Tuesday, October 13, 2020

मां शैलपुत्री, मां ब्रह्मचारिणी की कथा और पूजा विधि


शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ 17 अक्तूबर से हो रहा है। इसमें नौ दिनों  में 

मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मां शैलपुत्री अर्थात पर्वतराज हिमालय की पुत्री। पिछले जन्म में मां शैलपुत्री का जन्म दक्षके घर सती रूप में हुआ था। सती ने अपने पिता के यज्ञ
 में अपने पति शिवजी का अपमान देख कर उन्होंने आत्मदाह कर लिया था। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री का पूजन किया जाता है। मां शैलपुत्री की पूजा अर्चना करने से चंद्र दोष दूर होते हैं।
  • मां शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म लिया यही कारण है कि उनको शैलपुत्री भी कहा जाता है। मां शैलपुत्री का वाहन वृषभ अर्थात बैल है इसलिए उन्हें शैलपुत्री को वृषारूढ़ा और उमा के नाम से भी जाना जाता है। मां के दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल स्थित है। मां के माथे पर अर्ध चंद्र विराजमान है। मां शैलपुत्री अपने भक्तों को सभी प्रकार के सौभाग्य का वरदान देती हैं।
  • मां शैलपुत्री की पूजा
  • .भक्त को सुबह घर को स्वच्छ करने के बाद नहा कर साफ वस्त्र धारण करना चाहिए। इसके बाद एक चौकी पर मां शैलपुत्री का चित्र स्थापित कर कलश की भी स्थापना करें। कलश के ऊपर नारियल और पान के पत्ते रखें और स्वस्तिक भी बनाएं।  फिर मां को ,माला अर्पण कर घी का दीपक जलाएं और ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ओम् शैलपुत्री देव्यै नम: मंत्र का जाप करते हुए सफेद फूलों को मां के सामने अर्पण कर दें। सभी दिशाओं, नदियों और तीर्थों का आह्वान करें और मां शैलपुत्री की कथा सुनें और अंत में धूप व दीप से उनकी आरती उतारें। मां शैलपुत्री को सफेद रंग की मिठाई का भोग लगाएं और प्रसाद बाटें। संध्या के समय मां के सामने कपूर का दीपक जलायें। मां शैलपुत्री की पौराणिक कथा इस प्रकार है-दक्ष ने प्रजापति बनने के बाद एक विशाल यज्ञ किया। इस यज्ञ में उन्होंने सारे देवी देवताओं को आमंत्रित किया। उसमें भगवान शिव को निमंत्रण नहीं भेजा। जब माता सती को इसका पता चला कि उनके पिता ने एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया है तो उनकी भी वहां जाने की इच्छा हुई। सती ने अपनी यह इच्छा भगवान शिव को बतायी । शिव ने उन्हें समझाया कि पता नहीं क्यों लेकिन प्रजापति दक्ष हमसे रुष्ट हैं। इललिए उन्होंने अपने यज्ञ में सभी देवताओं को निमंत्रित किया लेकिन मुझे इसका आमंत्रण नहीं भेजा। ऐसे में तुम्हारा वहां जाना उचित नही है। लेकिन सती ने भगवान शिव की बात नहीं मानी। उनके हठ के आगे भगवान शिव की एक न चली और उन्हें माता सती को उनके पिता के यज्ञ में जाने की अनुमति देनी पड़ी। माता सती जब अपने पिता के घर पहुंचीं तो उन्होंने देखा कि सब उन्हें देख कर भी उनसे ठीक प्रकार से बात नहीं कर रहे हैं। बस उनकी माता ने ही उन्हें प्रेम से गले लगाया। बहनों ने तो उनकी उपहास उड़ाया। अपने परिवार के लोगों का यह बर्ताव देख माता सती को बहुत ही ज्यादा अघात लगा। उन्होंने देखा कि सभी के मन में भगवान शिव के प्रति द्वेष की भावना है। राजा दक्ष ने भगवान शिव का अपमान किया और उनके प्रति अपशब्द भी कहे। यह सुन कर माता सती को बहुत क्रोध आया। माता सती को लगा कि उन्होंने भगवान शिव की बात न मानकर अच्छा नहीं किया। वह अपने पति का अपमान सहन नही कर सकीं और उन्होंने आत्मदाह कर शरीर का त्याग कर दिया। भगवान शिव को जब इसका पता चला तो वे बहुत क्रोधित हुए। उन्होने अपने गणों को भेज दक्ष के यज्ञ को ध्वंस करा दिया। इसके बाद माता सती ने अपना दूसरा जन्म शैलराज हिमालय के यहां लिया। हिमालय के यहां जन्म लेने के बाद वह 'शैलपुत्री' नाम से विख्यात हुईं। मां शैलपुत्री के मंत्र-. ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ओम् शैलपुत्री देव्यै नम:।. ऊँ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:।वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥ या देवी सर्वभू‍तेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
  • ब्रह्मचारिणी की पूजा

  • नवरात्रि के दूसरे दिन मां
     ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। मां की पुजा फूल, अक्षत, रोली, चंदन आदि से की जाती है। आप देवी ब्रह्मचारिणी के चित्र को एक चौकी पर स्थापित कर लें। टित्र को दूध, दही, घृत, मधु व शर्करा से स्नान कराएं। इसके बाद देवी को पिस्ते की बनी मिठाई भोग में चढ़ानी चाहिए।  पूरी आस्था के साथ देवी की पूजा अर्चना करेंगे तो आपका मन हमेशा शांत और प्रसन्न रहेगा।
  • मां ब्रह्मचारिणी का रूप ऐसा है उनके श्वेत रंग के वस्त्र हैं। उनके एक हाथ में माला और दूसरे हाथ में कमंडल हैइन्हें साश्रात् ब्रह्म का रूप माना जाता है। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से कृपा और भक्ति की प्राप्ति होती है। मां का यह स्वरूप अपने भक्तों को भक्ति में लीन रहना सिखाता है। इस रूप में मां अपने भक्तों को अपने कर्तव्य के प्रति लग्न और निष्ठा प्रदान करती हैं। जिस तरह से मां ने जब तक भगवान शिव को पा नहीं लिया था। तब तक वह तपस्या करती रही थी। उसी प्रकार से मनुष्य भी जब तक अपने लक्ष्य को प्राप्त न कर ले उसे भी अपनी कोशिश नहीं छोड़नी चाहिए।
  • यह मां पार्वती का दूसरा स्वरूप माना जाता है। मां के इस रूप में पूजा करने से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। ब्रह्मचारिणी मां की पूजा से उनके भक्तों को सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। मां का रूप अत्यंत ही तेजस्वीं और भव्य है। नवरात्रों में मां के इस स्वरूप की पूजा करने से जीवन के सभी कष्टों से छुटकारा प्राप्त होता है। मां ब्रह्मचारिणी का विधिवत पूजन से जीवन में सदाचार और नियम से जीने की सीख मिलती है।
  • मां ब्रह्मचारिणी की कथा इस प्रकार है ।जब भगवान शिव से माता पार्वती ने विवाह करने की इच्छा प्रकट की तो अपने माता पिता को भी अपने विवाह के लिए मनाने की कोशिश की। शिवजी अखंड समाधि में लीन थे। उधर देवतागण भी चाहते थे कि उनकी समाधि टूटे और वे विवाह के लिए तैयार हों क्योंकि उनका पुत्र ही उस तारकासुर राक्षस का संहार कर सकता था जो देवताओं को परेशान कर रहा था। देवताओं ने शिव की समाधि भंग करवाने के लिए कामदेव से मदद मांगी। कामदेव ने तमाम तरह के प्रयास किये पर जब फिर भी समाधि नहीं टूटी तो उन पर बाण चला दिया। जिससे भगवान शिव की तपस्या भंग हो गई और भगवान शिव कामदेव पर अत्यधिक क्रोधित हो गए। इसके बाद पार्वती ने सभी कुछ त्याग कर भगवान शिव की तरह ही जीना आरंभ कर दिया। माता पार्वती ने पहाड़ पर जाकर कई सालों तक तपस्या की इसी कारण से ही उन्हें ब्रह्मचारिणी के नाम से भी जाना जाता है। माता पार्वती ने इतनी कठोर तपस्या की उन्होंने भगवान शिव का ध्यान अपनी और आकर्षित कर लिया। इसके बाद भगवान शिव रूप बदलकर माता पार्वती के सामने जाकर प्रकट हो गए। और अपनी ही बुराई करने लगे। लेकिन माता पार्वती ने उनकी कोई भी बात नहीं सुनी और उन्हें ही सुना दिया। जिसके बाद भगवान शिव अपने असली रूप में आए और उन्हें विवाह का वचन दे दिया।
  • मां ब्रह्मचारिणी के मंत्र .या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू। देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।। ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥  या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥.ध्यान मंत्र वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। जपमाला कमण्डलु धरा ब्रह्मचारिणी शुभाम्॥ गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्। धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालङ्कार भूषिताम्॥ परम वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोला पीन। पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥ .स्त्रोत - तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्। ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥ शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी। शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥ 5.कवच मंत्र त्रिपुरा में हृदयम् पातु ललाटे पातु शङ्करभामिनी। अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥ पञ्चदशी कण्ठे पातु मध्यदेशे पातु महेश्वरी॥ षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो। अङ्ग प्रत्यङ्ग सतत पातु ब्रह्मचारिणी॥


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