Tuesday, January 5, 2021

मेघनाद ने किया सीता का वध, समाचार से अचेत हुए राम


आपको तो यही पता होगा कि राम ने युद्ध में रावण को हरा कर सीता को लंका से मुक्त करा कर अयोध्या वापसी की थी। वाल्मीकि रामायण के अनुसार लगातार 84 दिन तक चला था राम रावण युद्ध। जब राम युद्ध में सफल नहीं हो पा रहे थे तो उन्हें शक्ति पूजा करनी पड़ी थी। इसके बाद   राम ने नौ दिनो तक रावण के साथ युद्ध कर दसवें दिन रावण का वध किया था, इसलिए इस दिन को भगवान श्रीराम के संदर्भ में भी विजय-दशमी के रूप में मनाते हैं। यहां हम आपको जो प्रसंग सुना रहे हैं वह चौंकानेवाला है। इसके अनुसार मेघनाद ने अपने रथ में युद्ध क्षेत्र में ले जाकर तीक्ष्ण तलवार से गला काट कर सीता का वध कर दिया था। इस प्रसंग ने हमें भी चौंका दिया। इस तरह की कथा  प्रमाण के बिना प्रस्तुत करना उचित नहीं था सो हमने कई रामायणों को पलटना शुरू किया अंतत : इसका संदर्भ आदिकवि वाल्मीकि द्वारा विरचित रामायण के 81 वें सर्ग के 31 वें श्लोक में मिला तब
इसे प्रस्तुत करने का साहस हुआ। 

 युद्ध में अपने चारों पराक्रमी पुत्रों और दोनों भाइयों के मारे जाने का समाचार सुनकर रावण को बहुत अधिक दुःख और रोष हुआ। वह बार-बार गहरी साँस लेते हुये सोचने लगा कि इस शत्रु से कैसे त्राण पाया जाय। बहुत सोचने पर भी उसे कोई उपाय नहीं सूझ रहा था। अन्त में उसने मेघनाद को बुलाकर उससे कहा, पुत्र! शत्रुओं ने अपनी सेना के सभी श्रेष्ठ योद्धाओं को एक-एक करके मार डाला है। अब मुझे अपनी लंका में ऐसा कोई महावीर दिखाई नहीं देता जो राम-लक्ष्मण सहित वानर सेना का विनाश कर सके। अब मेरी आशा तुम पर टिकी है। अब तुम ही रणभूमि में जाकर दुर्दम्य शत्रुओं का नाश करके लंका की रक्षा करो। तुमने परमपराक्रमी इन्द्र को भी परास्त किया है तथा तुम सब प्रकार की युद्ध कला में प्रवीण भी हो। इसलिये तुम्हीं उनका विनाश कर सकते हो।"

 पिता की आज्ञा पाकर मेघनाद दिव्य रथ में सवार हो भारी सेना के साथ युद्धभूमि की ओर चला। मार्ग में वह विचार करने लगा कि राम और लक्ष्मण बड़े शक्‍तिशाली योद्धा हैं जिन्होंने प्रहस्त, कुम्भकर्ण, महोदर तथा अतिकाय जैसे विख्यात योद्धाओं को मार डाला। यदि किसी प्रकार इनका मनोबल टूट जाय तो इन पर विजय प्राप्त करना सरल हो जायेगा। इस प्रकार विचार करते हुये उसके मस्तिष्क में एक युक्‍ति आई। उसने अपनी माया के बल से सीता की आकृति का निर्माण किया और उसे रथ में रख लिया। इसके पश्‍चात् वह सिंह गर्जना करता हुआ वानर सेना के सम्मुख जा पहुँचा। मेघनाद सहित शत्रु सेना को सामने देखकर वानर पत्थर और वृक्ष लेकर उस पर टूट पड़े। हनुमान भी एक भारी शिला उखाड़ कर मेघनाद पर झपटे, परन्तु रथ में दीन-मलिन, दुर्बल सीता को देख कर ठिठक गये। फिर उन्होंने सीता को बचा कर मेघनाद पर वार करना आरम्भ कर दिया। हनुमान को लगातार अपने ऊपर वार करते देख मेघनाद एक हाथ से तीक्ष्ण तलवार खींच कर दूसरे हाथ से मायानिर्मित सीता के केश पकड़ उसे झकझोरने लगा। सीता की यह दुर्दशा देखकर क्रोध और सन्ताप से तड़पते हुये हनुमान बोले, "अरे नीच! ब्राह्मण की सन्तान होते हुये तुझे स्त्री पर हाथ उठाते लज्जा नहीं आती? धिक्कार है तेरी बुद्धि और बल पर। एक अबला को मारकर अपनी वीरता को कलंकित करते हुये तुझे संकोच नहीं होता? रे दुष्ट! तू जानकी की हत्या करके कभी जीवित नहीं बच सकेगा।" इतना कह कर हनुमान और वानर सेना पर पत्थर बरसाते हुये मेघनाद को मारने के लिए दौड़े, किन्तु मेघनाद और उसके सैनिकों ने उन्हें रथ तक नहीं पहुँचने दिया। उनके सारे प्रयत्नों को निष्फल कर दिया।

  तब घोर गर्जना करता हुआ मेघनाद बोला-'हनुमान! स्त्री पर हाथ डालना चाहे धर्म के विरुद्ध हो, परन्तु शत्रु को प्रत्येक प्रकार से पीड़ा पहुँचाना नीति के विरुद्ध नहीं है। इसलिये तेरे सामने ही मैं सीता का वध करूँगा। यही सारे दुःखों की जड़ है। उसके मरने के बाद ही लंका में सुख-शान्ति स्थापित होगी।" यह कह कर उसने माया से बनी सीता का सिर काट दिया।

इसका उल्लेख वाल्मीकि रामायण के 81 वें सर्ग के इस 31 वें श्लोक में मिलता है

शितधारेण खंगेन निजघानेन्द्रजितस्वयम्।

यज्ञोपवीत मार्गेण भिन्ना तेन तपस्वनी।। (वाल्मीकि रामायण 31 वां श्लोक, 81वां सर्ग)

 सिर कटते ही वानर सेना में निराशा फैल गई। वह दुःख के सागर में डूब किंकर्तव्यविमूढ़ सी खड़ी रह गई। इस दशा का लाभ उठाकर राक्षस बड़ी मात्रा में वानरों का विनाश करने लगे। उधर हनुमान ने दुखी होकर रामचन्द्र जी को समाचार दिया कि मेघनाद ने हमारे सामने सीता जी का सिर तलवार से काट दिया और वे "हा राम! हा राम!!" कहती हुई स्वर्ग सिधार गईं। यह समाचार सुनते ही राम मूर्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। कुछ वानर उन्हें घेर कर चैतन्य करने का प्रयत्न करने लगे। लक्ष्मण भी शोकातुर होकर विलाप करने लगे। साथ ही वे अपने बड़े भाई को होश में लाने की चेष्टा भी करते जाते थे।

जब विभीषण ने यह संवाद सुना तो उसने आकर बड़ी कठिनाई से रामचन्द्र को सचेत किया और समझाते हुए कहा-हे दशरथनन्दन! हनुमान ने जो कुछ आपसे कहा है, वह सत्य नहीं है। सीता का वध किसी भी दशा में सम्भव नहीं है। रावण ऐसा कभी नहीं करेगा और न किसी को उन्हें स्पर्श करने देगा। इसमें सन्देह नहीं कि मेघनाद ने आपके साथ छल किया है। इस समय वह रणभूमि में भी नहीं है। मुझे सूचना मिली है कि वह निकुम्मिला देवी के मन्दिर में यज्ञ करने के लिये गया है। यदि वह यज्ञ सम्पन्न हो जायेगा तो उस पर कभी कोई विजय प्राप्त नहीं कर सकेगा। इसलिये आप तत्काल सेना सहित लक्ष्मण को उस मन्दिर में भेज कर यज्ञ को पूरा न होने दें और वहीं मेघनाद का वध करा दें। आप लक्ष्मण को आज्ञा दें। मैं भी उनके साथ जाऊंगा। आज यज्ञ पूर्ण होने से पहले मेघनाद का वध होना ही चाहिये।"

   .यह समाचार सुन कर श्रीराम का दुख दूर हुआ और उन्होंने भी भाई लक्ष्मण को मेघनाद के वध का आदेश दिया। बाद में लक्ष्मण के हाथों ही मेघनाद का वध हुआ।

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