Friday, December 18, 2020

मरते समय रावण ने लक्ष्मण को क्या शिक्षा दी?

 मरते समय रावण ने लक्ष्मण को क्या शिक्षा दी?


रामायण के प्रमुख पात्र लंकापति रावण के बारे में यह बात विख्यात है कि वे महाज्ञानी थे। इसके अतिरिक्त वे महान ज्योतिषी भी थे जिनका ज्योतिषीय गणना आदि पर आधारित ग्रंथ 'रावण संहरिता' के रचयिता भी रावण ही थे। तर्कशास्त्र पर अर्कप्रकाश, तंत्र विद्या, शिशु रोगों और चिकित्सा पर आधारित कुमारतंत्र और नाड़ी परीक्षा आदि ग्रंथों के रचियता भी रावण ही थे। कुछ लोग तो यहां तक कहते हैं कि चूंकि रावण महाज्ञानी थे इसलिए कहा जाता कि उनके दस सिर हैं। पर यह भी सच है कि रावण के सचमुच दस सिर थे इसीलिए उन्हें दशानन कहा जाता था। वे बहुत बुद्धिमान थे इसीलिए जब रावण मृत्यु शैया पर थे तब रामचंद्र जी ने अपने भाई लक्ष्मण को उनके पास कुछ शिक्षा लेने के लिए भेजा था। रावण ऋषि पुलस्त्य के पौत्र थे तथा विश्वा ऋषि के बेटे थे, ये लोग तो ब्राह्मण थे परन्तु रावण की माँ कैकसी राक्षस कुल की थी इसी कारण रावण भी राक्षस कुल का कहलाया । रावण सारस्वत कुल का ब्राह्मण होने के साथ- साथ , परम शिव भक्त, उद्भट राजनीतिज्ञ , महापराक्रमी योद्धा , अत्यन्त बलशाली , शास्त्रों का प्रखर ज्ञाता ,प्रकान्ड विद्वान पंडित एवं महाज्ञानी था। यही कारण है कि रामचंद्र जी ने राम-रावण युद्ध की समाप्ति पर उस समय लक्ष्मण को रावण से कुछ शिक्षा लेने के लिए भेजा जब रावण मृत्युशैया पर आखिरी सांसें गिऩ रहा था। 

कहते हैं कि राम की आज्ञा पाकर लक्ष्मण रावण के पास तो गये पर उसके सिर की तरफ जाकर खड़े हो गये। उन्होंने रावण से कहा कि वे उन्हें कुछ शिक्षा दें। जब काफी देर तक रावण कुछ नहीं बोला तो लक्ष्मण राम के पास वापस लौ़ट आये। उन्होंने राम से कहा-'भैया रावण तो कुछ बोला ही नहीं।'

राम ने पूछा-'तुम किधर खड़े थे?'

 लक्ष्मण ने उत्तर दिया-'भैया सिर की ओर।'

 तब श्रीराम मुस्कुराए और बोले, “जब हमें किसी से शिक्षा प्राप्त करनी हो तो कभी भी उसके सिर के पास खड़े नहीं होना चाहिए। जाओ, रावण के चरणों के पास जाकर हाथ जोड़कर प्रार्थना करो, वे तुम्हे सफलता की कुंजी अवश्य प्रदान करेंगे।” 

 लक्ष्मण ने  राम के कहे अनुसार किया और रावण से विनती की कि वे महाज्ञानी हैं आप मुझे कुछ शिक्षा दीजिए। उसके बाद रावण ने उन्हें जिन तीन बातों की शिक्षा दी वे आज भी प्रासंगिक हैं और अगर मनुष्य उन्हें अपने जीवन में उतार ले तो कई मुश्किलों से बच सकता है। 

रावण ने लक्षमण को पहली बात यह बतायी कि शुभ कार्य जितनी जल्दी हो कर डालना और अशुभ को जितना टाल सकते हो टाल देना चाहिए यानी ‘शुभस्य शीघ्रम्’। रावण ने लक्ष्मण को बताया, ‘मैं श्रीराम को पहचान नहीं सका और उनकी शरण में आने में देरी कर दी, इसी कारण मेरी यह हालत हुई’।

 इसके बाद रावण ने लक्ष्मण को जो दूसरी बात बताई वह और भी हैरान कर देने वाली थी। उसने कहा-, “अपने प्रतिद्वंद्वी, अपने शत्रु को कभी अपने से छोटा नहीं समझना चाहिए, वह आपसे भी अधिक बलशाली हो सकता है। मैंने श्रीराम को तुच्छ मनुष्य समझा और सोचा कि उन्हें हराना मेरे लिए काफी आसान होगा, लेकिन यही मेरी सबसे बड़े भूल थी।”


रावण ने आगे कहा-, “मैंने जिन्हें साधारण वानर और भालू समझा उन्होंने मेरी पूरी सेना को नष्ट कर दिया। मैंने जब ब्रह्माजी से अमरता का वरदान मांगा था तब मनुष्य और वानर के अतिरिक्त कोई मेरा वध न कर सके ऐसा कहा था क्योंकि मैं मनुष्य और वानर को तुच्छ समझता था। यही मेरी गलती थी ।”

रावण ने लक्ष्मण को तीसरी और अंतिम बात ये बतायी कि अपने जीवन का कोई राज हो तो उसे किसी को भी नहीं बताना चाहिए भले ही वह आपका सगा भाई ही क्यों ना हो। यहां भी मैं चूक गया क्योंकि विभीषण मेरी मृत्यु का राज जानता था, अगर उसे मैं यह ना बताता तो शायद आज मेरी यह हालत ना होती। उसके अलावा मेरी मृत्यु का राज और कोई नहीं जानता था।”

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