Saturday, March 27, 2021

कथा होलिका दहन की और कुछ लाभदायक उपाय




होली का त्योहार हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है।रंग-गुलाल, हुलास, उत्साह और उमंग से हरे इस त्योहार के रंग बदलते युग के साथ मानाकि कुछ बदल गये हैं लेकिन समाप्त नहीं हुए। गांव-देहात में आज भी रंग-गुलाल की बहार होली में देखी जाती है, भंग की तरंग में लोग मस्त रहते हैं। साल भर की उदासी और रंजो गम को उतार लोग हर्ष,उल्लास उमंग से झूम उठते हैं। इस त्योहार में तरह-तरह के पकवान बनाये जाते हैं। लोग आपस में रंग गुलाल का लगा गले मिलते हैं। उत्तर प्रदेश और खासकर हमारे बुंदेलखंड में खोये और मैदे से बनी गुझिया होली के त्योहार का प्रमुख अंग होता है। 

होली का त्योहार किस उपलक्ष्य में मनाया जाता है इसे लेकर एक पौराणिक कथा प्रसिद्ध व प्रचलित है। कथा इस प्रकार है -हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त था। पिता के बार-बार मना करने के बावजूद प्रह्लाद ने विष्णु भक्ति और विष्णु नाम स्मरण नहीं छोट़ा। जब पुत्र ने विष्णु की भक्ति उनका नाम स्मरण नहीं छोड़ा तो हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को कई बार मारने की  कोशिश की लेकिन भगवान विष्णु उसकी रक्षा करते रहे और उसका बाल भी बांका नहीं हुआ। हिरण्कश्यपु की बहन होलिका को भगवान शंकर से ऐसा वरदान मिला था कि अग्नि उसे कभी जला नहीं सकेगी। 

होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर चिता पर बैठ गई।भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ पर होलिका जल गयी। होलिका दहन के दिन होली जला कर होलिका नामक दुर्भावना और बुराई का अंत और भगवान द्वारा भक्त की रक्षा का पर्व मनाया जाता है। हिरण्यकशिपु के दूतों ने उसे जब यह समाचार सुनाया कि उसकी बहन होलिका अग्नि में जल कर स्वाहा हो गयी लेकिन प्रह्लाद फिर बच गया। दूतों से यह समाचार सुन कर हिरण्यकश्यपु बहुत क्रोधित हुआ और उसने प्रह्लाद को अपनी सभा में बुलवाया।

हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से पूछा- ” अरे दुष्ट ! जिसके बल पर तू ऐसी बहकी बहकी बातें करता है, तेरा  वह  ईश्वर कहाँ है? वह यदि सर्वत्र है तो मुझे इस खम्बे में क्यों नहीं दिखाई देता ? “

तब प्रह्लाद ने कहा – ” मुझे तो वे प्रभु खम्बे में भी दिखाई दे रहे हैं। “

यह सुनकर हिरण्यकशिपु क्रोध से आगबबूला हो गया और हाथ में तलवार लेकर सिंहासन से कूद पड़ा और बड़े जोर से उस खम्बे में एक घूँसा मारा। उसी समय उस खम्बे से बड़ा भयंकर शब्द हुआ और उस खम्बे को तोड़ कर एक विचित्र प्राणी बाहर निकलने लगा जिसका आधा शरीर सिंह का और आधा शरीर मनुष्य का था।  यह भगवान श्रीहरि का नृसिंह अवतार था। उनका रूप बड़ा भयंकर था। उनकी तपे हुए सोने के समान पीली पीली आँखें थीं, उनकी दाढ़ें बड़ी विकराल थीं और वे भयंकर स्वर से गर्जन कर रहे थे। 

उनके निकट जाने का साहस किसी में नहीं हो रहा था। यह देख कर हिरण्यकश्यपु सिंघनाद करता हुआ हाथ में गदा लेकर नृसिंह भगवान पर टूट पड़ा। तब भगवान भी हिरण्यकश्यपु के साथ कुछ देर तक युद्ध लीला करते रहे और अंत में उसे झपट कर दबोच लिया और उसे सभा के दरवाजे पर ले जाकर अपनी जांघों पर गिरा लिया और खेल ही खेल में  अपने नखों से उसके कलेजे को फाड़कर उसे पृथ्वी पर पटक दिया।

फिर वहाँ उपस्थित अन्य असुरों और दैत्यों को खदेड़ खदेड़ कर मार डाला। उनका क्रोध बढ़ता ही जा रहा था। वे हिरण्यकश्यपु के ऊंचे सिंघासन पर बैठ गए।

 उनकी क्रोधपूर्ण मुखाकृति को देख कर किसी को भी उनके पास जाकर उनको प्रसन्न करने का साहस  नहीं हो रहा था।हिरण्यकश्यपु की मृत्यु का समाचार सुन कर उस सभा में ब्रह्मा, इन्द्र, शंकर, सभी देवगण, ऋषि-मुनि,  सिद्ध, नाग, गन्धर्व आदि पहुँचे और थोड़ी दूरी पर स्थित होकर सभी ने हाथ जोड़ कर भगवान की  अलग-अलग से स्तुति की पर भगवान नृसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ।

 इसके बाद देवताओं ने माता लक्ष्मी को उनके निकट भेजा पर भगवान के उग्र रूप को देखकर वे भी भयभीत हो गयीं।

 तब ब्रह्मा जी ने प्रह्लाद से कहा – ” बेटा ! तुम्हारे पिता पर ही तो भगवान क्रुद्ध हुए थे, अब तुम्ही जाकर उनको शांत करो। “

तब प्रह्लाद भगवान के समीप जाकर हाथ जोड़कर साष्टांग भूमि पर लोट गए और उनकी स्तुति करने लगे। बालक प्रह्लाद को अपने चरणों में पड़ा देख कर भगवान दयालु हो गए और उसे उठा कर गोद में बिठा लिया और प्रेमपूर्वक बोले –” वत्स प्रह्लाद ! तुम्हारे जैसे भक्त को यद्यपि किसी वस्तु की अभिलाषा नहीं रहती फिर भी तुम केवल एक मन्वन्तर तक मेरी प्रसन्नता के लिए इस लोक में दैत्याधिपति के समस्त भोग स्वीकार कर लो।

भोग के द्वारा पुण्यकर्मो के फल और निष्काम पुण्यकर्मों के द्वारा पाप का नाश करते हुए समय पर शरीर का त्याग करके समस्त बंधनों से मुक्त होकर तुम मेरे पास आ जाओगे। देवलोक में भी लोग  तुम्हारी कीर्ति का गान करेंगे। “

यह कहकर भगवान नृसिंह वहीँ अंतर्ध्यान हो गए। विष्णु पुराण में कहा गया है कि ” भक्त प्रह्लाद की कहानी को जो भी सुनते हैं उनके पाप  नष्ट हो  जाते हैं।

होलिका दहन, जिसे छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है। होलिका दहन का मुहूर्त किसी त्यौहार के मुहूर्त से ज्यादा महवपूर्ण और आवश्यक है। यदि किसी अन्य त्यौहार की पूजा उपयुक्त समय पर न  की जाये तो मात्र पूजा के लाभ से वञ्चित होना पड़ेगा परन्तु होलिका दहन की पूजा अगर अनुपयुक्त  समय पर हो जाये तो यह दुर्भाग्य और पीड़ा देती है। 

इस बार होली पर कई योग बन रहे हैं। 

इस साल होली पर ध्रुव योग, अमृत योग, सिद्धि योग बन रहे हैं। ये तीनों योग बहुत शुभ माने जाते हैं। 

फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक होलाष्टक माना जाता है, जिसमें शुभ कार्य वर्जित रहते  हैं। पूर्णिमा के दिन होलिका-दहन किया जाता है। इसके लिए मुख्यतः दो नियम ध्यान में रखने चाहिए  पहला- उस दिन 'भद्रा' नहीं होनी चाहिए। दूसरी बात- उस दिन सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्तों में  पूर्णिमा तिथि होनी चाहिए।

 होलिका दहन से पहले होली का पूजन किया जाता है। पूजा सामग्री में एक लोटा गंगाजल यदि  उपलब्ध न हो तो ताजा जल भी लिया जा सकता है, रोली, माला, रंगीन अक्षत, गंध के लिये धूप या  अगरबत्ती, पुष्प, गुड़, कच्चे सूत का धागा, साबूत हल्दी, मूंग, बताशे, नारियल एवं नई फसल के अनाज  गेंहू की बालियां, पके चने आदि। पूजा सामग्री के साथ होलिका के पास गोबर से बल्ले रखे जाते  हैं।होलिका दहन के शुभ मुहूर्त के समय चार मालाएं अलग से रख ली जाती हैं। जो मौली, फूल, गुलाल, ढाल और खिलौनों से बनाई जाती हैं। इसमें एक माला पितरों के नाम की, दूसरी श्री हनुमान जी के लिये, तीसरी शीतला माता, और चौथी घर परिवार के नाम की रखी जाती है। इसके पश्चात पूरी श्रद्धा  से होली के चारों और परिक्रमा करते हुए कच्चे सूत के धागे को लपेटा जाता है। होलिका की परिक्रमा  तीन या सात बार की जाती है। इसके बाद शुद्ध जल सहित अन्य पूजा सामग्रियों को एक एक कर होलिका को अर्पित किया जाता है। पंचोपचार विधि से होली का पूजन कर जल से अर्घ्य दिया जाता है। 

राशिनुसार होली की पूजा

मेष राशि –मेष राशि वाले होलिका दहन खैर या खादिर की लकड़ी से करें, साथ में गुड़ की आहुति भी  दें। ऐसा करने से आपको मानसिक परेशानियों से निजात मिलेगा।

वृष राशि – इस राशि के जातक होलिका दहन गूलर टा ऊमर की लकड़ी से करें और चीनी से आहति दें। ऐसा करने से सभी कार्यों में आने वाली बाधाएं दूर होंगी।

मिथुन राशि – मिथुन राशि वाले अपामार्ग या लटजीरा और गेंहू की बाली से होलिका दहन करें, साथ ही  कपूर से आहुति दें। ऐसा करने से आपकी धन से जुड़ी परेशानियों का समाधान होगा।

कर्क राशि – कर्क राशि वाले पलाश की लकड़ी से होलिका दहन करें और लोबान से आहुति दें। ऐसा करने से इस राशि के जातकों को नौकरी और करियर से जुड़ा शुभ सामाचार मिलेगा।

सिंह राशि – सिंह राशि वाले आक या मदार की लकड़ी से होलिका दहन करें और गुड की आहुति देकर पितरों को याद करना न भूलें। ऐसा करने से व्यापार से जुड़ी आपकी समस्त परेशानियां दूर हो जाएंगी।

कन्या राशि – कन्या राशि के जातक अपामार्ग की लकड़ी से होलिका दहन करें, कपूर की आहुति दें और साथ ही सभी देवी देवताओं का स्मरण करें। ऐसा करने से कार्यक्षेत्र में आने वाली सभी बाधाएं दूर  होंगी।

तुला राशि – तुला राशि वाले जातक होलिका दहन में गूलर की लकड़ी जलाएं और कपूर की आहुति दें। ऐसा करने से जीवन की परेशानियों से निजात मिलेगी।

वृश्चिक राशि – इस राशि वाले खैर की लकड़ी से हालिका दहन करें और गुड़ की आहुति दें। ऐसा करने  से आपको लाभ मिलेगा।

धनु राशि – धनु राशि वाले पीपल की लकड़ी से होलिका दहन करें और जौ व चना की आहुति दें। साथ में भगवान विष्णु की पूजा भी करें। ऐसा करने से पदोन्नति में आने वाली बाधाएं दूर होंगी।

मकर राशि- वाले शमी की लकड़ी से होलिका दहन करें और तिल की आहुति दें। ऐसा करने से आपके जीवन में आने वाली परेशानियां दूर होंगी।

कुंभ राशि – आप शमी की लकड़ी से होलिका दहन करें और तिल की आहुति दें। ऐसा करने से कर्ज आदि की समस्या से यदि परेशान हैं तो उससे मुक्ति पा सकेंगे।

मीन राशि- मीन राशि वाले जातक पीपल की लकड़ी से होलिका दहन करें और जौ व चना की आहुति  दें। इसके बाद पितरों का आभार व्यक्त करें। ऐसा करने से आपकी सभी स्वास्थ्य से संबंधित परेशानियां दूर हो जाएंगी।

होलिका दहन का बहुत महत्व है। मान्यता है कि इस दिन समाज की समस्त बुराईयों का अंत होता है। 

यह बुराइयों पर अच्छाइयों की विजय का सूचक है। 

अब आपको कुछ ऐसे उपाय बताते हैं जिन्हें करने से आपको सुख-शांति,लाभ की प्राप्ति होगी।

 * होलिका दहन के दिन शरीर में उबटन लगा कर उसे होलिका में जलाने से नकारात्मक यानी निगेटिव शक्तियां दूर होती हैं।

 * घर, दुकान और कार्यस्थल की नजर उतार कर उसे होलिका में दहन करने से लाभ होता है।

 * होलिका दहन के बाद जलती अग्नि में नारियल दहन करने से नौकरी की बाधाएं दूर होती हैं।

 * जो लोग लगातार बीमारी से परेशान रहते हैं उन्हें होलिका दहन के बाद बची राख मरीज के सोने वाले स्थान पर छिड़क देना चाहिए इससे रोग से मुक्ति मिल सकती है। 

 * किसी को कार्य में सफलता प्राप्ति में अड़चन आ रही हो तो होलिका में नारियल, पान तथा सुपारी चढ़ानी चाहिए।

 * घर में निरंतर झगड़ा या कलह होता हो तो उससे मुक्ति पाने और सुख-शांति के लिए होलिका की अग्नि में जौ का आटा चढ़ाना चाहिए।

 * होलिका दहन के दूसरे दिन ठंड़ी राख लेकर उसे लाल रुमाल में बांधकर पैसों के स्थान पर रखने से व्यर्थ में होने वाले खर्च रुक जाते हैं।

 *विवाह में देरी हो रही हो या अड़चन आ रही हो तो होली के दिन सुबह एक पान के पत्ते पर समूची  सुपारी और हल्दी की गांठ लेकर शिवलिंग पर चढ़ाएं और फिर बिना पलटे घर आ जाएं। अगले दिन भी यही प्रयोग करें। आशुतोष की कृपा से इच्छा पूरी होगी।

 * होली के दिन आधी रात को किसी पीपल वृक्ष के नीचे घी का दीपक जलाने और सात परिक्रमा  करने से सारी बाधाएं दूर होती हैं।

 * वास्तुदोषों से मुक्ति पाने के लिए होली दहन के अगले दिन सर्वप्रथम अपने इष्ट देव को गुलाल अर्पित कर अपने निवास के ईशान कोण पर पूजन कर गुलाल चढ़ायें। पूर्व और उत्तर दिशा जहां पर मिलती हैं उस स्थान को ईशान दिशा कहते हैं यह उपाय करने से आपका घर वास्तुदोष से मुक्त हो जायेगा।

 * यदि किसी के उपर कोई भय का साया है तो वह होली पर एक नारियल, एक जोड़ा लौंग व पीली सरसों इन सभी वस्तुओं को लेकर पीडि़त व्यक्ति के उपर से 21 बार उतार कर होली की अग्नि में डाल दें। सारा दुष्प्रभाव समाप्त हो जायेगा।

 * यदि आपको बार-बार आर्थिक हानि का सामना करना पड़ रहा है तो आप होलिका दहन की शाम को अपने मुख्यद्वार की चौखट पर दोमुखी आटे का दीपक बनायें। चौखट पर थोड़ा सा गुलाल छिड़ककर दीपक जला कर रख देना चाहिए। दीपक जलने के साथ ही मानसिक रूप से आर्थिक हानि दूर होने के लिए निवेदन करना चाहिए। 

 * होलिका दहन की राख को घर के चारों ओर और दरवाजे पर छिड़कें। ऐसा करने से घर में नकारात्मक शक्तियों का घर में प्रवेश नहीं होता है। माना जाता है कि इससे घर में सुख-समृद्धि आती है।


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