Saturday, April 3, 2021

क्या महाभारत युद्ध में हुआ था परमाणु अस्त्रों का प्रयोग ?

 


ब्रह्मास्त्र का निर्माण ब्रह्मा जी ने किया था. इसको राक्षसों के विनाश के लिए बनाया गया था। उनके नाम से ही इसे ब्रहमास्त्र के रूप में जाना जाता है। रामायण और महाभारत युद्ध में भी ब्रह्मास्त्रों का प्रयोग किया गया था। आपने उस समय के युद्ध के प्रसंगों में इन अस्त्रों के प्रयोग के समय किसी को प्रयोगकर्ता को यह सावधान करते पाया होगा कि इसका प्रयोग मत करो इससे बड़ा विनाश होगा। वैज्ञानिकों ने भी अपने प्रयोगों में पाया है कि ब्रह्मास्त्रों का प्रयोग बहुत पहले से होता आया है। हमारे मिसाइल मैन नाम से प्रसिद्ध महान वैज्ञानिक और हमारे देश के राष्ट्रपति रहे एपीजे अब्दुल कलाम ने भी माना  था कि महाभारत और रामायण काल में भी परमाणु अस्त्रों का प्रयोग हुआ था जो उस वक्त ब्रह्मास्त्र के रूप में जाने जाते थे। कहते हैं कि ब्रह्मास्त्र का पहला प्रयोग महर्षि विश्वामित्र ने वसिष्ठ जी पर किया था। वैज्ञानिकों ने अपने कई शोधों में पाया है कि महाभारत युद्ध में कई तरह के ब्रह्मास्त्रों या परमाणु अस्त्रों का प्रयोग किया गया था। रामायण और महाभारत काल में जिन ब्रह्मास्त्रों का इस्तेमाल किया गया वे आज के परमाणु अस्त्रों से भी ज्यादा ऊर्जा का सृजन करने वाले और उनसे कई गुना ज्यादा विनाशकारी थे। कहते हैं जब ब्रह्मास्त्र छोड़ा जाता था तो बहुत ऊर्जा उत्पन्न होती थी लगता था एक साथ जैसे सैकडों ज्वालामुखियों में विस्फोट हो गया हो। इनकी ऊर्जा सूर्य की ऊर्जा से भी बहुत अधिक होती थी। 

अमेरिका के जे राबर्ट ओपनहाइमर और डॉक्टर वर्तक की रिसर्च में ब्रह्मास्त्र को परमाणु हथियार माना गया। ऐसा इसलिए क्योंकि महाभारत में लाखों लोगों के एक साथ मारे जाने का उल्लेख है और यह एक परमाणु हथियार से ही संभव था। ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मास्त्र एक दैवीय हथियार था। माना जाता है कि यह अचूक और सबसे भयंकर अस्त्र था।

ओपनहीमर ने गीता और महाभारत का गहन अध्ययन किया था। उन्होंने महाभारत में बताए गए ब्रह्मास्त्र की मारक क्षमता पर रिसर्च किया और अपने मिशन को नाम दिया था ट्रिनिटी अर्थाच त्रिदेव। इस रिसर्च के बाद वैज्ञानिकों ने माना कि महाभारत में परमाणु अस्त्रों का प्रयोग हुआ था।

जे रॉबर्ट के साथ 1939 से 1945 के बीच वैज्ञानिकों के एक दल ने अनुसंधान किया था। पुणे के पद्माकर विष्णु वर्तक ने भी अपने अनुसंधान के आधार पर कहा था कि महाभारत के समय जो ब्रह्मास्त्र इस्तेमाल किया गया था, वह परमाणु बम के समान ही था।

प्राचीन या पौराणिक काल में 5 सबसे महाप्रलयंकारी अस्त्र थे। येथे ब्रह्मास्त्र, नारायणास्त्र, पाशुपतास्त्र वज्र और सुदर्शन चक्र।

ब्रह्मास्त्र के प्रभाव का वर्णन महाभारत के इस श्लोक में किया गया है-

तदस्त्रं प्रजज्वाल महाज्वालं तेजोमंडल संवृतम।

सशब्द्म्भवम व्योम ज्वालामालाकुलं भृशम।

चचाल च मही कृत्स्ना सपर्वतवनद्रुमा।। महाभारत ।। 8-10-14 ।। अर्थात ब्रह्मास्त्र छोड़े जाने के बाद भयंकर वायु जोरदार थपेड़े मारने लगी। सहस्रों उल्का आकाश से गिरने लगे। प्राणियों के लिए भयंकर महाभय उत्पन्न हो गया। आकाश में बड़ा शब्द हुआ। आकाश जलने लगा। पर्वत, अरण्य, वृक्षों के साथ पृथ्वी हिल गई।

ब्रह्मास्त्र एक दैवीय हथियार था। माना जाता है कि यह अचूक और सबसे भयंकर अस्त्र था। जो व्यक्ति इस अस्त्र को छोड़ता था, वह इसे वापस लेने की क्षमता भी रखता था, लेकिन अश्वत्थामा को इसे वापस लेने का तरीका पता नहीं था। रामायण और महाभारतकाल में ये अस्त्र गिने-चुने योद्धाओं के पास थे।

 

सौप्तिक पर्व में ऐषीक पर्व नामक एक उपपर्व है। अश्वत्थामा, कृतवर्मा और कृपाचार्य-कौरव पक्ष के शेष इन तीन महारथियों का वन में विश्राम, तीनों की आगे के कार्य के विषय में मत्रणा, अश्वत्थामा द्वारा अपने क्रूर निश्चय से कृपाचार्य और कृतवर्मा को अवगत कराना, तीनों का पाण्डवों के शिविर की ओर प्रस्थान, अश्वत्थामा द्वारा रात्रि में पाण्डवों के शिविर में घुसकर समस्त सोये हुए पांचाल वीरों का संहार, द्रौपदी के पुत्रों का वध, द्रौपदी का विलाप तथा द्रोणपुत्र के वध का आग्रह, भीम द्वारा अश्वत्थामा को मारने के लिए प्रस्थान करना और श्रीकृष्ण अर्जुन तथा युधिष्ठिर का भीम के पीछे जाना, गंगातट पर बैठे अश्वत्थामा को भीम द्वारा ललकारना, अश्वत्थामा द्वारा ब्रह्मास्त्र का प्रयोग, अर्जुन द्वारा भी उस ब्रह्मास्त्र के निवारण के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग, व्यास की आज्ञा से अर्जुन द्बारा ब्रह्मास्त्र का उपशमन, अश्वत्थामा की मणि लेना और अश्वत्थामा का मानमर्दित होकर वन में प्रस्थान आदि विषय इस पर्व में वर्णित है।

ब्रह्मास्त्र अचूक और एक विकराल अस्त्र है। यह शत्रु का नाश करके ही छोड़ता है। इसका काट केवल दूसरे ब्रह्मास्त्र से ही हो सकता है, अन्यथा नहीं। ये वे आयुध हैं, जो मन्त्र से चलाये जाते हैं। ये दैवी हैं। प्रत्येक शस्त्र पर भिन्न-भिन्न देव या देवी का अधिकार होता है और मन्त्र-तन्त्र के द्वारा उसका संचालन होता है। वस्तुत: इन्हें दिव्य तथा मान्त्रिक-अस्त्र भा कहते हैं।

दो ब्रह्मास्त्रों के आपस में टकराने से प्रलय की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इससे समस्त पृथ्वी के समाप्त होने का भय रहता है। महाभारत के युद्ध में ब्रह्मास्त्र का बड़ा ही रोचक वर्णन आया है, जो इस प्रकार से है-

'महाभारत का युद्ध अठारह दिन तक चला। अश्वत्थामा को जब दुर्योधन के अधर्म-पूर्वक किये गये वध के विषय में पता चला, तो वे क्रोध से अंधे हो गये। उन्होंने शिविर में सोते हुए सभी पांडव पुत्रों का वध कर दिया। द्रौपदी को जब इसका पता चला तो उसने अनशन कर दिया और कहा कि वह अनशन तभी तोड़ेगी, जबकि अश्वत्थामा के मस्तक पर सदैव बनी रहने वाली मणि उसे प्राप्त होगी। कौरव-पांडवों के युद्ध में अश्वत्थामा ने अर्जुन पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया था। शिव-प्रदत्त पाशुपत अस्त्र से अर्जुन ने ब्रह्मास्त्र को निरस्त कर दिया था।  पांडवों को जड़-मूल से नष्ट करने के लिए अश्वत्थामा ने गर्भवती उत्तरा पर भी वार किया था। अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र छोड़ा, प्रत्युत्तर में अर्जुन ने भी छोड़ा। अश्वत्थामा ने पांडवों के नाश के लिए छोड़ा था और अर्जुन ने उसके ब्रह्मास्त्र को नष्ट करने के लिए। नारद तथा व्यास के कहने से अर्जुन ने अपने ब्रह्मास्त्र को वापस कर लिया पर अश्वत्थामा ने कहा कि उसे ब्रह्मास्त्र वापस लेने की कला नहीं आती और उसने अपना ब्रह्मास्त्र अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा का गर्भ नष्ट करने के लिए छोड़ दिया। कृष्ण ने अश्वत्थामा से कहा- 'उत्तरा को परीक्षित नामक बालक के जन्म का वर प्राप्त है। उसका पुत्र होगा ही। यदि तेरे शस्त्र-प्रयोग के कारण मृत हुआ तो भी मैं उसे जीवनदान करूंगा। वह भूमि का सम्राट होगा और तू? नीच अश्वत्थामा! तू इतने वधों का पाप ढोता हुआ तीन हज़ार वर्ष तक निर्जन स्थानों में भटकेगा। तेरे शरीर से सदैव रक्त की गंध आती रहेगी। तू अनेक रोगों से पीड़ित रहेगा।' जन्म से ही अश्वत्थामा के मस्तक में एक अमूल्य मणि थी, जो कि उसे दैत्य, दानव, अस्त्र-शस्त्र आदि व्याधियों से निर्भय रखती थी। वही मणि द्रौपदी ने मांगी थी। व्यास तथा नारद के कहने से उसने वह मणि द्रौपदी के लिए दे दी। उल्लेख है कि उत्तरा का  गर्भ नष्ट हो इससे पहले कृष्ण ने अपने प्रभाव से गर्भ के आस पास ऐसा सुरक्षा कवच बना दिया जिससे अश्वत्थामा का ब्रह्मास्त्र निष्फल हो गया।

राम रावण युद्ध के दौरान भी ब्रह्मास्च्र का प्रयोग हुआ था। रावण का पुत्र मेघनाद ब्रह्म विद्या में निपुण था। इस विद्या में वह रावण से भी कहीं बढ़कर था। विस्‍फोटक व विंध्‍वसक अस्‍त्रो का तो इस युद्ध में खुल कर प्रयोग हुआ जिसमें ब्रह्मास्‍त्र सबसे खतरनाक था। इन्‍द्र ने शंकर से राम के लिए दिव्‍यास्‍त्र और पशुपतास्‍त्र मांगे थे। इन अस्‍त्रों को देते हुए शंकर ने अगस्त्य को चेतावनी देते हुए कहा, ‘अगस्‍त्‍य तुम ब्रह्मास्‍त्र के ज्ञाता हो और रावण भी। कहीं अणुयुद्ध हुआ तो वर्षों तक प्रदूषण रहेगा। जहां भी विस्‍फोट होगा, वह स्‍थान वर्षों तक निवास के लायक नहीं रहेगा। इसलिए पहले युद्ध को मानव कल्‍याण के लिए टालना ?' लेकिन अपने-अपने अहं के कारण युद्ध टला नहीं। ब्रह्माशास्‍त्र के प्रस्‍तुत परिणामों से स्‍पष्‍ट हो जाता है कि ब्रह्मास्‍त्र परमाणु बम ही था।

राम द्वारा सेना के साथ लंका प्रयाण के समय द्रुमकुल्‍य देश के सम्राट समुद्र ने रावण से मैत्री होने के कारण राम को अपने देश से मार्ग नहीं दिया तो राम ने अगस्‍त्‍य के अमोध अस्‍त्र (ब्रह्मास्‍त्र) को छोड़ दिया। जिससे पूरा द्रुमकुल्‍य देश ही नष्‍ट हो गया। यह अमोध अस्‍त्र हाइड्रोजन बम अथवा एटम बम ही था। मेघनाद की वेधशाला में शीशे (लेड) की भट्‌टियां थीं। जिनमें कोयला और विद्युत धारा प्रवाहित की जाती थी। इन्‍हीं भट्‌टियों में परमाणु अस्‍त्र बनते थे और नाभिकीय विखण्‍डन की प्रक्रिया की जाती थी।

 महाभारत में पांडवों और कौरवों के बीच कुरुक्षेत्र का युद्ध इतिहास में अपनी अलग ही छाप छोड़ता है। यह दोनों ही युद्ध कोई साधारण युद्ध नहीं थे। इसमें ब्रह्मास्त्र जैसे अस्त्रों का प्रयोग हुआ। रामायण और महाभारत दोनों युद्धों में विनाश के अस्त्र- शस्त्रों का जम कर जिन्हें भीषण विध्वंस मचानेवाला माना जाता है। इससे यह ज्ञात होता है कि आज जो अणु अस्त्र पाये जाते हैं उनका आवष्कार हजारों वर्ष पहले ही हो गया थ।

यह भी पता चलता है कि महाभारत या रामायण कालीन ब्रह्मास्त्र मंत्र बल से संचालित होते थे और प्रयोग करनेवाला चाहे तो उन्हें वापस भी ले सकता था।

महाभारत में भीम के पौत्र बरबरीक को भगवान शिव ने तीन बाण दिए थे, जिसने उसे महाभारत के युद्ध का सबसे ताकतवर योद्धा बना दिया। कार्य क्षमता- निशाना साधने के बाद, ये साधे निशाने को ही भेदते हैं। ये कभी निशाना नहीं चूकते।

पाशुपतास्त्र भगवान शिव की आराधना से प्राप्त किया जाता था। इसे रोकने की शक्ति ब्रह्मास्त्र में थी। यह लक्ष्य को पूरी तरह से तबाह कर देता था।

 

देवेंद्र इंद्र का अस्त्र इंद्रास्त्र ऐसा था जिससे एक साथ कई लोगों को मारा जा सकता है। यह एक साथ अनेकों बाणों की वर्षा कर सकता था।

अग्नि देव का अस्त्र आग्नेयास्त्र था  इस अस्त्र से ऐसी ज्वाला और आग निकलती थी, जिसे बुझाया नहीं जा सकता।

भगवान विष्णु के सर्वप्रमुख अस्त्र ने कई बार सुदर्शन चक्र का नाम आता है।  इसका प्रयोग कई रूपों में किया जाता था। यह केवल भगवान विष्णु की आज्ञा का पालन करता था और लक्ष्य को पूरी तरह तबाह कर देता था।

इंद्र का एक और अस्त्र था। महर्षि दधिचि की हड्डियों से बने इस शस्त्र से बिजली निकलती थी। यह शत्रु को  ना सिर्फ रोकती बल्कि नष्ट कर देता था।

ब्रहामास्त्र  भगवान ब्रह्मा द्वारा बनाया अस्त्र माना जाता है जिसका प्रयोग महाभारत युद्ध में हुआ था। राम-रावण युद्ध में इसका प्रयोग मेघनाद ने  राम पर भी किया था। यह लक्ष्य का संपूर्ण विनाश करने में सक्षम था। इससे एक समय पर कई तरह का विनाश किया जा सकता था। कल्युग समानतापरमाणु बम इसे देख कर लगता है कि सूर्य के लिए कुछ भी नया नहीं। वो यह सब पहले भी देख चुका है।

महाभारत में पांडवों और कौरवों के बीच कुरुक्षेत्र का युद्ध इतिहास में अपनी अलग ही छाप छोड़ता है। यह दोनों ही युद्ध कोई साधारण युद्ध नहीं थे। दैवीय शक्तियों से युक्त यह अस्त्र-शस्त्र आज भी काफी प्रासंगिक हैं। दोनों ही युद्धों में विनाश के उन शस्त्रों का प्रयोग हुआ, जो भीषण विध्वंस का कारण बने आज के विनाशकारी परमाणु अस्त्र भी पौराणिक के अस्त्रों जैसे ही हैं।

ब्रह्मास्त्र ऐसा दिव्यास्त्र था जिसे एक बार चलाने पर विपक्षी प्रतिद्वन्दी के साथ साथ विश्व के बहुत बड़े भाग का विनाश हो जाता था।

            यदि एक ब्रह्मास्त्र भी शत्रु के खेमें पर छोड़ा जाए तो ना केवल वह उस खेमे को नष्ट करता है बल्कि उस पूरे क्षेत्र में १२ से भी अधिक वर्षों तक अकाल पड़ता है। और यदि दो ब्रह्मास्त्र आपस में टकरा दिए जाएं तब तो मानो प्रलय ही हो जाता है। इससे समस्त पृथ्वी का विनाश हो जाएगा।

पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के सपने को इसरो के डीआरडीओ ने स्क्रैमजेट इंजन तकनीक का प्रदर्शन करके वास्तविकता में बदलने की उम्मीद जगायी है। हाइपरसोनिक स्क्रैमजेट इंजन की तकनीक आने के बाद भविष्य में अपने देश में ब्रह्मास्त्र और रावण द्वारा प्रयोग किए गए पुष्पक विमान को विकसित करने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। डीआरडीओ के एक पूर्व प्रमुख के अनुसार उन्हें यह सपना पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम दिखाया था।

 

ब्रह्मास्त्र के बारे में यह कहा जाता है कि इस अस्त्र  में इतनी शक्ति थी कि  इससे पूरी पृथ्वी तबाह हो सकती थी। महाभारत में इसका उल्लेख इस तरह मिलता है-अत्यंत  शक्तिशाली  विमान  से एक शक्ति युक्त  अस्त्र  प्रक्षेपित  किया  गयाधुएँ के साथ अत्यंत  चमकदार ज्वाला , जिसकी  चमक दस हजार सूयों की चमक के बराबर थी, तीव्र उजाले का एक स्तंभ  उठावह वज्र के समान  अज्ञात अस्त्र  साक्षात् मृत्यु का भीमकाय दूत था, जिसने वृष्ण और अंधक के समस्त वंश को  भस्म कर दिया। उनके जले शव पहचानने  योग्य नहीं रह गये थे ।

महाभारत के कई  सालों पहले गुरु विश्वामित्र ने ब्रम्हास्त्र का  उपयोग कीया  था | जब गुरु विश्वामित्र और गुरु वशिष्ठ मे कामधेनु गाय के लिए युद्ध हुवा तब विश्वामित्र ने गुरु वशिष्ठ पे ब्रम्हास्त्र चलाया था | तब गुरु वशिष्ठ ने ब्रह्मांडास्त्र का उपयोग करके ब्रम्हास्त्र को निरस्त्र  कर दिया  था |

ब्रम्हास्त्र का उपयोग महाभारत काल  में तो हुआ ही था , साथ  ही रामायण काल  मे भी लक्ष्मण इसका उपयोग करना चाहते लेकिन राम के कहने पर उन्होंने ऐसा नहीं किया| श्रीराम ने  कहा था कि  इसके उपयोग से पूरी लंका तबाह हो जाएगी इसलीए इसका उपयोग करना सही नहीं है।

आधुनिक युग के वैज्ञानिक रॉबर्ट जे ओपेनहाइमर ने परमाणु बम का आविष्कार किया था| ओपेनहाइमर सिर्फ वैज्ञानिक ही नहीं वे संस्कृत भाषा के अच्छे ज्ञाता भी थे| उन्होंने महाभारत और भागवत गीता का गहन अध्ययन किया था|  ओपेनहाइमर को  ब्रह्मास्त्र के ज्ञान से ही परमाणु बम बनाने की बात सूझी थी| अपने परमाणु बम के योजना का नाम ट्रिनिटी अर्थात त्रिदेव पर रखा |16 जुलाई 1945 को परमाणु बम का पहला  सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया था इससे जो नतीजे सामने आये वो सभी ब्रम्हास्त्र के प्रयोग से होने वाले नतीजों के मिलते थे।

हड़प्पा और मोहनजो-दारो में पुरातत्व अभियानों के दौरान  एक स्थान पर कई कंकाल पाए गए थे। वैज्ञानिक शोध के बाद, यह प्रमाणित हुआ कि अचानक हुई अत्यधिक असमान्य गर्मी के निर्माण के कारण उनकी मृत्यु हो गई।ऐसी गर्मी केवल परमाणु प्रतिक्रिया से ही बनती है। उन कंकालों में रेडिएशन के प्रमाण मिले हैं| और वहां कुछ ईटें पिघली

भारत में हड़प्पा और मोहनजोदाड़ो जैसी कई ऐतिहासिक स्थल मिले हैं जहां पे विकिरण के प्रमाण मिले है |

 कहा तो यहां तक  जाता है कि जिस कुरुक्षेत्र में महाभारत का युद्ध हुआ था वहां की धरती अब भी लाल है। हजारों योद्धाओं का  खून वहां  बहा था, वे मारे गये थे। आज से लगभग 5,300 वर्ष पूर्व महाभारत का युद्ध हुआ था। उस दौरान गुरु द्रोण के पुत्र अश्‍वत्थामा ने भगवान कृष्ण के मना करने के बावजूद ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया था जिसके चलते युद्ध क्षेत्र में इतना जोर का धमाका हुआ था कि गर्भ में पल रहे शिशुओं तक की मौत हो गई थे। इन सारे उदाहरणों और प्रमाणों से यह पता चलता है कि महाभारत काल के ब्रह्मास्त्र जैसे अस्त्र आज के परमाणु  हथियारों से कहीं बहुत अधिक घातक थे।

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