पंडित श्रद्धाराम शर्मा
हम और आप बरसों से किसी पूजा आदि की समाप्ति पर भगवान विष्णु की आरती 'ओम जय जगदीश हरे गाते रहे हैं' लेकिन इसका मूल रचयिता कौन है यह नहीं जानते। प्राय: इस आरती के साथ कभी किसी तो कभी किसी का नाम सुना या गाया होगा जिसमें अक्सर अंतिम पंक्ति में आता है-कहत शिवानंद स्वामी लेकिन यह आरती शिवानंद स्वामी की लिखी नहीं अपितु पंडित श्रद्धाराम शर्मा की लिखी हुई है। उन्होंने 1870 में इस आरती की रचना की थी। इसे उन्होंने स्वयं संगीतबद्ध किया था और गाया भी करते थे। पंडित जी सनातन धर्म के प्रचारक, संगीतज्ञ, ज्योतिष के ज्ञाता और स्वतंत्रता सेनानी थे। उनका पूरा नाम पंडित श्रद्धाराम शर्मा था। पंजाब के फिल्लौर जन्म होने के कारण लोग उन्हें पंडित श्रद्धाराम फिल्लौरी के नाम से भी पुकारते थे। पंडित जी का जन्म 30 सितम्बर, 1837 को फुल्लौर ग्राम, जिला जालंधर, पंजाब में और मृत्यु 24 जून, 1881 लाहौर, पाकिस्तान में हुई।
उनके पिता का नाम जयदयालु और पत्नी का नाम महताब कौर था। पिता जयदयालु अच्छे ज्योतिषी और धार्मिक प्रवृत्ति के थे। पारिवारिक परिवेश धार्मिक होने के चलते पंडित श्रद्धाराम शर्मा को बचपन से ही धार्मिक संस्कार विरासत में मिले थे। पिता ने बचपन में ही अपने बेटे का भविष्य पढ़ लिया था। उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि-यह बालक अपने छोटे जीवन में भी ऐसे चमत्कारी कार्य करेगा जिससे लोगों पर प्रभाव पड़ेगा और इसकी लोकप्रियता बढ़ेगी। बचपन से ही श्रद्धाराम शर्मा की ज्योतिष और साहित्य में गहरी रुचि थी। उन्होंने 1844 में मात्र सात वर्ष की उम्र में ही गुरुमुखी लिपि सीख ली थी। दस साल की उम्र में संस्कृत, हिन्दी, फ़ारसी ज्योतिष आदि की पढ़ाई शुरू की और कुछ ही वर्षों में वे इन सभी विषयों में प्रवीण हो गए। उनका विवाह एक सिक्ख महिला महताब कौर से हुआ। उनका कर्म क्षेत्र भारत ही रहा। ज्योतिष के ज्ञाता होने के साथ ही वे अच्छे साहित्यकार भी थे। उनकी मुख्य रचनाएँ हैं- 'ओम जय जगदीश' (आरती), 'सत्य धर्म मुक्तावली', 'शातोपदेश', 'सीखन दे राज दी विथिया', 'पंजाबी बातचीत', 'भाग्यवती', 'सत्यामृत प्रवाह' आदि।
संस्कृत, हिन्दी, फ़ारसी का उनको ज्ञान था। 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में वे हिन्दी और पंजाबी के प्रतिनिधि गद्यकार थे। पंडित जी एक प्रसिद्ध ज्योतिषी थे लेकिन इस क्षेत्र में उन्हें प्रसिद्धि नहीं मिली। उन्हें सर्वाधिक ख्याति उनकी अमर आरती "ओम जय जगदीश हरे" से मिली जो हजारों वर्ष बाद भी लोकप्रिय है।पूरे देश में यह आरती श्रद्धा पूर्वक गाई जाती है। अपनी विलक्षण प्रतिभा और ओजस्वी भाषण के बल पर उन्होंने पंजाब में नवीन सामाजिक चेतना एवं धार्मिक उत्साह जगाया था, जिससे आगे चल कर आर्य समाज के लिये सुविधा हुई क्योंकि उनके लिए पंडित जी ने धरातल तैयार कर रखा था।
पंडित जी ने धार्मिक कथाओं और आख्यानों का उद्धरण देते हुए अंग्रेजी शासन के विरुद्ध जनजागरण का ऐसा वातावरण तैयार कर दिया जिससे अंग्रेजी सरकार की नींद उड़ गई। वे ब्रिटिश सत्ता को उखाड़ फेंकने का संदेश देते थे और लोगों में क्रांतिकारी विचार पैदा करते थे। १८६५ में ब्रिटिश सरकार ने उनको फुल्लौरी से निष्कासित कर दिया और आसपास के गाँवों तक में उनके प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई थी। उनकी लिखी किताबें स्कूलों में पढ़ाई जाती रहीं। पं॰ श्रद्धाराम खुद ज्योतिष के अच्छे ज्ञाता थे और अमृतसर से लेकर लाहौर तक उनके चाहने वाले थे इसलिए इस निष्कासन का उन पर कोई असर नहीं हुआ, बल्कि उनकी लोकप्रियता और बढ गई। लोग उनकी बातें सुनने को और उनसे मिलने को उत्सुक रहने लगे। इसी दौरान उन्होंने हिन्दी में ज्योतिष पर कई किताबें भी लिखीं। एक इसाई पादरी फादर न्यूटन जो श्रद्धाराम के क्रांतिकारी विचारों से बेहद प्रभावित थे, पादरी साहब के हस्तक्षेप चलते अंग्रेज सरकार को थोड़े ही दिनों में उनके निष्कासन का आदेश वापस लेना पड़ा। पं॰ श्रद्धाराम ने पादरी के कहने पर बाइबिल के कुछ अंशों का गुरुमुखी में अनुवाद भी किया था।
पं॰ श्रद्धाराम की विद्वता, भारतीय धार्मिक विषयों पर उनकी वैज्ञानिक दृष्टि के लोग कायल हो गए थे। जगह-जगह पर उनको धार्मिक विषयों पर व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया जाता था और तब हजारों की संख्या में लोग उनको सुनने आते थे। वे लोगों के बीच जब भी जाते अपनी लिखी ओम जय जगदीश की आरती गाकर सुनाते। उनकी आरती सुनकर तो मानो लोग मंत्रमुग्ध हो जाते थे। आरती के बोल लोगों की जुबान पर ऐसे चढ़े कि आज कई पीढियाँ गुजर जाने के बाद भी उनके शब्दों का जादू कायम है। १८७७ में भाग्यवती नामक एक उपन्यास प्रकाशित हुआ जिसे हिन्दी का पहला उपन्यास माना जाता है।
पंडित जी की कुछ प्रमुख रचनाएं ये हैं-(क) संस्कृत - (१) नित्यप्रार्थना । (२) भृगुसंहिता (सौ कुंडलियों में फलादेश वर्णन)। (३) हरितालिका व्रत (शिवपुराण की एक कथा)। (४) "कृष्णस्तुति" विषयक कुछ श्लोक। हिंदी - (१) तत्वदीपक (प्रश्नोत्तर में श्रुति, स्मृति के अनुसार धर्म कर्म का वर्णन)। (२) भाग्यवती (स्त्रियों की हीनावस्था पर उपन्यास)। (४) सत्योपदेश (सौ दोहों में अनेकविध शिक्षाएँ) (५) बीजमंत्र ("सत्यामृतप्रवाह' नामक रचना की भूमिका)। (६) सत्यामृतप्रवाह (फुल्लौरी जी के सिद्धांतों और आचार विचार का दर्पण ग्रंथ)। (७) पाकसाधनी (रसोई शिक्षा विषयक)। (८) कौतुक संग्रह (मंत्रतंत्र, जादूटोने संबंधी)। (९) दृष्टांतावली (सुने हुए दृष्टांतों का संग्रह, जिन्हें श्रद्धाराम अपने भाषणों और शास्त्रार्थों में प्रयुक्त करते थे)। (१०) रामलकामधेनु ( यह ज्योतिष ग्रंथ संस्कृत से हिंदी में अनूदित हुआ था)। (११) आत्मचिकित्सा (पहले संस्कृत में लिखा गया था। बाद में इसका हिंदी अनुवाद कर दिया गया। अंतत: इसे फुल्लौरी जी की अंतिम रचना "सत्यामृत प्रवाह' के प्रारंभ में जोड़ दिया गया था)। (१२) महाराजा कपूरथला के लिए विरचित एक नीतिग्रंथ । इसके अलावा उर्दू में भी उनकी कुछ रचनाएं हैं। इनमें से कुछ अप्राप्य हैं।
ॐ जय जगदीश हरे,
स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट,
दास जनों के संकट,
क्षण में दूर करे ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥
जो ध्यावे फल पावे,
दुःख बिनसे मन का,
स्वामी दुःख बिनसे मन का ।
सुख सम्पति घर आवे,
सुख सम्पति घर आवे,
कष्ट मिटे तन का ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥
मात पिता तुम मेरे,
शरण गहूं किसकी,
स्वामी शरण गहूं मैं किसकी ।
तुम बिन और न दूजा,
तुम बिन और न दूजा,
आस करूं मैं जिसकी ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥
तुम पूरण परमात्मा,
तुम अन्तर्यामी,
स्वामी तुम अन्तर्यामी ।
पारब्रह्म परमेश्वर,
पारब्रह्म परमेश्वर,
तुम सब के स्वामी ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥
तुम करुणा के सागर,
तुम पालनकर्ता,
स्वामी तुम पालनकर्ता ।
मैं मूरख फलकामी,
मैं सेवक तुम स्वामी,
कृपा करो भर्ता॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥
तुम हो एक अगोचर,
सबके प्राणपति,
स्वामी सबके प्राणपति ।
किस विधि मिलूं दयामय,
किस विधि मिलूं दयामय,
तुमको मैं कुमति ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥
दीन-बन्धु दुःख-हर्ता,
ठाकुर तुम मेरे,
स्वामी रक्षक तुम मेरे ।
अपने हाथ उठाओ,
अपने शरण लगाओ,
द्वार पड़ा तेरे ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥
विषय-विकार मिटाओ,
पाप हरो देवा,
स्वमी पाप(कष्ट) हरो देवा ।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,
सन्तन की सेवा ॥
ॐ जय जगदीश हरे,
स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट,
दास जनों के संकट,
क्षण में दूर करे ॥
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