Tuesday, June 8, 2021

क्या आप जानते हैं शनिदेव पर तेल क्यों चढ़ाते हैं?


हम और आप अरसे से देखते आ रहे हैं कि सब शनिदेव को सरसों का तेल अर्पित किया जाता है। नियम यह है कि किसी पात्र में तेल डाल कर उसमें अपना चेहरा देखने के बाद उसे शनिदेव को अर्पित कर दिया जाता है। कहते हैं कि इससे सभी प्रकार के शनि दोष कट जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ऐसा क्यों और कब शुरू हुआ। इसके पीछे क्या कहानी है। शायद आपमें से बहुत लोग नहीं जानते होंगे। आइए हम सुनाते हैं कि इसके पीछे क्या कहानी है।

 शनि देव को तेल अर्पित करने के बारे में दो कथाएं मिलती हैं। एक कथा के अनुसार, शनि देव को अपनी शक्ति और पराक्रम पर बहुत घमंड हो गया था। यह उस समय की बात है जब राम भक्त हनुमान जी के पराक्रम और बल की सर्वत्र चर्चा होती थी। जब शनि देव को इस बात का पता चला तो स्वयं को सबसे बलशाली सिद्ध करने के लिए  हनुमान जी से युद्ध करने के लिए निकल पड़े. वहां उन्होंने देखा कि हनुमानजी एकांत में बैठकर श्री राम जू की भक्ति में लीन हैं।

शनिदेव ने हनुमानजी को युद्ध के लिए ललकारा। हनुमान जी ने समझाते हुए कहा कि अभी वो अपने प्रभु श्री राम का ध्यान कर रहे हैं। हनुमान जी ने शनि देव को जाने के लिए कहा पर शनि देव उन्हें युद्ध के लिए ललकारते रहे और हनुमानजी के बहुत समझाने पर भी नहीं माने। शनि देव युद्ध की बात पर अड़े रहे तब हनुमानजी ने फिर से समझाते हुए कहा कि मेरा राम सेतु की परिक्रमा का समय हो रहा है आप कृपया यहां से चले जाइए। शनि देव के न मानने पर हनुमान जी ने शनि देव को अपनी  पूंछ में लपेट लिया और राम सेतु की परिक्रमा आरम्भ कर दी।

शनि देव का पूरा शरीर धरती और रास्ते  में आई चट्टानों से घिसता जा रहा था और उनका पूरा शरीर घायल हो गया। उनके शरीर से रक्त निकलने लगा और बहुत अधिक पीड़ा होने लगी। तब शनिदेव ने हनुमान जी से क्षमा मांगते हुए कहा कि मुझे अपनी उदंडता का परिणाम मिल गया है। कृपया मुझे मुक्त कर दीजिए। तब हनुमान जी ने कहा कि यदि मेरे भक्तों की राशि पर तुम्हारा कोई दुष्परिणाम नहीं होने का वचन दो तो मैं तुम्हे मुक्त कर सकता हूं।

शनि देव ने वचन देते हुए कहा कि आपके भक्तों पर मेरा कोई दुष्प्रभाव नहीं होगा। तब हनुमानजी ने शनि देव को मुक्त किया और उनके घायल शरीर पर तेल लगाया जिससे शनिदेव को पीड़ा में आराम मिला। तब शनि देव ने कहा कि जो व्यक्ति मुझे तेल अर्पित करेंगे उनका जीवन समृद्ध होगा और मेरे कारण कोई कष्ट नहीं होगा और तबसे ही शनि देव को तेल अर्पित करने की परंपरा का प्रारम्भ हुआ। इस कथा में कई जगह ऐसा भी कहा गया है कि हनुमान जी ने शनि से युद्ध कर के उन्हें घायल कर दिया था। उसके बाद उनके घावों में तेल लगा कर उनकी पीड़ा शांत की थी। उसके बाद सूर्यपुत्र शनिदेव ने हनुमान जी को आश्वस्त किया था कि उनके भक्तों को वे नहीं सतायेंगे।

 इस बारे में दूसरी कथा कुछ इस प्रकार है। लंकापति रावण प्रकांड ज्योतिषी था। उसने एक बार सभी ग्रहों को अपनी राशि के अनुरूप राशि में बैठाया परन्तु शनि देव ने रावण की बात मानने से मना कर दिया इसलिए रावण ने उन्हें उल्टा लटका दिया।

इसके पश्चात हनुमानजी लंका पहुंचे तब रावण ने हनुमान जी की पूंछ में आग लगवा दी। हनुमानजी ने उड़ कर सारी लंका जला डाली। आग लगने के बाद सभी बंदी ग्रह भाग गए परन्तु उल्टा लटका होने के कारण शनिदेव नहीं भाग पाए। शनिदेव की देह में बहुत पीड़ा हो रही थी। तब हनुमान जी ने शनि देव को तेल लगाया जिससे शनि देव की पीड़ा कुछ कम हुई। इसके बाद शनि देव ने कहा कि आज से मुझे तेल अर्पित करने वाले सभी व्यक्तियों की पीड़ा को मैं हर लूंगा। तब से ही शनि देव को तेल अर्पित किया जाने लगा।

शनि देव को तेल चढ़ाते समय उस तेल में चेहरा देखने से शनि दोषों से मुक्ति प्राप्त होती है और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

यों तो देश में कई जगह शनिदेव के मंदिर हैं लेकिन महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के शिंगणापुर गांव का शनि देवता का मंदिर सर्वाधिक  प्रसिद्ध है। माना जाता है कि यहां की मूर्ति  स्वयंभू है अर्थात स्वयं प्रकट हुई है।

इस गांव की सबसे बड़ी और विचित्र बात यह है यहां किसी घर या दूकान या दूसरे प्रतिष्ठानों में ताले नहीं लगते। घर में दरवाजे तक नहीं हैं। वहां के लोगों का मानना है कि उनके सामान की रक्षा स्वयं शनि भगवान करते हैं शनिदेव के डर से कोई चोर चोरी करने भी नहीं आता कहते हैं और चोरी करने के बाद कोई इंसान गांव से बाहर नहीं जा पाता।

शनि भगवान की स्वयंभू मूर्ति काले रंग की है। 5 फुट 9 इंच ऊँची व 1 फुट 6 इंच चौड़ी यह मूर्ति संगमरमर के एक चबूतरे पर खुले में धूप में ही स्थापित है। मूर्ति के ऊपर कोई छत्र भी नहीं है। यहां रोज हजारों की संख्या में रोज दर्शनार्थी आते हैं और शनि देवता की मूर्ति पर तेल चढ़ाते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां आकर दर्शन करने और तेल चढ़ाने से सभी प्रकार के शनि दोष, शनि की दशा से होनेवाले कष्ट से मुक्ति मिलती है। शनिवार और अमावस्या को यहां भक्तों की भारी भीड़ जुटती है।

इस मूर्ति के प्रकट होने के बारे में एक घटना बतायी जाती है कि एक बार गांव में बड़ी बाढ़ आयी थी सब कुछ डूबने लगा किंतु किसी दैवीय शक्ति से गांव बच गया। कहते हैं दूसरे दिन गांव के एक आदमी ने पेड़ की डाल पर एक अजीब-सा पत्थर फंसा देखा। उसने सोचा अच्छा पत्थर है इसे ले जाकर इससे कुछ बनायेंगे   यह सोच उसने जैसे ही उस पर एक नुकीली चीज से चोट किया उस पत्थर से खून निकलने लगा। वह डर गया और भागा-भागा गांव आया और गांव वालों से सारी बात बतायी। गांव वाले भी यह देख दंग रह गये कि पत्थर खून निकल रहा है। सभी गांव लौट आये। उसी रात को गांव वाले एक व्यक्ति के सपने में शनिदेव आये और उससे कहा- मैं शनिदेव हूं, गांव के बाहर जो विचित्र पत्थर पड़ा है उसे लाकर गांव में स्थापित करो और मेरी पूजा करो। उसके बाद गांववालों ने उस मूर्ति की एक चबूतरे पर स्थापना कर दी और तभी से शिगणापुर में पूजे जा रहे हैं शनिदेव।शनि मंदिर हमेशा पवित्र मन और स्वच्छ शरीर से ही जाना चाहिए। शनिदेव के पूजन के बाद प्रसाद स्वरुप इलाइची दाना, नारियल और तेल समर्पित करना उत्तम माना गया है। शनिदेव को बेलपत्र और चंदन अति प्रिय है। इसलिए ये दो चीजें शनिदेव को समर्पित करने से वे प्रसन्न होते हैं। शनि मंदिर में शनि के वैदिक मंत्र या तांत्रिक मंत्र का जाप करना अत्यधिक लाभदायक माना जाता है। यदि स्वयं से मंत्र का जाप करना संभव ना हो तो कम से कम आरती में भी सम्मिलित होना चाहिए। शनिदेव की पूजा के बाद उन्हें प्रसाद समर्पित करके खुद ग्रहण करें और अन्य लोगों के बीच भी बंटाना चाहिए। मंदिर से कोई भी प्रतिमा लाकर घर में ना लाएं अथवा लगाएं। दान आदि कार्य भी मंदिर परिसर में ही संपन्न करना चाहिए।


 

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