Friday, October 16, 2020

मां सिद्धिदात्री की पूजा


वरात्रि के नौवें दिन होती है। मां सिद्धिदात्री  की कृपा से ही भगवान शिव को अर्धनारीश्वर रूप प्राप्त हुआ था। नवरात्रि की नवमी तिथि के दिन मां के अंतिम स्वरूप की पूजा करके उन्हें विदाई दे दी जाती है। इस दिन छोटी- छोटी कन्याओं को मां का स्वरूप मानकर उनकी पूजा की जाती है जिसे कुमारी पूजन कहा जाता है। उन कन्याओं की पूजा करने के साथ ही उनको उपहार आदि दिए जाते और उनका आर्शीवाद प्राप्त किया जाता है। ऐसा करने से मां की कृपा प्राप्त होती है। मां सिद्धिदात्री का वाहन सिंह हैं। देवी सिद्धिदात्री कमल के पुष्प पर भी विराजमान है। मां सिद्धिदात्री की कृपा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण से ही भगवान शिव अर्द्धनारीश्वर कहलाए। दाहिनी तरफ नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा तथा बायीं तरफ के नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल का पुष्प है। इसलिए मां का यह रूप अत्यंत ही मोहक है। मां सिद्धिदात्री की पूजा करने से सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्ति होती है।

   मां सिद्धिदात्री की उपासना से उनके भक्त को महत्वाकांक्षा, असंतोष, आलस्य,ईष्या परदोषदर्शन, प्रतिशोध आदि सभी प्रकार की दुर्बलताओं से छुटकारा मिलता है। देवी सिद्धिदात्री की उपासना से अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व जैसी सभी आठ प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती है। नवरात्र में मां के इस रूप की पूजा करने से सभी प्रकार के कोई भी काम आसानी से बन जाते हैं।
मां सिद्धिदात्री की पूजा विधि
.सबसे पहले साधक को शुद्ध होकर साफ वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद एक चौकी पर मां की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। इसके बाद मां को फल, फूल, माला, नैवेध आदि अर्पित करने चाहिए और मां कि विधिवत पूजा करनी चाहिए। अंत मे मां कि आरती उतारें। इस दिन कन्या पूजन को विशेष महत्व दिया जाता है। छोटी- छोटी नौ कन्याओं को घर बुलाकर उनका भी पूजन करें और उन्हें उपहार अवश्य दें। . अंत में पैर छुकर उनका आर्शीवाद लें । ब्राह्मण और गाय को भी इस दिन भोजन अवश्य मां की उपासना करने से भक्तों को धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष मिलता है। देवी ने सफेद रंग के वस्त्र धारण कर रखे हैं और वह अपने भक्तों को ज्ञान देती हैं। मां की हमेशा उपासना करने से अमृत पद की प्राप्ति होती है। मां सिद्धिदात्री के मंत्र - .सिद्धगन्‍धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि, सेव्यमाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।
.या देवी सर्वभूतेषु सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

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