मकर संक्रांति वह त्यौहार है जिसका आनंद हर कोई उठाता है और एकजुटता और सौहार्द का
संदेश फैलाता है। भारत एक ऐसा देश है जिसे वर्ष के त्योहारों और उत्सवों की भूमि
माना जाता है और मकर संक्रांति से इसकी शुरुआत होती है।पुण्यक्षेत्र भारतवर्ष में
हिंदुओं के कई पुनीत त्योहार हैं जिनमें मकर संक्राति भी बहुत महत्वपूर्ण है। यह हर
साल अक्सर 14 जनवरी को ही मनाया जाता है। इसे देश भर में अलग-अलग नामों और तरीके
सेमनाया जाता है। सभी हिंदू इसे बड़े ही हर्ष और उल्लास से मनाते हैं। इस बार इसका
मुहूर्त गुरुवार 14 जनवरी की सुबह 8.30 बजे से शाम 5.46 तक रहेगा. पूजा पाठ, स्नान
और दान के लिए यही समय उपयुक्त है। लोग इस रोज सुबह नदियों में पवित्र डुबकी लगाते
हैं और सूर्य की प्रार्थना करते हैं। इस दिन लाल पुष्प के साथ सूर्य को अर्घ्य देने
से पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इस दिन विशेष रूप से तिल और गुड़ के साथ बनाये
गये लड्डू का भी विशेष महत्व है। कहीं-कहीं इस दिन पतंग भी उड़ाते हैं। पश्चिम
बंगाल के गंगासागर में इस दिन पुण्य स्नान के लिए देश के कई भागों से लाखों लोग
इकट्ठा होते हैं जो सागर में स्नान कर मंदिर में कपिल मुनि के दर्शन करते हैं।
सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में संक्रमण करने को संक्रांति कहते हैं। यों वर्ष
में कुल 12 संक्रांतियां होती है जिसमें से 4 संक्रांति ही महत्वपूर्ण हैं जिनमें
मेष, तुला, कर्क और मकर संक्रांति प्रमुख हैं। मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि
से मकर राशि में प्रवेश करते हैं। मकर संक्राति के दिन से ही सूर्य दक्षिणायन से
उत्तरायण होने लगता है। इस दिन प्रयागराज में गंगा स्नान का बहुत महत्व है। इससे
बहुत पुण्य मिलता है। इस पुण्य पर्व का उल्लेख पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी ने
अपनी अमर कृति रामचारित मानस अर्थात रामायण में कुछ इस प्रकार से किया है- "माघ मकर
गति रवि जब होई। तीरथ पतिहिं आव सब कोई॥ देव दनुज किन्नर नर श्रेनी। सादर मज्जहिं
सकल त्रिवेनी॥ इन चौपाइयों का भावार्थ यह है कि माघ मास में सूर्य जब मकर राशि में
प्रवेश करते हैं तो देवता, राक्षस, किन्नर और मनुष्य सभी तीरथपति अर्थात प्रयागराज
में आते हैं और त्रिवेणी संगम में स्नान कर आनंदित होते हैं। माना जाता है कि मकर
संक्रांति के दिन गंगा नदी में स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की
होती है। इस दिन लोग तिल और गुड़ से बनी मिठाइयां खाते हैं। गुजरात में लोग, विशेष
रूप से बच्चे, अपने दोस्तों और परिवार के सदस्यों के साथ पतंग उड़ा कर इस अवसर का
आनंद लेते हैं। मकर संक्रांति देश भर में विभिन्न नामों औररीति-रिवाजों के साथ
मनायी जाती है। जैसे तमिलनाडु में पोंगल, असम में माघ बिहू, गुजरात में उत्तरायण,
पंजाब और हरियाणा में माघी, उत्तर प्रदेश और बिहार में खिचड़ी आदि। गुजरात में मकर
संक्रांति पर आसमान रंगीन पतंगों से भर जाता है जो इस अवसर का एक बहुत ही प्यारा
इलाज है। मकर संक्रांति के दिन से ही जलाशयों में वाष्पन क्रिया शुरू होने लगती है,
जिसमें स्नान करने से स्फूर्ति व ऊर्जा का संचार होता है। इसी कारण इस दिन पवित्र
नदी और जलाशयों में स्नान करने का महत्व माना गया है। मकर संक्रांति का वैज्ञानिक
महत्व भी है। सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों
में सूर्य का प्रवेश अत्यन्त फलदायक है। मकर संक्रांति के समय नदियों में वाष्पन
क्रिया होती है। इससे तमाम तरह के रोग दूर हो सकते हैं। इसलिए इस दिन नदियों में
स्नान करने का विशेष महत्व है। मकर संक्रांति के समय उत्तर भारत में ठंड का मौसम
रहता है। इस मौसम में तिल-गुड़ का सेवन सेहत के लिए लाभदायक रहता है यह चिकित्सा
विज्ञान भी कहता है। इससे शरीर को ऊर्जा मिलती है। यह ऊर्जा सर्दी में शरीर की
रक्षा रहती है। गुड़ और तिल से बने लड्डू जाड़े में इसलिए भी लाभदायक हैं कि इनसे
शरीर को गरमी मिलती है। इसका कारण यह है कि तिल और गुड़ दोनों की प्रकृति गर्म होती
है। इस दिन खिचड़ी का सेवन करने का विधान है। खासकर उत्तर प्रदेश में। खिचड़ी पाचन
को ठीक रखती है। बिहार में इस दिन दही, चिउड़ा खाते हैं। सूर्य मकर संक्राति के दिन
से उत्तरायण हो जाते हैं। कहते हैं के सूर्य के उत्तरायण होने की स्थिति में मृत्यु
को प्राप्त करने वाला व्यक्ति जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। यही कारण है
कि इस के महत्व के कारण ही भीष्म ने अपने प्राण तब तक नहीं छोड़े, जब तक सूर्य की
उत्तरायन स्थिति नहीं आ गई। सूर्य के उत्तरायन का महत्व छांदोग्य उपनिषद में किया
गया है-'देवयान मार्ग' के अन्तर्गत प्राणी मृत्यु के उपरान्त अग्निलोक या प्रकाश
पुंज रूप से दिन के प्रकाश में समाहित हो जाते हैं। चन्द्रमा के शुक्ल पक्ष से वे
उत्तरायण सूर्य में आ जाते हैं। छह माह के इस संवत्सर को आदित्य में, आदित्य को
चन्द्रमा में, चन्द्रमा को विद्युत में, विद्युत को ब्रह्म में पुन: समाहित होने का
अवसर प्राप्त होता है। इसे ही आत्मा के प्रयाण का 'देवयान मार्ग' कहा जाता है। इस
मार्ग से जाने वाले जीव का पुनर्जन्म नहीं होता। पुराण और विज्ञान दोनों में सूर्य
की उत्तरायन स्थिति का अधिक महत्व है। सूर्य के उत्तरायन होने पर दिन बड़ा होता है
इससे मनुष्य की कार्य क्षमता में वृद्धि होती है। मानव प्रगति की ओर अग्रसर होता
है। प्रकाश में वृद्धि के कारण मनुष्य की शक्ति में वृद्धि होती है। इस दिन से रात
छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं। दिन बड़ा होने से सूर्य की रोशनी अधिक होगी और रात
छोटी होने से अंधकार कम होगा। इसलिए मकर संक्रांति पर सूर्य की राशि में हुए
परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। मकर संक्राति के दिन
इन चीजों से बचना चाहिए- देर से जागना। बिना पूजा किये खाना खाना। फ़सल काटना।बाल
धोना। लड़ाई-झगड़ा करना।शराब पीना। हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति
से देवताओं का दिन आरंभ होता है, जो आषाढ़ मास तक रहता है। कर्क संक्रांति से
देवताओं की रात प्रारंभ होती है। अर्थात देवताओं के एक दिन और रात को मिला कर
मनुष्य का एक वर्ष होता है। मनुष्यों का एक माह पितरों का एक दिन होता है। उनका
दिन शुक्ल पक्ष और रात कृष्ण पक्ष होती है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने भी
उत्तरायन का महत्व बताते हुए कहा है कि उत्तरायन के 6 मास के शुभ काल में, जब सूर्य
देव उत्तरायन होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है, तो इस प्रकाश में शरीर का
परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त हैं।
इसके विपरीत सूर्य के दक्षिणायण होने पर पृथ्वी अंधकारमय होती है और इस अंधकार में
शरीर त्याग करने पर पुनः जन्म लेना पड़ता है। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ
के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। महाराज
भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था इसलिए मकर संक्रांति पर
गंगासागर में मेला लगता है। उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति को खिचड़ी पर्व कहा जाता
है। सूर्य की पूजा की जाती है। चावल और दाल की खिचड़ी खाई और दान की जाती है। मकर
संक्रान्ति के शुभ समय पर हरिद्वार, काशी आदि तीर्थों पर स्नानादि का विशेष महत्व
माना गया है। इस दिन सूर्य देव की पूजा-उपासना भी की जाती है। शास्त्रीय
सिद्धांतानुसार सूर्य पूजा करते समय रंग के पुष्पों का विशेष महत्व है। इस दिन
सूर्य की पूजा करने के साथ साथ सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए। मकर संक्रान्ति के दिन
दान करने का महत्व अन्य दिनों की तुलना में बढ जाता है। इस दिन व्यक्ति को यथासंभव
किसी गरीब को अन्नदान, तिल व गुड का दान करना चाहिए। तिल या फिर तिल से बने लड्डू
या फिर तिल के अन्य खाद्ध पदार्थ भी दान करना शुभ रहता है। धर्म शास्त्रों के
अनुसार कोई भी धर्म कार्य तभी फल देता है, जब वह पूर्ण आस्था व विश्वास के साथ किया
जाता है। जितना सहजता से दान कर सकते हैं, उतना दान अवश्य करना चाहिए। मकर
संक्रान्ति के साथ अनेक पौराणिक तथ्य जुड़े हुए हैं जिसमें से कुछ के अनुसार भगवान
आशुतोष ने इस दिन भगवान विष्णु जी को आत्मज्ञान का दान दिया था। इसके अतिरिक्त
देवताओं के दिनों की गणना इस दिन से ही प्रारम्भ होती है। सूर्य जब दक्षिणायन में
रहते है तो उस अवधि को देवताओं की रात्री व उतरायण के छ: माह को दिन कहा जाता है।
महाभारत की कथा के अनुसार भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति
का दिन ही चुना था। अलग-अलग राज्यों में मकर संक्राति को अलग नाम से जाना जाता है।
गुजरात और राजस्थान में उत्तरायण पर्व के रूप में मनाया जाता है। गुजरात में पतंग
उत्सव का आयोजन किया जाता है। आंध्रप्रदेश में संक्रांति के नाम से तीन दिन का पर्व
मनाया जाता है। तमिलनाडु में यह किसानों के प्रमुख पर्व पोंगल के नाम से मनाया जाता
है। महाराष्ट्र में लोग गजक और तिल के लड्डू खाते हैं और एक दूसरे को भेंट देकर
शुभकामनाएं देते हैं। पश्चिम बंगाल में हुगली नदी पर गंगा सागर मेले का आयोजन किया
जाता है। असम में भोगली बिहू के नाम से इस पर्व को मनाया जाता है। पंजाब में
संक्राति से एक दिन पूर्व लोहड़ी पर्व के रूप में मनाया जाता है। धूमधाम के साथ
समारोहों का आयोजन किया जाता है। मकर संक्रान्ति के शुभ समय पर हरिद्वार, काशी आदि
तीर्थों पर स्नानादि का विशेष महत्व माना गया है। इस दिन सूर्य देव की पूजा-उपासना
भी की जाती है। शास्त्रीय सिद्धांतानुसार सूर्य पूजा करते समय श्वेतार्क तथा रक्त
रंग के पुष्पों का विशेष महत्व है। इस दिन सूर्य की पूजा करने के साथ साथ सूर्य को
अर्घ्य देना चाहिए। मकर संक्रांति के दिन नीचे दिए गए मंत्रों में से जो भी मंत्र
आसानी से याद हो सकें उसके द्वारा सूर्य देव का पूजन-अर्चन करें। फिर अपनी मनोकामना
मन ही मन बोलें। भगवान सूर्य नारायण आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण करेंगे। 1.ॐ घृणिं
सूर्य्य: आदित्य: 2. ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि
स्वाहा।। 3. ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या,
गृहाणार्घय दिवाकर:। 4. ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ । 5. ॐ ह्रीं ह्रीं
सूर्याय नमः । मकर संक्रान्ति के दिन दान करने का महत्व अन्य दिनों की तुलना में बढ
जाता है। इस दिन व्यक्ति को यथासंभव किसी गरीब को अन्नदान, तिल व गुड का दान करना
चाहिए। तिल या फिर तिल से बने लड्डू या फिर तिल के अन्य खाद्ध पदार्थ भी दान करना
शुभ रहता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार कोई भी धर्म कार्य तभी फल देता है, जब वह
पूर्ण आस्था व विश्वास के साथ किया जाता है। जितना सहजता से दान कर सकते हैं, उतना
दान अवश्य करना चाहिए।
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