Friday, July 30, 2021

बदल सकता है ऊं का जाप आपका जीवन



ॐ ऐसा चमत्कारिक शब्द है जिसका नियम और श्रद्धापूर्वक किया गया जाप  सारे कष्ट दूर कर सकता है। अगर निरंतर इसका जाप किया जाये तो इससे आपका जीवन भी बदल सकता है। ऊं अक्षरका अर्थ है जिसका कभी क्षरण अर्थात क्षय ना हो। अ उ और म से मिल कर बने ॐ को साक्षात ब्रह्म का रूप माना जाता है। कहते हैं कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड से सदा ॐ की ध्वनि निकलती रहती है। ऊं को अत्यंत पवित्र और  शक्तिशाली मा्ना जाता है। किसी भी मंत्र से पहले यदि ॐ जोड़ दिया जाए तो उसकी शक्ति में वृद्धि हो जाती है। किसी देवी-देवता, ग्रह या ईश्वर के मंत्रों के पहले ॐ लगाना आवश्यक होता है, जैसे, श्रीराम का मंत्र ॐ रामाय नमः, विष्णु का मंत्र  ॐ विष्णवे नमः, शिव का मंत्र ॐ नमः शिवाय, प्रसिद्ध हैं। 

ऐसा भी कहा जाता है कि ॐ लगाये बिना कोई मंत्र फलदायी नहीं होता। ॐ अपने आप में पूर्ण मंत्र है। इसे साक्षात ब्रह्म का ही स्वरूप माना जाता है। माना जाता है कि एक बार ॐ का जाप हज़ार बार किसी मंत्र के जाप से महत्वपूर्ण है। ॐ का एक नाम प्रणव अर्थात परमेश्वर है। "तस्य वाचकः प्रणवः" अर्थात् उस परमेश्वर का वाचक प्रणव है। इस तरह प्रणव अथवा ॐ एवं ब्रह्म में कोई भेद नहीं है। ॐ अक्षर है इसका क्षरण अथवा विनाश नहीं होता।

छान्दोग्योपनिषद् में कहा गया है-ॐ इत्येतत् अक्षरः अर्थात् ॐ अविनाशी, अव्यय एवं क्षरण रहित है।ॐ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्रदाता है। ऐसे कई प्रमाण हैं कि मात्र ॐ का जप कर कई साधकों ने अपने उद्देश्य को प्राप्त कर लिया। कोशीतकी ऋषि निस्संतान थे, संतान प्राप्ति के लिए उन्होंने सूर्य का ध्यान कर ॐ का जाप किया तो उन्हें पुत्र प्राप्ति की हुई।

 ऊँ को ईश्वर के सभी रूपों का संयुक्त रूप माना गया है इसके जाप से  परमेश्वर प्रसन्न होते हैं। इस चमत्कारी शब्द में इतनी शक्ति है कि केवल इसके जाप से ईश्वर को पाया जा सकता है। ऊँ शब्द में पूरी सृष्टि समाई हुई है। इसके उच्चारण से सकारात्मक ऊर्जा का सृजन होता है।

हिंदू धर्म में मंत्रोच्चारण का बहुत महत्व है और सभी मन्त्रों का उच्चारण ऊँ से ही शुरू होता है. हिंदू धर्म की परंपराओं के अनुसार, ऊँ एक शब्द नहीं बल्कि...ऊँ का पौराणिक महत्व ऊँ के उच्चारण में संपूर्ण ब्रह्मांड का ज्ञान छिपा है। ॐ ऐसा चमत्कारिक शब्द है जो कुछ ही दिनों में आपकी तमाम परेशानियों को खत्म करके आपके पूरे जीवन को बदल कर रख सकता है लेकिन इसके जाप का लाभ लेने के लिए नियमों को जानना जरूरी है।

जिन्हें समय ना मिलता हो उन्हें कम से कम सुबह उठ कर शुद्ध होकर और रात में सोते समय शांति से बैठ कर कम से कम दो मिनट के लिए ॐ का  जाप करना चाहिए। इससे कुछ दिन में चमत्कारी लाभ हो सकते हैं। इसके जाप के नियम भी जान लीजिए। ॐ शब्द बोलते समय हमारे गले और शरीर में एक तरह का कंपन होता है, इससे थायरॉयड, ब्ल़ड प्रेसर, फेफडों व पेट की समस्याएं ठीक होती हैं । इसके जाप से शरीर में ऑक्सीजन भी सही और प्रचुर मात्रा में मिलती है।वैज्ञानिकों का भी मानना है कि नियमित ॐ के  जाप से तनाव, क्रोध और अनिद्रा जैसी समस्याओं से आराम मिलता है।

ऊं का जाप करने के लिए शांत जगह पर बैठें।ऊं का जाप करते समय जो ध्वनि उत्पन्न होती है उस ध्वनि और स्पंदन से भी अनेक तरह के शारीरिक और आध्यात्मिक लाभ होते हैं। इसका जाप सदा शांत और कोलाहल विहीन स्थान पर करना चाहिए।

 ॐ का उच्चारण करते समय स्वर को जितना ऊंचा रखेंगे और जितनी गहराई से इसे बोलेंगे उतना ही इससे लाभ होगा। इसका जाप पद्मासन में बैठ कर करना चाहिए। पद्मासन संभव ना हो तो सुखासन में बैठ कर भी इसका जाप कर सकते हैं। 

 ॐ का उच्चारण करने से पहले आसन लगाएं और पद्मासन में बैठें। इसके पश्चात आंखें बंद करके सांस खींचें और फिर पेट से ॐ की आवाज़ को निकालते हुए सांस छोड़ते चले जाएं। जोर से ऊं का उच्चारण करने से नाभि से लेकर नासिका और मस्तिष्क तक में स्पंदन होता है। इस मंत्र  के जाप के लिए प्रात: और रात्रि का समय उचित होता है। शास्त्रों के अनुसार दिन के चौबीस घंटों में से कुछ घंटों का समय ऐसा होता है जब ईश्वरीय शक्ति अपने चरम पर होती है। इस समय में किया गया जाप, पाठ, आराधना अधिक फलित होते हैं। 

जब भी कोई व्यक्ति ओम का जाप या उच्चारण करता है तो एक कंपन्न उत्पन्न होती है जो उस व्यक्ति के पूरे शरीर को एक अनुपम अनुभव देती है। ओम का जाप करने से शरीर में प्राण शक्ति का संचार होता है।

जब भी कोई व्यक्ति ओम का जाप या उच्चारण करता है तो एक कंपन उत्पन्न होती है जो उस व्यक्ति के पूरे शरीर को एक सौम्य अनुभव देती है। ओम का जाप करने से शरीर में प्राण शक्ति का संचार होता है।

गोपथ ब्राह्मण ग्रन्थ में उल्लेख है कि जो "कुश" के आसन पर पूर्व की ओर मुख कर एक हज़ार बार ॐ रूपी मंत्र का जाप करता है, उसके सब कार्य सिद्ध हो जाते हैं। स्वयं भगवान महावीर ने ध्यान की अतल गहराइयों में उतर कर देखा और ऊं के महत्व पर प्रकाश डाला। 

ॐ को ओम कहा जाता है। ऊं का उच्चारण करते समय 'ओ' पर ज्यादा जोर दिया जाता है। म का उच्चारण इसकी अपेक्षा कुछ मंद स्वर में किया जाता है।इस मंत्र को ब्रह्मांड की अनाहत ध्वनि भी माना जाता है। अनाहत यानी वह ध्वनि जो किसी दो वस्तुओं की टकराहट से उत्पन्न ना हुई हो। जो भी ओम का उच्चारण करता रहता है उसके आसपास सकारात्मक ऊर्जा का पैदा होने  लगती है। ओम की अंतर में उठती ध्वनि को सुनने के लिए पूर्णत: मौन और ध्यान में होना आवश्यक है। यह काम आसान नहीं है। जो भी उस ध्वनि को सुनने लगता है उसका परमात्मा से सीधा जुड़ाव होने लगता है।  परमात्मा से जुड़ना है तो निरंतर ॐ का जाप करना चाहिए।

ॐ शब्द को त्रिदेवों का प्रतीक भी माना जाता है। ऊं तीन ध्वनियों से बना हुआ है- अ, उ, म इन तीनों ध्वनियों का अर्थ उपनिषद में भी आता है। यह ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक भी है। सभी मंत्रों का उच्चारण जीभ, होंठ, तालू, दाँत, कंठ और फेफड़ों से निकलने वाली वायु के सम्मिलित प्रभाव से संभव होता है। इससे निकलने वाली ध्वनि शरीर के सभी चक्रों और हारमोन स्राव करने वाली ग्रंथियों से टकराती है। इन ग्रंथिंयों के स्राव को नियंत्रित करके बीमारियों को दूर भगाया जा सकता है।

प्रातः उठकर पवित्र होकर ओंकार ध्वनि का उच्चारण करें। ॐ का उच्चारण पद्मासन, अर्धपद्मासन, सुखासन में बैठ कर कर सकते हैं। इसका उच्चारण 5, 7, 10, 21 बार अपने कर सकते हैं। ॐ का जप माला से भी कर सकते हैं।

इसके जाप से शरीर और मन एकाग्र होता। हृदय की धड़कन और रक्तसंचार नियमित होता है। मानसिक बीमारियाँ से भी मुक्ति मिलती है। कार्यक्षमता बढ़ती है। ऊं का जाप करते समय पवित्रता और एकाग्रता का ध्यान  रखना आवश्यक होता है।

 ओंकार ध्वनि के 100 से भी अधिक अर्थ दिए गए हैं। यह अनादि और अनंत तथा निर्वाण की अवस्था का प्रतीक है।ऊं शब्द की उत्पत्ति के बारे में एक कथा आती है। कहते हैं कि एक बार दैत्यों ने इंद्रपुरी को घेर लिया। उनके पास बड़ी सेना थी। हर प्रकार के हथियारों से ज्जित हो उन्होंने युद्ध के लिए इंद्र को ललकारा।

‘हमारा युद्ध में सामना करो। हम अपने बाहुबल की शक्ति से तुम्हें युद्ध में परास्त करना चाहते हैं। यदि हम से डरते हो तो हार स्वीकार कर लो और इंद्रपुरी हमें सौप दो।

बड़ी दैत्य सेना देख कर इंद्र कांपने लगे। वे सोचने लगे कि इतनी बड़ी संख्या  में शत्रु के सामने कम संख्या वाले देवता क्या कर सकेंगे? ऐसे में तो इंद्रपुरी ही छिन जाएगी। अब अगर इंद्रपुरी की रक्षा करनी है तो हमें किसी दैवी शक्ति से सहायता लेनी चाहिए।

उनके सामने यह प्रश्न था कि दैत्यों को कैसे मारा जाये।भगवान् ने सलाह दी, केवल शब्द – शक्ति के देवता ॐ की सहायता से ही आप सब में नव प्राण और नए उत्साह का संचार संभव है। वे ही मेरी शक्ति के स्रोत हैं। आप उन्हीं के पास जाइए और उनसे शब्द – शक्ति ग्रहण कीजिए। 

 शब्दों में भी प्रचंड शक्ति भरी हुई है। उसकी साधना कीजिए। महाराज इंद्र को कुछ धैर्य हुआ ढूंढते – ढूंढते हुए ॐ (ओम्) देव के पास पहुंचे।

इंद्र ने ॐ से कहा, ‘हे भगवान् के शक्ति स्वरूप ॐ ! आप शब्द शक्ति हैं। हम आपको अपना नेता बना कर दैत्यों की सेना से युद्ध करना चाहते हैं। आप ईश्वर की शक्ति और सामर्थ्य के रूप हैं। आपके नाम के उच्चारण मात्र से हम देवताओं में नई शक्ति और नई स्फूर्ति आएगी।

आपके नाम के प्रत्येक स्वर में प्रचंड शक्ति भरी हुई है। आपका नाम उच्चारण करते रहने में हमें निरंतर साहस का प्रादुर्भाव होगा। इस संकट के समय में हमें अब आपका ही भरोसा है। हे स्वर देवता ! हमारी सहायता कीजिए।‘ओम्’ (ॐ)सोचते रहे। देवताओं पर बड़ा संकट था। उन्हें वीरता, साहस, धैर्य, उत्साहवर्धक शब्दों की आवश्यकता थी। उनका आत्मविश्वास और साहस कमजोर पड़ गया था। उत्साहवर्धक शब्दों से उनके वही शरीर फिर शक्तिशाली बन सकते थे। उनके लिए शब्दों की शक्तियों की योजना करनी होगी। देवताओं की विनय पर उन्हें दया आ गई। ओम् एक शर्त पर देवताओं को दिव्य सहायता देने को तैयार हुए। सब ने पूछा, ‘हे देव! कहिए आपकी शर्त क्या है?

ओम ने कहा- ‘मुझे अर्थात ‘ओम‘ को पहले पढ़े बिना ब्राह्मण वेदोच्चारण ना करें। मेरे नाम का उच्चारण सबसे पहले किया जाये। यदि कोई ब्राह्मण मेरा नाम लिए बिना वेद पाठ करें तो वह देवताओं द्वारा स्वीकार किया जाए।’‘ओम्‘ की सहायता के बिना दैत्य जीते नहीं जा सकते थे। अतः देवताओं ने उनकी यह शर्त मान ली। उन्होंने देवताओं की सेना का संचालन किया।

पूरी सेना के सामने ओम खड़े थे। वे बोले, देवताओ! मेरा नाम उच्चारण करते करते पूरे धैर्य के साथ आगे बढ़ो। कायरता दूर होगी। आज आप अपनी शक्ति को पहचानिए। आप में दैवी शक्तियां सो रही हैं। मेरा नाम लेने से वे जागृत हो जाएंगी।

देवताओं की सेना आगे बढ़ी। घोर युद्ध हुआ। देवताओं की सेना विश्वास भरें उच्च स्वर में ‘ॐ….ॐ….ॐ….ॐ….ॐ….ॐ….ॐ… का उच्चारण कर रही थी। उस शब्द की प्रचंड शक्ति से पूरी सेना में नई शक्ति और साहस उमड़ रहा था। वह नए उत्साह से दानवों की बड़ी सेना को काट रहे थे। थकी हुई सेना जैसी ही ‘ओम’ शब्द का उच्चारण करती, वैसे ही उसे नई शक्ति फिर मिल जाती। उसकी शक्ति अक्षय हो गई थी। इस शब्द का चमत्कार संजीवनी शक्ति के सामान जीवन और प्राणदायी था।

युद्ध समाप्त हुआ। ‘ओम्‘ शब्द की शक्ति के कारण देवता विजयी हुए। सब देवताओं ने ॐ का जयकार किया।तब से ॐ अमर हो गए। थके – हारे जीवन में निराश, उत्साहहीन व्यक्तियों को जीवन में नवजीवन, नई प्रेरणा और नई शक्ति देने के लिए ‘ओम्’ शब्द का प्रयोग प्रचलित हुआ।

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