Saturday, January 9, 2021

निधिवन का रहस्य : जहां आज भी कृष्ण गोपियों संग रचाते हैं रास

 


विचित्राओं से भरी है हमारी पुण्यभूमि भारत। कण-कण में भगवान की अवधारणा रखने वाले इस पुण्य क्षेत्र में आज भी कई ऐसे स्थान हैं जहां ईश्वर तत्व की उपस्थिति का आभास होता है। ऐसा ही एक स्थान पुण्य तीर्थधाम वृन्दावन है। वृंदावन में बांके बिहारी मंदिर व अन्य मंदिर तो हैं ही यहां निधिवन नामक एक अत्यन्त पवित्र, रहस्यमय धार्मिक स्थान भी है। पांच हज़ार साल पुराने निधिवन के रहस्य के बारे में ऐसी मान्यता है कि निधिवन में भगवान श्रीकृष्ण श्रीराधा व गोपियों के साथ आज भी हर  रात रास रचाते हैं। यह रासलीला अर्धरात्रि के बाद होती है। रास के बाद निधिवन में स्थापित रंगमहल  में कृष्ण और राधा शयन करते हैं। रंगमहल में राधा और कृष्ण के लिए रखे गए चंदन के पलंग को 

शाम सात बजे के पहले सजा दिया जाता है। पलंग के बगल में एक लोटा पानी, राधाजी के श्रृंगार का सामान और दातुन के अतिरिक्त पान रख दिया जाता है। सुबह पांच बजे जब रंगमहल के पट खुलते हैं तो बिस्तर अस्त-व्यस्त, लोटे का पानी खाली, दातुन कुचली हुई और पान खाया हुआ मिलता है।  रंगमहल में भक्त केवल श्रृंगार का सामान ही चढ़ाते हैं और प्रसाद स्वरूप उन्हें भी श्रृंगार का सामान  मिलता है। 

 अपनी 2016 की वृंदावन यात्रा में मैंने (यूट्यूबर राजेश त्रिपाठी) रंगमहल के इस चमत्कार को देखा है।  यहां यह बताता चलूं कि मैं आस्तिक हूं, आस्थावान हूं, सनातन धर्म का पक्षधर हूं मैंने अपनी आंखों  जो देखा वही यहां बयान कर रहा हूं। रहस्यमय तुलसी के पेड़ भी देख कर दंग हुआ क्योंकि तब तक तुलसी का पौधा ही देखा था, पेड़ नहीं।  

  वैसे तो शाम होते ही निधि वन बंद हो जाता है और सब लोग यहां से चले जाते है। लेकिन फिर भी यदि कोई छुप कर रासलीला देखने की कोशिश करता है तो वह अंधा, गूंगा, बहरा, पागल हो जाता है  ताकि वह इस रासलीला के बारे में किसी को बता ना सके। इसी कारण रात्रि 8 बजे के बाद पशु-पक्षी,  परिसर में दिन भर दिखाई देने वाले बन्दर, भक्त, पुजारी इत्यादि सभी यहां से चले जाते हैं और परिसर के मुख्यद्वार पर ताला लगा दिया जाता है। स्थानीय लोगों के अनुसार यहां जो भी रात को  रुक जाता है वह सांसारिक बन्धन से मुक्त हो जाता है।

कहते हैं कि एक कृष्ण भक्त रास लीला देखने के लिए निधिवन में छुप कर बैठ गया था। जब सुबह निधि वन के गेट खुले तो वह बेहोश पड़ा मिला, उसका मानसिक संतुलन बिगड़ चुका था। ऐसे  अनेकों किस्से यहाँ के लोग बताते है। निधि वन में पागल बाबा की समाधि भी बनी हुई है। उनके बारे में भी कहा जाता है कि वे श्रीकृष्ण के परम भक्त थे। उन्होंने भी एक बार निधि वन में छुप कर रासलीला देखने का प्रयास किया था, जिसके चलते वे पागल हो गए थे। चूंकि वे श्रीकृष्ण के भक्त थे इसलिए उनकी मृत्यु के बाद निधि वन में ही उनकी समाधि बनवा दी गई।

 दो एकड़ क्षेत्रफल में फैले निधिवन के वृक्षों की विशेषता यह है कि इनमें से किसी भी वृक्ष के तने सीधे नहीं मिलेंगे तथा इन वृक्षों की डालियां नीचे की ओर झुकी तथा आपस में गुंथी हुई प्रतीत होती हैं। यहां लगे तुलसी के पेड़ जोड़े में हैं। इसके पीछे यह मान्यता है कि जब राधा संग कृष्ण वन में रास रचाते हैं तब यही जोड़ेदार पेड़ गोपियां बन जाती हैं। जैसे ही सुबह होती है तो सब फिर तुलसी के पेड़ में बदल जाती हैं।

साथ ही एक अन्य मान्यता यह भी है की इस वन में लगी तुलसी की कोई भी एक टहनी भी अपने साथ नहीं ले जा सकता। कहते हैं कि जिन लोगों ने इन्हें ले जाने का प्रयत्न किया उन्हें किसी न किसी आपदा का शिकार होना पड़ा। यही कारण है कि कोई भी इन्हें नहीं छूता। वन के आसपास बने मकानों  की खिड़कियां भी शाम सात बजे बंद कर दी जाती हैं। यहां के निवासी बताते हैं कि शाम सात बजे के बाद कोई इस वन की तरफ नहीं देखता। जिन लोगों ने देखने का प्रयास किया या तो अंधे हो गए या उन्हें किसी ना किसी विपत्ति का सामना करना पड़ा। 

 निधिवन परिसर में ही संगीत सम्राट एवं धुपद के जनक श्री स्वामी हरिदास जी की समाधि है। वे  संगीत सम्राट के साथ-साथ अच्छे कवि भी थे। उन्होंने भजनों, पदों की रचना की थी। हरिदास अकबर के नौ रत्नों में से एक तानसेन के संगीत गुरु थे। कहते हैं कि एक बार साधु का वेष बना कर तानसेन के साथ अकबर भी हरिदास जी का गायन सुनने गये थे। बैजू बावरा (मूल नाम बैजनाथ प्रसाद मिश्र) भी स्वामी हरिदास शिष्य थे।  

 निधिवन में एक विशाखा कुण्ड भी है जिसके बारे में कहा जाता है कि एक बार रासलीला के दौरान राधा की प्रिय सखी विशाखा को प्यास लगी तो कृष्ण ने अपनी बंशी से यह कुंड बना कर पानी निकाला था। यहां एक बंशीचोर मंदिर भी है। हुआ यह था कि कृष्ण सदा अपनी बंशी बजाने में मगन रहते थे। ऐसे में वे राधा की ओर ध्यान कम ही दे पाते थे। इससे राधा उनसे रुष्ट हो गयीं उन्होंने उनकी बंशी चुरा कर कहीं छिपा दी। राधा ने बंशी जहां छिपायी थी वहीं राधा जी का मंदिर है जिसे बंशीचोर मंदिर कहा जाता है। 

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