Friday, October 30, 2020

सैकड़ो वर्ष जिये सिद्ध योगी महर्षि देवरहा बाबा, जान लेते थे भक्तों के मन की बात

  


भारत में कई महान सिद्ध योगी पुरुष हुए हैं जिन्होंने असंभव लगने वाले कार्य तक कर दिखाये और विश्व में प्रसिद्ध हो गये। भक्ति, तप और योग से उन्होंने स्वयं को सामान्य मानवों से भिन्न बहुत ऊंचे स्थान पर स्थापित कर लिया था। अपनी सिद्धियों के बल पर उन्होंने ऐसे चमत्कार किये जिसे देख लोग दंग रह जाते थे। ब्रह्म से सीधा तादात्म्य स्थापित कर लेने वाले इन सिद्ध योगियों का जीवन जहां एक ओर लोगों को चमत्कृत करता है वहीं उनके प्रति अगाध श्रद्धा भी जगाता है। ऐसे ही सिद्ध योगी थे देवरहा बाबा जिनके लिए प्रसिद्ध है कि वे बिना अन्न खाये सैकड़ों वर्ष जीवित रहे। कुछ लोग उनकी आयु 250 वर्ष. कुछ 500 वर्ष और कुछ तो 900 वर्ष तक बताते हैं। जिन लोगों ने उन्हें देखा उन्होंने उन्हें वृद्धावस्था, क्षीण शरीर, सिर पर जटाजूट और हाथ-पांवों में झुर्रियों वाले रूप में ही देखा। जहां तक आयु का प्रश्न है तो इसमें भारत के पहले राष्ट्रपति डाक्टर राजेंद्र प्रसाद के कथन को प्रमाण मानें तो देवरहा बाबा की आयु 250 वर्ष तो अवश्य रही होगी। कहते हैं कि डाक्टर राजेंद्र प्रसाद जब दो-तीन साल के थे तभी अपने माता-पिता के साथ देवरहा बाबा से मिलने उनके आश्रम गये थे। उन्हें देखते ही बाबा सहसा बोल पड़े थेयह बच्चा तो राजा बनेगा। जब राजेंद्र प्रसाद देश के राष्ट्रपति बने तो उन्होंने पत्र लिख कर बाबा का आभार जताया। इतना ही नहीं 1954 के कुंभ में उन्होंने देवरहा बाबा का सार्वजनिक रूप से पूजन किया। उनका कहना था कि उन्होंने वर्षों तक बाबा को एक ही रूप में देखा। एक बैरिस्टर का तो यहां तक कहना था कि उनकी पांच पीढ़ियों ने देवरहा बाबा को एक ही रूप में बराबर देखा। पांच पीढ़ियों का कालखंड कितना होता है यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। इस तरह से उनकी लंबी आयु के बारे में कही बातें यों ही नहीं टाली जा सकतीं। उनमें कुछ न कुछ आधार तो है ही।

 उनका जन्म कहां कब हुआ इसका निश्चित पता नहीं है। कुछ लोग उनका जन्मस्थान देवरिया मानते हैं। वैसे इस सिद्ध योगी संत को गोरखपुर जिले के मईल गांव का बताते हैं। बहुत पहले की बात है | देवरिया का  मईल गाँव सरयू नदी के कटाव का शिकार हो गया था | वहां के किसान सरयू की धारा को अपनी खेती की जमीन और अपना घर लीलते देख बिलख रहे थे | एक सिद्ध योगी  गांववालों का कष्ट देख द्रवित हो गए | उन्होंने ढांढस बंधाया कि– ‘अब सरजू जी कटाव बंद कर देंगी | बस तुम इतना करो की सरयू के  तट पर मेरी कुटिया बना दो |’

      सिद्ध योगी ने जैसा कहा गांव वालों ने वैसा ही किया। उनकी कुटिया सरयू के तट पर डाल दी गयी। कुटिया में योगी तपस्या करने लगे और चमत्कार हो गया। नदी का कटाव बंद हो गया | धारा की दिशा बदल गयी | यह चमत्कार देख लोग योगी के दर्शन को आने लगे। योगी की कुटी नदी के उस बालुई क्षेत्र में बनी थी जिसे दियारा कहते हैं। दियारा में रहने के कारण  पहले उन्हे  दियरहा बाबा कहा जाने लगा बाद यह दियरहा देवरहा हो गया। योगी देवरहा बाबा कहलाने लगे।

 उनका एक आश्रम देवरिया के मईल गांव के पास सरयू तट पर और एक मथुरा वृंदावन में यमुना के तट पर है। अपने आश्रम में देवरहा बाबा मचान के ऊपर रहते थे और वहीं से भक्तों को दर्शन देते थे। उनका लोगों को आशीर्वाद देने का अनोखा ढंग था जो वे किसी बड़े नेता या प्रमुख व्यक्तियों को आशीर्वाद देने के लिए अपनाते थे। वे मंच से अपना पैर लटका कर किसी के सिर से स्पर्श करा दें तो वह व्यक्ति धन्य हो जाता था। एक बार किसी ने उनसे पूछा कि-बाबा आप लोगों को पैरों से आशीष क्यों देते हैं।

बाबा का उत्तर होता- बच्चा सुना, पैरों में सारे तीरथ होते हैं।

 अपने दर्शन को आये भक्तों को प्रसाद देने के लिए वे अपने मचान के खाली जगह पर हाथ फैलाते और वहां तरह-तरह के फल जाने कहां से आ जाते जो वे भक्तों की तरफ फेंक देते थे जिन्हें भक्त बड़ी श्रद्धा से ग्रहण करते थे।

आइए बाबा की प्रसिद्धि और उनके चमत्कारों के बारे में कुछ जानने का प्रयत्न करें। यह जग विख्यात है कि देवरहा बाबा अन्न ग्रहण नहीं करते थे। कहते हैं कि ब्रह्मलीन होते तक वे केवल शहद और दुग्ध पान कर के ही रहे। उन्हें खेचरी विद्या की सिद्धि थी जिससे वे उसके द्वारा तालु में अपनी जिह्वा को लगा कर विशिष्ट रस का पान करते थे जो शरीर का पोषण करता था। कहते हैं कि जिस योगी ने खेचरी विद्या सिद्ध कर ली वह चाहे तो जरा-मरण के कष्ट से मुक्त हो सकता है।

 किसी ने कभी बाबा से पूछा कि वे जाड़े और गर्मी से अपना बचाव कैसे करते हैं। उन्होंने बताया था कि दिन में सूर्य ताप से बचने के लिए वे चंद्र नाड़ी का प्रयोग करते हैं और रात्रि में शीत से बचने के लिए सूर्य नाड़ी का। जो सिद्ध योगी हैं वे इस क्रिया को आसानी से कर सकते हैं। चन्द्र स्वर में इड़ा नाड़ी होती है, यह ठंडी प्रकृति का स्वर है। जब इससे श्वांस आती-जाती है तो इससे शरीर में शीतलता आती है। यह स्वर मस्तिष्क के दायें भाग को सक्रिय करता है। सूर्य स्वर में पिंगला नाड़ी होती है यह स्वर गर्म प्रकृति का होता है। देवरहा बाबा अष्टांग योग के ज्ञाता, रामायण, गीता , भागवत और शास्त्रों के मर्मज्ञ थे। वेदों, उपनिषदों, गीता के श्लोक और रामायण की चौपाइयां और दोहे उन्हें कंठस्थ थे और वे धाराप्रवाह इन्हें बोलते थे।

 देवरहा बाबा के चामात्कारिक जीवन पर झांकने के पहले उनके उपदेशों की चर्चा कर लें।

 खेचरी विद्या के चलते बाबा पल भर में कहीं से कहीं चले जाते थे। कहते हैं कि वे द्विशरीरी चमत्कार भी कर सकते थे। एक जगह रहते हुए वे दूर किसी दूसरे स्थान पर भी अपने भक्तों से मिल सकते थे। अपने आश्रम में आनेवाले भक्तों से वे राम नाम संकीर्तन कराते थे। वे स्वयं कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने प्रणत: क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नम: कह कर ही अपनी बात शुरू करते थे।

 वे कहते थे-प्यारे आत्मा भारत की गरीबी दूर करने के लिए, भारत को समृद्धशाली बनाने के लिए गोरक्षा अत्यंत आवश्यक है। गाय के पृष्ठ भाग में ब्रह्मा का वास, गले में विष्णु, मुख में शिव, रोम-रोम में ऋषियों, देवताओं का वास।

ईश्वर सबका है और सब ईश्वर के हैं ।

प्यारे आत्मा भगवान को भूलो नहीं भगवान का स्मरण करते रहो। प्यारे आत्मा भगवान से प्रेम करना आवश्यक है। वासनाओं से दूर रहो। हृदय में भगवान का वास है भगवान का ध्यान और जिह्वा में भगवान का नाम इससे सारी वासनाएं जल जाती हैं।

आज जो कठिनाइयां हैं वह भगवान को भूलने से हो रही हैं। प्यारे आत्मा प्रभु से प्रेम करो। भगवत प्रेम श्रेष्ठ है। थोड़ा-सा भजन होने से अगर भगवान से प्रेम ना हो तो साधक को घबड़ाना नहीं चाहिए प्रयास करते रहना चाहिए।    

देवरहा बाबा के भक्तों में कई बड़े –बड़े नाम  शामिल है। डाक्टर राजेंद्र प्रसाद,इंदिरा गांधी,राजीव गांधी, अचल बिहारी वाजपेयी,लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव और कमलापति त्रिपाठी जैसे राजनेता समस्या के समाधान के लिए बाबा की शरण में आते थे। देश में आपातकाल के बाद हुए चुनावों में जब इंदिरा गाँधी की हार हो गईं तो वह भी देवरहा बाबा से आशीर्वाद लेने गयीं। देवरहा बाबा ने उन्हें अपने हाथ का पंजा उठा कर आशीर्वाद दिया कहते हैं तभी से कांग्रेस  का चुनाव चिह्न हाथ का पंजा है। इसका परिणाम यह हुआ कि 1980 में एक बार फिर वह प्रचंड बहुमत के साथ देश की प्रधानमंत्री बनीं।

मंगलवार, 19 जून सन् 1990 को योगिनी एकादशी के दिन ब्रह्मलीन होने वाले वाले इस बाबा के जन्म के बारे में संशय है।

श्रद्धालुओं की मानें तो बाबा अपने पास आने वाले प्रत्येक व्यक्ति से बड़े प्रेम से मिलते थे और सबको कुछ न कुछ प्रसाद अवश्य देते थे।

 कहते हैं कि खेचरी मुद्रा की वजह से आवागमन में वे कहीं भी कभी भी चले जाते थे। उनके आस-पास उगने वाले बबूल के पेड़ों में कांटे नहीं होते थे और कहते हैं कि इन पेड़ों से सुगंध निकलती थी।

लोगों का तो यहां तक कहना है कि बाबा को जल पर चलने की कला आती थी। किसी जगह जाने के लिए उन्होंने कभी भी सवारी नहीं की और ना ही उन्हें कभी किसी सवारी से कहीं जाते हुए देखा गया। हर वर्ष कुंभ के समय वह प्रयाग पहुंच जाते थे।यमुना के किनारे वृन्दावन में वह आधा घंटा तक सांस थामे पानी में रह सकते थे. जानवरों की भाषा भी देवरहा बाबा समझ सकते थे। इतना ही नहीं खतरनाक जंगली जानवारों को वह पल भर में वश में कर लेते थे।

वह जान लेते थे कि कब, कौन, कहाँ उनके बारे में बात हुई। वह नहीं चाहते तो उनके सामने तने रिवाल्वर से गोली नहीं चलती थी।

देश-दुनिया के महान लोग उनसे मिलने आते थे और विख्यात साधु-संतों का भी उनके आश्रम में समागम होता रहता था।

1987 की बात है वृंदावन में यमुना पार देवरहा बाबा अपने आश्रम में थे। वहां कुछ अधिकारी थे जो काफी व्यस्त और व्यग्र नजर आ रहे थे। कारण यह था कि प्रधानमंत्री राजीव गांधी बाबा के दर्शन के लिए आनेवाले थे।प्रधानमंत्री के आगमन और यात्रा के लिए पूरे क्षेत्र में सुरक्षा आदि की व्यवस्था की जांच चल रही थी।

बड़े अधिकारियों ने हैलीपैड बनाने के लिए वहां लगे एक बबूल के पेड़ की डाल काटने के निर्देश दिया। यह बात जब बाबा को पता चली तो बाबा ने उस बड़े पुलिस अधिकारी को बुलाया और उससे पूछा-तुम पेड़ को क्यों काटना चाहते हो?

अफसर ने कहा-बाबा, प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए यह जरूरी है।

 बाबा बोले- तुम यहां अपने प्रधानमंत्री को लाओगे, उनकी प्रशंसा पाओगे, प्रधानमंत्री का भी नाम भी होगा कि वह साधु-संतों के पास जाता है, लेकिन इसका दंड तो बेचारे पेड़ को भुगतना पड़ेगा!   वह पेड़ मुझसे इस बारे में पूछेगा तो मैं उसे क्या जवाब दूंगा? नही! यह पेड़ नहीं काटा जाएगा।

 अफसरों ने अपनी मजबूरी बताई कि यह दिल्ली से आए अफसरों का है, इसलिए इसे काटा ही जाएगा और फिर पूरा पेड़ तो नहीं कटना है, इसकी एक टहनी ही काटी जानी है, मगर बाबा जरा भी राजी नहीं हुए. उन्होंने कहा कि यह पेड़ होगा तुम्हारी नजर में, मेरा तो यह सबसे पुराना साथी है, दिन रात मुझसे बातें करता है, यह पेड़ नहीं कट सकता।

इससे अधिकारी दुविधा में पड़ गये। आखिर बाबा ने ही उन्हें ढांढस बंधाया- घबड़ाओ मत, तुम्हारे प्रधानमंत्री का दौरा टल जायेगा।

आश्चर्य की बात है दो घंटे बाद ही प्रधानमंत्री कार्यालय दिल्ली से रेडियोग्राम पर संदेश आ गया कि प्रधानमंत्री का कार्यक्रम रद्द हो गया है।  कुछ समय बाद राजीव गांधी बाबा के दर्शन करने आये लेकिन इसके लिए कोई पेड़ नहीं काटा गया।

बाबा के भक्तों में जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री , इंदिरा गांधी जैसे चर्चित नेताओं के नाम है।. उनके पास लोग हठयोग सीखने भी जाते थे।

बाबा की प्रसिद्धि देश लेकर विदेश तक व्याप्त थी। कहते हैं कि जब जार्ज पंचम भारत आये तो उनके दर्शन करने देवरिया जिले के दियारा इलाके में मइल गांव वाले उनके आश्रम गये थे। माना यह जाता है कि इंग्लैंड से जब वे भारत के लिए प्रस्थान कर रहे थे तो उन्हेंने अपने भाई से पूछा था कि क्या वास्तव में इंडिया के साधु संत महान होते हैं।

प्रिंस फिलिप ने जवाब दिया- हां, कम से कम देवरहा बाबा से जरूर मिलना। यह 1911 की बात है. जार्ज पंचम की यह यात्रा तब हुई जब विश्वयुद्ध के मंडरा रहे बादल के चलते भारत के लोगों को ब्रिटिश हुकूमत के पक्ष में करने की बात थी।

कहा जाता है कि बाबा देखते ही समझ जाते थे कि सामने वाले का सवाल क्या है. दिव्यदृष्ट के साथ तेज नजर, कड़क आवाज, दिल खोल कर हंसना, खूब बातें करना उनकी आदत थी।

वे देह त्यागने के समय तक कमर से आधा झुक कर चलने लगे थे। उनका पूरा जीवन मचान में ही बीता. लकडी के चार खंभों पर टिकी मचान ही उनका बसेरा था जहां नीचे से ही लोग उनके दर्शन करते थे। मइल में वे साल में आठ महीना बिताते थे. कुछ दिन बनारस के रामनगर में गंगा के बीच, माघ में प्रयाग, फागुन में मथुरा के मठ के अलावा वे कुछ समय हिमालय में एकांतवास भी करते थे। कुछ की मान्यता है कि उनकी पहुंच हिमालय में तिब्बत की ओर दुर्गम स्थान पर स्थित उस ज्ञानगंज आध्यत्मिक विश्वविद्यालय तक भी थी जो विश्व में एकमेव और अनन्य है। जहां तक केवल पहुंचे हुए साधकों और आध्यात्म के शीर्ष तक पहुंचे व्यक्तित्व ही पहुंच पाते हैं।

बाबा के ब्रह्मलीन होने के बारे में कहा जाता है कि 11 जून 1990 को अपने वृंदावन आश्रम में वे ब्रह्मलीन हो गये। अचानक उन्होंने लोगों को दर्शन देना बंद कर दिया था।

लोग परेशान हो गये, अजब सी आशंका उनमें घर कर गयी। मौसम तक का खराब हो गया. यमुना में बड़ी-बड़ी लहरें उठने लगीं। अपने मचान पर बाबा आसन लगाये बैठे रहे। डॉक्टरों ने थर्मामीटर लगा कर देखा पारा अंतिम सीमा को पार करने को था।. १९ जून मंगलवार के दिन योगिनी एकादशी थी।

आसमान पर काले बादल घिर आये, तूफानी आंधी चलने सगी। यमुना की लहरों का पानी उछल कर बाबा के मचान तक पहुंचने लगा। इसी तूफानी वातावरण के बीच शाम चार बजे बाबा का शरीर स्पंदनरहित हो गया। इस तरह एक योग सिद्ध महर्षि ब्रह्मलीन हो गये। उनके पीछे रह गये उनके चामात्कारिक और आध्यात्मिक जीवन से जुड़े प्रसंग और उनके आश्रम जहां उनके शिष्य अब उनके संदेशों का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।

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