Thursday, October 8, 2020

लगातार 14 वर्षों तक क्यों सोती रहीं लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला

राजेश त्रिपाठी

रामायण महाकाव्य में राम के अलावा यों कई ऐसे पात्र हैं जो राम के प्रति अपनी भक्ति और प्रेम के लिए प्रसिद्ध हुए। चाहे भैया राम की रक्षा में निरंतर तत्पर रहनेवाले लक्ष्मण जैसे भाई हों या फिर भरत जैसा राम से हृदय से स्नेह और भक्ति रखनेवाला भाई। लेकिन रामायण का एक पात्र ऐसा भी है जिसकी भूमिका इन सबसे कम नहीं है। यह कहें कि उसकी भूमिका इन सबसे बड़ी और प्रमुख है तो आश्चर्य नहीं होगा।

रामायण के बारे में सभी जानते हैं| इस रामकथा के प्रमुख पात्र हैं राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान और रावण। रावण पर भगवान राम की जीत में लक्ष्मण के योगदान के बारे में सभी को ज्ञात है लेकिन एक ऐसी प्रमुख पात्र भी है जिसकी इस विजय में बहुत बड़ी भूमिका रही है। इस तथ्य के बारे में संभवत: अनेक लोग नहीं जानते होंगे। वह पात्र है लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला।

जब सुमित्रानंदन लक्ष्मण भाई राम के साथ वन जाने लगे तो उनकी माता ने
उनसे कहा कि निरंतर भैया भाभी की सेवा और रक्षा करना। अब लक्ष्मण के सामने यह
प्रश्न था कि भैया भाभी की रक्षा करनी है तो मुझे निरंतर जागते रहना पड़ेगा लेकिन
लगातार चौदह वर्ष तक जागते रहना आसान नहीं था।

 जब लक्ष्मण अपने भाई श्री राम और भाभी सीता के साथ वन जाने लगे तब
उनके पास निद्रा देवी आयीं। लक्ष्मण जी ने उनसे चौदह वर्ष तक ना सोने का वरदान
मांगा।  निद्रा देवी ने उनकी बात मान ली लेकिन कहा कि उनकी जगह किसी अन्य व्यक्ति को लगातार चौदह वर्ष तक सोना पड़ेगा। लक्ष्मण जी ने निद्रा देवी को अपनी पत्नी उर्मिला के पास भेजा। उर्मिला के पास निद्रा देवी गयीं और सारी बात बतायी तो उर्मिला लक्ष्मण की जगह चौदह वर्ष तक सोने के लिए तैयार हो गयी। 

 उर्मिला सीता की छोटी बहन थीं और सीता के विवाह के समय ही दशरथ और सुमित्रा के पुत्र लक्ष्मण को ब्याह दी गई थीं। जब राम और सीता के साथ लक्ष्मण भी वन जाने लगे तब पत्नी उर्मिला ने भी उनके साथ जाने की जिद की, लक्ष्मण ने उन्हें यह कह कर मना कर दिया कि अयोध्या के राज्य को और माताओं को उनकी आवश्यकता है।

उर्मिला के लिए यह बहुत कठिन समय था ऐसे में जबकि वह नववधू थी और उसके दांपत्य जीवन की अभी शुरुआत ही हुई थी। लक्ष्मण के वनवास जाने के बाद उर्मिला के पिता अयोध्या आए और उर्मिला से अपने साथ चलने का अनुरोध करने लगे, ताकि मां और सखियों के बीच
उर्मिला का पति वियोग का दुःख कुछ कम हो सके। उर्मिला ने मिथिला जाने से इनकार
करते हुए कहा कि पति की आज्ञा अनुसार पति के परिजनों के साथ रहना और दुख में उनका साथ न छोड़ना ही अब उसका धर्म है।

 जब लक्ष्मण जा रहे थे तब दुख के उन क्षणों में भी उर्मिला आंसू न बहा सकी क्योंकि उनके पति लक्ष्मण ने उनसे एक और वचन लिया था कि वह कभी आंसू नहीं बहाएंगी क्योंकि वह अपने दुःख में डूबी रहेंगी तो परिजनों का ख्याल नहीं रख पाएंगी। कठिन से कठिन एवं जटिल परिस्थितियों में भी उर्मिला ने आंसू की एक बून्द तक अपने आँखों में नहीं आने दी क्योकि उन्होंने अपने पति लक्ष्मण को वनवास जाते समय यह वचन दिया था की वह रोयेंगी नहीं.क्योकि अगर वो अपने दुखो में डूबी रहती तो परिवार का ध्यान कौन रखता।

कहते तो यहां तक हैं कि जब उनके श्वसुर राजा दररथ का निधन हुआ तो पूरी अयोध्या नगरी के साथ ही पूरा रनिवास और परिवार रो रहा था। उस हृदय विदारक कष्ट की घड़ी में भी उर्मिला रो नहीं सकी क्योंकि उन्होंने पति को वचन दिया था कि वे कभी नहीं रोयेंगी।
 यह कथा रामायण में नहीं है लेकिन ऐसा सुना जाता है कि रावण के पुत्र मेघनाद को यह वरदान था कि जो व्यक्ति 14 वर्षों तक सोया न हो वही उसे मार सकता है। लक्ष्मण अपने भाई श्रीराम और भाभी सीता की सुरक्षा और सेवा में इस तरह व्यस्त रहे कि वे 14 वर्ष तक सो ही नहीं पाए। उनके बदले उर्मिला 14 वर्ष तक सोती रही।
 रावण वध के बाद श्री राम, सीता और लक्ष्मण वापस अयोध्या लौट आये। अयोध्या में प्रभु श्री राम के राजतिलक की तैयारी होने लगी। उस समय लक्ष्मण जोर-जोर से हंसने लगे। जब उनसे उनकी हंसी का कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा कि बहुत दिनो से उन्हें इस दिन की प्रतीक्षा थी कि वे श्री राम का राजतिलक होते हुए देखेंगे लेकिन अब उन्हें निद्रा देवी को दिया गया वह वचन पूरा करना होगा जो उन्होंने वनवास जाते वक्त दिया था।
दरअसल निद्रा देवी ने उनसे कहा था कि वह 14 वर्ष के लिए उन्हें परेशान नहीं करेंगी और उनकी पत्नी उर्मिला उनके स्थान पर सोएंगी। निद्रा देवी ने उनकी यह बात एक शर्त पर मानी थी कि जैसे ही वह अयोध्या लौटेंगे उर्मिला की नींद टूट जाएगी और उन्हें सोना होगा। लक्ष्मण इस बात पर हंस रहे थे कि अब उन्हें सोना होगा और वह राम का राजतिलक नहीं देख पाएंगे। उनके स्थान पर उर्मिला ने श्री राम का राजतिलक समारोह देखा। 

 एक कथा के अनुसार लक्ष्मण की विजय का मुख्य कारण उर्मिला का पतिव्रत धर्म था। मेघनाद के वध के बाद उनका शव श्री राम जी के युद्ध शिविर में रखा हुआ था। उस शव को मेघनाद की पत्नी सुलोचना लेने आयी। पति का कटा शीश देखते ही सुलोचना रोने लगी। रोते-रोते उसने पास खड़े लक्ष्मण की ओर देखा और कहा- "सुमित्रानन्दन, तुम भूलकर भी गर्व मत करना कि मेघनाद का वध तुमने किया
है। मेघनाद को मारने की शक्ति विश्व में किसी के पास नहीं थी। यह तो दो
पतिव्रता नारियों का भाग्य था।
  उर्मिला की इस कथा में एक प्रश्न यह भी उठता है कि निद्रा देवी के प्रभाव में आकर अगर उर्मिला 14 साल तक सोती रहीं, तो सास और अन्य परिजनों की सेवा करने का लक्ष्मण को दिया वचन उन्होंने कैसे पूरा किया। इस बारे में सुना यह जाता है कि सीता जी ने उर्मिला यह वरदान दिया  कि वे एक साथ तीन कार्य कर सकती थीं।

 



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