Wednesday, April 7, 2021

ओरछा जहां आज भी है राम राजा सरकार का राज


अगर आपसे यह कहा जाये कि अभी कलियुग में भी राजा राम एक जगह राजा के रूप में राज करते हैं  पर वह जगह अयोध्या नहीं है तो आपको शायद ही विश्वास हो। पर यह सच है कि राम राजा सरकार आज भी एक जगह राजा के रूप में विराजते हैं और उन्हें दिन में पांच बार सलामी दी जाती है। यह जगह है मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ जिले का ओरछा टाउन। कथा प्रख्यात है कि 16 वीं शताब्दी में ओरछा की महारानी गणेश कुंवरि राम राजा को अयोध्या से लायी थीं और तब से राम राजा ओरछा में विराजते हैं पूरी राजकीय भव्यता के साथ यहां विराजते हैं। यहां उनकी ही सत्ता चलती है इसीलिए उनको ओरछा में राम राजा सरकार के रूप में ही जाना और पुकारा जाता है।  21 दिन के तप के बाद रानी गणेश कुंवरि राम राजा को अयोध्या ले लायी थीं। राम ने अयोध्या से ओरछा आने के लिए तीन शर्तें रखी थीं जिन्हें पूरा कर के ही रानी राम को ओरछा लायी थीं।

 उत्तरप्रदेश  के  झांसी  से  ओरछा की  दूरी  लगभग  14 किलोमीटर  है। ओरछा की स्थापना 15वीं शताब्दी में रुद्र प्रताप सिंह जू बुन्देला ने की थी। ओरछा की ख्याति देश में जिस एक मंदिर को लेकर है वह है राम राजा सरकार का मंदिर। यह मंदिर भगवान राम की मूर्ति के लिए बनवाया गया था, लेकिन मूर्ति  की स्थापना वहां नहीं कि जा सकी क्योंकि मूर्ति जहां लाकर रख दी गयी थी वहां से हिली ही नहीं। 

इस मूर्ति को मधुकर शाह बुन्देला की रानी गनेश कुंवरि अयोध्या से लाई थीं। चतुर्भुज मंदिर बनने से पहले रानी पुष्य नक्षत्र में अयोध्या से पैदल चल कर बाल स्वरूप भगवान राम लला को ओरछा लायीं लेकिनरात्रि हो जाने के कारण भगवान राम को कुछ समय के लिए महल के भोजन कक्ष में स्थापित किया गया। लेकिन मंदिर बनने के बाद कोई भी मूर्ति को उसके स्थान से हिला नहीं पाया। इसे ईश्वर का चमत्कार मानते हुए महल को ही मंदिर का रूप दे दिया गया और इसका नाम रखा गया राम राजा मंदिर। आज इस महल के चारों ओर शहर बसा है और राम नवमी पर यहां हजारों श्रद्धालु इकट्ठा होते हैं। भगवान राम को यहां भगवान मानने के साथ का राजा भी माना जाता है, क्योंकि उस मूर्ति का चेहरा मंदिर की ओर न होकर महल की ओर है। आज भी भगवान राम को राजा के रूप में राम राजा सरकारकी तरह ओरछा के मंदिर में पूजा जाता है और उन्हें मध्यप्रदेश पुलिस के गार्डों द्वारा सलामी दी जाती है। ओरछा में ४०० वर्ष पूर्व भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ था और तब से आज तक  श्रीराम को राजा के रुप में पूजा जाता है। 

भगवान राम के अयोध्या से ओरछा आने की कहानी इस प्रकार है। एक दिन कृष्ण भक्त ओरछा नरेश मधुकरशाह ने अपनी रानी गणेश कुंवरि से कृष्ण दर्शन की इच्छा से वृंदावन की यात्रा पर चलने को कहा। रानी गणेश कुंवरि राम भक्त थीं। उन्होंने वृंदावन जाने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि वे तो राम के दर्शन के लिए अयोध्या जाना चाहती हैं। अपनी आज्ञा की अवहेलना से राजा क्रोधित हो गये। उन्होंने रानी से कहा कि अगर वे सच्ची रामभक्त हैं तो फिर अयोध्या जाकर अपने राम को ओरछा ले आयें। रानी गणेश कुंवरि ने अयोध्या जाकर सरयू नदी के किनारे लक्ष्मण किले के पास अपनी कुटी बनायी और वहीं राम की तपस्या प्रारंभ कर दी। यह उन दिनों की बात है जब पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास भी अयोध्या में भगवान राम की तपस्या कर रहे थे। संत शिरोमणि तुलसीदास से आशीर्वाद पाकर रानी गणेश कुंवरि राम की आराधना में लीन हो गईं। लेकिन रानी को कई महीनों तक रामराजा के दर्शन नहीं हुए। निराश होकर गणेश कुंवरि अपने प्राण त्यागने के लिए सरयू नदी में कूद गयीं। वहां जल की गहराई में उन्हें रामराजा के दर्शन हुए। रानी ने उनसे अपनी इच्छा बतायी। रामराजा ने ओरछा चलना स्वीकार तो किया लेकिन इसके लिए तीन शर्तें रख दीं। इनमें से पहली शर्त यह थी कि अयोध्या से लेकर ओरछा तक की पूरी यात्रा पैदल होगी, दूसरी शर्त यह कि यात्रा केवल पुष्प नक्षत्र में होगी, तीसरी शर्त यह कि रामराजा की मूर्ति एक बार जिस जगह रख दी जाएगी वहां से फिर नहीं उठेगी।

इसके बाद रानी  गणेश कुंवरि ने राजा मधुकरशाह को संदेश भेजा कि वह रामराजा को लेकर ओरछा आ रहीं हैं। राजा मधुकरशाह ने रामराजा की मूर्ति स्थापना को स्थापित करने के लिए करोडों की लागत से चतुर्भुज मंदिर का निर्माण कराया। जब रानी ओरछा पहुंचीं तो उन्होंने यह मूर्ति अपने महल में रख दी। यह निश्चित हुआ कि शुभ मुर्हूत में मूर्ति को चतुर्भुज मंदिर में रख कर इसकी प्राण प्रतिष्ठा कर दी जायेगी। लेकिन राम के इस विग्रह ने चतुर्भुज मंदिर जाने से इनकार कर दिया। कहते हैं कि राम की वह बालरूप मूर्ति किसी से टारे नहीं टरी। राम आज भी इसी महल में विराजमान हैं और उनके लिए बना करोडों का चतुर्भुज मंदिर खाली पडा है।

राम राजा की जो मूर्ति ओरछा में विराजमान है उसके बारे में कहा जाता है कि जब राम वनवास जाने लगे तो उन्होंने अपनी मां कौशल्या को एक बाल मूर्ति दी थी। मां कौशल्या उसी को बाल भोग लगाया करती थीं। जब राम वनवास समाप्त कर अयोध्या लौट आये तो कौशल्या ने यह मूर्ति सरयू नदी में विसर्जित कर दी। यही मूर्ति रानी गणेश कुंवरि को सरयू की मझधार में मिली थी। यह विश्व का अकेला ऐसा मंदिर है जहां राम की पूजा राजा के रूप में होती है और उन्हें सूर्योदय के पूर्व और सूर्यास्त के बाद सलामी दी जाती है। श्रीराम की प्रतिमा को लेकर रानी गणेशकुंवरि साधु संतों और महिलाओं के बड़े काफिले के साथ अयोध्या से लगभग पांच सौ किलोमीटर दूर ओरछा की यात्रा पर निकल पड़ीं। साढ़े आठ माह में प्रण पूरा करके रानी रामनवमी को ओरछा पहुंचीं। ओरछा नरेश मधुकरशाह ने सेना के साथ भगवान राम का ओरछा में शाही सम्मान से स्वागत किया और उन्हें ओरछा के श्री रामराजा सरकार के रूप में मान्यता दी। तब से आज भी रामराजा सरकार को सशस्त्र बल के साथ सुबह शाम राजकीय सेल्यूट देने सरयू से जलसमाधि करने के दौरान साधू ने दी। रानी सरयू में जलसमाधि लेने को तैयार हो गईं। 

तभी एक साधु ने सरयू के किलाघाट की बालू से निकाल कर भगवान राम, सीता, लक्ष्मण की प्रतिमाएं रानी को दे दीं जो उन्होंने राममंदिर के टूटने के पहले छिपा कर रख दी थीं। 

यहां राम की मान्याता ओरछाधीश के रूप में है। रामराजा मंदिर के इर्द गिर्द हनुमान जी के मंदिर हैं। छडदारी हनुमान, बजरिया के हनुमान, लंका हनुमान के मंदिर एक सुरक्षा चक्र के रूप में चारों तरफ हैं। 

राज महल के समीप स्थित चतुर्भुज मंदिर ओरछा का मुख्य आकर्षण है। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण राजा मधुकर ने करवाया था। 

ओरछा का नजदीकी हवाई अड्डा खजुराहो है जो 163 किलोमीटर की दूरी पर है। यह एयरपोर्ट दिल्ली, वाराणसी और आगरा से नियमित उड़ानों से जुड़ा है। झांसी ओरछा का नजदीकी रेल मुख्यालय है। दिल्ली, आगरा, भोपाल, मुम्बई, ग्वालियर आदि प्रमुख शहरों से झांसी के लिए अनेक रेलगाड़ियां हैं। वैसे ओरछा तक भी रेलवे लाइन है।

राम राजा सरकार के दर्शन के लिए विदेशी पर्यटक भी आते हैं । रामराजा मंदिर भगवान राम और जानकी जी की मूल प्रतिमाओं के लिए विशेष स्थान रखता है। ओरछा के राम राजा सरकार के दर्शन के लिए प्रतिवर्ष लाखों लोग आते हैं।

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