Wednesday, December 30, 2020

क्यों हंसा मेघनाद का कटा सिर

 


मेघनाद रावण और मंदोदरी का सबसे ज्येष्ठ पुत्र था। रावण बहुत बड़ा ज्योतिषी भी था जिसे एक ऐसा पुत्र चाहिए था जो कि महाबलशाली और महाप्रतापी हो, इसलिए उसने सभी ग्रहों को अपने पुत्र की जन्म-कुंडली के 11-वें स्थान पर रख दिया जो लाभ का स्थान माना जाता है। परंतु रावण कि प्रवृत्ति से परिचित शनिदेव ने 11वें स्थान से 12वें स्थान पर इन ग्रहों को रख दिया जो हानि का स्थान माना जाता है। इससे हुआ यह कि रावण को मनवांछित पुत्र नहीं प्राप्त हो सका। इस बात से क्रोधित रावण ने शनिदेव पर पैर से प्रहार किया था।

 जब मेघनाद का जन्म हुआ तो वह उस तरह नहीं रोया जैसे शिशु रोते हैं। उसके मुंह से बिजली की कड़कने जैसी आवाज सुनाई दी। इसीलिए रावण ने उसका का नाम मेघनाद रखा। कुम्भकर्ण के वध के बाद मेघनाद युद्ध में उतरा। पहले दिन के युद्ध में उसने सुग्रीव की पूरी सेना को हिला डाला। राम और लक्ष्मण तक उसकी मायावी शक्ति से बेबस हो गये थे। इसका कारण यह था कि मेघनाद ने अपनी कुलदेवी का यज्ञ प्रारंभ करके ही युद्धघोष किया था। जिसके प्रभाव से उसका रथ अदृश्य हो जाता था। मौका पाकर उसने राम और लक्ष्मण पर नागपास का प्रयोग किया और दोनों को मूर्छित कर दिया। नागपाश से मूर्छित व्यक्ति अगले दिन का सूरज नहीं देख सकता था। तब हनुमानजी तुरंत गरुड़ के पास गए और उन्हें लेकर आए। गरुड़ को देख नाग भयभीत हो गए  तथा उन्होंने राम तथा लक्ष्मण को मुक्त कर दिया तथा उनकी मूर्छा दूर हो गयी।

अगले दिन मेघनाद ने अपने शक्ति बाण से लक्ष्मण को मूर्छित कर दिया। तब लक्ष्मण के प्राण को बचाने के लिए हनुमानजी लंका से सुषेण वैद्य को उठा लाये। वैद्य ने हनुमान को उपाय बताते हुए संजीवनी बूटी लाने के लिए कहा। उस संजीवनी बूटी से ही लक्ष्मण की मूर्छा टूटी।

तीसरे दिन विभीषण के कहने पर लक्ष्मण वहां जा पहुंचे जहां मेघनाद कुलदेवी का यज्ञ करवा रहा था।  यज्ञ में कुलदेवी की पूजा करते समय हथियार उठाने की मनाही थीं परंतु फिर भी वहां रखे यज्ञ पात्रों की सहायता से मेघनाद लक्ष्मण से बचते हुए सकुशल लंका पहुंच गया।

चौथे दिन लक्ष्मण ने मेघनाद का वध कर दिया। मेघनाद का एक नाम इंद्रजीत भी था। वह इंद्र को जीत कर लंका ले आया था इसीलिए उसका नाम इंद्रजीत पड़ा। मेघनाद, श्रीराम और लक्ष्मण को मारना चाहता था। एक युद्ध के दौरान उसने सारे प्रयत्न किए लेकिन वह सफल नहीं हो सका। इसी युद्ध में लक्ष्मण के घातक बाणों से मेघनाद मारा गया। लक्ष्मण ने मेघनाद का सिर उसके शरीर से अलग कर दिया।उसका सिर श्रीराम के आगे रखा गया। उसे वानर और रीछ देखने लगे। तब श्रीराम ने कहा- ‘इसके सिर को संभाल कर रखो।'              श्रीराम मेघनाद की मृत्यु की सूचना मेघनाद की पत्नी सुलोचना को देना चाहते थे। उन्होंने मेघनाद की एक भुजा बाण के सहारे रावण के महल में पहुंचा दी। वह भुजा जब मेघनाद की पत्नी सुलोचना ने देखी तो उसे विश्वास नहीं हुआ कि उसके पति की मृत्यु हो चुकी है। उसने भुजा से कहा- अगर तुम वास्तव में मेघनाद की भुजा हो तो पूरा हाल लिख कर मेरी दुविधा दूर करो।सुलोचना के इतना कहते ही भुजा हिलने लगी, तब एक सेविका ने खड़िया (चाक) लाकर हाथ में रख दी। उस कटे हुए हाथ ने आंगन में लक्ष्मण जी के प्रशंसा के शब्द लिख दिए। अब सुलोचना को विश्वास हो गया कि युद्ध में उनके पति मारे गये हैं। सुलोचना इस समाचार को जान  रोने लगीं। फिर वह रावण से मिलने गयी। रावण को सुलोचना ने, मेघनाद का कटा  हुआ हाथ दिखाया और अपने पति का सिर मांगा। सुलोचना रावण से बोली कि अब मैं एक पल भी  जीवित नहीं रहना चाहती मैं पति के साथ ही सती होना चाहती हूं।

तब रावण ने कहा, ‘पुत्री थोड़ी प्रतीक्षा करो में मेघनाद का सिर शत्रु के सिर के साथ लेकर आता हूं। लेकिन सुलोचना को रावण की बात पर विश्वास नहीं हुआ। वह सुलोचना मंदोदरी के पास गई। 

मंदोदरी ने उससे कहा तुम राम के पास जाओ, वह बहुत दयालु हैं।’सुलोचना जब राम के पास पहुंची तो विभीषण ने उसका परिचय करवाया। सुलोचना ने राम से कहा, ‘हे राम मैं आपकी शरण में आई हूं। आप मेरे पति का सिर लौटा दें ताकि मैं उनके सिर के साथ सती हो सकूं। 

 सुलोचना की दशा देख कर राम दुखी हो गए। उन्होंने कहा कि मैं तुम्हारे पति को अभी जीवित कर देता हूं।’ इस बीच उसने अपनी आप-बीती भी सुनाई।

सुलोचना ने कहा-, ‘मैं नहीं चाहती कि मेरे पति जीवित होकर संसार के कष्टों को भोगें। मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि आपके दर्शन हो गए। मेरा जन्म सार्थक हो गया। अब जीवित रहने की कोई इच्छा नहीं।’

राम के कहने पर सुग्रीव मेघनाद का सिर ले आए। लेकिन उनके मन में यह शंका थी कि मेघनाद के कटे हाथ ने लक्ष्मण का गुणगान कैसे किया। 

सुग्रीव ने कहा- मैं सुलोचना की बात को तभी सच मानूंगा जब यह नरमुंड हंसेगा।'

सुलोचना के सतीत्व की यह बहुत बड़ी परीक्षा थी। उसने कटे हुए सिर से कहा-‘हे स्वामी! जल्दी हंसिए,नहीं तो आपके हाथ ने जो लिखा है, उसे ये सब सत्य नहीं मानेंगे'। इतना सुनते ही मेघनाद का कटा सिर जोर-जोर से हंसने लगा। इसके बाद सुलोचना अपने पति का कटा सिर लेकर चली गयी। 

मेघनाद को केवल लक्ष्मण ही मार सकते थे क्योंकि मेघनाद ने इंद्र को मुक्त करने के बदले ब्रह्मा से यह वरदान मांगा था कि उसे वही व्यक्ति मार सके जो चौदह साल सोया ना हो, उसने चौदह साल तक कुछ खाया ना हो और चौदह साल तक स्त्री को ना देखा हो। इन सारी शर्तों को लक्ष्मण जी पूरा करते थे। यही वजह है कि मेघनाद का वध उनके ही हाथों हुआ।  

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