यदि राम को वनवास दिये जाने के कारण के मूल में जायें तो हम पायेंगे कि इसके लिए ना कैकेयी दोषी थी ना राजा दशरथ। इसके लिए अगर कोई दोषी था तो वह थी मंथरा जिसने सारा प्रपंच रच कर कैकेयी से वह करवा लिया जो शायद वह कभी नहीं करती क्योंकि राम उन्हें भी प्राणों से प्यारे थे। पर क्या मंथरा ने विष्णु से अपने पूर्व जन्म का बदला लेने के लिए उनके रामावतार में कुछ ऐसा किया जिसने श्रीराम के जीवन की दिशा ही बदल दी। यों तो यह सर्वविदित है कि राम ने दुष्टों का संहार करने और देवताओं, विप्रों की रक्षा के लिए मानव अवतार लिया था। उन्हें वनवास मिले और वे दुष्टों का नाश करें इसके लिए देवताओं ने सरस्वती की सहायता ली जिन्होंने मंथरा की मति फेर दी और उसने कैकेयी को कुछ ऐसा पाठ पढ़ाया कि वह उसकी बातों में आ गयी और उसने राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास मांग लिया। लेकिन इसके अलावा भी कुछ कारण हैं जिनका उल्लेख हम यहां कर रहे हैं। जिनमें से एक यह है कि क्या राम से कोई बदला लेने के लिए मंथरा ने यह दुष्ट चाल चली थी जिसका परिणाम राम के वनवास के रूप में सामने आया।
जब भी रामायण की बात होती है, तो श्रीराम, उनके माता- पिता और भाइयों के साथ एक और नाम आता है, जो उनके परिवार का हिस्सा तो नहीं है, लेकिन श्रीराम के सम्पूर्ण जीवन में उसका बहुत महत्व है। अगर रामायण में यह पात्र ना होता तो मानवरूप में, रामजी की लीला भी शायद पूरी ना हो पाती| हमारा आशय कैकेयी की दासी मंथरा से है। वह थी तो दासी लेकिन राम की लीला में उसकी सबसे बड़ी भूमिका है। मंथरा राजा दशरथ की सबसे प्रिय और और सुंदर रानी कैकेयी की दासी थी। वह कैकेयी के मायके से ही उसके साथ अयोध्या आयी थी, ऐसा उल्लेख मिलता है कि मंथरा ने बचपन से ही कैकयी को बेटी की तरह पाला था, यही कारण है कि वह कैकेयी से बहुत स्नेह करती थी। दासी होने के बावजूद मंथरा ही कैकेयी को सबसे ज्यादा प्रिय थी। वह सदा मंथरा की राय लेकर ही कोई काम करती थी। वाल्मीकि रामायण में उल्लेख आता है कि मंथरा गंधर्व कन्या थी। उसे इन्द्रदेव ने पहले से ही कैकेयी के पास भेज दिया था। यह इस उद्देश्य से किया गया था कि मंथरा मानव अवतार में श्रीराम, को वनवास दिए जाने में सहायक बने। यह भी कहा जाता है कि मंथरा के कारण ही, कैकई की माँ का अपने पति से विद्रोह हुआ था, और इसीलिए कैकई के पिता ने, उन्हें मायके भेज दिया था|
श्रीराम और उनके भाइयों के विवाह के पश्चात जब राजा दशरथ राम को राजा बनाने के लिए उनके राज्याभिषेक की घोषणा करते हैं तो मंथरा इससे बहुत दुकी हो जाती है और कैकई को रामजी के विरुद्ध भड़काती है, क्योंकि श्रीराम के राजा बनने की बात सोच कर, उसके मन में आया कि, यदि राम राजा बने तो कौशल्या राजमाता कहलाएंगी, और उसके बाद महारानी कौशल्या रानियों में श्रेष्ठ हो जाएंगी, और उनकी दासियां मुझसे श्रेष्ठ हो जायेंगी, फिर कोई भी मेरा सम्मान नहीं करेगा, यही सोच कर मंथरा ने कैकेयी को भड़काना शुरू किया और कहा- ‘रानी आप यह मत भूलिए राम अगर अयोध्या के राजसिंहासन के अधिकारी बने तो भरत का भविष्य अंधकारमय हो जायेगा।' ये सुन कर रानी कैकेयी को भी यही लगने लगा, फिर उन्होंने, मंथरा से सलाह ली कि, उन्हें क्या करना चाहिए? तब मंथरा ने उन्हें, महाराज दशरथ से अपने दो वचनों की बात याद दिलाते हुए, उन वचनों में श्रीराम के लिए 14 वर्ष का वनवास और भरत के लिए राजसिंहासन मांगने की सलाह दी। उसके बाद कैकेयी ने बिलकुल वैसा ही किया, और रघुकुल की परम्परा के हिसाब से महाराज दशरथ को अपने वचनों का पालन कर राम को वनवास और भरत को राजसिंहासन देना पड़ा।
इसके बाद श्रीराम ने अपने वनवास के दौरान सभी राक्षसों का विनाश कर लंका पर विजय प्राप्त कर मानव अवतार की अपनी भूमिका पूरी की।
ऐसा भी कहा जाताहै कि जब महाराज दशरथ ने श्रीराम को अयोध्या का राजा बनाने का निश्चय किया, और अवध में तैयारियां शुरू हो गयीं तो देवता घबरा गये क्योंकि लह चाहते थे कि श्रीराम वन में जायें ताकि रावण सहित अन्य राक्षसों का संहार हो सके। श्रीराम के मानव अवतार लेने का कारण भी यही था, लेकिन जब राज्यभिषेक की तैयारी शुरू हुई, तब राम को वन भेजने के उद्देश्य से देवताओं ने देवी सरस्वती के माध्यम से कैकेयी की दासी मंथरा की मति फेर दी और उसने कैकेयी को भड़का दिया। मंथरा कैकेयी की सबसे प्रमुख दासी, मुख्य सलाहकार थी। अयोध्या के राज परिवार व कैकेयी के जीवन में मंथरा का सीधा हस्तक्षेप होता था।
राजा दशरथ की तीन रानियाँ थी जिसमे रानी कैकेयी दूसरे नंबर पर आती थीं। सबसे बड़ी रानी कौशल्या थीं व सबसे छोटी सुमित्रा किंतु राजा दशरथ को रानी कैकेयी सबसे प्रिय थी। रानी कैकेयी तीनों रानियों में सबसे सुंदर तो थी ही साथ में युद्ध कला में भी निपुण थी। एक बार जब राजा दशरथ देवासुर संग्राम में बुरी तरह घायल हो गए थे तब रानी कैकेयी ने ही उनकी जीवन रक्षा की थी जिसके फलस्वरूप उन्हें 2 वर मिले थे।
राज दरबार में रानी कैकेयी का सबसे ज्यादा प्रभाव होने के कारण उनकी दासी का भी अन्य सभी दसियों में सबसे ज्यादा प्रभाव था। रानी कौशल्या व सुमित्रा की मुख्य दासियों व अयोध्या के अन्य सभी लोगों में मंथरा का सबसे ज्यादा प्रभाव था।
जब कैकेयी का पुत्र भरत अपने सौतेले भाई शत्रुघ्न के साथ अपने ननिहाल कैकय गया हुआ था तो अचानक से राजा दशरथ ने अपने राजगुरु से मंत्रणा कर राम के राज्याभिषेक की तैयारी शुरू कर दी। जब अयोध्या में यह समाचार फैला व मंथरा को इसका पता चला तो वह बुरी तरह बैचैन हो गयी।
कैकेयी राजा दशरथ की प्रमुख रानी होने के कारण मंथरा भी राज्य की प्रमुख दासी थी लेकिन राम के राजा बनते ही कैकेयी का प्रभाव कम हो जाता व कौशल्या की दासियों का का प्रभाव बढ़ जाता। इसके फलस्वरूप मंथरा का प्रभाव भी घट जाता जो उसे मंजूर नही था। वह मन ही मन षडयंत्र रचने लगी। उसे कैकेयी की हर बात पता थी इसलिये उसे महाराज दशरथ के कैकेयी को दिए वह दो वचन याद आ गए व इसी को उसने अपना आधार बनाया।
जब मंथरा कैकेयी के पास पहुंची तो उसे प्रसन्न देख कर परेशान हो गयी। उसने अपनी कुटिल चाल से कैकेयी के मन में ईर्ष्या भर दी और भविष्य में क्या क्या हो सकता है इसका वर्णन किया। कैकेयी अन्य रानियों पर अपना प्रभाव जमाती थी लेकिन उसे राम से भी अपने पुत्र भरत जितना ही प्रेम था व उसने कभी भरत के छोटे होने के कारण उसके राज्याभिषेक के बारे में सोचा भी नहीं था किंतु मंथरा ने कैकेयी के कान भरने जारी रखे।
मंथरा ने उसे भविष्य में उसका प्रभाव कम हो जाने की आशंका जतायी। इसके साथ ही उसे इस समस्या से निकलने का उपाय भी सुझाया। मंथरा ने कैकेयी से कहा कि यदि वह राजा दशरथ से मिले दो वर आज मांग ले तो यह समस्या समाप्त हो सकती है। वह दो वर थे राम को 14 वर्ष का वनवास व भरत को अयोध्या का राजा बनाना।
रानी कैकेयी को मंथरा का यह सुझाव पसंद आया व उन्होंने ऐसा ही किया। मंथरा के कहे अनुसार रानी कैकेयी ने राजा दशरथ से दोनों वचन मांगे। इसके चलते श्रीराम को अयोध्या का राजा बनाने का निर्णय वापस ले लिया गया व उन्हें 14 वर्षों का वनवास मिला। राम के साथ उनकी पत्नी सीता व भाई लक्ष्मण भी वन में गए।
दूसरी ओर भरत को अयोध्या का राजा नियुक्त कर दिया गया व उनके आने की प्रतीक्षा होने लगी। राजा दशरथ अपने प्रिय पुत्र राम के वन में जाने से अत्यंत दुखी थे व इसी दुःख में उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। दशरथ की मृत्यु के तुरंत बाद कैकय से भरत को बुलावा भेजा गया।
जब भरत व शत्रुघ्न अयोध्या वापस आयें तब उन्हें अपने पिता की मृत्यु, भगवान राम के वनवास व स्वयं के राज्याभिषेक के बारें में पता चला। इस षड़यंत्र के पीछे कैकेयी व मंथरा का हाथ होने पर दोनों अत्यंत क्रोधित हो गए। भरत ने अपनी माँ कैकेयी का परित्याग कर दिया व अयोध्या का राज सिंहासन ठुकरा दिया। शत्रुघ्न भरी सभा में मंथरा को बालों के बल घसीट कर लेकर आयें व उसको प्राणदंड देने की बात करने लगे।
शत्रुघ्न को स्त्री हत्या करता देखकर भरत ने उन्हें रोका व समझाया कि धर्म के अनुसार स्त्री हत्या करना पाप है। साथ ही उन्हें अपने भाई राम के क्रोध का भी डर था कि कही उनके द्वारा स्त्री हत्या किये जाने से भगवान श्रीराम स्वयं उनका त्याग ना कर दे। इसलिये मंथरा को 14 वर्ष तक एक कालकोठरी में बंद कर दिया गया।
रानी कैकेयी द्वारा मंथरा का त्याग करने व भरत के द्वारा उन्हें इतना कठोर दंड देने के बाद मंथरा पश्चाताप की अग्नि में जलने लगी। उसे अब अपने किये पर ग्लानि अनुभव हुई व वह 14 वर्षों तक एक अँधेरी काल कोठरी में अपने दिन व्यतीत करती रही। उसे डर था कि 14 वर्षों के बाद जब भगवान श्रीराम आयेंगे तो उन्हें इससे भी अधिक कठोर दंड मिलेगा।
जब भगवान श्रीराम 14 वर्ष के वनवास के पश्चात वापस अयोध्या लौटे तो वे स्वयं मंथरा से मिलने कालकोठरी गए। श्रीराम को अपने सामने देखकर मंथरा उनके चरणों में गिर पड़ी व उनसे अपने कर्मों के लिए क्षमा मांगने लगी। भगवान श्रीराम ने द्रवित होकर उसी समय उन्हें क्षमा कर दिया व कालकोठरी से मुक्ति दिला दी।
ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि अपने पिछले जन्म में एक हिरण थी जो कैकेय देश में रहती थी। एक दिन कैकेय देश के राजकुमार शिकार पर निकले थे तब उन्होंने एक नर हिरण का शिकार किया। उसकी पत्नी मादा हिरण ने जब यह देखा तब वह अपनी माँ के पास गयी व विलाप करने लगी। उसकी माँ राजकुमार के पास गयी व उसने उससे कहा कि जो कार्य तुमने किया है वह अच्छा नहीं है। किसी मादा स्त्री के सुहाग को उजाड़ना तुम्हे शोभा नहीं देता। इसलिये मैं तुम्हें श्राप देती हूं कि एक दिन मैं तुम्हारे दामाद की मृत्यु व बेटी के दुःख का कारण बनूँगी। अगले जन्म में उसी हिरण ने मंथरा के रूप में जन्म लिया व राजा दशरथ की मृत्यु का कारण बनी थी।
लोमस ऋषि ने उल्लेख किया है कि मंथरा कभी भक्त प्रहलाद के पुत्र विरोचन की पुत्री थी। जब एक बार विरोचन और देवताओं के बीच युद्ध हुआ तो विरोचन ने देवताओं पर विजय प्राप्त की थी किंतु कुछ ही समय पश्चात देवताओं ने एक षड्यंत्र रचा तथा ब्राह्मण स्वरूप धर कर विरोचन से भिक्षा में उसकी आयु ही मांग ली इस प्रकार विरोचन की मृत्यु के पश्चात सभी दैत्य यहाँ-वहाँ भाग रहे थे और उनका कोई मुखिया भी नहीं था।ऐसे में मंथरा ने दैत्यों का नेतृत्व किया और देवताओं पर फिर से विजय प्राप्त की तथा देवता भी दैत्यों के डर से इधर-उधर भागने लगे तथा भगवान विष्णु के पास पहुंचे तब भगवान विष्णु ने देवराज इंद्र को मंथरा पर आक्रमण की आज्ञा दी तो देवराज इंद्र के बज्र के प्रहार से मंथरा पृथ्वी पर जाकर गिरी और उसकी मृत्यु हो गयी। इंद्र के वज्र के प्रहार से भक्त पहलाद के पुत्र विरोचन की पुत्री मंथरा की मृत्यु तो हो गयी, किंतु मंथरा ने भगवान विष्णु से बदला लेने की ठान ली क्योंकि वह सोचती रही कि उसका जो हाल है कि उसके अपनों ने भी उसे त्याग दिया इसके लिए उत्तरदायी केवल भगवान विष्णु ही हैं।
और वह भगवान विष्णु से बदला लेने के बारे में सोचती रही बदले की भावना से उसने रामायण काल में मंथरा के रूप में जन्म लिया था और भगवान राम के जीवन को तहस-नहस कर दिया लोमश ऋषि के अनुसार जो कुबड़ी मंथरा थी वह श्री कृष्ण के काल में कुब्जा के नाम से ही जानी जाती थी।
कहीं उल्लेख मिलता है कि गंधर्वी ने मंथरा के रूप में कैकेय देश में जन्म लिया इनके पिता का नाम वृहदृथ था जो केकय देश के सम्राट अश्वपति के भाई थे,
किंतु रामायण काल में भी अपने कुबड़े रूप के कारण मंथरा अविवाहित ही रही।
जब पृथ्वी पर अनाचार, अधर्म, अनीति का बोलबाला था तथा चारों तरफ राक्षसों के घोर अत्याचार के कारण ऋषि-मुनियों तथा आम लोगों का जीना मुश्किल हो गया था उस समय सभी देवी देवता ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और उन्होंने इस स्थिति के बारे में ब्रह्मा जी को बताया तब ब्रह्मा जी ने कहा कि तुम सभी देवी देवता जाकर पृथ्वी पर वानर भालू आदि का रूप धारण करो और भगवान विष्णु श्री राम रूप में जन्म लेंगे इसलिए जाकर राक्षसों के विनाश में आप सभी उनकी सहायता करो। ऐसा सुनकर देवताओं ने गंधर्वी से प्रार्थना की कि तुम धरती लोक पर जाकर मंथरा के रूप में जन्म लो और भगवान श्री राम को 14 वर्ष वनवास दिलवाने में अपनी भूमिका निभाओ। जिससे राक्षसों का विनाश हो सके इस प्रकार मंथरा एक गंधर्व कन्या थी तथा जिस की मुख्य भूमिका श्री राम को वनवास देना तथा राक्षसों का संहार करवाना।
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