भगवान विष्णु का नाम आते ही उनकी जो चतुर्भुजी छवि हमारे मन-मानस में उभरती है उसमें शंख, चक्र, गदा, पद्म लिए ही प्रभु विष्णु दृष्टिगोचर होते हैं। उनकी छवि की व्याख्या करने के लिए उनकी वंदना का यह श्लोक ही काफी है।
सशङ्खचक्रं सकिरीटकुण्डलं सपीतवस्त्रं सरसीरुहेक्षणम् ।
सहारवक्षस्स्थलशोभिकौस्तुभं नमामि विष्णुं शिरसा चतुर्भुजम् ॥
भगवान विष्णु का उल्लेख हो और उनके दिव्य,अचूक और शक्तिशाली अस्त्र सुदर्शन का नाम ना आये ऐसा हो ही नहीं सकता। आज हम विष्णु को कैसे मिला सुदर्शन चक्र, क्या हैं इसकी विशेषताएं और इससे जुड़े आख्यान का वर्णन कर रहे हैं। भगवान विष्णु का अस्त्र है सुदर्शन चक्र। कहते हैं कि इसे उन्होंने अपने कृष्णावतार में शिव की तपस्या कर प्राप्त किया था। सुदर्शन चक्र की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह चलाने के बाद अपने लक्ष्य पर पहुँच कर उसका संहार करने के बाद ही वापस आ जाता है। कृष्णावतार में उन्होंने इसे धारण किया और इससे अनेक राक्षसों का वध किया था। यह भगवान विष्णु का अमोघ अस्त्र है। इस चक्र ने देवताओं की रक्षा तथा राक्षसों के संहार में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी।यह चक्र भगवान विष्णु की तर्जनी अंगुली में रहता था। सबसे पहले यह चक्र विष्णु के पास था।देवताओं के पास ही चक्र होते थे।
विष्णु का सुदर्शन चक्र कैसे मिला इसके बारे में एक आख्यान मिलता है। एक बार जब दैत्यों के अत्याचार बहुत बढ़ गए, तब सभी देवता श्रीहरि विष्णु के पास गये। देवताओं ने विष्णु से प्रार्थना की कि वे राक्षसों के अत्याचार से उनकी रक्षा करें। कहते हैं इसके बाद भगवान विष्णु ने कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान शिव की आराधना की। वे शिव की स्तुति उनके हाजर नामों का जाप कर करने लगे। वे शिव का एक नाम लेते और एक कमल पुष्प भगवान शिव को अर्पण करते। भगवान शंकर ने विष्णु की परीक्षा लेने के लिए उनके लाये एक हजार कमलों में से कमल का एक फूल छिपा दिया। विष्णु को इसका पता नहीं चल पाया। एक फूल कम पाकर भगवान विष्णु उसे खोजने लगे। फूल कहीं नहीं मिला। इसके बाद विष्णु ने एक फूल की पूर्ति के लिए अपना एक नेत्र निकाल कर शिव को अर्पित कर दिया। विष्णु की भक्ति देख कर शंकर बहुत प्रसन्न हुए और विष्णु के सामने प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा। तब विष्णु ने दैत्यों को समाप्त करने के लिए अजेय शस्त्र का वरदान माँगा। तब भगवान शंकर ने विष्णु को सुदर्शन चक्र प्रदान किया। विष्णु ने उस चक्र से दैत्यों का संहार किया। इस प्रकार देवताओं को दैत्यों से मुक्ति मिली तथा सुदर्शन चक्र उनके स्वरूप के साथ सदैव के लिए जुड़ गया।यह भी कहा जाता है कि देवों के शिल्पकार विश्वकर्मा ने ही पुष्पक विमान और सुदर्शन चक्र का निर्माण किया था। लेकिन जहां तक प्राचीन और प्रामाणिक शास्त्र हैं उनमें ऐसी मान्यता है कि इसका निर्माण भगवान शंकर ने किया था। जिसे उन्होंने बाद में विष्णु को सौंप दिया था।
सुदर्शन चक्र को लेकर एक यह कथा भी है। प्राचीन काल में वीतमन्यु नामक एक ब्राह्मण थे। वह वेदों के ज्ञाता थे। उनकी पत्नी का नाम आत्रेयी थी। इऩके एक पुत्र था जिसका नाम उपमन्यु था। यह ब्राह्मण परिवार बहुत गरीब था। गरीबी इतनी कि ब्राह्मणी आत्रेयी अपने पुत्र को दूध भी नहीं दे पाती थी। वह उसे चावल का धोवन दूध कह कर पिला दिया करती थी। एक दिन वीतमन्यु अपने पुत्र के साथ कहीं भोज में गये। वहाँ उपमन्यु ने दूध से बनी हुई खीर का भोजन किया, तब उसे दूध के वास्तविक स्वाद का पता चला। घर आकर उसने चावल के धोवन को पीने से मना कर दिया। दूध पाने के लिए जिद पर अड़े बालक से उसकी माँ ने कहा- "पुत्र, यदि तुम दूध से भी अधिक पुष्टिकारक तथा स्वादवाला पेय पीना चाहते हो तो विरूपाक्ष महादेव की सेवा करो। उनकी कृपा से अमृत भी प्राप्त हो सकता है।' उपमन्यु ने अपनी माँ से पूछा- "माता, आप जिन विरूपाक्ष भगवान की पूजा करने को कह रही हैं, वे कौन हैं?"
आत्रेयी ने अपने पुत्र को बताया कि प्राचीन काल में श्रीदामा नामक असुर राजा था। उसने सारे संसार को अपने वश में करने के साथ ही लक्ष्मी को भी अपने वश में कर लिया था। उसका मान इतना बढ़ गया कि वह भगवान विष्णु के श्रीवत्स को ही छीनने की योजना बनाने लगा। श्रीवत्स भगवान विष्णु के वक्षस्थल पर बना एक दिव्य चिह्न है। असुर श्रीदामा की इस योजना को जानने के बाद विष्णु ने उसका वध करने की इच्छा से भगवान शिव तप करने के लिए हिमालय गये। वहां अनेक वर्ष तक पैर के अंगूठे पर खड़े रह कर शिव की उपासना की। उनकी उपासना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें 'सुदर्शन चक्र' प्रदान किया। उन्होंने सुदर्शन चक्र को देते हुए भगवान विष्णु से कहा- "देवेश! यह सुदर्शन नाम का श्रेष्ठ आयुध बारह अरों अर्थात तीलियों, छह नाभियों एवं दो युगों से युक्त, तीव्र गतिशील और समस्त आयुधों का नाश करने वाला है। सज्जनों की रक्षा करने के लिए इसके अरों में देवता, राशियाँ, ऋतुएँ, अग्नि, सोम, मित्र, वरुण, शचीपति इन्द्र, विश्वेदेव, प्रजापति, हनुमान,धन्वन्तरि, तप तथा चैत्र से लेकर फाल्गुन तक के बारह महीने प्रतिष्ठित हैं। आप इसे लेकर निर्भीक होकर शत्रुओं का संहार करें।
तब भगवान विष्णु ने उस सुदर्शन चक्र से असुर श्रीदामा को युद्ध में परास्त कर दिया।
इस आयुध की विशेषता यह थी कि इसे तेजी से हाथ से घुमाने पर यह हवा के प्रवाह से मिल कर तीव्र वेग से अग्नि प्रज्जवलित कर दुश्मन को भस्म कर देता था। सुदर्शन चक्र की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह लक्ष्य का भेदन कर चलानेवाले के पास वापस आ जाता था। इसके साथ ही यह अस्त्र कभी नष्ट नहीं होता था। इस अस्त्र में अपार ऊर्जा होती थी।
इसकी उत्पत्ति को लेकर कई कथाएं हैं, कुछ का मानना है कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश, बृहस्पति ने अपनी ऊर्जा एकत्रित कर इसे रचा| तो कहीं ऐसा भी उल्लेख आता है कि महाभारत काल में अग्निदेव ने कृष्ण को यह चक्र प्रदान किया था जिससे अनेकों का संहार हुआ था। इस दिव्य अस्त्र का नाम सुदर्शन है, दो शब्दों से मिल कर बना है, ‘सु’ अर्था शुभ और ‘दर्शन’।
चक्र चांदी की तीलियों से निर्मित था। इसकी ऊपरी और निचली सतहों पर लोहे के शूल लगे हुए थे। कहते हैं कि इसमें अत्यंत विषैले किस्म के विष का भी उपयोग किया गया था।यह भी माना जाता है कि इस अस्त्र के धारक को इसे चलाने की आवश्यकता नहीं होती थी यह उसके इच्छा करने मात्र से लक्ष्य की ओर तीव्र गति से चल पड़ता था। अर्थात यह इच्छाशक्ति से प्रेरित होता था। लक्ष्य को नष्ट कर यह चलाने के पास स्वत: वापस आ जाता था।
अब आधुनिक मिसाइलों में भी सुदर्शन चक्र जैसी क्षमता लाने की कोशिश की जा रही है। अर्थात अब ऐसी मिसाइलें तैयार करने की कोशिश हो रही है जो अपना लक्ष्य भेद कर वापस आ जा सकें और उनका दोबारा प्रयोग किया जा सके। सुप्रसिद्ध अंतरिक्ष वैज्ञानिक एएस पिल्लई ने का कहना है कि सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस का अगला वर्जन सुदर्शन चक्र की तरह होगा। सुदर्शन चक्र एकमात्र ऐसा दैविक हथियार है, जो अपना काम कर वापस आ जाता है। पिल्लई का कहना है कि दुनिया की अद्वितीय सुपरसोनिक मिसाइल ब्रह्मोस-1 विकसित करने के बाद भारत अब ब्रह्मोस-2 मिसाइल विकसित कर रहा है, जिससे वह अपने लक्ष्य को भेद कर वापस आ जाएगी और पुन: प्रयोग की जा सकेगी।
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