Friday, January 1, 2021

बालि शत्रु की आधी शक्ति कैसे खींच लेता था


किष्किंधा के राजा बालि के धर्मपिता देवराज इंद्र थे। उसकी सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वह अपने से  लड़ने वाले शत्रु की आधी शक्ति खींच लेता था। शत्रु चाहे  कितना ही शक्तिशाली हो उसकी आधी शक्ति बालि में समा जाती थी और वह कमजोर होकर मारा जाता था। बालि ने सुग्रीव की सारी संपत्ति तो हड़पी ही उसकी पत्नी रूमा को भी छीन लिया। इसके बाद उसको राज्य से भी निकाल दिया। बाद में श्रीराम ने सुग्रीव से अपने बड़े भाई बालि से युद्ध करने को कहा सुग्रीव। सुग्रीव को हारते देख  श्रीराम ने छिप कर बालि पर तीर चला दिया और वह मारा गया।

आखिरी सांसें ले रहे बालि ने राम से पूछा- मैं बैरी सुग्रीव पियारा। अवगुण कौन नाथ मोहि मारा।।

इस पर राम उसे जवाब देते हैं-अनुज बधू भगिनी सुत नारी। सुनु सठ ए कन्या सम चारी॥

इन्हहि कुदृष्टि बिलोकइ जोई। ताहि बधे कछु पाप न होई॥

 राम ने कहा- हे मूर्ख! सुन, छोटे भाई की स्त्री, बहिन, पुत्र की स्त्री ये चारों कन्या के समान हैं। इनको जो कोई बुरी दृष्टि से देखता है, उसे मारने में कुछ भी पाप नहीं होता॥

 शत्रु का आधा बल खींचने की अपनी इस अद्भुत शक्ति के बल पर हजार हाथियों का बल रखने वाले दुंदुभि नामक राक्षस का वध बालि ने कर दिया था। दुंदुभि के बाद बालि ने उसके भाई मायावी का भी एक गुफा में वध कर दिया था। बालि अपने भाई सुग्रीव को गुफा के बाहर प्रतीक्षा करने को कह कर गुफा में घुस गया था। कई दिन तक गुफा के अंदर मायावी और बालि में युद्ध चला। फिर गुफा से खून की धार निकली। सुग्रीव डर गया कि राक्षस ने उसके भाई को मार डाला अब बाहर निकल कर उसे भी मार डालेगा। इस डर से वह गुफा के द्वार पर पत्थर लगा कर भाग गया। इस घटना के बाद ही बालि और सुग्रीव के बीच शत्रुता हो गई थी।

 रावण ने बालि की शक्ति के चर्चे सुन कर उससे युद्ध करने की ठानी लेकिन बालि ने रावण को अपनी कांख में छह माह तक दबाए रखा था। अंत में रावण ने उससे हार मान कर उसे अपना मित्र बना लिया था।

 अब जानते हैं कि बालि को शत्रु का आधा बल खींचने की शक्ति किससे मिली थी। कहते हैं कि बालि को अपने धर्मपिता इंद्र से एक स्वर्ण हार मिला था। कहते यह भी हैं कि इस हार को ब्रह्मा ने विशेष मंत्रों से अभिमंत्रित कर इसे दिव्य शक्ति वाला बना दिया। इस हार की शक्ति विचित्र थी। इसी हार के कारण बालि लगभग अजेय था। उसने कई युद्ध लड़े और सभी में वह जीता।

 बालि का एक पु‍त्र था जिसका नाम अंगद था। बालि का विवाह जब रावण सीता का हरण करके लंका ले गया तो सीता की खोज करते हुए श्रीराम और लक्ष्मण की भेंट हनुमान से हुई। ऋष्यमूक पर्वत पर हनुमान ने सुग्रीव और श्रीराम की मित्रता करवाई। सुग्रीव ने श्रीराम को सीता की खोज में मदद करने का आश्वासन दिया। इसके बाद सुग्रीव ने श्रीराम के सामने अपना दुख बताया कि किस प्रकार बालि ने बलपूर्वक उसे राज्य से निष्कासित कर उसकी पत्नी पर भी अधिकार कर लिया। इसके बाद भी बालि मुझे नष्ट करने के लिए प्रयास कर रहा है। राम ने सुग्रीव को बालि के आतंक से मुक्ति दिलाने का भरोसा दिलाया।

 सुग्रीव ने श्रीराम को बताया कि बालि सूर्योदय से पहले ही पूर्व, पश्चिम और दक्षिण के सागर की परिक्रमा करके उत्तर तक घूम आता है। बालि बड़े-बड़े पर्वतों पर तुरंत ही चढ़ जाता है और बलपूर्वक शिखरों को उठा लेता है। इतना ही नहीं, वह इन शिखरों को हवा में उछालकर फिर से हाथों में पकड़ लेता है। वनों में बड़े-बड़े पेड़ों को तुरंत ही तोड़ डालता है।

 सुग्रीव ने बताया कि जब दुंदुभि मारा गया तो बालि ने दोनों हाथों से उठा कर उसके शव को हवा में फेंक दिया। हवा में उड़ते शव से रक्त की बूंदें मतंग मुनि के आश्रम में जा गिरीं। इन रक्त की बूंदों से मतंग मुनि का आश्रम अपवित्र हो गया। इस पर क्रोधित होकर मतंग मुनि ने श्राप दिया कि जिसने भी मेरे आश्रम और इस वन को अपवित्र किया है, वह आज के बाद इस क्षेत्र में न आए। अन्यथा उसका नाश हो जाएगा। मतंग मुनि के श्राप के कारण ही बालि ऋष्यमूक पर्वत क्षेत्र में प्रवेश नहीं करता था।

 श्रीराम ने बालि को बाण मारा तो वह घायल होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा था। इस अवस्था में जब पुत्र अंगद उसके पास आया तब बालि ने उसे ज्ञान की कुछ बातें बताई थीं। 

मरते समय बालि ने अंगद से कही ये बातें

बालि ने अंगद से कहा - देशकालौ भजस्वाद्य क्षममाण: प्रियाप्रिये। सुखदु:खसह: काले सुग्रीववशगो भव।। बालि ने कहा- सुखी रहने के लिए देश, काल और परिस्थितियों को समझकर आगे बढ़ना चाहिए। देश यानी जहां हम रहते हैं, काल यानी समय और परिस्थितियां यानी हालात कैसे हैं, इन बातों का ध्यान हमेशा रखते हुए सुग्रीव के साथ रहो।

जब बालि को बाण लगने का समाचार उसकी पत्नी तारा को मिला, तो वह रोती-बिलखती उसी जगह पर पहुंच गई। राम उसे समझाते हैं कि तुम जिस पति के लिए रो रही हो उसका शरीर तो तुम्हारे सामने पड़ा है जीव तो नित्य है अविनाशी है। पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास ने अपने रामचरित मानस में इस प्रसंग को कुछ इस तरह प्रस्तुत किया है-

राम बालि निज धाम पठावा। नगर लोग सब ब्याकुल धावा।।

नाना बिधि बिलाप कर तारा। छूटे केस न देह सँभारा।।

तारा बिकल देखि रघुराया । दीन्ह ग्यान हरि लीन्ही माया।।

छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।।

प्रगट सो तनु तव आगें सोवा। जीव नित्य केहि लगि तुम्ह रोवा।।

उपजा ग्यान चरन तब लागी। लीन्हेसि परम भगति बर मांगी।।

बाद में राम सुग्रीव को किष्किंधा का राजा बनाते हैं और बालि पुत्र अंगद युवराज बनाये जाते हैं।

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1 comment:


  1. जय मां हाटेशवरी.......

    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की इस रचना का लिंक भी......
    03/01/2021 रविवार को......
    पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
    शामिल किया गया है.....
    आप भी इस हलचल में. .....
    सादर आमंत्रित है......


    अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
    https://www.halchalwith5links.blogspot.com
    धन्यवाद

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