Monday, October 12, 2020

शारदीय नवरात्र : कलश स्थापन की संपूर्ण विधि

 शारदीय नवरात्रि इस बार आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि अर्थात 17 अक्टूबर प्रारंभ हो रही है। कलश स्‍थापना भी इसी दिन होगी।

कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 27 मिनट से शुरू होकर 10 बज कर 13 मिनट तक है। इसके बाद अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बज कर 44 मिनट से शुरू होकर 12 बज कर 29 मिनट तक है। इसी समय के बीच घट स्थापन कर लेना चाहिए।

हर धार्मिक कार्य या पूजा आदि के प्रारंभ में संकल्प करने का विधान है। संकल्प के बिना पूजा अधूरी मानी जाती है।

संकल्प के लिए दाहिने हाथ में जल अक्षत (चावल) और द्रव्य ले लें फिर इस मंत्र का उच्चारण करें जो हम आपको बता रहे हैं।इस मंत्र में नक्षत्र, दिन, नक्षत्र आदि दे दिये गये हैं आपको अपना नाम, गोत्र, ग्राम या नगर का नाम बोलना होगाय़।

'ऊँ विष्णु र्विष्णुर्विष्णु : श्रीमद् भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्त्तमानस्य अद्य श्री ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेत वाराह कल्पै वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे युगे कलियुगे कलि प्रथमचरणे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भारत वर्षे भरत खंडे आर्यावर्तान्तर्गतैकदेशे नगरे (अपने नगर का नाम लें) ग्रामे (अपने ग्राम का नाम लें) प्रमादी नाम संवत्सरे श्री सूर्ये दक्षिणायने वर्षा ऋतौ महामाँगल्यप्रद मासोत्तमे शुभ आश्विन मासे शुक्ल पक्षे प्रतिपदा तिथौ शनिवासरे चित्रा नक्षत्रे, विषकंभ (9.25 तक उसके बाद प्रीति) योगे , क्रिंस्तुघ्न ( दिन में 11 बजे तक उसके बाद बव रात 9 बज कर 8 मिनट तक) करणे तुला राशि स्थिते चन्द्रे, (प्रात: 7बज कर 22 मिनट तक कन्या तत्पश्चात तुला) राशि स्थिते सूर्य शुभ पुण्य तिथौ प्रतिपदा, गोत्रः (अपने गोत्र का नाम लें) अमुक (अपना नाम उपाधि सहित लें-जैसा गुप्ता, वर्मा, शर्मा आदि) अहं भगवत्या: दुर्गाया: प्रसादाय व्रतं विधास्ये। यथालब्धोपचारैस्तदीयं पूजनं करिष्ये।''इसके पश्चात्‌ हाथ का जल किसी पात्र में छोड़ देवें।

नवरात्रि कलश स्थापना :

कलश स्थापना के लिए आवश्यक सामग्री :-

जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र,साफ़ मिट्टी,मिटटी का एक छोटा घड़ा, कलश को ढकने के लिए मिट्टी का एक ढक्कन,गंगा जल (उपलब्ध ना हो तो शुद्ध जल), सुपारी, कुछ पैसे, आम्र पल्लव, चावल, मौली (रक्षासूत्र),जौ,इत्र,फूल और फूल माला,

नारियल,लाल कपडा,लाल चुन्नी, दूर्वा (दूब)।

कलश स्थापना विधि :-

नवरात्रि में कलश स्थापना देवी, देवताओं के आह्वान से पूर्व से पूर्व की जाती है। स्थापना के पूर्व कलश को इस तरह तैयार करना चाहिए। सबसे पहले मिट्टी के बड़े पात्र में थोड़ी सी मिट्टी डालें। और उसमे जौ के बीज डाल दें। अब इस पात्र में दोबारा थोड़ी मिट्टी और डालें। उसके बाद सारी मिट्टी पात्र में डाल दें और फिर बीज डालकर थोड़ा सा जल डालें।इससे ही कुछ दिन में जवारे उग आयेंगे।

अब कलश और उस पात्र की गर्दन पर मौली बांध दें। साथ ही तिलक भी लगाएं। इसके बाद कलश में शुद्ध जल या गंगाजल भर दें।

इस जल में सुपारी, इत्र, दूर्वा, अक्षत और सिक्का भी डाल दें।

 

अब इस कलश पर आम के पत्ते रखें और कलश को ढक्कन से ढक दें। अब एक नारियल लें और उसे लाल कपड़े या लाल चुन्नी में लपेट लें। चुन्नी के साथ इसमें कुछ पैसे भी रखें।

इसके बाद इस नारियल और चुन्नी को रक्षा सूत्र से बांध दें।

जमीन को अच्छे से साफ़ करके उस पर मिट्टी का जौ वाला पात्र रखें। उसके ऊपर मिटटी का कलश रखें और फिर कलश के ढक्कन पर नारियल रख दें।

इसके बाद सभी देवी देवताओं का आह्वान करके विधिवत नवरात्रि पूजन करें। इस कलश को आपको नौ दिनों तक मंदिर में ही रखे देने होगा। ध्यान रखें सुबह-शाम आवश्यकतानुसार पानी डालते रहें।

अब कलश को स्थापित करने की विधि और उससे जुड़े मंत्र भी जान लीजिए। कलश स्थापित किये जानेवाली भूमि अथवा चौकी पर कुंकुंम या रोली से अष्टदल कमल बनाकर निम्न मंत्र से भूमि का स्पर्श करें।- ॐ भूरसि भूमिरस्य दितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धरत्री। पृथिवीं यच्छ पृथिवीं द्रीं ह पृथिवीं मा हि सीः।।

कलश स्थापित किये जानेवाली भूमि अथवा चौकी पर कुंकुंम या रोली से आठ पंखुडियों वाला कमल बना कर निम्न मंत्र से भूमि का स्पर्श करें। ॐ भूरसि भूमिरस्य दितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धरत्री। पृथिवीं यच्छ पृथिवीं द्रीं ह पृथिवीं मा हि सीः।।

        

         कलश स्थापन मंत्र-

      ऊं आजिग्घ्र कलशं मह्या त्वां विशंतित्वनदव:।पुरूर्जा निवर्त्तस्व, सा न: सहस्रं  धुक्ष्वोरुधारा पयस्वती पुनर्मा विशताद्रयि:।।

     कलश में जल भरना-

       मंत्रोच्चार के साथ शुद्ध जल में कलश

मंत्र-ऊं वरुणस्योत्तम्भनमसि, वरुणस्यवरुणस्य स्कम्भसर्जनीस्थो। वरुणस्यऋतसदन्यसि, वरुणस्य सदनमसि,           वरुणस्यऋतसदनमासीद।।

-       गंगे! च यमुने! चैव गोदावरी! सरस्वति!

        

नर्मदे, सिंधु, कावेरी जलेSस्मिन् सन्निधिं कुरु।      

-मंगल द्रव्य स्थापन- मंत्र पढ़ने के साथ कलश में दूर्वा, कुश, सुपारी, पुष्प, आम्र पल्लव (आम के पत्ते) डालें।

-       मंत्र-ऊं त्वां गंधर्वाअखनैंस्तवाम, इंद्रस्तवां वृहस्पति। त्वामोषधे सोमो राजा, विद्वान्यक्ष्मादमुच्यत।।

         कलश में रक्षासूत्र बांधना-

-मंत्रोच्चार के साथ कलश में रक्षासूत्र लपेंटें।

         मंत्र-ऊं सुजातो ज्योतिषा सह शर्मवरूथ माअसत्वस्व:। वासो अग्ने विश्वरूप सं वेययस्व विभावसो।।

         कलश पर नारियल स्थापन करना-

         मंत्रोच्चार के साथ कलश पर नारियल स्थापित करें।

-       मंत्र-ऊं या: फलिनीर्या अफला, अपुष्पा याश्च पुष्पिणी। वृहस्पति प्रसूतास्ता नो मुंचंत्व हस:।।

नवरात्रि के पहले दिन यानि प्रतिपदा के दिन घट की स्थापना करके तथा नवरात्रि व्रत का संकल्प करके पहले गणपति तथा मातृका पूजन करना चाहिए।

 

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