Thursday, October 22, 2020

सूर्य नमस्कार से दूर होते हैं अनेक रोग

  

सूर्य नमस्कार  को योगासनों में   सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, इससे शरीर के सभी अंगों का व्यायाम हो जाता है। इससे सम्पूर्ण योग व्यायाम का लाभ मिल जाता  है। इसे करने से शरीर निरोग और स्वस्थ होकर तेजस्वी हो जाता है। स्त्री, पुरुष, बाल, युवा तथा वृद्ध सभी के लिए यह लाभदायक है। 

सूर्य नमस्कार का समय

 

सूर्य-नमस्कार के लिये सूर्योदय का समय सबसे अच्छा माना गया है। खुली हवादार जगह पर इसे करना चाहिए। एक आसन बिछा कर उस पर करना चाहिए। इस आसन को खाली पेट करना चाहिए इससे मन शान्त और शरीर के हर अंगों का व्यायाम हो जाता है। 


इसके  नियमित अभ्यास से शारीरिक  और मानसिक शक्ति व स्फूर्ति मिलती है। आइए इसकी विधि जानने से पहले इसके लाभ के बारे में जान लेते हैं। 
इससे सभी महत्त्वपूर्ण अंगों में रक्तसंचार बढता है। इससे विटामिन-डी मिलता है जो हड्डियां मजबूत करता है। आँखों की ज्योति बढती है।शरीर में खून का प्रवाह तेज होता है जिससे ब्लड प्रेशर की बीमारी में आराम मिलता है।इससे दिमाग ठंडा रहता है। पेट की चरबी घटाने और वजन कम करने में मदद मिलती है। क्रोध पर काबू रखने में मददगार होता है। कमर लचीली होती है और रीढ की हडडी मजबूत होती है।हृदय व फेफडोंकी कार्यक्षमता बढती है। बाहें व कमरके स्नायु बलवान हो जाते हैं ।
  • पचनक्रियामें सुधार होता है।
  • मनकी एकाग्रता बढती है। यह शरीर के सभी अंगों, मांसपेशियों व नसों को क्रियाशील करता है।
  • इसके अभ्यास से शरीर की लोच शक्ति में आश्चर्यजनक वृद्धि होती है। 
  • शरीर की सभी महत्वपूर्ण ग्रंथियों, जैसे पिट्यूटरी, थायरॉइड, पैराथायरॉइड, एड्रिनल, लीवर, पैंक्रियाज, ओवरी आदि ग्रंथियों के स्रव को संतुलित करने में मदद करता है। 
  • शरीर के सभी संस्थान, रक्त संचरण, श्वास, पाचन, उत्सर्जन, नाड़ी तथा ग्रंथियों को क्रियाशील एवं सशक्त करता है।
  • पाचन सम्बन्धी समस्याओं, अपच, कब्ज, बदहजमी, गैस, अफारे तथा भूख न लगने जैसी समस्याओं के समाधान में बहुत ही उपयोगी भूमिका निभाता है।
  • वात, पित्त तथा कफ को संतुलित करने में मदद करता है। त्रिदोष निवारण में मदद करता है।

सूर्य नमस्कार के आसन 

  1. प्रणामासन 
  2. हस्त उत्तानासन
  3. उत्तानासन
  4. अश्व संचालनासन
  5. चतुरंग दंडासन
  6. अष्टांग नमस्कार
  7. भुजंगासन
  8. अधोमुक्त श्वानासन/पर्वतासन
  9. अश्व संचालनासन
  10. उत्तानासन
  11. हस्त उत्तानासन
  12. प्रणामासन

सूर्य नमस्कार कैसे करें


सूर्य नमस्कार का अभ्यास बारह स्थितियों में किया जाता है, जो निम्नलिखित है-
(1) दोनों हाथों को जोड़कर सीधे खड़े हों। नेत्र बंद करें। ध्यान 'आज्ञा चक्र' पर केंद्रित करके 'सूर्य' का आह्वान 'ॐ मित्राय नमः' मंत्र के द्वारा करें।
(2) श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं। ध्यान को गर्दन के पीछे 'विशुद्धि चक्र' पर केन्द्रित करें।
(3) तीसरी स्थिति में श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकाएं। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रहें। माथा घुटनों का स्पर्श करता हुआ ध्यान नाभि के पीछे 'मणिपूरक चक्र' पर केन्द्रित करते हुए कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें। कमर एवं रीढ़ के दोष वाले साधक न करें।
(4) इसी स्थिति में श्वास को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ। इस स्थिति में कुछ समय रुकें। ध्यान को 'स्वाधिष्ठान' अथवा 'विशुद्धि चक्र' पर ले जाएँ। मुखाकृति सामान्य रखें।
(5) श्वास को धीरे-धीरे बाहर निष्कासित करते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एड़ियां परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एड़ियों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कण्ठकूप में लगाएं। ध्यान 'सहस्रार चक्र' पर केन्द्रित करने का अभ्यास करें।
(6) श्वास भरते हुए शरीर को पृथ्वी के समानांतर, सीधा साष्टांग दण्डवत करें और पहले घुटने, छाती और माथा पृथ्वी पर लगा दें। नितम्बों को थोड़ा ऊपर उठा दें। श्वास छोड़ दें। ध्यान को 'अनाहत चक्र' पर टिका दें। श्वास की गति सामान्य करें।
(7) इस स्थिति में धीरे-धीरे श्वास को भरते हुए छाती को आगे की ओर खींचते हुए हाथों को सीधे कर दें। गर्दन को पीछे की ओर ले जाएं। घुटने पृथ्वी का स्पर्श करते हुए तथा पैरों के पंजे खड़े रहें। मूलाधार को खींचकर वहीं ध्यान को टिका दें।
(8) श्वास को धीरे-धीरे बाहर निष्कासित करते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एड़ियां परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एड़ियों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कण्ठकूप में लगाएं। ध्यान 'सहस्रार चक्र' पर केन्द्रित करने का अभ्यास करें।
(9) इसी स्थिति में श्वास को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ। इस स्थिति में कुछ समय रुकें। ध्यान को 'स्वाधिष्ठान' अथवा 'विशुद्धि चक्र' पर ले जाएँ। मुखाकृति सामान्य रखें।
(10) तीसरी स्थिति में श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकाएं। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रहें। माथा घुटनों का स्पर्श करता हुआ ध्यान नाभि के पीछे 'मणिपूरक चक्र' पर केन्द्रित करते हुए कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें। कमर एवं रीढ़ के दोष वाले साधक न करें।
(11) श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं। ध्यान को गर्दन के पीछे 'विशुद्धि चक्र' पर केन्द्रित करें।

No comments:

Post a Comment