Sunday, March 14, 2021

भीम में 10 हजार हाथियों के बल का रहस्य



वैसे तो महाभारत के पात्रों में कई वीरों की गाथा है लेकिन इनमें भीम को सबसे बली माना जाता है। कहते तो यहां तक हैं कि भीम में 10 हजार हाथियों का बल ता। पांच पांडवों में भीम पाण्डवों में दूसरे स्थान पर थे। उनकी माता भी कुंती और उनका जन्म पवनदेव के वरदान से हुआ था। ऋषि दुर्वासा ने कुंती की सेवा से प्रसन्न होकर उनको देवताओं का आह्वान करने का मंत्र सिखाया था।उसी के बल पर कुंती ने पवनदेव का आह्वान किया था जिनसे उन्हें भीम पुत्र के रूप में मिले। पांडु दूसरे पांडव भाइयों से अधिक भीम की प्रशंसा करते थे। सभी पाण्डवों में वे सर्वाधिक बलशाली हृष्ट-पुष्ट शरीर वाले थे। वे युधिष्ठर के भाई थे। भीम को भीमसेन नाम से भी पुकारा जाता था। महाभारत की गाथा उनके बल और शक्ति की प्रशंसा और वर्णन से भरी है। भीम सभी गदाधारियों में श्रेष्ठ थे इसमें उनकी बराबरी करनेवाला कोई नहीं था। हाथी की सवारी करने में भी कोई उनके जैसा योग्य नहीं  था। उनके बल के बारे में तो यह प्रसिद्ध था कि उनमें दस हज़ार हाथियों के बराबर का बल है। युद्ध कला में वे इतने कुशल थे कि अगर  क्रोध में आते तो कई धृतराष्ट्रों को परास्त कर सकते थे। वनवास काल में इन्होने  अनेक राक्षसों का वध किया जिसमें बकासुर एवं हिडिंब आदि प्रमुख हैं एवं अज्ञातवास में विराट नरेश के साले कीचक का वध करके द्रौपदी की रक्षा की। गदा युद़्ध में वे बहुत ही कुशल थे वे द्रोणाचार्य और बलराम के शिष़्य थे। उनसे ही उन्होंने युद्धकला व गदा युद्ध में प्रवीणता इन्हीं गुरुओं के बल पर पायी थी। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में राजाओं की कमी होने पर उन्होने मगध के शासक जरासंध को 

परास्त करके छियासी राजाओं को मुक्त कराया। द्रौपदी के चीरहरण का बदला लेने के लिए उन्होने दुःशासन की छाती फाड़ कर उसका रक्त पान किया।

 महाभारत के युद्ध में भीम ने ही सारे कौरव भाइयों का वध किया था।भीम के द्वारा दुर्योधन के वध के साथ ही महाभारत के युद्ध समाप्त हुआ था। पाण्डु पुत्र भीम के बारे में माना जाता है की उसमे दस हज़ार हाथियों का बल था जिसके चलते एक बार तो उसने अकेले ही नर्मदा नदी का प्रवाह रोक दिया था। भीम में दस हज़ार हाथियों का बल कैसे आया इसकी भी एक कहानी है। कौरवों का जन्म हस्तिनापुर में हुआ था जबकि पांचों पांडवों का जन्म वन में हुआ था। पांडवों के जन्म के कुछ वर्ष बाद पाण्डु का निधन हो गया। पाण्डु की मृत्यु के बाद वन में रहने वाले साधुओं ने विचार किया कि पाण्डु के पुत्रों, अस्थि तथा पत्नी को हस्तिनापुर भेज देना ही उचित है। इस प्रकार समस्त ऋषिगण हस्तिनापुर आए और उन्होंने पाण्डु पुत्रों के जन्म और पाण्डु की मृत्यु के संबंध में पूरी बात भीष्म, धृतराष्ट्र को बतायी। भीष्म को जब यह बात पता चली तो उन्होंने कुंती सहित पांचों पांण्डवों को हस्तिनापुर बुला लिया।

हस्तिनापुर में आने के बाद पाण्डवों के वैदिक संस्कार सम्पन्न हुए। पाण्डव तथा कौरव साथ ही खेलने लगे। दौडऩे, निशाना लगाने तथा कुश्ती आदि सभी खेलों में भीम सभी धृतराष्ट्र पुत्रों को हरा देते थे। भीमसेन कौरवों से होड़ के कारण ही ऐसा करते थे लेकिन उनके मन में कोई वैर-भाव नहीं था।  दुर्योधन के मन में भीमसेन के प्रति दुर्भावना पैदा हो गई। उसने उचित अवसर मिलते ही भीम को मारने का विचार किया। दुर्योधन ने एक बार खेलने के लिए गंगा तट पर शिविर लगवाया। 

 वहां खाने-पीने इत्यादि सभी सुविधाएं भी थीं।दुर्योधन ने पाण्डवों को भी वहां बुलाया। एक दिन मौका पाकर दुर्योधन ने भीम के भोजन में विष मिला दिया। विष के असर से जब भीम अचेत हो गए तो दुर्योधन ने दु:शासन के साथ मिलकर उन्हें गंगा में डाल दिया। भीम इसी अवस्था में नागलोक पहुंच गए। वहां सांपों ने भीम को खूब डंसा जिसके प्रभाव से विष का 

असर कम हो गया। जब भीम को होश आया तो वे सर्पों को मारने लगे। सभी सर्प डरकर नागराज  वासुकि के पास गए और पूरी बात बताई। तब वासुकि स्वयं भीमसेन के पास गए। उनके साथ आर्यक नाग ने भीम को पहचान लिया। आर्यक नाग भीम के नाना का नाना था। वह भीम से बड़े प्रेम से  मिला। तब आर्यक ने वासुकि से कहा कि भीम को उन कुण्डों का रस पीने की आज्ञा दी जाए जिनमें  हजारों हाथियों का बल है। वासुकि ने इसकी स्वीकृति दे दी। तब भीम आठ कुण्ड पीकर एक दिव्य शय्या पर सो गए।

जब दुर्योधन ने भीम को विष देकर गंगा में फेंक दिया तो उसे बड़ा हर्ष हुआ। शिविर के समाप्त होने पर सभी कौरव व पाण्डव भीम के बिना ही हस्तिनापुर के लिए रवाना हो गए। पाण्डवों ने सोचा कि भीम आगे चले गए होंगे। जब सभी हस्तिनापुर पहुंचे तो युधिष्ठिर ने माता कुंती से भीम के बारे में पूछा। तब कुंती ने भीम के न लौटने की बात कही। सारी बात जानकर कुंती व्याकुल हो गई तब उन्होंने विदुर को बुलाया और भीम को ढूंढने के लिए कहा। तब विदुर ने उन्हें सांत्वना दी और सैनिकों को भीम को ढूंढने के लिए भेजा।

उधर नागलोक में भीम आठवें दिन रस पच जाने पर जागे। तब नागों ने भीम को गंगा के बाहर छोड़ दिया। जब भीम सही-सलामत हस्तिनापुर पहुंचे तो सभी को बड़ा संतोष हुआ। तब भीम ने माता कुंती व अपने भाइयों के सामने दुर्योधन द्वारा विष देकर गंगा में फेंकने तथा नागलोक में क्या-क्या हुआ, यह सब बताया। युधिष्ठिर ने भीम से यह बात किसी और को नहीं बताने के लिए कहा। युद्ध के भयंकर कांड का समापन योद्धाओं की मां, बहन, पत्नियों के रुदन तथा मृत वीरों की अंत्येष्टि क्रिया से हुआ। इसी निमित्त हस्तिनापुर पहुँचने पर धृतराष्ट्र को रोती हुई द्रौपदी, पांडव, सात्यकि तथा श्रीकृष्ण  भी मिले। यद्यपि व्यास तथा विदुर धृतराष्ट्र को पर्याप्त समझ चुके थे कि उनका पांडवों पर क्रोध अनावश्यक है। इस युद्ध के मूल में उनके प्रति अन्याय कृत्य ही था, अत: जनसंहार अवश्यभावी था  तथापि युधिष्ठिर को गले लगाने के उपरांत धृतराष्ट्र अत्यंत क्रोध में भीम से मिलने के लिए आतुर हो 

उठे। श्रीकृष्ण उनकी मनोगत भावना जान गये, अत: उन्होंने भीम को पीछे हटा, उनके स्थान पर लोहे की आदमक़द प्रतिमा धृतराष्ट्र के सम्मुख खड़ी कर दी। धृतराष्ट्र में अपार बल था। वे 

धर्म से विचलित हो भीम को मार डालना चाहते थे, क्योंकि उसी ने अधिकांश कौरवों का हनन किया था। अत: लौह प्रतिमा को भीम समझकर उन्होंने उसे दोनों बांहों में लपेटकर पीस डाला। प्रतिमा टूट गयी किंतु इस प्रक्रिया में उनकी छाती पर चोट लगी तथा मुंह से ख़ून बहने लगा, फिर भीम को मरा जान उसे याद कर रोने भी लगे। श्रीकृष्ण भी क्रोध से लाल-पीले हो उठे। 

बोले- "जैसे यम के पास कोई जीवित नहीं रहता, वैसे ही आपकी बांहों में भी भीम भला कैसे जीवित रह सकता था। आपका उद्देश्य जानकर ही मैंने आपके बेटे की बनायी भीम की लौह-प्रतिमा आपके सामने प्रस्तुत की थी। भीम के लिए विलाप मत कीजिये, वह जीवित है।" तदनंतर धृतराष्ट्र का क्रोध शांत हो गया तथा उन्होंने सब पांडवों को बारी-बारी से गले लगा लिया।

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