Thursday, October 15, 2020

मां स्कंदमाता एवं मां कात्यायनी की पूजा

 


नवरात्रि के पांचवें दिन मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है। सुबह स्नान कर के स्वच्छ वस्त्र पहन कर  मां की प्रतिमा या चित्र एक चौकी पर स्थापित कर लें और मां को चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दूर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल और पान भी अर्पित करें।

 स्कंदमाता की पूजा करने से संतान संबंधी सभी परेशानियां समाप्त होती है, स्कंदमाता की गोद  गोद पुत्र कार्तिकेय है, इसी कारण इनका नाम स्कंदमाता रखा गया है। मां की चार भुजाएं हैं जिसमें दोनों हाथों में कमल के पुष्प हैं। देवी स्कंदमाता ने अपने एक हाथ से कार्तिकेय को अपनी गोद में बैठा रखा है और दूसरे हाथ से वह अपने भक्तों को आर्शीवाद प्रदान करती हैं। मां सिहं पर पद्माआसन धारण करके बैठी हुई हैं। पुराणों में मां को कुमार और शक्ति कह कर संबोधित किया गया है। स्कंदमाता मां दुर्गा का ही स्वरूप हैं। इसलिए नवरात्र के पांचवे दिन मां के इस रूप की पूजा की जाती है।

 
नवरात्र में स्कंदमाता की पूजा पूरे एकाग्र मन से की जाए तो मां अपने भक्तों को सभी प्रकार का सुख प्रदान करती हैं। जिन लोगों को संतान प्राप्त नहीं हो रही है या फिर संतान प्राप्ति में अधिक समस्या  है तो वह नवरात्र में मां स्कंदमाता की पूजा कर सकते हैं। मां की पूजा करने से संतान संबंधी सभी परेशनियां दूर होती हैं। अगर किसी का  बृहस्पति कमजोर तो स्कंदमाता की पूजा से वह भी ठीक हो जाता है। मां की पूजा से घर के क्लेश भी दूर होते हैं। जो भी व्यक्ति मां की विधिवत पूजा करता है। वह अलौकिक तेज और कांतिमय हो जाता है। स्कंदमाता की पूजा विधि

 स्कंदमाता की पूजा के लिए सुबह स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करें। मां की प्रतिमा एक चौकी पर स्थापित करके उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका, सप्त घृत मातृका भी स्थापित करें।  इसके बाद मां को चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल और पान भी अर्पित करें।  हाथ में फूल लेकर- सिंहासनागता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।। इस मंत्र का जाप करते हुए फूल चढ़ा दें। 5. इसके बाद मां की विधिवत पूजा करें, मां की कथा सुने और मां की धूप और दीप से आरती उतारें। उसके बाद मां को केले का भोग लगाएं और प्रसाद के रूप में केसर की खीर का भोग लगाकर प्रसाद बांटें।

 कार्तिकेय को देवताओं का कुमार सेनापति भी कहा जाता है। कार्तिकेय को पुराणों में सनत-कुमार, स्कन्द कुमार आदि नामों से भी पुकारा गया है। मां इस रूप में अपने पुत्र को मातृत्व की छांव देती हैं यानी उन पर ममता लुटाती हैं। माता का यह रूप सफेद रंग का है। मां अपने इस रूप में शेर पर सवार होकर अत्याचारी दानवों का संहार करती हैं और संत जनों की रक्षा करती हैं। स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं। माता ने अपने दो हाथों में कमल का फूल ले रखा है। एक हाथ से अपने पुत्र यानी कार्तिकेय को अपनी गोद मे बैठा रखा है और मां का एक हाथ वरमुद्रा में है। स्कंदमाता पर्वतराज हिमालय की पुत्री भी है। इसलिए इन्हें माहेश्वरी और गौरी के नाम से भी जाना जाता है। पर्वतराज की बेटी होने के कारण इन्हें पार्वती भी कहते हैं। भगवान शिव की पत्नी होने के कारण इनका एक नाम माहेश्वरी भी है। इनके गौर वर्ण के कारण इन्हें गौरी भी कहा जाता है। मां को अपने पुत्र से अधिक प्रेम है इसलिए इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है जो अपने पुत्र से अत्याधिक प्रेम करती हैं। स्कंदमाता के मंत्र

.सिंहासनागता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। 3.ॐ स्कन्दमात्रै नम:

.ॐ ऐं श्रीं नम:

 दुर्गे स्मृता हरसि भीतिम शेष-जन्तोः, स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव-शुभां ददासि। दारिद्रय दुख भय हरिणी का त्वदन्या, सर्वोपकार करणाय सदार्द्रचित्ता।---

मां कात्यायिनी

नवरात्रि के : छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा, की जाती है, महार्षि कात्यायन ने आदिशक्ति की कठोर तपस्या की थी, जिसके बाद मां ने पुत्री रूप मे उनके यहां जन्म लेने का वरदान दिया था, ऋषि कात्यायन के यहां जन्म लेने के कारण ही मां को कात्यायनी नाम से जाना जाता है।

कात्यायनी की पूजा विधि


मां कात्यायनी ने ही असुरों से देवताओं की रक्षा की थी। पहले मां ने महिषासुर का वध करके देवाताओं को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई थी। उसके बाद मां ने शुम्भ और निशुम्भ का भी वध किया था और सभी नौ ग्रहों को उनकी कैद से छुड़ाया था। मां के स्वरूप की बात करें तो मां अत्याधिक कांतिवान है। देवी कात्यायनी का शरीर आभूषणों से सुशोभित है। मां कि चार भुजाएं हैं। जिनमें एक हाथ में कमल का पुष्प दूसरे हाथ में तलवार है और मां अपने दो हाथों से अपने भक्तों को आर्शीवाद दे रही हैं। मां शेर की सवारी करती हैं और उनका सिहं गर्जती हुई मुद्रा में है। मां कात्यायनी को देवी दूर्गा का ही छठा रूप कहा जाता है। मां कात्यायनी की पूजा करने से कुंवारी कन्याओं के विवाह में आ रही सभी परेशानियां समाप्त होती है और उन्हें एक सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है।। माना जाता है कि द्वापर युग में भी गोपियों ने भगवान श्री कृष्ण को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए मां कत्यायनी की ही पूजा की थी। अगर कुंडली में बृहस्पति खराब हो तो मां कात्यायनी की पूजा करने से बृहस्पति के शुभ फल प्राप्त होने लगते हैं। मां कत्यानी की पूजा करने से आज्ञा चक्र जाग्रित होता है। जिसकी वजह से सभी सिद्धियों की प्राप्ति साधक को स्वंय ही हो जाती है। मां की उपासना से शोक, संताप, भय आदि सब नष्ट हो जाते हैं। मां की पूजा शुरु करने से पहले हाथ में फूल लेकर या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥ मंत्र का जाप करते हुए फूल को मां के चरणों में अर्पित कर देना चाहिए।  इसके बाद मां को लाल वस्त्र, हल्दी की गांठ,पीले फूल, फल, नैवेध आदि चढाएं और मां कि विधिवत पूजा करें। उनकी कथा अवश्य सुने। अंत में मां की आरती उतारें और इसके बाद मां को शहद से बने प्रसाद का भोग लगाएं। मां को शहद अत्याधिक प्रिय है । भोग लगाने के बाद प्रसाद का वितरण करें।.या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥ 2.ॐ कात्यायिनी देव्ये नमः 3.कात्यायनी महामाये , महायोगिन्यधीश्वरी। नन्दगोपसुतं देवी, पति मे कुरु ते नमः।। .चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दूलवर वाहना। कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानव घातिनि।।

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