Monday, July 26, 2021

क्या आप जानते हैं कौन था विश्व का पहला मानव?


आप सबके मन में अक्सर कई बार यह प्रश्न उठता होगा कि कौन था विश्व का पहला मानव। हमारी मानव जाति किसकी संतान है। हिंदुओं में आम धारणा मान्यता यह है कि स्वयंभुव मनु संसार के प्रथम पुरुष थे। यह भी माना जाता है कि मनु ही मानवों के पूर्वज हैं और उनके नाम पर ही मानव का नाम पड़ा। मनु से ही मानव मनुष्य कहलाये। ऐसा माना जाता है कि सृष्टि की वृद्धि के लिए ब्रह्मा जी ने अपने शरीर को दो भागों में बाँट लिया जिनमें से एक का नाम 'का' और दूसरे का 'या' हुआ। दोनों को मिला कर काया बना जिसका अर्थ होता है शरीर। उन्हीं दो भागों में से एक से पुरुष तथा दूसरे से स्त्री की उत्पत्ति हुई। पुरुष का नाम स्वयंभुव मनु और स्त्री का नाम शतरूपा था। इन्हीं प्रथम पुरुष और प्रथम स्त्री की सन्तानों से संसार के समस्त जनों की उत्पत्ति हुई। मनु की सन्तान होने के कारण वे मानव कहलाये। मनु का जन्म आज से लगभग 20 हजार वर्ष पूर्व हुआ था प्रथम मनु का नाम स्वयंभुव मनु था, जिनके साथ प्रथम स्त्री थी शतरूपा। माता-पिता के बिना जन्म लिया इसलिए इनका नाम 'स्वयं भू' अर्थात स्वयं उत्पन्न होने वाले पड़ा। इन्हीं प्रथम पुरुष और प्रथम स्त्री की सन्तानों से संसार के समस्त जनों की उत्पत्ति हुई। कुल चौदह मनु बताये जाते हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं-स्वायम्भु, स्वरोचिष, औत्तमी, तामस मनु, रैवत, चाक्षुष, वैवस्वत, सूर्यसावर्णि, दक्ष सावर्णि, ब्रह्म सावर्णि, धर्म सावर्णि रुद्र सावर्णि, रौच्य या देव सावर्णि, भौत या इन्द्र सावर्णि।

स्वयभुव मनु ने "मनु स्मृति'' नामक ग्रंथ की रचना की थी। मनुस्मृति में कुल 12 अध्याय हैं। इसकी गणना विश्व के ऐसे ग्रन्थों में की जाती है, जिनसे मानव ने वैयक्तिक आचरण और समाज रचना के लिए प्रेरणा प्राप्त की है। इसमें प्रश्न केवल धार्मिक आस्था या विश्वास का नहीं है। मानव जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति, किसी भी प्रकार आपसी सहयोग तथा सुरुचिपूर्ण ढंग से हो सके, यह अपेक्षा और आकांक्षा प्रत्येक सामाजिक व्यक्ति में होती है।

स्वयंभुव मनु ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से थे जिनका विवाह ब्रह्मा के दाहिने भाग से उत्पन्न शतरूपा से हुआ था। उत्तानपाद जिसके घर में ध्रुव पैदा हुआ था, स्वयंभुव मनु का ही पुत्र था।  स्वयंभुव मनु का ज्येष्ठ पुत्र प्रियव्रत पृथ्वी का प्रथम क्षत्रिय माना जाता है। इनके द्वारा प्रणीत 'स्वयंभुव शास्त्र' के अनुसार पिता की संपत्ति में पुत्र और पुत्री का समान अधिकार होता है। इनको धर्मशास्त्र का और मनु अर्थशास्त्र का आचार्य माना जाता है। मनुस्मृति ने सनातन धर्म को आचार संहिता से जोड़ा था।

आपव नामक प्रजापति के धर्म से कन्या शतरूपा का जन्म हुआ। आपव (जो कि बाद में स्वायंभुव मनु कहलाये) ने प्रजा की रचना करने के उपरांत शतरूपा को अपनी पत्नी बना लिया। उसके पुत्र का नाम वीर हुआ। वीर ने प्रजापति कर्दम की कन्या काम्या से विवाह किया तथा दो पुत्रों को जन्म दिया- प्रियव्रत तथा उत्तानपाद। मनु की विस्तृत संतति में ही ध्रुव, वेन इत्यादि हुए। वेन से मनुगण बहुत रुष्ट थे क्योंकि वह अनाचारी था। मुनियों ने उसके दाहिने हाथ का मंथन किया, जिससे राजा पृथु का जन्म हुआ। वे राजसूय यज्ञ करने वाले राजाओं में सर्वप्रथम थे। प्रजाओं को जीविका देने की इच्छा से उन्होंने पृथ्वी  से  अन्न तथा दूध का दोहन आरंभ किया। साथ-साथ राक्षस, पितर, देवता, अप्सरा, नाग इत्यादि सब इस कर्म में लग गये। कालांतर में उसके दो पुत्र हुए अंतर्धान तथा पातिन। अंतर्धान से शिखंडिनी ने हविर्धान को जन्म दिया। अग्नि की पुत्री घिषणा से हविर्धान ने छह पुत्रों को जन्म दिया- प्राचीनवर्हिस्, शुक्र, गय, कृष्ण, ब्रज और अजिन। प्राचीनवर्हिस ने घोर तप करके समुद्र-कन्या सवर्णा से विवाह किया। उसके दस पुत्र हुए जो एक ही धर्म का पालन करते थे। वे प्रचेता नाम से विख्यात हुए।

 मनु ने ब्रह्मा से पूछा कि वे प्रजा के निवास के लिए कौन-सा स्थान ठीक समझते हैं? ब्रह्मा ने चिंतन आरंभ किया, बाद में जल में डूबी हुई पृथ्वी को जल के ऊपर लाने का कार्य विष्णु ने वाराह अवतार लेकर किया।मनु का उल्लेख ऋग्वेद काल से ही मानव सृष्टि के आदि प्रवर्तक और समस्त मानव जाति के आदि-पिता के रूप में किया जाता रहा है। इन्हें 'आदिपुरुष' भी कहा गया है। आरंभ में मनु और यम का अस्तित्व अभिन्न था। बाद में मनु को जीवित मनुष्यों का और यम को दूसरे लोक में, मृत मनुष्यों का आदिपुरुष माना गया।

'शतपथ ब्राह्मण' ग्रंथ के अनुसार एक मछली ने मनु से प्रलय की बात कही थी और बाद में इन्हीं से सृष्टि चली। मत्स्य पुराण में मनु को 'मनुस्मृति' का रचयिता और एक शास्त्र प्रवर्तक माना गया है।वैदिक संहिताओं में मनु को ऐतिहासिक व्यक्ति माना गया है। ये सर्वप्रथम मानव थे जो मानव जाति के पिता तथा सभी क्षेत्रों में मानव जाति के पथ प्रदर्शक के रूप में स्वीकृत हैं। पुराणों में मनु को मानव जाति का गुरु तथा प्रत्येक मन्वन्तर में स्थित कहा गया है। वे जाति के कर्त्तव्यों (धर्म) के ज्ञाता है।

भगवद्गीता में भी मनुओं का उल्लेख  है। मनु नामक अनेक उल्लेखों से प्रतीत होता है कि यह नाम न होकर उपाधि है। मनु शब्द का मूल मनन करने से भी यही प्रतीत होता है। मनुरचित 'मानव धर्मशास्त्र' भारतीय धर्मशास्त्र में आदिम व मुख्य ग्रंथ माना जाता है। मनुस्मृति को उन्हीं मूल सूत्रों के आधार पर लिखी हुई हैं। वर्तमान सभी स्मृतियों में यह प्रधान समझी जाती है।

सनातन वैदिक धर्म सहित विश्व के सभी धर्मों में समान रूप से यह मान्यता है कि मानवता का आरंभ मनु और शतरूपा से हुआ है।

इन्हीं मनु और शतरूपा ने घोर तपस्या करके परमपिता परमेश्वर को अपने पुत्र के रूप में पाने का वरदान पाया और कालांतर में दशरथ कौशल्या बन कर अयोध्या में आए और इन्हीं के पुत्र बन कर राम जी ने अवतार लिया।

प्रलय अथवा विनाश का उल्लेख विश्व के हर धर्म में किसी न किसी रूप में मिलता है। सनातन वैदिक धर्म में भी शास्त्रों की मान्यता के अनुसार हर मन्वंतर के बाद एक आंशिक प्रलय होती है जिसमें संपूर्ण मानवता समाप्त हो जाती है और जब अगले मनु उत्पन्न होते हैं तब फिर से मानव सभ्यता आरंभ होती है। इस प्रलय काल में मनु , सप्त ऋषियों और कुछ जीवों को भगवान श्रीहरि के मत्स्य (मछली) अवतार द्वारा बचाए जाने का उल्लेख वैदिक पुराणों में मिलता है। वैदिक मतानुसार मत्स्य अवतार भगवान विष्णु का पहला अवतार है।

इस प्रकार सृष्टि का यह खेल अनन्त काल से चलता आ रहा है जो कई कई चरणों में प्रारंभ होता है समाप्त होता है, फिर प्रारंभ होता है फिर समाप्त होता है और एक ही कल्प अर्थात ब्रह्मा जी के एक ही दिन में 14 मनु उत्पन्न होते हैं और नष्ट होते हैं।

'शतायु' अभगच्छत राजेन्द्र देविकां विश्रुताम्। प्रसूर्तित्र विप्राणां श्रूयते भरतर्षभ॥- यह महाभारत का श्लोक है जिसका अर्थ है-सप्तचरुतीर्थ के पास वितस्ता नदी की शाखा देविका नदी के तट पर मनुष्य जाति की उत्पत्ति हुई। प्रमाण यही बताते हैं कि आदि सृष्टि की उत्पत्ति भारत के उत्तराखण्ड अर्थात् ब्रह्मावर्त क्षेत्र में ही हुई। वेद अनुसार प्रजापतियों के पुत्रों से ही धरती पर मानव की आबादी हुई। आज धरती पर जितने भी मनुष्य हैं सभी प्रजापतियों की संतानें हैं।

 स्वायंभुव मनु को आदि भी कहा जाता है। आदि का अर्थ प्रारंभ। इस आदि शब्द से ही आदम शब्द की उत्पत्ति हुई होगी। स्वायंभुव मनु की उत्पत्ति ब्रह्मा ने की थी। पुराणों में उनकी उत्पत्ति की कथा अलग-अलग तरीके से बताई गई है जिससे भ्रम उत्पन्न होता है, लेकिन इतना तो तय है कि उनकी उत्पत्ति ब्रह्मा से हुई थी। ब्रह्मा और मनु की परंपरा वाला धर्म अब भारत में नहीं पाया जाता। भारत में विष्णु और शिव सहित अन्य देवी और देवताओं की परंपरा से प्राप्त धर्म का पालन होता है।


 महाराज मनु ने बहुत दिनों तक इस सप्तद्वीपवती पृथ्वी पर राज्य किया। जब महाराज मनु को मोक्ष की अभिलाषा हुई तो वे संपूर्ण राजपाट छोड़कर अपनी पत्नी शतरूपा के साथ नैमिषारण्य तीर्थ चले गए।

 मनु ने सुनंदा नदी के किनारे सौ वर्ष तक तपस्या की। दोनों पति-पत्नी ने नैमिषारण्य नामक पवित्र तीर्थ में गौमती के किनारे भी बहुत समय तक तपस्या की। उस स्थान पर दोनों की समाधियां बनी हुई हैं।

 स्वायम्भु मनु के काल के ऋषि मरीचि, अत्रि, अंगिरस, पुलह, कृतु, पुलस्त्य, और वशिष्ठ हुए। राजा मनु सहित उक्त ऋषियों ने ही मानव को सभ्य, सुविधा संपन्न, श्रमसाध्य और सुसंस्कृत बनाने का कार्य किया।

एक ‘मनु’ के कार्यकाल को मन्वंतर कहा जाता है। इस प्रकार 14 मन्वंतरों का एक कल्प होता है। जैन धर्म में भी 14 कुलकरों की मान्यता है।

वर्तमान में वराह कल्प के अंतर्गत वैवस्वत मन्वंतर चल रहा है जो इस कल्प के सातवें मनु थे। 

इन्हीं महाराज मनु ने मानव जाति के कल्याण और संसार की धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक व्यवस्था को संतुलित और सुचारु बनाये रखने के लिए बहुत से दिशा निर्देश और ज्ञान से भरे ग्रंथ ‘मनु स्मृति’ की रचना की थी।

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