Thursday, February 25, 2021

सिर पर शिखा या चोटी रखने का महत्व और लाभ

 



सनातन धर्म  की परंपराओं में एक परंपरा सिर  पर शिखा या चोटी रखने की है। शिखा भी गाय के खुर के जितनी चौड़ी। वैसे आजकल इतनी चौड़ी शिखा की परंपरा तो इस्कॉन यानी अंतरराष्ट्रीय कृष्ण संचेतना संघ के विदेशी-देशी कृष्ण भक्त अवश्य रखते हैं। उनके अतिरिक्त देश के सनातन धर्मी व्यक्ति सामान्य शिखा रखते हैं।

शिखा या चोटी रखने की इस प्रथा का चलन प्राचीन काल से चला आ रहा है। शास्त्रों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि गाय के पाँव के खुर या सहस्रार चक्र जितना रहना चाहिए। सहस्रार चक्र सिर के शिखर पर स्थित होता है। इसे ब्रह्म रन्ध्र को लक्ष किरणों का केन्द्र भी कहा जाता है, क्योंकि यह सूर्य की भांति प्रकाश का विकिरण करता है। मस्तिष्क के ऊपरी भाग में सुषुम्ना, इंगला, पिंगला आदि नाड़ियों का मिलन बिंदु या स्थल। सहस्रार चक्र में एक महत्त्वपूर्ण शक्ति - मेधा शक्ति है। मेधा शक्ति एक हार्मोन है, जो मस्तिष्क की प्रक्रियाओं जैसे स्मरण शक्ति, एकाग्रता और बुद्धि को प्रभावित करता है। 

शिखा से जुड़े कई प्रसंग पुराणों में में भी मिलते है। बहुत से लोगों को पता होगा कि आचार्य चाणक्य ने यह प्रतिज्ञा की थी जब तक वे मगध के राजा धनानंद के राज्य का और उसके अहंकार को नष्ट नहीं कर देंगे तब तक वह शिखा नहीं बांधेगे। उन्होंने अपनी यह प्रतिज्ञा पूरी कर के दिखायी।

किसी भी शुभ कार्य या पूजा अनुष्ठान में शिखा बांधने का विधान है। इसके बिना ऐसे कार्य नहीं करने चाहिए। कहा भी है-

स्नाने दाने जपे होमे संध्यायां देवतार्चने !

शिखाग्रंथिं बिनाना कर्म न कुर्याद वै कदाचन !!

यजुर्वेद में तो यहां तक उल्लेख मिलता है कि शिखा में वासुदेव का वास होता है। लिखा गया है-

शिखायां वासुदेव: स्तिष्ठतु"

हरिवंश पुराण में एक कथा आती है जिसमें हैहय और तालजंघ वंश के राजाओंने शक,यवन, काम्बोज, पारद इन राजाओं की सहायता से बाहु राजा का साम्राज्य जीत लिया था। इसके बाद बाहु राजा अपनी पत्नी के साथ जंगल चले गये। कुछ दिन के बाद बाहु की मृत्यु हो गयी। और्व नामक ऋषि ने बाहु राजा की गर्भवती पत्नी को आश्रय दिया और अपने आश्रम में ले गये। उसने एक पुत्र को जन्म दिया जो सगर नाम से प्रसिद्ध हुआ। सगर ने और्व ऋषि से शास्त्र और शस्त्र विद्या का ज्ञान प्राप्त किया। 

बाद में सगर ने हैहय का वध कर दिया। शेष बचे हुए शक,यवन, कांबोज, पारद मृत्यु के भय से ऋषि वसिष्ठ की शरण में जाते हैं। वसिष्ठ ऋषि ने कुछ शर्त लगाने के बाद राजाओं को क्षमा कर दिया। वशिष्ठ ने सगर को आदेश दिया कि वह इन राजाओं को छोड़ दे। वसिष्ठ से सगर से कहा कि इन राजाओं की चोटी काटकर उन्हें रिहा कर दो। इससे यही ज्ञात होता है कि प्राचीन समय में किसी की शिखा या चोटी काटना मृत्युदंड के समान माना जाता था। 

  एक पश्चिमी विद्वान ने लिखा है की भारत में दक्षिण भारतीय लोग आधे सर तक चोटी रखते हैं और उनकी विलक्षण बुद्धिमत्ता को देख कर वह हैरान हो गया। बौद्धिक क्षमता को बढ़ाने के लिए चोटी रखना एक अच्छी बात है।

डॉ. आई. ई. क्लार्क के अनुसार हिन्दू धर्म की प्राचीन प्रथाओं के पीछे अवश्य ही वैज्ञानिक कारण हैं। 

शिखा रखने के अनेक लाभ हैं। मनुष्य शरीर हर तरह का कष्ट सह सकता है पर शरीर में ऐसे स्थान भी हैं जिनमें चोट लगने से मनुष्य की मृत्यु हो सकती है। सर के बीचो-बीच यानी चोटी रखने के स्थान में सभी नाड़ियां मिलती हैं जिसे सूक्ष्म या मर्म स्थान कहा जाता है.

सुश्रुत प्राचीन भारत के महान चिकित्साशास्त्री एवं शल्यचिकित्सक थे। वे आयुर्वेद के महान ग्रन्थ सुश्रुतसंहिता के प्रणेता हैं। इनको शल्य चिकित्सा का जनक माना जाता है। हजारों साल पहले उन्होंने    प्लास्टिक सर्जरी की थी। उन्होंने लिखा है कि-

मस्तकाभ्यन्तरो पारिष्टात शिरा संधि सन्निपातो !

रोमावर्तो अधिपतिस्तात्रापि सद्यो मरणम !!

इसका अर्थ यह है कि सिर पर जिस स्थान पर बालों का गुच्छा यानी शिखा होती है उसके नीचे का हिस्सा नाड़ी और जोड़ों से जुड़ा होता है उसे अधिपति कोमर्म कहा गया है। वहां चोट या आघात लगने से तत्काल मृत्यु हो जाती है।  

चोटी रखने के अनेक लाभ हैं- इससे लौकिक और व्यावहारिक कार्य में यश मिलता है।  मनुष्य धार्मिक सात्विक और संयमी बनता है। सुषुम्ना का रक्षण होता है और मनुष्य रोगमुक्त होकर सशक्त, तेजस्वी और दीर्घायु होता है। इससे आत्मशक्ति बढती है। शिखा रखने से विचार सात्विक होने के साथ ही बुद्धि में वृद्धि होती है। शिखा रखने से आध्यात्मिक उन्नति होती है

 चोटी रखने से ब्रह्मग्रंथि सशक्त होती है और इससे कुण्डलिनी शक्ति जागृत करने में मदद मिलती है।

बच्चों के मुंडन के समय सिर के बीचो बीच बालों का गुच्छा छोड़ दिया जाता है जिसे अक्सर         फिर कभी नहीं कटाया जाता है, उसे शिखा कहा जाता है। 

शिखा बंधन मस्तिष्क की ऊर्जा तरंगों की रक्षा कर व्यक्ति की आत्मशक्ति बढ़ाता है।

पूजा पाठ के समय शिखा में गांठ लगाकर रखने से मस्तिष्क में संकलित ऊर्जा तरंगे बाहर नहीं निकल पाती है और वह अंतर्मुखी हो जाती है। 

शास्त्रों के अनुसार संध्या विधि में संध्या से पूर्व गायत्री मंत्र के साथ शिखा बंधन का विधान है। किसी भी प्रकार की साधना से पूर्व शिखा बंधन गायत्री मंत्र के साथ होता है जो कि एक सनातन परंपरा है।

स्नान, दान, जप, होम, संध्या और देव पूजन के समय शिखा में गांठ अवश्य लगानी चाहिए।

मंत्र उच्चारण और अनुष्ठान करने के समय भी शिखा में गांठ बांधने का विधान है, इसका कारण यह है कि गांठ मारने से मंत्र स्पंदन द्वारा उत्पन्न होने वाली समस्त ऊर्जा शरीर में ही एकत्र होती है।


शिखा बंधन का मंत्र भी है। वेसे तो गायत्री मंत्र के साथ शिखा बांधी जाती है लेकिन इस मंत्र के साथ भी शिखा बांधी जाती है। मंत्र यह है-

चिद्रूपिणि महामाये दिव्यतेजः समन्विते ।

तिष्ठ देवि शिखामध्ये तेजोवृद्धि कुरुष्व मे ।।

अर्थात जो चित्रस्वरूपी महामाया है, जो दिव्य तेजोमयी है, वह महामाया शिखा के मध्य में निवास करें और तेज में वृद्धि करें।

धर्म ग्रंथों के अनुसार व्यक्ति को लघुशंका, दीर्घशंका (शौच), स्त्री से संसर्ग के समय या किसी शव यात्रा को कंधा देते समय शिखा का बंधन खोल देना चाहिए।

शरीर के पांच चक्रों में सहस्त्रार चक्र इसी स्थान पर होता है जहा शिखा रखी जाती है। शिखा रखने से सहस्त्रार चक्र को जागृत करने और शरीर बुद्धि व मन को नियंत्रित करने में सहायता मिलती है।

जिस स्थान पर चोटी या शिखा होती है वह स्थान अन्य जगहों की अपेक्षा अधिक संवेदनशील होता है वहीं पर सुषुम्ना नाड़ी होती है। इसी स्थान के कारण वातावरण से ऊष्मा व अन्य ब्रह्मांड की विद्युत चुंबकीय तरंगें मस्तिक से सरलता से आदान प्रदान कर लेती हैं। इस स्थान पर शिखा रखने से मस्तिष्क के यथोचित उपयोग के लिए नियंत्रित ताप प्राप्त होता है।

शिखा कुंडली पर भी प्रभाव डालती है जिससे जिस किसी भी व्यक्ति की कुंडली में राहु खराब या नीच स्थान पर हो कर खराब असर दे रहा हो तो उसे माथे पर तिलक और सिर पर चोटी रखना चाहिए। कहा तो यहां तक जाता है शिखा रखने पर देवता भी मनुष्य की रक्षा करते हैं।

शिखा रखने के महत्व को न केवल वेद ने बल्कि विज्ञान ने भी अनेक अवसरों पर प्रमाणित किया है। शिखा सुषुम्ना की रक्षा करती है एवं इससे स्मरण शक्ति का भी विकास होता है साथ ही यह मानसिक रोगों से भी बचाव करती है। शिखा के कसकर बंधने से मस्तिष्क पर दबाव बनता है जिससे रक्त का संचार सही तरीके से होता है। 

 परंपरा के मुताबिक हिंदू ब्राह्मण के बच्चे को जब दीक्षा देते हैं या उसका यज्ञोपवीत संस्कार करते हैं तो उनके सिर के बाकी के बाल उतरवाकर एक शिखा छोड़ दी जाती है। ब्राह्मण के बच्चे साधना से पहले अपनी शिखा बांधते हैं।

 एक पाश्चात्य वैज्ञनिक सर चार्ल ल्यूक्स ने शिखा के लाभ के बारे में शोध किया तब पाया कि 'शिखा का शरीर के उस अंग से संबंध है जिससे ज्ञान वृद्धि और तमाम अंगों का संचालन होता है। 

शिखा रखने से वात नाड़ी संस्थान आवश्यकतानुसार जागृत रहते हुए समस्त शरीर को बल देता है।किसी भी अंग के लकवाग्रस्त होने का भय नहीं रहता।

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