लंकापति रावण त्रिकूट नामक पर्वत पर स्थित लंका नगरी में रहता था। उसने तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया था। जब ब्रह्मा जी ने उससे वरदान मांगने के लिए कहा तो रावण ने कहा- वानर और मनुष्य के अलावा किसी अन्य के हाथों मेरी मृत्यु न हो। इसलिए उसने मनुष्यों और वानरों को छोड़ कर किसी अन्य के हाथों न मरने का वरदान ब्रह्मा जी से मांग लिया था। आनंद रामायण में उल्लेख आता है कि रावण को ब्रह्माजी ने बता दिया था कि दशरथ और कौशल्या का पुत्र ही उसकी मृत्यु का कारण बनेगा। रावण ने अपनी मृत्यु को टालने के लिए दशरथ और कौशल्या के विवाह के दिन ही उसने कौशल्या का अपहरण कर लिया। ब्रह्माजी ने दशरथ की पत्नी कौशल्या से कहा था कि उनके गर्भ से साक्षात् भगवान विष्णु जी का जन्म होगा।
त्रेतायुग में कोशल देश में कोशल नाम का एक राजा थे। उसकी पुत्री का नाम कौशल्या था जो विवाह योग्य हो गयी थी। राजा कोशल ने अपनी पुत्री का विवाह अयोध्या के राजा दशरथ से करने का निर्णय लिया। राजा दशरथ को विवाह का प्रस्ताव सुनाने के लिए उन्होंने अपने दूत को राजा दशरथ के पास भेजा। जब वह दशरथ के पास पहुंचा वह जलक्रीड़ा कर रहे थे।
लगभग उसी समय लंकापति रावण ब्रह्मलोक में ब्रह्माजी के सामने आदरपूर्वक पूछ रहा था कि मेरी मृत्यु किसके हाथों से होगी। रावण की बात सुन कर ब्रह्माजी ने कहा-दशरथ की पत्नी कौशल्या से साक्षात् भगवान विष्णु जी का जन्म होगा। वही तुम्हारा विनाश करेंगे।
ब्रह्माजी की बात सुन कर रावण अपनी सेना के साथ अयोध्या की ओर निकल पड़ा वहां पहुंच कर उसने युद्ध किया और राजा दशरथ को पराजित कर दिया। लड़ाई सरयू के निकट हो रही थी और राजा दशरथ नौका में थे। रावण ने नौका को तहस-नहस कर दिया, तब राजा दशरथ और उनके मंत्री सुमंत नदी में बहते हुए समुद्र में जा पहुंचे।
उधर रावण अयोध्या से चल कर कोशल नगरी में जा पहुंचा। वहां भयानक युद्ध करके उसने राजा कोशल को भी जीत लिया। इसके बाद कौशल्या का अपहरण करके खुश होते हुए आकाशमार्ग से लंका की ओर चल पड़ा। रास्ते में समुद्र में रहने वाली विशाल ह्वेल (तिमि) मछली को देखकर रावण ने सोचा कि सभी देवता मेरे शत्रु हैं, कहीं रूप बदल कर वे ही कौशल्या को लंका से न ले जाएं।इसलिए कौशल्या को इस मछली को ही क्यों न सौंप दूं। ऐसा सोच कर उसने कौशल्या को एक संदूक में बंद करके मछली को सौंप दिया, और वह लंका चला गया। मछली संदूक लेकर समुद्र में घूमने लगी। अचानक एक और मछली के आने से वह उसके साथ लड़ने लगी ॉ लगी और संदूक को समुद्र में छोड़ दिया।उसी समय राजा दशरथ भी अपने मंत्री सुमंत के साथ बहते हुए समुद्र में पहुंचे। वहां उनकी दृष्टि संदूक पर पडी़। कौशल्या ने अपनी आपबीती सुनाई। राजा भी कौशल्या को देखकर आश्चर्यचकित हो गए।
आपस में बातचीत करने के बाद वह तीनों पुनः संदूक में बैठ गए। वह इसलिए क्यों कि ज्यादा समय तक समुद्र के अंदर रहना ठीक नहीं था। मछली जब आई तो उसने संदूक को मुंह में रख लिया।तब रावण ने कहा- ब्रह्माजी से कहा कि मैंने दशरथ को जल में और कौशल्या को संदूक में छिपा दिया है। तब ब्रह्माजी आकाशवाणी से बोले कि उन दोनों का विवाह हो चुका है। रावण बहुत क्रोधित हुआ। तब ब्रह्माजी ने कहा कि होनी होकर ही रहती है।मगर रावण ने सीता के हरण से पहले भगवान श्रीराम की माता कौशल्या का हरण किया था। वाल्मीकि रामायण के अनुसार कौशल्या का नाम सबसे पहले एक ऐसी रानी के तौर पर आता हैं जिसे पुत्र की इच्छा थी। जिसकी पूर्ति के लिए एक यज्ञ का आयोजन किया गया था।
महाराज कोशल और अमृतप्रभा की पुत्री कौशल्या, कोशल प्रदेश की राजकुमारी थी। जिनके स्वयंवर के लिए विभिन्न प्रदेशों के राजकुमारों को बुलाया गया मगर इस बीच एक और घटना घटित हुई दशरथ और कोशल दोनों दुश्मन थे। मगर इस दुश्मनी को खत्म करने के लिए राजा दशरथ ने कोशल के साथ शंति की पहल की, मगर कोशल ने इस पहल को मना कर युद्ध के लिए दशरथ को आमंत्रित किया। जिसमें कोशल की पराजय हुई। दशरथ से हार के बाद विवश होकर कोशल को उनके साथ मित्रता करनी पड़ी। दोनों की दोस्ती जैसे बढ़ने लगी कोशल ने अपनी पुत्री कौशल्या का विवाह दशरथ के साथ किया। विवाह के बाद दशरथ ने कौशल्या को महारानी की पदवी प्रदान की। आनंद ऐसा भी उल्लेख मिसता है कि रावण कौशल्या का अपहरण कर उनको को एक डब्बे में बंद कर एक निर्जन द्वीप पर छोड़ आया था। नारद ने रावण की इस चाल और उस स्थान के बारे में दशरथ को बताया जहां कौशल्या को रखा गया था। इतना सुनते ही रावण से युद्ध करने के लिए दशरथ अपनी सेना लेकर उस निर्जन द्वीप पहुंचे।
रावण की राक्षसी सेना के सामने दशरथ की सेना का विनाश हो गया। मगर दशरथ एक लकड़ी के तख्ते के सहारे समुद्र में तैरते रहे और उस वक्से तक पहुंच गए जिसमें कौशल्या को बंधक बनाकर रखा गया था। वहां जाकर दशरथ ने कौशल्या को बंधनमुक्त किया और सकुशल अपने महल में लें आएं। इस तरह रावण ने श्रीराम के जन्म से पहले ही अपनी मौत को टालने का प्रयास किया था। जिसमें वो विफल रहा। अब कहते हैं ना कि जाकी जस भवितव्या तैसी मिलै सहाय। आप ना आवै ताहिं पहं ताहि वहां लै जाय। रावण को राम के हाथों मरना था सो उसने अपनी मौत का रास्ता भी खुद ही चुन लिया। साधु का छल वेष धारण कर पंचवटी से सीता का अपहरण कर उन्हें श्रीलंका ले आया। राम उस वक्त स्वर्ण मृग के संधान में वन में गये थे। उन्होंने जब छल से स्वर्ण मृग का रुप धारण करनेवाले मारीच का वध किया तो वह हा लक्ष्मण, हा लक्ष्मण चिल्लाया। इस पर सीता ने भैया राम की मदद के लिए हठ कर के लक्ष्मण को भेज दिया। पंचवटी की कुटिया में सीता को अकेला पाकर रावण उनका हरण कर श्रीलंका ले गया और अशोक वाटिका में रख दिया। राम, लक्ष्मण जब वापस लौटे तो सीता को वहां नहीं पाया वे चारों ओर व्याकुल होकर उनको खोजने लगे। उसके बाद राम की सुग्रीव से भेंट, हनुमान जी का श्रीलंका जाकर सीता का पता लगाना, लंका दहन, राम-रावण युद्ध और श्रीराम के हाथों रावण का अंत। रामायण की यह कहानी तो सभी जानते हैं। इस तरह रावण ने सीता से पहले कौशल्या का भी अपहरण किया था। यह अपहरण उस समय हुआ था जब कौशल्या का विवाह राजा दशरथ से होनेवाला था।
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