Wednesday, October 28, 2020

क्या द्रौपदी ने किया था रक्षाबंधन का प्रारंभ

 कृष्ण की कटी उंगली में बांधा था साड़ी का पल्ला


रक्षाबंधन हिंदुओं का महान पर्व है जिसमें भाई की कलाई में बहन राखी बांधती है और भाई उसकी रक्षा का वचन देता है। यों तो रक्षाबंधन की प्रथा के प्रारंभ होने के बारे में ऐतिहासिक और धार्मिक कई आख्यान हैं लेकिन सर्वाधिक प्रचलित है द्रौपदी द्वारा कृष्ण की उंगली कट जाने पर साड़ी का पल्लू फाड़ कर उनकी उंगली में बांधने से ही रक्षाबंधन या राखी का प्रारंभ मानते हैं।  का जिक्र महाभारत में भी मिलता है। कहते हैं कि शिशुपाल वध के दौरान सुदर्शन चक्र से कृष्ण की उंगली कट जाने पर उससे रक्त बहनें लगा था। यह देख कर द्रौपदी ने अपनी साड़ी का पल्ला फाड़ा और उसे उनकी उंगली पर बांध दिया, जिसके बाद श्रीकृष्ण ने वचन दिया कि वह एक-एक धागे का ऋण चुकाएंगे। ऐसी मान्यता है कि जिस दीन की यह घटना है उस दिन भी श्रावण मास की पूर्णिमा ही थी।ऐसे में इस दिन का महत्ता और बढ़ गई।

 कृष्ण ने द्रौपदी को दिया अपना वचन पूरा किया। जब पांडव जुएं में द्रौपदी को युद्ध हार गए थे और कौरवों ने भरी सभा में द्रोपदी का चीरहरण करना चाहा उस वक्त श्रीकृष्ण ने अपनी लीला से द्रौपदी की साड़ी को इतना लंबा कर दिया कि कौरवों को हार माननी पड़ी।

महाभारत काल का ही एक और प्रसंग है। कहते हैं युधिष्ठिर ने एक बार कृष्ण से पूछा था कि वह किस तरह से संकटों से मुक्ति पा सकते हैं। कृष्ण ने सुझाव दिया कि वे स्वयं और अपनी सेना के प्रत्येक सैनिकों के हाथ में रक्षासूत्र बांध दें। कहते हैं तभी से पवित्र रक्षाबंधन का प्रारंभ हुआ। मान्यता है कि यह घटना भी श्रावण महीने की पूर्णिमा तिथि को ही हुई थी।  यह पर्व प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। रक्षाबन्धन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्त्व है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे तथा सोने या चाँदी जैसी मँहगी वस्तु तक की हो सकती है। सामान्यतः बहनें ही भाई को रक्षासूत्र बाँधती हैं लेकिन ब्राह्मणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा सम्मानित सम्बंधियों भी रक्षासूत्र बांधा जाता है। सभी धार्मिक अनुष्ठानों में रक्षासूत्र बाँधने की परंपरा है। पूजा करुनेवाले पंडित इस रक्षासूत्र को बांधते वक्त संस्कृत का यह मंत्र पढ़ते हैं जिसमें रक्षाबन्धन का सम्बन्ध राजा बलि से स्पष्ट होता है। मंत्र है-

येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल:

तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥

इस श्लोक का  अर्थ है-"जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ। हे रक्षे (राखी)! तुम अडिग रहना (तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।)"  

 भविष्य पुराण में उल्लेख है कि देवताओं और दानवों के बीच जब युद्ध हुआ था उस वक्त दानवों का का पलड़ा भारी लगने लगा तो भयभीत इन्द्र बृहस्पति के पास गये। जब वे अपना कष्ट वृहस्पति को  सुना रहे थे उस समय वहां बैठी इंद्राणी यहब सुन रही थी। कहते हैं कि उन्होंने मंत्र से अभिमंत्रित करके एक धागा अपने पति की कलाई पर बाँध दिया। ऐसा माना जाता है कि उस दिन भी श्रावण पूर्णिमा ही थी। इन्द्र  को इस युद्ध में विजय मिली थी। कुछ लोग तभी से इस परंपरा की शुरुआत मानते हैं।

  भागवतपुराण में उल्लेख है कि एक बार बाली रसातल में चला गया तब बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया। भगवान के घर न लौटने से परेशान लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय बताया। उस उपाय का पालन करते हुए लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षाबन्धन बांधकर अपना भाई बनाया और अपने पति भगवान विष्णु को अपने साथ ले आयीं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी।

भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान जन जागरण के लिये भी राखी के पर्व का आयोजन किया गया। रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने बंग-भंग का विरोध करते समय रक्षाबन्धन त्यौहार को बंगाल निवासियों के पारस्परिक भाईचारे तथा एकता का प्रतीक बनाकर इस त्यौहार का राजनीतिक उपयोग आरम्भ किया।

गुरु द्वारा शिष्य को रक्षासूत्र बांधने की प्राचीन परंपरा है। शिक्षा पूर्ण होने के पश्चात जब शिष्य गुरुकुल से विदा लेता था तो वह आचार्य का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उसे रक्षासूत्र बाँधता था जबकि आचार्य अपने विद्यार्थी को इस कामना के साथ रक्षासूत्र बाँधता था कि उसने जो ज्ञान प्राप्त किया है वह अपने भावी जीवन में उसका समुचित ढंग से प्रयोग करे ताकि वह अपने ज्ञान के साथ-साथ आचार्य की गरिमा की रक्षा करने में भी सफल हो। इस तरह से हम पाते हैं कि प्रसंग कोई भी रक्षाबंधन का उद्देश्य उसे रक्षा का भरोसा देना होता है।

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