Tuesday, December 11, 2018

गीत

चलो अब उन गांवों की ओर


चलो अब उन गांवों की ओर, 
पसरी जहां प्रकृति की सुषमा
जिसका ओर न छोर .....चलो
सड़क बनी अब डगर पुरानी, जो विकास की अमिट निशानी।
देखो कमल भरी पुष्करनी, पुरइन पात न ठहरे पानी ।।
जैसे कल्मष मध्य भी रह कर रहते निर्मल जो हैं ज्ञानी।
ग्राम देवि का थान ये देखो देवि भवानी है कल्याणी ।।
इनका नाम सभी रटते हैं रात दिवस और भोर। चलो...
देखो हलधर धरती चीर कर बोता अपनी तकदीर।
जाड़ा, गरमी झंझावातों की सहता सदा जो पीर।
इनके हिस्से आयी बदहाली और आंखों में नीर।
जाने कहां विकास है ठहरा गांवों की स्थिति गंभीर।।
कब तक धीरज धरें भला है रही टूट आशा की डोर।। चलो अब..
घर घर में तुलसी चौरा, संझाबाती करे सुहागन।
हे माता कृपा करें. खुशियों भरा रहे मेरा आंगन।।
पल-पल युग सा बीते सेना में हैं जिनके साजन।
पता नहीं क्या हो जाये डरता रहता उनका मन।।
भाग्य से कोई जीत न पाया चले ना कोई जोर।। चलो अब उन
राम रहीम साथ रहते थे, सबमें था जहां भाईचारा।
सुख-दुख के सब थे साथी गांवों का माहौल था प्यारा।।
आतंक गांव तक पहुंचा, नहीं गूंजती बिरहा की बोली।।
जितनी जाति उतने गुट हैं, बात-बात में चलती गोली।।
कभी जहां थीं कजरी की तानें वहां बंदूकों का है अब शोर। चलो अब
शहरों का जावन कृत्रिम है, जहर घुली हैं जहां हवाएं।
मतलब के संबंध यहां हैं, पल पल चिंता हर दिन बाधाएं।।
ना माटी की महक है सोंधी ना बिरहा का शोर।। चलो अब उन
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