टेलीपैथी से आप किसी तक पहुंचा सकते हैं अपना संदेश
राजेश त्रिपाठी
वापस उस घटना में आते हैं जिसने टेलीपैथी शब्द से मुझे परिचित कराया। हुआ यह कि बेटी की हाईस्कूल की परीक्षा थी और हिंदी विषय में उसे कुछ कठिनाई हो रही थी। हमारे एक घनिष्ठ शिक्षक बंधु थे जो आश्वासन दे गये थे-बेटी घबड़ाओ मत, मैं परीक्षा के एक दिन पहले आकर सब समझा दूंगा क्या-क्या कैसे-कैसे करना है। बेटी के साथ ही हम भी आश्वास्त हो गये कि चलो हमारे बंधु आ जायेंगे तो बेटी को समझा देंगे। जिस दिन उन्हें आऩा था शायद वे भूल गये। शाम ढल गयी तो बेटी मन मार कह बोली-पापा अंकल तो नहीं आये। मैंने उसे ढांढस बंधाया कि आ जायेंगे।
इतना कह कर शाम के धुंधलके में बरामदे के एक कोने में बैठ गया और मैंने अपना सारा ध्यान उन राय साहब पर क्रेंद्रित कर लिया जिन्हें आना था। मैं बार-बार उनका नाम मन में लिया और कहता गया-क्या हुआ राय साहब, भूल गये क्या आपको हमारे यहां आना है। आप तुरत आइए, हम सब परेशान हैं।
यह कहते हुए आधा घंटा बीता होगा कि राय साहब बदहवास से भागते आये। वे आते ही बोले -यहां मुझे कौन याद कर रह रहा था मुझे घर जाना था और मेरे मन में यह बात हथौडे की तरह लग रही थी-घर नहीं आपको त्रिपाठी जी के घर जाना है उनकी बेटी की कल परीक्षा है। जाइए पहले उसका मार्गदर्शन कीजिए। इसके बाद बरबस ही मेरे कदम आपके घर की ओर मुड़ गये।
मैंने कहा-मैं आपको व्यग्रता से याद कर रहा था, क्या करूं बेटी बहुत घबरा रही थी।
इतना सुनते ही वे तपाक से बोले-आप टेलीपैथी जानते हैं क्या राजेश जी, किस तरह से अपने दिमाग से आपने मेरे दिमाग को झंकृत, विह्वाल कर दिया और मैं भागा-दौडा आया।
उसके बाद टेलीपैथी के बारे में जाना तो चमत्कृत हो गया। कुछ लोगों ने इसके लिए सीधा-सा उदाहरण दिया कि आप किसी को याद कर जब आंख बंद कर लते हैं तो मस्तिष्क पटल पर उसकी छवि अपने आप कैसे उभर आती है। यही शक्ति विकसित हो जाये तो व्यक्ति ना सिर्फ मस्तिष्क की तरंगों से दूसरे को संदेश भेज सकता है अपितु उसके मन को भी पढ़ सकता है। हमारे ऋषि-मुनि ध्यान लगा कर आनेवाले अनिष्ठ या किसी अन्य विपत्ति को भांप लेते थे। ध्यान से वे अपना तादात्म्य परमशक्ति से बैठाने में भी सक्षम हुए।
भविष्य में होने वाली घटना का पहले से संकेत मिलना ही पूर्वाभास यानी टैलीपैथी है। आमतौर पर हमें वर्तमान की, अपने आसपास की घटनाओं की जानकारी होती है। भविष्य अथवा पूर्वजन्मों की घटनाओं का हमें ज्ञान नहीं होता है। परंतु, कभी-कभी हमारे जीवन में कोई ना कोई ऐसी घटना घट जाती है, जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि इंसान में जरूर कोई विलक्षण शक्ति कार्य कर रही है, जो अतीत, भविष्य या वर्तमान में झांकने की ताकत रखती है।
कुछ लोगों में टैलीपैथी का विशिष्ट ज्ञान काफी विकसित होता है। सामान्यतः हम पांच ज्ञानेन्द्रियों के जरिए वस्तु या दृश्यों का विवेचन कर पाते हैं, परंतु कभी-कभी या किसी में छठी इन्द्रिय (सिक्स्थ सेंस) जागृत हो जाती है। इस इन्द्रिय को विज्ञान ने अतीन्द्रिय ज्ञान या एक्स्ट्रा सेंसरी परसेप्शन का नाम देते हुए अपनी बिरादरी में शामिल कर लिया है। दरअसल हम सबमें थोड़ी-बहुत टैलीपैथी होती है, लेकिन कुछ लोगों में यह इतनी स्ट्रांग होती है कि वह अपनों के साथ घटने वाली अच्छी और बुरी दोनों प्रकार की घटनाओं को आसानी से जान लेते हैं।
इंसान की इस पूर्वाभास की शक्ति को पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने चार वर्गों में बांटा है -
अपने दिमाग को कैसे नियंत्रित करें
यह विषय आपको जरूर चौकाने वाला है। अपने ही दिमाग को नियंत्रण में कैसे रखे यह बात समझ नहीं आती। हम उसी के बारे में बात करने वाले है। खुद का दिमाग कैसे कार्य करता है यह बात तो हम सब नहीं जानते पर आज हम इसी विषय के ज़रिये बात करेंगे कि कैसे अपना दिमाग काम करता है और कैसे उसको नियंत्रित किया जा सकता है।
मन मस्तिष्क की उस क्षमता को कहते हैं जो मनुष्य को चिंतन शक्ति, स्मरण-शक्ति, निर्णय शक्ति, बुद्धि, भाव, इंद्रियाग्राह्यता, एकाग्रता, व्यवहार, परिज्ञान (अंतर्दृष्टि), इत्यादि में सक्षम बनाती है। सामान्य भाषा में मन शरीर का वह हिस्सा या प्रक्रिया है जो किसी ज्ञातव्य को ग्रहण करने, सोचने और समझने का कार्य करता है। यह मस्तिष्क का एक प्रकार्य है।
मन और इसके कार्य करने के विविध पहलुओं का मनोविज्ञान नामक ज्ञान की शाखा द्वारा अध्ययन किया जाता है। मानसिक स्वास्थ्य और मनोरोग किसी व्यक्ति के मन के सही ढंग से कार्य करने का विश्लेषण करते हैं। मनोविश्लेषण नामक शाखा मन के अन्दर छुपी उन जटिलताओं का उद्घाटन करने की विधा है जो मनोरोग अथवा मानसिक स्वास्थ्य में व्यवधान का कारण बनते हैं। वहीं मनोरोग चिकित्सा मानसिक स्वास्थ्य को पुनर्स्थापित करने की विधा है।
बगैर किसी उपकरण की मदद से लोगों के मन की बात जान लेने की कला को ही टेलीपैथी कहते हैं। जरूरी नहीं कि हम किसी से संपर्क करें। हम दूर बैठे किसी भी व्यक्ति की बात इसके माध्यम से सुन सकते हैं, देख सकते हैं और उसकी स्थिति को जान सकते हैं। इसलिए टेलीपैथी को हिंदी में दूरानुभूति कहते हैं।
क्या है टेलीपैथी
टेलीपैथी शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल 1882 में फैड्रिक डब्लू एच मायर्स ने किया था। कहते हैं कि जिस व्यक्ति में यह छठी ज्ञान इंद्री जाग्रत होती है वह जान लेता है कि दूसरों के मन में क्या चल रहा है। यह परामनोविज्ञान का विषय है जिसमें टेलीपैथी के कई प्रकार बताए जाते हैं। ‘टेली’ शब्द से ही टेलीफोन, टेलीविजन आदि शब्द बने हैं। ये सभी दूर के संदेश और चित्र को पकड़ने वाले यंत्र हैं। इंसानी दिमाग में भी इस तरह की क्षमता होती है। कोई व्यक्ति जब किसी के मन की बात जान ले या दूर घट रही घटना को पकड़कर उसका वर्णन कर दे तो उसे पारेंद्रिय ज्ञान से संपन्न व्यक्ति कहा जाता है। महाभारतकाल में संजय के पास यह क्षमता थी। उन्होंने दूर चल रहे युद्ध का वर्णन धृतराष्ट्र को कह सुनाया था।
टेलीपैथी विकसित करने के तीन तरीके हैं
1. ध्यान
2. योग
3. आधुनिक तकनीक
1. ध्यान
लगातार ध्यान करते रहने से मन स्थिर होने लगता है। मन के स्थिर और शांति होने से साक्षीभाव आने लगता है। यह संवेदनशिल अवस्था टेलीपैथी के लिए जरूरी होती है। ध्यान करने वाला व्यक्ति किसी के भी मन की बात समझ सकता है। कितने ही दूर बैठे व्यक्ति की स्थिति और बातचीत का वर्णन कर सकता है।
2. योग
योग में मन: शक्ति योग के द्वारा इस शक्ति हो हासिल किया जा सकता है। ज्ञान की स्थिति में संयम होने पर दूसरे के मन का ज्ञान होता है। यदि मन शांत है तो दूसरे के मन का हाल जानने की शक्ति हासिल हो जाएगी। योग में त्राटक विद्या, प्राण विद्या के माध्यम से भी आप यह विद्या सीख सकते हैं।
3. आधुनिक तरीका
आधुनिक तरीके के अनुसार ध्यान से देखने और सुनने की क्षमता बढ़ाएंगे तो सामने वाले के मन की आवाज भी सुनाई देगी। इसके लिए नियमित अभ्यास की आवश्यकता है। सम्मोहन के माध्यम से भी अपने चेतन मन को सुलाकर अवचेतन मन को जाग्रत किया जा सकता है।
क्या होता है अवचेतन मन और चेतन मन
1. चेतन मन
इसे जाग्रत मन भी मान सकते हैं। चेतन मन में रहकर ही हम दैनिक कामों को निपटाते हैं यानी खुली आंखों से हम काम करते हैं। विज्ञान के अनुसार दिमाग का वह भाग जिसमें होने वाली क्रियाओं की जानकारी हमें होती है।
2. अवचेतन मन
जो मन सपने देख रहा है वह अवचेतन मन है। इसे अर्धचेतन मन भी कहते हैं। गहरी सुसुप्ति अवस्था में भी यह मन जाग्रत रहता है। विज्ञान के अनुसार जाग्रत दिमाग के परे दिमाग का एक और हिस्सा अवचेतन मन होता है।
क्या करता है अवचेतन मन
1.यह मन हमें आने वाले खतरों से बचने के तरीके बताता है। इसे आप छठी इंद्री भी कह सकते हैं।
यह मन लगातार हमारी रक्षा करता रहता है।
2. हमें होने वाली बीमारी की यह मन 6 माह पूर्व ही सूचना दे देता है और यदि हम बीमार हैं तो यह हमें स्वस्थ रखने का प्रयास भी करता है।
3. इस मन को ध्यान व योग के माध्यम से जाग्रत करने और रखने से ही टेलीपैथी संभव है।
भारत में रुस्तम जे तारापोरवाला नामक व्यक्ति का नाम लिया जाता है। एक व्यक्ति ने टेलीपैथी के बारे में जानने के उद्देश्य से फोन किया। उन्होंने मिलने की स्वीकृति दे दी। अगले दिन जब वह उऩके उनके घर पर उनसे मिला। उसे दरवाजा खटखटाना या बुलाना नहीं पड़ा वे स्वयं दरवाजा खोल बाहर आ गये। जैसे उनके द्वार पर आने की सूचना किसी शक्ति ने उन्हें दे दी हो। जो व्यक्ति तारोपोर से मिलने पहुंचा था वह टेलीपैथी का कौशल सीखना चाहता था। लेकिन जैसे वे पहले से ही ये बात जानते थे? उन्होंने उससे कहा, "तुम यहां क्यों आए हो? मैं दूसरों के मन को नहीं पढ़ता।"
तारापोरवाला के अनुसार, टैलीपैथी का उद्देश्य किसी के मन को पढ़ना नहीं है। यह केवल संदेश देने और प्राप्त करने के लिए एक इंस्टैंट मैसेंजर की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है। दो लोगों के बीच टैलीपैथिक कनेक्शन काम करने के लिए उनका एक दूसरे को अच्छी तरह से जानना जरूरी है। पति-पत्नी, भाई बहन, करीबी दोस्त या रिश्तेदार। उन्होंने कहा कि वह टैलीपैथी सिखा सकते हैं। एक तरफ तो मैं यह समझने की कोशिश कर रहा था कि क्या वह वाकई यह कर सकते हैं और दूसरी तरफ उन तक पहुंचा व्यक्ति वास्तव में जल्दी से इसे सीखना चाहता था लेकिन उसे तब तक इंतजार करना पड़ता जब तक कि वे इसके पीछे के दर्शन पर अपने व्याख्यान को समाप्त नहीं कर लेते।
तारापोरवाला के अनुसार, टैलीपैथी इसलिए काम करती है क्योंकि पृथ्वी पर एक बड़ा ब्रह्मांडीय टावर मौजूद है, बिल्कुल सेलफोन के टावर की तरह ही। यह व्यक्तियों के बीच मस्तिष्क तरंगों के प्रसारण की सुविधा देता है। उऩके अनुसार "यह हमारे साथ अक्सर होता है लेकिन हमें इसका एहसास नहीं होता। कभी-कभी आप ऐसे व्यक्ति के बारे में सोचते हैं जिसके आप काफी करीब है और वह व्यक्ति उसी पल आपको फोन कर देता है या आपके दरवाजे पर खड़ा होता है।" यदि मैं दुनिया को प्रभावी ढंग से संदेश भेजना चाहता हूँ, तो, मुझे कम से कम एक महीने के लिए तकनीक का अभ्यास करने की जरूरत है।
अपने मस्तिष्क को प्रशिक्षण देना
प्रशिक्षण एक लक्ष्य के अभ्यास की तरह है। उन्होंने कहा, "आपका मस्तिष्क एक बंदूक की तरह है। आप जिस व्यक्ति को संदेश भेजना चाहते हैं, आपके लक्ष्य को संदेश केवल तभी दिया जा सकता है जब आप अपने मस्तिष्क को ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रशिक्षित करते हैं।" तारापोरवाला के पास पहुंचे व्यक्ति के अनुसार मन को केंद्रित करने के लिए, मुझे अपना मन शांत करना पड़ा। सबसे पहले 25 से 1 तक उलटी गिनती गिनें। शांत हो जाओ, गहरी सांस लो। और हो गया। अपने अंदर की जीवन शक्ति पर ध्यान केन्द्रित करो। मैने अपने फेफड़ों को फूलते हुए महसूस किया, अपने दिल की धड़कन को सुना।
अब, आप बाहर जो संदेश भेजना चाहते हैं उस पर ध्यान लगाएं। अपने दिमाग में उसे दोहराएँ। मेरे पास पूरी दुनिया के लिए एक संदेश था। मैं एक बड़े घर को चाहता हूँ। मैने इसे मानसिक रूप से दोहराया। बार- बार दोहराया।
अपने सपनों का घर मांगने के 30 सेकंड के बाद, मैं धरती माता के पास वापस आ गया। इस बार मैंने सीधे क्रम में 1 से 25 गिनती बोली। संदेश ने मेरा आउटबॉक्स छोड़ दिया और ब्रह्मांडीय टॉवर पर पहुंच गया।
फिर तारापोरवाला ने मुझे एक महीना अभ्यास करने के लिए एक कार्य दिया। उन्होंने मुझे एक चक्र की तस्वीर दी जिसके बीच में एक काला बिंदु था। उस पर ही ध्यान केंद्रित करना था।
इसी तरह मन को एकाग्र कर आप अभ्यास कर सकते हैं। संभव है लंबे अभ्यास के बाद आप मस्तिष्क तरंगों के द्वारा अपने किसी करीबी को उसके पास गये बिना संदेश भेजने में सक्षम हो सकें।यही है टेलीपैथी।
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