Sunday, June 13, 2021

किसके श्राप के चलते राम ने किया था सीता का त्याग



वनवास से लौटने के बाद श्रीराम अपने छोटे भाई भरत के बार-बार आग्रह करने पर अयोध्या का राजपाट संभाल लिया। श्रीराम के सिंहासनारूढ़ होने से अयोध्या की जनता की प्रसन्नता का ठिकाना ना रहा। लोग चारों ओर मंगल गीत गाने और दीपक से नगर को जगमगाने में लगे थे। लोग आपस में मिठाइयां बांट रहे थे। सारी प्रजा प्रभु श्री राम के राज्य में सारी जनता ख़ुश थी। उनके राज्य में न तो कोई अपराध होता था न ही किसी को किसी चीज़ का अभाव था।

ऐसे ही सबका समय सुख से बीत रहा था। श्रीराम भी अपनी प्रजा से बहुत प्रेम करते थे और समय-समय पर उनका हाल चाल लेते रहते थे| उन्होंने अपने द्वारपालों से कह रखा था कि ध्यान रखना मेरे द्वार से कोई भी याचक  खाली हाथ न लौटे। इसके साथ ही राज्य की जनता से कह रखा था की जब भी किसी को कोई जरूरत हो वह बिना किसी संकोच के उनसे मिलने आ सकता था।

श्रीराम स्वयं भी कई बार भेष बदल कर अपने राज्य में आम जनता के बीच जाकर उनके दुखों और कष्टों के बारे में जानकारी लेते रहते थे। इसी क्रम में एक दिन जब श्रीराम भेष बदल कर अपने राज्य की जनता के बीच गए तो उन्हें चौराहे पर लोगों की भीड़ दिखी। उत्सुकता वश श्रीराम भी वहाँ जा पहुंचे ताकि पता चल सके की भीड़ के जमा होने के पीछे क्या कारण था| वहाँ पहुँचे। 

उन्होंने देखा की एक धोबी अपनी पत्नी से झगडा कर रहा था।प्रभु श्रीराम भी झगड़े का कारण जानने के लिए वहीं रुक गये। धोबी ने अपनी पत्नी का त्याग कर दिया था। जबकि धोबी की पत्नी का कोई अपराध नहीं था। लोगों ने जब बीच बचाव करते हुए उसे समझाने की कोशिश की तो उसने यह कह कर सबका मुंह बंद कर दिया की मैं कोई श्रीराम थोड़े ही हूं जिन्होंने रावण के पास वर्षों रही अपनी पत्नी सीता को अपना लिया।मुझे अपना सम्मान ज्यादा प्यारा है मैं पर पुरुष के पास रह कर आई हुई स्त्री को कभी अपना नहीं सकता। यह सुन कर श्रीराम मन ही मन विचलित हो उठे और वहां से सीधा अपने राजमहल में वापस आ गए। रावण के मरने के बाद भी उन्हें रोज रात को सपने में रावण का सर दिखता था जो की श्रीराम पर अट्टहास कर रहा होता था की तुमने मेरे द्वारा हरण की हुई स्त्री को अपना लिया। हालांकि राम को इस बात का पता था की रावण ने सीता का नहीं बल्कि माया सीता का हरण किया था और सीता बिलकुल पवित्र थीं। परन्तु लोक लाज के भय से उन्होंने देवी सीता का त्याग कर दिया था।

आइए अब उस प्रसंग पर चलते हैं जिसमें विस्तार से यह वर्णन है कि पूर्व जन्म में यह धोबी क्या था और उसने सीता से किस बात का बदला लेने के लिए श्रीराम पर लांक्षन लगाया। उस धोबी की ओर से लगाये गये लांक्षन के बाद ही श्रीराम ने गर्भवती पत्नी सीता का त्याग किया था। सीता ने वन में वाल्मीकि ऋषि के आश्रम में आश्रय लिया और वहीं कुछ काल बाद अपने दो पुत्रों लव कुश को जन्म दिया।

धोबी के पूर्व जन्म की कथा जानने के लिए आइए मिथिला नगरी में प्राचीन काल में हुई एक घटना से जुड़ते हैं। मिथिला नाम की नगरी में महाराज जनक राज्य करते थे। उनका एक नाम सीरध्वज भी था। एक बार उनके राज्य में बरसात के बिना अकाल पड़ गया। राज्य के सारे किसान व्याकुल होकर महाराजा जनक के पास गए। उन्होंने राजा ने अपना कष्ट कह सुनाया। महाराज इस संकट के समाधान के लिए अपने गुरु शतानंद के पास गये। गुरु जी ने राजा को समझाया कि अगर राजा सोने के हल से जमीन जोतेंगे तो वर्षा होगी और अकाल का संकट टल जायेगा।

 गुरु की आज्ञा पाकर जनक जी ने रानी सहित खेत को स्वर्ण के हल से जोता और हल चलाते ही वहां पर वर्षा होने लगी। अचानक एक जगह हल का फाल अटक गया और आगे नहीं चल रहा था। राजा रानी ने उस जगह की मिट्टी उठा कर देखा तो उनके आश्चर्य का ठिकाना ना रहा। उन्होंने देखा एक घड़े के अंदर एक सुंदर कन्या है। राजा-रानी उसे घर ले आये और प्यार से उसका नाम  सीता रखा। सीता का एक अर्थ हल चलाने से जमीन पर जो रेखा बनती है वह भी होता है। सीता भूमि से उपजीं इसलिए उनका एक नाम भूमिजा भी है। जनक की पुत्री होने के नाते वे जानकी कहलायीं. विदेह पुत्री होने के चलते वैदेही कहलायीं।

परम सुंदरी सीता एक दिन सखियों के साथ उद्यान में खेल रही थीं। वहाँ उन्हें एक तोता पक्षी का जोड़ा दिखाई दिया,जो बहुत सुंदर था। वे दोनों पक्षी एक पर्वत की चोटी पर बैठ कर इस प्रकार बोल रहे थे —-‘पृथ्वी पर श्रीराम नाम से विख्यात एक बड़े सुंदर राजा होंगे। उनकी महारानी, सीता के नाम से विख्यात होंगी। श्रीराम, सीता के साथ ग्यारह हजार वर्षों तक राज्य करेंगे। धन्य हैं वे जानकी देवी और धन्य हैं वे श्री राम।'

तोते को ऐसी बातें करते देख सीता ने यह सोचा कि ये दोनों मेरे ही जीवन की कथा कह रहे हैं, इन्हें पकड़ कर सभी बातें पूछूँ।ऐसा विचार कर उन्होंने अपनी सखियों से कहा-‘यह पक्षियों का जोड़ा सुंदर है तुम लोग चुपके से जाकर इसे पकड़ लाओ।’

सखियाँ उस पर्वत पर गयीं और दोनों सुंदर पक्षियों को पकड़ लायीं।सीता उन पक्षियों से बोलीं—‘तुम दोनों बड़े सुंदर हो; देखो, डरना नहीं। बताओ, तुम कौन हो और कहाँ से आये हो? राम कौन हैं? और सीता कौन हैं? तुम्हें उनकी जानकारी कैसे हुई? सारी बातों को जल्दी जल्दी बताओ। भय न करो।'

सीता के इस प्रकार पूछने पर दोनों पक्षी सब बातें बताने लगे —–‘देवि ! 

वाल्मीकि नाम से विख्यात एक बहुत बड़े महर्षि हैं। हम दोनों उन्हीं के आश्रम में रहते हैं। महर्षि ने रामायण नाम का एक ग्रन्थ बनाया है जो सदा मन को प्रिय जान पड़ता है। उन्होंने शिष्यों को उस रामायण का अध्ययन भी कराया है।  हम लोगों ने उसे पूरा सुना है।

राम और जानकी कौन हैं, इस बात को हम बताते हैं तथा इसकी भी सूचना देते हैं कि जानकी के विषय में क्या क्या बातें होने वाली हैं; तुम ध्यान देकर सुनो।

‘महर्षि ऋष्यश्रंग के द्वारा कराये हुए पुत्रेष्टि-यज्ञ के प्रभाव से भगवान विष्णु राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न—ये चार शरीर धारण करके प्रकट होंगे। 

देवांगनाएँ भी उनकी उत्तम कथा का गान करेंगी।श्रीराम महर्षि विश्वामित्र के साथ भाई लक्ष्मण सहित हाथ में धनुष लिए मिथिला पधारेंगे। उस समय वहाँ वे शिव जी के धनुष को तोड़ेंगे और अत्यन्त मनोहर रूप वाली सीता को अपनी पत्नी के रूप में ग्रहण करेंगे। फिरउन्हीं के साथ श्रीराम अपने विशाल राज्य का पालन करेंगे। ये तथा और भी बहुत सी बातें वहाँ हमारे सुनने में आयी हैं। सुंदरी ! हमने तुम्हें सब कुछ बता दिया।अब हम जाना चाहते हैं, हमें छोड़ दो।

पक्षियों की ये अत्यंत मधुर बातें सुनकर सीता ने उन्हें मन में धारण किया और पुनः उन दोनों से पूछा —-‘राम कहाँ होंगे? वे किसके पुत्र हैं और कैसे वे आकर जानकी को ग्रहण करेंगे? मनुष्यावतार में उनका श्री विग्रह कैसा होगा?

उनके प्रश्न सुनकर तोती मन ही मन जान गयी कि ये ही सीता हैं। उन्हें पहचान कर वह सामने आ उनके चरणों पर गिर पड़ी और बोली —- श्री रामचन्द्र का मुख कमल की कली के समान सुंदर होगा। नेत्र बड़े बड़े तथा खिले हुए, नासिका ऊँची, पतली और मनोहारिणी होगी। भुजाएँ घुटनों तक, गला शंख के समान होगा। वक्षःस्थल उत्तम व चौड़ा होगा। उसमें श्रीवत्स का चिन्ह होगा। 

श्री राम ऐसा ही मनोहर रूप धारण करने वाले हैं। मैं उनका क्या वर्णन कर सकती हूँ। जिसके सौ मुख हैं, वह भी उनके गुणों का बखान नहीं कर सकता। फिर हमारे जैसे पक्षी की क्या बिसात है ।वे जानकी देवी धन्य हैं जो शीघ्र रघुनाथ जी के साथ हजारों वर्षों तक प्रसन्नतापूर्वक विहार करेंगी। परंतु सुंदरी ! तुम कौन हो?

पक्षियों की बातें सुनकर सीता अपने जन्म की चर्चा करती हुई बोलीं—-‘जिसे तुम लोग जानकी कह रहे हो, वह जनक की पुत्री मैं ही हूं। श्री राम जब यहाँ आकर मुझे स्वीकार करेंगे, तभी मैं तुम दोनों को छोड़ूँगी। तुम इच्छानुसार खेलते हुए मेरे घर में सुख से रहो।

यह सुनकर तोती ने जानकी से कहा —-‘साध्वी ! हम वन के पक्षी हैं। हमें तुम्हारे घर में सुख नहीं मिलेगा। मैं गर्भिणी हूँ, अपने स्थान पर जाकर बच्चे पैदा करूँगी। उसके बाद फिर यहाँ आ जाऊँगी।'

उसके ऐसा कहने पर भी सीता ने उसे नहीं छोड़ा। तब उसके पति ने कहा —-‘सीता ! मेरी भार्या को छोड़ दो। यह गर्भिणी है। जब यह बच्चों को जन्म दे लेगी, तब इसे लेकर फिर तुम्हारे पास आ जाऊँगा। तोते के ऐसा कहने पर जानकी ने कहा — महामते ! तुम आराम से जा सकते हो, मगर मैं इसे अपने पास बड़े सुख से रखूँगी ।

जब सीता ने उस तोती को छोड़ने से मना कर दिया, तब वह पक्षी अत्यंत दुखी हो गया। उसने करुणायुक्त वाणी में कहा —-‘योगी लोग जो बात कहते हैं वह सत्य ही है—-किसी से कुछ न कहे, मौन होकर रहे, नहीं तो उन्मत्त प्राणी अपने वचनरूपी दोष के कारण ही बन्धन में पड़ता है। यदि हम इस पर्वत के ऊपर बैठकर वार्तालाप न करते होते तो हमारे लिए यह बन्धन कैसे प्राप्त होता। इसलिए मौन ही रहना चाहिए ।’ इतना कहकर पक्षी पुनः बोला—– ‘सुन्दरी ! मैं अपनी इस भार्या के विना जीवित नहीं रह सकता, इसलिए इसे छोड़ दो। सीता ! तुम बहुत अच्छी हो, मेरी प्रार्थना मान लो।’ इस तरह उसने बहुत समझाया, किन्तु सीता ने उसकी पत्नी को नहीं छोड़ा, तब उसकी भार्या ने क्रोध और दुख से व्याकुल होकर जानकी को श्राप दिया ——- ‘अरी ! जिस प्रकार तू मुझे इस समय अपने पति से अलग कर रही है, वैसे ही तुझे स्वयं भी गर्भिणी की अवस्था में श्रीराम से अलग होना पड़ेगा।’

यों कह कर पति वियोग के कारण उसके प्राण निकल गये। उसने श्री रामचंद्र जी का स्मरण तथा पुनः पुनः राम नाम का उच्चारण करते हुए प्राण त्याग किया था, इसलिए उसे ले जाने के लिए एक सुंदर विमान आया और वह पक्षिणी उस पर बैठकर भगवान के धाम को चली गई।

भार्या की मृत्यु हो जाने पर तोता पक्षी शोक से आतुर होकर बोला —— ‘मैं मनुष्यों से भरी श्रीराम की नगरी अयोध्या में जन्म लूँगा तथा मेरे ही वाक्य से इसे पति के वियोग का भारी दुख उठाना पड़ेगा।’

यह कह कर वह चला गया। क्रोध और सीता जी का अपमान करने के कारण उसका धोबी की योनि में जन्म हुआ।

उस धोबी के कथन से ही सीता जी निन्दित हुईं और उन्हें पति से अलगहोना पड़ा। धोबी के रूप में उत्पन्न हुए उस तोते का श्राप ही सीता का पति से विछोह कराने में कारण हुआ और वे वन में गयीं।

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