, बोलना ही है तो प्रेम की बोली बोलें, जहर ना घोलें वरना वे भी देश की प्रगति में बाधक माने जाएंगे। देश विभाजन का दर्द हर वर्ग, संप्रदाय, जाति ने भोगा है, झेला है, कई परिवार दो हिस्सों में बंट कर रह गये हैं और एक-दूसरे को मिलने से तरस रहे हैं। कुछ नेताओं की महत्वाकांक्षाओं ने उन्हें यह पीढ़ियों का दर्द दिया है। जो यहां रह गये चाहे जिस धर्म, संप्रदाय के हों हमारे भाई हैं उनसे वैसा ही व्यवहार होना चाहिए। यह बात सब पर लागू होती है किसी एक या खास धर्म, संप्रदाय पर नहीं। यह देश सबका है इसे सभी को बचाना और आगे बढ़ाना है। देश और देशवासियों के प्रति प्यार प्रदर्शित करना है तो उनके प्रगति के वाहक बनिए। कोई उनके हित के आड़ें आये तो ढाल पर कर तन जाइए। ऐसे ही भारत की हम कामना करते हैं और चाहते हैं कि हर देशवासी की भावना ऐसी ही हो। आमीन।
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