Tuesday, November 17, 2020

गांधारी का पहला विवाह बकरे से क्यों किया गया


  जिन्हें महाभारत की कथा का ज्ञान है वे गांधारी के नाम से अवश्य परिचित होंगे। दुर्योधन व अन्य कौरवों की मां गांधारी, अंधे धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी लेकिन आपमें से बहुत लोगों को यह पता नहीं होगा कि धृतराष्ट्र से विवाह से पूर्व पूर्व गांधारी का पहला विवाह एक बकरे से कराया गया था। गांधार देश के राजा सुबल की कन्या थीं गांधारी। गांधार की होने के कारण उसे गांधारी कहा जाता था। गांधार अब अफगानिस्तान के एक क्षेत्र कंधार के नाम से जाना जाता है। गांधारी के भाई का नाम शकुनि था। शकुनि दुर्योधन का मामा था।

कहा यह जाता है कि धृतराष्ट्र से उनका विवाह उनकी इच्छा के विरुद्ध और विवशता में किया गया था। अंधे महाराज धृतराष्ट्र से भीष्म ने गांधार नरेश की राजकुमारी का बलपूर्वक विवाह कराया था।
 कहा यह जाता है कि धृतराष्ट्र से पहले गांधारी का विवाह एक बकरे से कराया गया था। कहते हैं ऐसा ज्योतिषियों के परामर्श पर किया गया था। ज्योतिषियों ने कहा था कि गांधारी के पहले विवाह पर संकट है। इसे दूर करने के लिए इसका पहला विवाह किसी और से कर देना चाहिए। उसके बाद आप इसका विवाह धृतराष्ट्र से कर सकते हैं। इसके लिए ज्योतिषियों के कहने पर गांधारी का विवाह एक बकरे से करवाया गया था। बाद में उस बकरे की बलि दे दी गई। कहा जाता है कि गांधारी को किसी प्रकार के अशुभ ग्रह से मुक्त कराने के लिए ऐसा किया गया था। बकरे के मारे जाने के बाद गांधारी को प्रतीक रूप में विधवा मान लिया गया और बाद में उनका विवाह धृतराष्ट्र से कर दिया गया।  धृतराष्ट्र से शादी के बाद गांधारी ने अपनी आंखों में पट्टी  क्यों बांधी इसे भी लेकर अलग-अलग कथाएं हैं। पहली कथा यह है कि गांधारी को पहले से यह ज्ञात था कि उनका होने वाला पति अंधा है। दूसरा यह कि विवाह के बाद जब उन्हें पता चला कि मेरा पति अंधा है तो वह सन्न रह गयीं और उन्होंने माना कि उनके साथ धोखा हुआ है। यह सोच कर उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली। एक कथा यह भी है कि गांधारी ने पतिव्रत धर्म का पालन करते हुए अपनी आंखों पर जीवनभर के लिए पट्टी बांध ली थी। उन्होंने सोचा कि जब उनके पति संसार नहीं देख सकते तो वे भी क्यों देखें।यही कारण है कि उनकी गणना  महान पतिव्रता नारियों में होती है।

गांधारी एक विधवा थीं, इस सच्चाई का पता कौरव पक्ष को बहुत दिन तक नहीं चला। कहते हैं कि इस बात का पता जब धृतराष्ट्र को चला तो वे बहुत क्रोधित हो उठे। उन्होंने सोचा कि गांधारी का पहले किसी से विवाह हुआ था और पता नहीं उसका वध क्यों कर दिया गया। धृतराष्ट्र बहुत दुखी हुए और उन्होंने इसका दोषी गांधारी के पिता राजा सुबल को माना। धृतराष्ट्र ने गांधारी के पिता राजा सुबल को पूरे परिवार सहित कारागार में डाल दिया। कारागार में उन लोगों को खाने के लिए केवल एक व्यक्ति का भोजन दिया जाता था। केवल एक व्यक्ति के भोजन से भला सभी का पेट कैसे भरता? यह पूरे परिवार को भूखे मार देने का ष़डयंत्र था। राजा सुबल ने यह निर्णय लिया कि यह भोजन केवल उनके सबसे छोटे पुत्र को ही दिया जाए ताकि उनके परिवार में से कोई तो जीवित बच सके।  वह छोटा पुत्र था शकुनि। ऐसा कहा जाता है कि विवाह के समय गांधारी के साथ उनका भाई शकुनि और आयु में बड़ी उनकी एक सखी हस्तिनापुर आई थीं और दोनों ही यहीं रह गए थे।

शकुनि ने गांधारी व धृतराष्ट्र को अपने वश में करके धृतराष्ट्र के भाई पांडु के विरुद्ध षड्‍यंत्र रचने और राजसिंहासन पर धृतराष्ट्र का आधिपत्य जमाने को कहा था। शकुनि की जब यह चाल किसी भी कारण से सफल रही हो उसका सम्मान और बढ़ गया। गांधारी अपने भाई की चाल को समझती थी और वह अपने पुत्र को बुराइयों से दूर रहने को कहती थी लेकिन उसकी नहीं चलती थी। पति, भाई और पुत्र के बीच गांधारी विवश थी।
 गांधारी के सभी सौ पुत्र महाभारत के युद्ध में मारे गए अंत में दुर्योधन का जब भीम ने वध कर दिया। महाभारत युद्ध के पश्चात सांत्वना देने के उद्देश्य से भगवान श्रीकृष्ण गांधारी के पास गए। गांधारी अपने 100 पुत्रों की मृत्यु के शोक में अत्यंत व्याकुल थीं। भगवान श्रीकृष्ण को देखते ही गांधारी ने क्रोधित होकर उन्हें शाप दिया कि तुम्हारे कारण जिस प्रकार से मेरे 100 पुत्रों का नाश हुआ है, उसी प्रकार तुम्हारे वंश का भी आपस में एक-दूसरे को मारने के कारण नाश हो जाएगा। भगवान श्रीकृष्ण ने गांधारी से कहा- देवी, मैं आपके दुख को समझ सकता हूं। यदि मेरे वंश के नाश से तुम्हे आत्मशांति मिलती है तो ऐसा ही होगा। भगवान श्रीकृष्ण ने माता गांधारी के उस शाप को पूर्ण करने के लिए अपने कुल के यादवों की मति फेर दी।
मूसल युद्ध के कारण जब श्रीकृष्ण के कुल के अधिकांश लोग मारे गए तो श्रीकृष्ण ने प्रभाष क्षेत्र में एक वृक्ष के नीचे विश्राम किया। वहीं पर उनको एक भील ने भूलवश तीर मार दिया जो कि उनके पैरों में जाकर लगा। इसी को बहाना बनाकर श्रीकृष्ण ने देह को त्याग दिया। उसके बाद द्वारिका नगरी समुद्र में डूब जाती है।

 

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