Wednesday, December 23, 2020

जब शिव ने पार्वती को बताया अमर होने का रहस्य

राजेश त्रिपाठी


कश्मीर में स्थित अमरनाथ गुफा हिंदुओं का एक पवित्र तीर्थस्थल है जहां हर वर्ष आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबंधन तक पूरे सावन के महीने भर लोग पवित्र शिवलिंग के दर्शन के लिए लाखों लोग जाते हैं। कई कठिनाइयों का सामना करने के बावजूद वे बाबा बर्फानी के दर्शन कर धन्य होते हैं। बहुत लोगों को अमरनाथ की गुफा से जुड़ी उस कहानी का ज्ञान नहीं होगा जिसके चलते यह गुफा महत्वपूर्ण और तीर्थस्थल बन गयी। आज हम आपको वही कहानी सुना रहे हैं। 

एक बार की बात है देवी पार्वती ने शिव जी से पूछा कि ऐसा क्यों है कि आप अजर हैं, अमर हैं पर  मुझे हर जन्म के बाद नये स्वरूप में आकर, बरसों तप करने के बाद आपको प्राप्त करना होता है । जब मुझे आपको पाना ही है तो मेरी तपस्या और इतनी कठिन परीक्षा क्यों? आपसे प्रार्थना है कि आप मुझे अमर होने का रहस्य बतायें।

शिव जी ने पहले तो पार्वती के उन सवालों का जवाब देना उचित नहीं समझा, लेकिन उनके हठ के कारण कुछ गूढ़ रहस्य बताने को तैयार हो गये। शिव महापुराण में मृत्यु से लेकर अजर-अमर तक के कई प्रसंग आते हैं, जिनमें एक साधना से जुडी रोचक अमरकथा है। जिसे अमरत्व की कथा के रूप में जानते हैं। 

पौराणिक मान्याताओं के अनुसार, अमरनाथ की गुफा ही वह स्थान है जहां भगवान शिव ने पार्वती को अमर होने के गुप्त रहस्य बतलाये थे, उस दौरान उन दोनों के अलवा तीसरा प्राणी वहां कोई नहीं था। न शिव का नंदी, ना उनका नाग, न सिर पे गंगा और न ही गणपति, कार्तिकेय! इन सबको शिव जी अमरनाथ की गुफा में प्रवेश करने के पहले ही छोड़ते गये। 

सबसे पहले उन्होंने नंदी को पहलगाम में छोड़ा। शिव ने गुप्त स्थान की तलाश में अपने वाहन नंदी को सबसे पहले छोड़ा, नंदी जिस जगह पर छूटा, उसे ही पहलगाम कहा जाने लगा। अमरनाथ यात्रा यहां से शुरू होती है। यहां से थोडा़ आगे चलने पर शिवजी ने अपनी जटाओं से चंद्रमा को अलग कर दिया, जिस जगह ऐसा किया वह जगह चंदनवाडी कहलाती है। इसके बादगंगा जी को पंचतरणी में और कंठ के आभूषण सर्पों को शेषनाग पर छोड़ दिया, इस प्रकार इस पड़ाव का नाम शेषनाग पड़ा। अगले पड़ाव पर गणेश, कार्तिकेय छूटे।

अमरनाथ यात्रा में पहलगाम के बाद अगला पडा़व है गणेश टॉप, मान्यता है कि इसी स्थान पर शिव ने पुत्र गणेश को छोड़ा। इस जगह को महागुणा का पर्वत भी कहते हैं। इसके बाद शिव ने जहां पिस्सू नामक कीडे़ को छोड़ा वह जगह पिस्सू घाटी है। 

इस प्रकार शिव जी ने अपने पीछे जीवनदायिनी पांचों तत्वों को स्वयं से अलग कर दिया। इसके पश्चात् पार्वती के साथ एक गुफा में प्रवेश कर गये। कोई तीसरा प्राणी, यानी कोई व्यक्ति, पशु  या पक्षी गुफा के अंदर घुस कर कथा को न सुन सके इसलिए उन्होंने चारों ओर अग्नि जला दी।  फिर शिव ने जीवन के गूढ़ रहस्य की कथा शुरू कर दी।कहा जाता है कि कथा सुनते-सुनते देवी पार्वती को नींद आ गयी, वह सो गयीं और शिव को इसका पता   नहीं चला, वह कथा सुनाते रहे। यह कथा उस समय दो सफेद कबूतर सुन रहे थे और बीच-बीच में गूं-गूं की आवाज कर रहे थे। शिव को लगा कि पार्वती उन्हें सुन रही हैं और बीच-बीच में हुंकार भर रही हैं। चूंकि वैसे भी शिव जी अपने में मग्न थे तो सुनाने के अलावा उनका ध्यान कबूतरों पर नहीं गया। वे कबूतर अमर हुए और कहते हैं कि अब भी कभी-कभी अमरनाथ की गुफा में उनके दर्शन होते हैं। दोनों कबूतर सुनते रहे, जब कथा समाप्त होने पर शिव का ध्यान पार्वती पर गया तो उन्हें पता  चला कि वे तो सो रही हैं। अब शिव सोचने लगे कि अगर ये सो रही हैं तो कथा सुन कौन रहा था? उनकी दृष्टि तब दो कबूतरों पर पड़ी तो शिव को क्रोध आ गया। वहीं कबूतर का जोड़ा उनकी शरण में आ गया और बोला- भगवन् हमने आपसे अमरकथा सुनी है। यदि आप हमें मार देंगे तो यह कथा झूठी हो जाएगी, हमें क्षमा करें और कहें कि हमारे लिए क्या आज्ञा है। 

 इस पर शिव ने उन्हें वरदान दिया कि तुम सदैव इस स्थान पर शिव व पार्वती के प्रतीक चिह्न के रूप में निवास करोगे। अंतत: कबूतर का यह जोड़ा अमर हो गया और यह गुफा अमरकथा की साक्षी हो गयी। इस तरह इस स्थान का नाम अमरनाथ पड़ा।मान्यता है कि आज इन दो कबूतरों के दर्शन भक्तों को होते हैं। अमरनाथ गुफा में यह भी प्रकृति का 

ही चमत्कार है कि शिव की पूजा वाले विशेष दिनों में बर्फ के शिवलिंग अपना आकार ले लेते हैं। यहां मौजूद शिवलिंग किसी आश्चर्य से कम नहीं है। 

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