Tuesday, March 23, 2021

क्या सचमुच द्रौपदी के पांच पति थे?


यह प्रश्न उठाते हुए कि क्या सचमुच द्रौपदी के पांच पति थे मुझे विश्वास है कि इस पर बहुत से लोग प्रश्न उठायेंगे कि मैं प्रचलित तथ्यों के विपरीत जा रहा हूं या उलटी धारा में बहने की कोशिश कर रहा हूं। मेरी ऐसी कोई इच्छा नहीं है लेकिन अगर यह प्रतीत हो कि द्रौपदी को लेकर प्रस्तुत किये गये तथ्य कहीं भ्रम पैदा करते हैं तो उनका भी निराकरण करना या उन पर प्रश्न उठाना सर्वथा उचित है। 

इस क्रम में यह तथ्य भी ध्यान में रखने लायक है कि हमारे मूल धार्मिक ग्रंथों में कुछ लोगों द्वारा कई तरह की विकृतियां की गयी हैं ताकि हमारे महापुरुषों, आदर्श धार्मिक पात्रों के चरित्र को विकृत किया जा सके। सत्य सनातन धर्म की गलत तस्वीर पेश की जा सके जिस पर भारत क्या विश्व को गर्व था। ऐसा संस्कृत के ज्ञाता विदेशी विद्वान व भारत के ही कुछ धन लोलुप विद्वान ब्राह्मणों द्वारा किया गया है। ऐसे में जहां संदेह हो वहां प्रश्न उठाना अनुचित तो नहीं। द्रौपदी युधिष्ठर की ही पत्नी थीं पांचों पांडवों की नहीं इसे सत्यापित करनेवाले कई प्रमाण मिलते हैं।

द्रौपदी का जन्‍म एक यज्ञ कुंड से हुआ था। द्रौपदी के पिता द्रुपद ने पुत्र की इच्‍छा से पुत्राकामेष्टि यज्ञ किया था। वह चाहते थे कि जो पुत्र इस यज्ञ कुंड से निकलेगा वह द्रोणाचार्य से बदला लेगा। मगर यज्ञ से दृष्‍टद्युम्न के साथ उसकी बहन द्रौपदी का भी जन्‍म हुआ। यही कारण है कि द्रौपदी को यज्ञसेनी भी कहा जाता है। वे राजा द्रुपद की पुत्री थीं इसलिए उनके पिता ने उन्‍हें अपना नाम दिया था। इसीलिए वे द्रौपदी कहलायीं और उनका यही नाम सर्वाधिक प्रचलित है। 

द्रौपदी का जन्‍म पांचाल राज्‍य में हुआ था और वह वहां कि राजकुमारी थी। इसलिए लोग उन्‍हें पांचाली भी कहते थे। ऐसा माना जाता है कि महाभारत की मूल कथा में अनेक परिवर्तन हुए हैं। इन परिवर्तनों में आर्य-संस्कृति को काफी दयनीय स्थिति में प्रस्तुत किया गया है। द्रौपदी के पांच पति वाली कथा इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। महाभारत के आदि-पर्व में द्रौपदी के पांच पतियों का उल्लेख पाया जाता है। महाभारत की द्रौपदी मूल कथा के अतिरिक्त द्रौपदी के एक और रूप का उल्लेख मिलता है। इनमें द्रौपदी के परस्पर विरोधी चरित्र सुनने को मिलते हैं। एक तरफ उसे पंचकन्या, सती जैसे सम्मानजनक स्थान दिया गया है तो दूसरी ओर उन्हें पांच पतियों की पत्नी कह कर उनका चरित्र हनन भी किया गया है।  द्रौपदी महाभारत की सबसे प्रसिद्ध एक आदर्श पात्र हैं जो पांचाल देश के राजा द्रुपद की पुत्री और बाद में तथाकथित पांचों पाण्डवों की पत्नी कही जाने लगी। 

 राजा द्रुपद ने अपनी पुत्री द्रौपदी के विवाह के लिए स्वयंवर रचाया था। उस स्वयंवर में ब्राह्मण वेश में पांच पांडव भी शामिल हुए थे जो उन दिनों अज्ञातवास झेल रहे थे। एक ओर धनुष-बाण पड़ा था और दूसरी ओर आकाश में कृत्रिम यंत्र में लिपटा लक्ष्य मछली। नीचे उसका प्रतिबिंब देख कर उस घूमते लक्ष्य को भेदना था जो आसान नहीं था। जो भी कुलीन वीर व्यक्ति या राजा उस लक्ष्य का भेदन कर दे वही द्रौपदी का पति बनता। लेकिन इस लक्ष्य को कोई भी राजा वेध नहीं सका। इसके बाद जब कर्ण उठा, तो द्रौपदी ने  यह कह कर उनका अपमान कर दिया कि मैं एक सूत पुत्र से विवाह नहीं करूंगी। तब ब्राह्मण वेशधारी अर्जुन अपने आसन से उठे और उन्होंने लक्ष्य का वेध कर दिया। उनके पराक्रम से प्रसन्न होकर द्रौपदी ने उनके गले में जयमाला डाल दी। अर्जुन के लक्ष्य-वेध करने पर मंडप में बैठे हुए ब्राह्मण बहुत प्रसन्न हुए लेकिन राजाओं ने शोर मचाना प्रारम्भ कर दिया। युधिष्ठिर यह सह नहीं सके और नकुल एवं सहदेव को लेकर वहां चले गये जहां वे अपने अज्ञातवास में रह रहे थे। सभा में रह गये अर्जुन और भीम। द्रुपद ने इन दोनों वीरों से कोलाहल शांत करने के लिए कहा। अर्जुन कर्ण से भिड़ गया और भीम शल्य से। कर्ण ने ब्राह्मण विजय को स्वीकार कर लिया और शल्य भीम द्वारा बांह पकड़ कर दूर फेंक दिया गया। इतने में कृष्ण आ गये और उन्होंने यह कह कर मामला शांत कर दिया कि द्रौपदी का वरण न्यायपूर्वक हुआ है। द्रौपदी को लेकर जब अर्जुन कुंती के पास पहुंचे और कहने लगे कि मां, हम भिक्षा ले आये हैं, तो कुंती ने कहा- ‘पांचों भाई आपस में बांट लो।’ कुंती ने जब बाहर निकलकर  द्रौपदी को देखा, तो वह अपने निर्णय पर पछताने लगी। यहीं से द्रौपदी के पांच पति वाली कथा प्रारंभ होती है।

 यहां प्रश्न यह उठता है कि अगर पांडवों ने मां से यह कहा कि वे भिक्षा लाये हैं तो मां ने घर के भीतर से कह दिया आपस में बांट लो लेकिन जब बाहर उन्होंने पाया कि पुत्र भिक्षा नहीं एक स्त्री द्रौपदी लाये हैं तो क्या वे अपना निर्णय बदल नहीं सकती थीं। उनका कहा ब्रह्मवाक्य तो था नहीं कि बदला ना जाये। एक स्त्री को पांच पुरुषों में बांटने का अधर्म वे क्यों करतीं। 

  मां ने बस्तु समझ बेटों से उसे आपस में बांटने की बात कही थी जैसा वे सदैव करती थीं। स्त्री को वस्तु की तरह पांचों भाइयों में बांटने की बात उन्होंने नहीं कही थी। द्रौपदी के पांच पति होने की यह क्षेपक व बाद में गढ़ी गयी कहानी तो है पर सत्य नहीं है। यह द्रौपदी जैसे चरित्र के साथ उचित नहीं था। द्रौपदी जैसी विदुषी नारी के साथ इस तरह से बहुत अन्याय किया है। क्षेपक व सुनी सुनायी बातों के आधार पर द्रौपदी पर कई लांछन लगाये गये हैं, जिससे वह अत्यंत पथभ्रष्ट और धर्म भ्रष्ट नारी साबित होती है। एक ओर धर्मराज युधिष्ठिर जैसा परमज्ञानी उनके पति हैं, जिनका सर्वत्र गुणगान किया गया है दूसरी ओर द्रौपदी पर तर्कहीन आरोप लगाये गये। सबसे गंभीर आरोप तो यही है कि उनके पांच पति थे।

एक कथा यह भी आती है कि  द्रौपदी के स्वयंबर में उपस्थित ब्राह्मणवेशी वीर कौन हैं यह पता लगाने के लिए राजा द्रुपद के पुत्र द्रौपदी के भाई  धृष्टद्युम्न पांडवों के पीछे-पीछे उनका सही ठिकाना जानने और उनका वास्तविक रूप समझने के लिए भेष बदलकर उनका पीछा कर रहे थे। उन्होंने पांडवों की चर्चा सुनी उनका शिष्टाचार देखा। पांडवों द्वारा दिव्यास्त्रों, रथों, हाथियों, तलवारों आदि के विषय में चर्चा करते सुना। यह सुन कर उसका से उनका संशय दूर हो गया और वह समझ गये कि ये पांचों लोग पांडव ही हैं। वह प्रसन्न होकर वापस आये और उन्होंने अपने पिता से कहा-‘पिताश्री! जिस प्रकार वे युद्घ का वर्णन कर रहे थे उससे तनिक भी संदेह नहीं वे क्षत्रिय ही हैं। हमने सुना है कि वे कुंती पुत्र हैं जो लाक्षागृह की अग्नि में जलने से बच गये थे। वे पांचों पांडु पुत्र ही हैं।’.

पुत्र से यह समाचार पाकर राजा बहुत प्रसन्न हुए। तब उन्होंने अपने पुरोहित को पांडवों के पास भेजा कि उनसे यह जानकारी ली जाए कि क्या वह महात्मा पांडु के पुत्र हैं? पुरोहित ने जाकर पांडवों से कहा- पांचाल नरेश द्रुपद आप लोगों का परिचय जानना चाहते हैं। अर्जुन की ओर संकेत करते हुए वे ब लेृइस वीर पुरूष को लक्ष्यभेद करते देख कर राजा बहुत प्रसन्न हुए। उनकी इच्छा थी कि मैं अपनी इस पुत्री का विवाह पांडु कुमार से करूं। ” तब पुरोहित से धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा- ‘‘पांचाल राज द्रुपद ने  लक्ष्यभेद की शर्त रख कर अपनी पुत्री देने का निश्चय किया था। उस वीर पुरूष ने उसी शर्त को पूर्ण करके यह कन्या प्राप्त की है, परंतु हे ब्राहमण! राजा द्रुपद की जो इच्छा थी वह भी पूर्ण होगी।’ युधिष्ठिर कह रहे हैं कि द्रौपदी का विवाह उसके पिता की इच्छानुसार पांडु पुत्र से ही होगा। इस राज कन्या को मैं अपने लिए ग्रहण करने योग्य एवं उत्तम मानता हूं। ” अभी यह बात चल ही रही थी कि तभी पांचाल राज से एक व्यक्ति आया और उसने कहा-“राजभवन में आप लोगों के लिए भोजन तैयार है”। पूरे सम्मान के साथ पांडवों को राजा द्रुपद के राज भवन ले जाया गया। उन्हें देखकर राजा द्रुपद उनके सभी मंत्री, पुत्र, मित्र बहुत प्रसन्न हुए। भोग विलास की सामग्री छोड़ पहले वहां गये जहां युद्घ के हथियार और दूसरा साज-सामान रखा था। यह देख राजा द्रुपद बहुत अधिक प्रसन्न हुए। अब उन्हें पूरा विश्वास हो गया कि ये राजकुमार पांडु पुत्र ही हैं। युधिष्ठिर ने पांचाल राज से कहा, “राजन! आप प्रसन्न हों ,आपके मन में जो कामना पूर्ण हो गयी है. हम क्षत्रिय महात्मा पांडु के पुत्र हैं”।  

 युधिष्ठिर के ये वचन सुनकर महाराज द्रुपद बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने पांचों पांडवों के अपने राजभवन में ही ठहराने का प्रबंध कर दिया। पांडव वही रहने लगे।

उसके बाद महाराज द्रुपद ने अगले दिन अपने पुत्रों के साथ  जाकर युधिष्ठिर से कहा- पांडु कुल  को आनंदित करने वाले ये महाबाहु अर्जुन आज के पुण्यमय दिवस में मेरी पुत्री को विधि पूर्वक ग्रहण करें। और अपने कुलोचित विध-विधान पालन करना आरंभ कर देंष युधिष्ठिर बीच में ही बोल उठते हैं, “राजन! विवाह तो मेरा भी करना होगा. धर्मपुत्र युधिष्ठिर अनुचित विवाह सम्बंध के लिए हठ करते हैं। द्रुपद उनसे कहते हैं-

नैकस्या बहवःपुंसःश्रूयन्ते पतयःक्वचित्।

लोकवेदविरुद्धं त्वं नाधर्म धर्मविच्छुचिः।

कर्तुमर्हसि कौन्तेय कस्मात्ते बुद्धिरीदृशी।

इसका अर्थ यह है कि एक स्त्री के अनेक पति नहीं होते। अनेक पति वाली बात आर्यों के समाज में प्रचलित नहीं है। वह लोक में प्रचलित प्रथा के विरुद्ध है और वेद भी इसका विरोध करते हैं। हे युधिष्ठिर, तुम तो धर्मात्मा हो, ऐसा अधर्म का कार्य तुम क्यों करने जा रहे हो, तुम्हारी ऐसी धर्म-विरोधी बुद्धि कैसे हो गयी? 

महाभारत में ही ऐसे उदाहरण हैं जो यह प्रमाणित करते हैं कि द्रौपदी के एक ही पति थे और वे युधिष्ठिर थे। महाभारत के आदि पर्व के 32 वें अध्याय में लिखा है- तमब्रवीत् ततो राजा धर्मात्मा च युधिष्ठिर। ममापि दारसबन्धः कार्यस्तावद् विशापते।। ( 1.32.49) तब धर्मात्मा राजा युधिष्ठिर ने उनसे कहा- राजन्! विवाह तो मेरा भी करना होगा। भवान् वा विधिवत् पाणिं गृह्णातु दुहितुर्मम। यस्य वा मन्यसे वार तस्य कृष्णामुपादिश।। (1.32.50) अर्थात् द्रुपद बोले- हे वीर! तब आप ही विधि पूर्वक मेरी पुत्री का पाणिग्रहण करें अथवा आप अपने भाइयों में से जिसके साथ चाहे, उसी के साथ कृष्णा को विवाह की आज्ञा दे दें। ततः समाधाय स वेदपारगो जुहाव मन्त्रैर्ज्वलितं हुताशनम्। युधिष्ठिरं चाप्युषनीय मन्त्रविद्नियोजयामास सहैव कृष्णया।। ( 1.32.51) द्रुपद के ऐसा कहने पर वेद के पारंगत विद्वान् मन्त्रज्ञ पुरोहित धौम्य ने वेदी पर प्रज्वलित अग्नि की स्थापना करके उसमें मन्त्रों द्वारा आहुति दी और युधिष्ठिर को बुलाकर कृष्णा के साथ उनका गठबन्धन कर दिया। प्रदक्षिणं तौ प्रगृहीतपाणिकौ समातयामास स वेदपारगः। ततोऽयनुज्ञाय तमाजिशोभिनं पुरोहितो राजगृहाद् विनिर्ययौ।। (1.32.52) वेदों के पारंगत विद्वान् पुरोहित ने उन दोनों का पाणिग्रहण कराकर उनसे अग्नि की प्रदक्षिणा करवाई, फिर (अन्य शास्त्रोक्त विधियों का अनुष्ठान कराके) उनका विवाह कार्य सपन्न कर दिया। तत्पश्चात् संग्राम में शोभा पाने वाले युधिष्ठिर को अवकाश देकर पुरोहित जी भी उस राजभवन से बाहर चले गये। महाभारत के इस पूरे प्रकरण से ज्ञात हो रहा है कि द्रौपदी का पाणिग्रहण अर्थात् विवाह संस्कार केवल युधिष्ठिर के साथ हुआ था। अर्थात् द्रौपदी का पति युधिष्ठिर ही थे न कि पाँचों पाँडव।

इसके बाद द्रुपद ने युद्धिष्ठर से कहा- हे वीर! तब आप ही विधि पूर्वक मेरी पुत्री से विवाह करें। अथवा आप अपने भाईयों में से जिसके साथ चाहें उसी के साथ मेरी पुत्री का विवाह करने की आज्ञा दें।'.इन घटनाओं से पांच पति वाली कथा आधारहीन ही प्रतीत होती है। यदि कुंती ने ‘पांचों बांट खाओ’ कह भी दिया हो, मूल कथा में कुंती के मुख से ये शब्द निकले ही नहीं। तैत्तिरीय उपनिषद की सूक्ति से भी इसका निराकरण हो जाना चाहिए – “यान्यस्माकं सुचरितानि तानि त्वयोपास्यानि न इतराणि” अर्थात हमारे लिए जो सुंदर चरित्र है उसकी ही तुम उपासना या अनुसरण करो इसके सिवा दूसरी किसी चीज की नहीं। इन दो घटनाओं से पांच पति वाली कथा प्रमाणित नहीं होती।

 द्रुपद के कहने पर पुरोहित धौम्य ने वेदी में मंत्रों के साथ आहुति दी और युधिष्ठिर व द्रौपदी का विवाह संपन्न कराया। द्रौपदी ने सर्वप्रथम अपनी सास कुंती से आशीर्वाद लिया, तब माता कुंती ने कहा, “ पुत्री! जैसे इंद्राणी इंद्र में, स्वाहा अग्नि में, भक्ति भाव एवं प्रेम रखती थीं उसी प्रकार तुम भी अपने पति में अनुरक्त रहो।’ इस संदर्भ को सत्यापित करता महाभारत का एक श्लोक है-

यथेन्द्राणी, हरिहरे स्वाहा चैव विभावसौ।

रोहिणी व यथा सोमे दमयन्ती यथा नले।।

यथा वैश्रवणे भद्रा वसिष्ठे चाप्यरुन्धती।

यथा नारायणे लक्ष्मीस्तथा त्वं भव भर्तरि।।

जीवसूर्वीरसूभद्रि बहुसौख्यसमन्विता।

सुभगा भोगसम्पन्ना यज्ञपत्नी पतिव्रता।। 

इससे सिद्घ है कि द्रौपदी का विवाह अर्जुन से नहीं बल्कि युधिष्ठिर से हुआ था। इस सारी घटना का उल्लेख आदि पर्व में दिया गया है। उस साक्षी पर विश्वास करते हुए इस दुष्प्रचार से बचना चाहिए कि द्रौपदी के पांच पति थे। कुंती भी जब द्रौपदी को आशीर्वाद दे रही हैं तो उन्होंने भी कहा है कि तुम अपने पति में अनुरक्त रहो। उन्होंने पति शब्द का प्रयोग किया है पतियों का नहीं। इससे ही स्पष्ट हो जाता है कि द्रौपदी एक पति युधिष्ठर की पत्नी थीं पांचों पांडवों की नहीं। 

कुंती ने द्रौपदी को यह आशीर्वाद भी दिया था कि-

रूपलक्षणसंपन्नां शीलाचार रसमन्विताम्।

द्रौपदीमवद्त प्रेम्णा पृथाआशीर्वचनैः स्नुषाम्।।

जीवसूर्वोरसूर्भद्रे बहुसौख्यसमन्विता।

सुभगाभोगसम्पन्ना यज्ञपत्नी पतिव्रता।।

  अर्थात रूप लक्षण-सम्पन्ना, शील और आचार वाली द्रौपदी को आशीर्वाद देती हुई कुंती कहती है कि भद्रे, तुम वीरप्रसविनी, पतिव्रता और यज्ञपत्नी बनो। यहां पतिव्रता और यज्ञपत्नी दो शब्द उल्लेखनीय  हैं। एक पति ही जिसका व्रत है, उसे पतिव्रता और एक पति के साथ जो यज्ञ में भाग लेती है, उसे यज्ञपत्नी कहा जाता है। यदि यह मान लें कि द्रौपदी के पांच पति थे तो क्या वे इन मानकों पर खरी उतर पायेंगी। इससे यह सिद्ध होता है कि पांच पतियों वाली कथा बाद में जोड़ी गयी है। इसका सशक्त, सटीक प्रमाण विराटपर्व में मिलता है। प्रमाण यह है कि भीम कीचक का वध के बाद कहते हैं-

अद्याहमनृणो भूत्वा भ्रातुर्भार्यापहारिणम्।

शांतिं लब्धास्मि परमां हत्वा सैरन्ध्रिकण्टकम्।।

अर्थात आज मैं कीचक को मारकर अपने भाई की पत्नी के ऋण से मुक्त हो गया.यहां भी भीम द्रौपदी को अपनी भार्या नहीं कहता. वह उसे अपने भाई की पत्नी कहता है। महाभारत के इन प्रमाणों से यही सिद्ध होता है कि द्रौपदी के पांच पति होने की कथा बाद में जोड़ी गयी है। ऐसी क्षेपक कथा को जोड़नेवालों का उद्देश्य क्या रहा होगा यह तो वही जानते होंगे।

इससे यह प्रमाणित होता है कि द्रौपदी के साथ बहुत अन्याय किया गया है। द्रौपदी को लेकर जो़ड़ी गयी इन क्षेपक कथाओं से भारतीय संस्कृति का अहित और अपमान हुआ है।

यह प्रश्न भी स्वाभाविक रूप से उठ सकता है कि जब स्वयंवर अर्जुन ने जीता तो विवाह युधिष्ठिर से क्यों हुआ। जो यह प्रश्न उठाते हैं वे द्रौपदी के पांच पति की कल्पित कथा पर प्रश्न क्यों नहीं उठाते।

द्रौपदी के विवाह का संपूर्ण वर्णन मात्र ४ श्लोक में है,  जिनका वर्णन हम पूर्व ही कर चुके हैं।

 द्रौपदी ने स्वयं को युधिष्ठिर की पत्नी कहा है। जब उनको कीचक बहुत परेशान करता है तो वे भीम के पास आकर कहती हैं 

"आशोच्यत्वं कुतस्तस्य यस्य भर्ता युधिष्ठिरः।

जानन् सर्वाणि दुःखानि कि मां त्वं परिपृच्छसि।।"

द्रौपदी कहती है— जिस स्त्री का पति युधिष्ठिर हो वह बिना शोक के रहे, यह कैसे सम्भव है? तुम तो मेरे दुःख को जानते हो तब भी पूछने क्यों हो?

  धृतराष्ट्र ने भी द्रौपदी को युधिष्ठिर की पत्नी कह कह संबोधित किया है-

हतोऽसि दुर्योधन मन्दबुद्धे यस्तवं सभायां कुरुपुंगवानाम्।

स्त्रियं समाभाषसि दुर्विनीत विशेषतो द्रौपदी धर्मपत्नीम्।।

महा० सभा—(७१-२५-९१२)

"रे मन्दबुद्धि दुर्योधन!  तू तो जीता ही मारा गया। दुर्विनीत! तू श्रेष्ठ कुरुवंशियों की सभा में अपने ही कुल की महिला एवं विशेषतः धर्मराज युधिष्ठिर की पत्नी द्रौपदी को लाकर उस से पापपूर्ण बात कर रहा है।

इन प्रमाणों से सिद्ध हो जाता है कि द्रौपदी के साथ सबसे बड़ा अन्याय हुआ है। द्रौपदी पर ये लांछन उन लोगो ने लगाये जो नारी को भोग की वस्तु समझते है।

महाभारत के कथानक में मिलावट की गयी है इसके लिए इतने प्रमाण काफी है। हमारा उद्देश्य किसी विवाद को हवा देना नहीं है हम यही चाहते हैं कि किसी विषय पर चर्चा हो तो समग्रता में हो उसके हर पक्ष का सम्यक विवेचन हो। अगर उस पर प्रश्न उठ रहे हों तो उन पर भी गौर करना चाहिए। हमारा उद्देश्य द्रौपदी के जीवन से जुड़े उस पक्ष को उजागर करना था जिसका उल्लेख ज्यादा नहीं हुआ। उद्देश्य द्रौपदी के जीवन का एक अलग पक्ष प्रस्तुत करना था इसलिए कोई इसे अन्यथा ना ले।

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