मां कालरात्रि की पूजा सात्विक और तांत्रिक दोनों तरह से की जाती है। इसलिए मां के आम भक्त मां कालरात्रि की पूजा ब्रह्ममुहूर्त और तांत्रिक मां कालरात्रि की पूजा आधी रात में करते हैं। शास्त्रों में मां की पूजा को अत्यंत ही शुभफलदायी माना गया है।
मां कालरात्रि की पूजा
- नवरात्रि के सातवें दिन की जाती है। इस दिन
साधक को ब्रह्ममुहूर्त मे उठना चाहिए और साफ वस्त्र धारण करने चाहिए। क्योंकि मां
कालरात्रि की पूजा ब्रह्ममुहूर्त में ही की जाती है। इसके अलावा तांत्रिक मां
कालरात्रि की पूजा आधी रात में करते हैं। एक साफ चौकी लें और उस पर गंगाजल छिड़क कर उसे
पवित्र कर उस पर लाल कपड़ा बिछाएं और मां कालरात्रि की मूर्ति या चित्र स्थापित
करें और साथ ही कलश की भी स्थापना करें। इसके बाद मां कालरात्रि को कुमकुम, लाल पुष्प,
रोली आदि चढ़ाएं। माला के रूप मे मां को नीबूओं की माला पहनाएं और उनके आगे तेल का दीपक जला कर उनका विधिवत पूजन करें। यह सभी चीजें अर्पित करने के बाद हाथ में फूल लें और मां कालरात्रि के ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम: ।क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं स्वाहा मंत्र का जाप करें। इसके बाद मां कालरात्रि की कथा पढ़ें या सुनें। मां की कथा पढ़ने के बाद उनकी कपूर से आरती उतारें और आरती उतारने के बाद उन्हें गुड़ के प्रसाद का भोग लगाएं। मां कालरात्रि को गुड़ अत्याधिक प्रिय है।इसके बाद मां से क्षमा याचना अवश्य करें। अंत में मां को प्रसाद के रूप में चढ़ाया गुड़ गाय को खिला दें और बचे हुए गुड़ को परिवार के साथ स्वंय भी प्रसाद के रूप में ग्रहण करें।
नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की
पूजा की जाती है। प्रात: काल स्नान करने
के बाद साफ वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद एक लकड़ी की चौकी पर मां की प्रतिमा याचित्र स्थापित कर्।इसके बाद मां को सुहाग का सभी समान अर्पण करना चाहिए। मां को हलुआ, चने और पूड़ी के
प्रसाद का भोग लगायें। दुर्गा अष्टमी यानी कन्या पूजन भी होता जब मां
महागौरी ने कठोर तपस्या की थी तब मां का रंग काला पड़ गया था, इसके बाद भगवान शिव ने मां के पूरे शरीर को
गंगाजल से धोया। इससे मां को महागौरी नाम
मिला था।, मां
महागौरी की पूजा विधि नवरात्रि में अष्टमी के
दिन मां महागौरी का पूजन किया जाता है। कुछ लोग अष्टमी के दिन कन्या पूजन करके मां
को विदा कर देते हैं तो वहीं कुछ लोग नवमी के दिन कन्या पूजन करते हैं। मां
महागौरी अत्ंयत ही करूणामयी और दयालु हैं। जो भी साधक मां की सच्चे मन से आराधना
करता है। मां उस पर अपनी कृपा बरसाती है। मां को महागौरी के अलावा श्वेताम्बरधरा
और वृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता है। मां
महागौरी का स्वरूप नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की
पूजा की जाती है। मां गौरी के नाम से ही पता चलता है कि इनका रंग गोरा है। देवी
महागौरी को शंख, चंद्र और कुंद के फूल की उपमा दी गई
है। अष्टवर्षा भवेद् गौरी यानी इनकी आयु आठ साल की मानी गई है। मां के वस्त्र और
सभी आभूषण श्वेत रंग के हैं। इसलिए मां महागौरी का एक नाम श्वेताम्बरधरा भी है।
मां सिंह के साथ साथ बैल की भी सवारी करती हैं इसलिए इन्हें वृषारूढ़ा कहकर भी
संबोधित किया जाता है। मां गौरी की चार भुजाएं है। जिसमें दाहिना हाथ अभय मुद्रा
में है तथा नीचे वाला हाथ त्रिशूल धारण किया हुआ है। ऊपर वाले बांए हाथ में डमरू
धारण कर रखा है और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है। इनकी पूरी मुद्रा बहुत शांत
है। महागौरी की पूजा करने अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। मां का विधि
विधान से पूजन करने पर उनके भक्तों के जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं। देवी
महागौरी की कृपा से असंभव से असंभव कार्य भी संपन्न हो जाते हैं। इसलिए नवरात्र की
अष्टमी के दिन ध्यान, स्मरण, पूजन-आराधना
भक्तों के लिए सदैव शुभ रहती हैं। मां गौरी के पूजन से मनुष्य सत्य की और अग्रसर
होता है और असत्य का त्याग करता है। महागौरी की कृपा से उनके साधकों के जीवन के
सभी कष्ट समाप्त होते हैं और उन्हें जीवन के सभी सुखों की प्राप्ति होती है।
.मां को हलुआ, चने और पुड़ी के प्रसाद का भोग लगाकर।
नौ वर्ष से छोटी नौ कन्याओं का पूजन करके उन्हें भोजन करना चाहिए। 5. भोजन कराने के बाद सभी कन्याओं को उपहार दें और
उनका आर्शीवाद लें।मां महागौरी की कथा
मां
पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए बड़ी ही कठोर तपस्या की
थी। उनकी इस तपस्या के कारण उनका शरीर काला पड़ गया था। जब मां की कठोर तपस्या के
कारण भगवान शिव का सिहांसन हिलने लगा तो उन्होंने मां पार्वती को पत्नी के रूप में
स्वीकार लिया और उनके पूरे शरीर को गंगा जल से धोया। गंगा जल से मां पार्वती के
शरीर को धोने के बाद उनका शरीर कांतिवान और गौरा हो गया तब ही से मां का नाम गौरी
पड गया। मां का यह रूप अत्यंत ही करुणामयी, स्नेहमयी, शांत और मृदुल है। मां के इस रूप का ऋषिगणों ने
कुछ इस प्रकार वर्णन किया है "सर्वमंगल मंग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि
नारायणि नमोस्तुते।।"। मां महागौरी को लेकर एक और कथा शास्त्रों में दी गई
है। जिसके अनुसार एक जंगल में एक शेर काफी समय से भूखा था और वह भोजन की तलाश करता
हुआ मां महागौरी के पास पहुंच गया जहां वह तपस्या कर रही थी। वह शेर अत्यंत ही
भूखा था और मां को देखकर उसकी भूख और भी ज्यादा बढ़ गई थी। लेकिन वह वहीं बैठकर
मां की तपस्या का खत्म होने का इंतजार कर रहा था। जब मां न तपस्या के बाद अपनी
आंखे खोली तो उन्होंने देखा की उनके सामने एक सिंह अत्यंत ही दयनीय स्थिति में
पड़ा है। उस शेर को देखकर मां को उस पर दया आ गई और मां ने उसे अपनी सवारी के रूप
में स्वीकार कर लिया। क्योंकि मां के साथ- साथ उस सिंह ने भी तपस्या की थी। इसलिए
मां महागौरी के वाहन के रूप में बैल के साथ- साथ सिंह को भी गिना जाता है। मां
महागौरी के मंत्र -श्वेते वृषे समारुढ़ा, श्वेताम्बरधरा
शुचिः। महागौरीं शुभं दद्यान्महादेवप्रमोदया।। .या
देवी सर्वभूतेषु कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो
नम:॥
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