आपने
अपने घरों में देवताओं या संतों के चित्र के सिर के इर्द गिर्द एक चमकदार वलय या
घेरा अवश्य देखा होगा। यह चमकदार घेरा ही आभामंडल कहलाता है। अंग्रेजी में इसे औरा
कहते हैं।सूर्य व चंद्रमा के चारों ओर एक प्रकाश का वृत्त या घेरा हमको अक्सर
दिखाई देता है। इस प्रकाश चक्र सूर्य व चंद्रमा का आभामंडल कहते हैं। ठीक उसी
प्रकार प्रत्येक सजीव प्राणी का भी एक आभामंडल होता है।
क्या आपने कभी सोचा है कि आपके शरीर के आस पास रोशनी क्यों होती है, जो नंगी आंखों से दिखती नहीं पर अगर विशेष तरह से देखा जाये तो अवश्य दिखती है। यह वही रोशनी है जो आप महान संतों, देवताओं के चित्रों में उनके सिर के आस पास देखते हैं। इसेआभामंडल या अंग्रेजी में औरा कहते हैं। आपका भी अपना आभामंडल होता है पर आप जानते नहीं। इस वीडियो में हम उसी आभामंडल या औरा के विविध पक्षों को आपके सामने प्रस्तुतकरेंगे। इस ब्रह्मांड के हर जीवित निर्जीव वस्तु का अपना आभामंडल होता है। इसे एनर्जी फील्ड या ऊर्जा केंद्र कहते हैं। आभामंडल विद्युत चुंबकीय तरंगों से बनता है यह हमारे शरीर को भेदता हुआ हमारे चारों ओर चार से पांच इंच तक फैला होता है। यह हमारी मानसिक, भावनात्मक,शारीरिक और आध्यात्मिक स्थिति को दर्शाता है। सफेद चमकदार आभामंडल इस बात का द्योतक है कि वह व्यक्ति स्वस्थ है। वैसे आभामंडल में और भी रंग होते हैं। जिस व्यक्ति का आभामंडल धुंधला या गंदा होता है वह अस्वस्थ हो सकता है। आभामंडल के धुंधले व गंदे होने के कई कारण हैं। इनमें हमारा खानपान,हमारे आसपास का वातावरण और हमारे संगी-साथिय़ों के स्वभाव या अवगुणों का भी प्रभाव पड़ता है। नित्य व्यायाम और योग आदि कर के आप अपने आभामंडल को स्वच्छ रख कर स्वस्थ रह सकते हैं। आप चाहें तो आभामंडल को देख भी सकते हैं। पर आप आभामंडल के सफेद रंग भर को देख सकते हैं बाकी रंग नहीं। आपको जिसका आभामंडल देखना है उसके शरीर के चार से पांच इंच ऊपर एक काल्पनिक बिंदु बना लें। अब बिना पलक झपकायें कुछ सेकंड देखने के बाद आप उसके चारों ओर एक सफेद रंग की रोशनी देख पायेंगे यही उस व्यक्ति का औरा या आभामंडल है। संभव है पहली बार में लोगों को यह ना दिखाई दे लेकिन नियमित अभ्यास करने से इसमें सफलता मिल सकती है। इसके लिए शर्त यही है कि आप जिस व्यक्ति का आभामंडल देखना चाहते हैं उसके शिर के ऊपर सोचे गये काल्पनिक स्थान पर आपको कुछ देर तक अपलक देखना है। अपलक अर्थात बिना पलक झपकाये।कुंडलनी जागरण की सिद्धि से भी आभामंडल का दर्शन हो सकता है। अगर आप अपने आभामंडल को शक्तिशाली बना लिया तो सारी खुशियां, सफलताएं आपके कदम चूमेंगी। आपके कर्मों से भी जुड़ा है आपका आभामंडल। आभामंडल कमजोर होने से व्याधियां और दुख जीवन का अभिन्न अंग बन जाते हैं. अगर किसी का आभामंडल शरीर से चार-पांच फुट तक विस्तारित और स्वच्छ हो इसे श्रेष्ठ माना जाता है। इसका प्रभाव व्यक्ति के स्वभाव, व्यक्तित्व व स्वास्थ्य पर अच्छा पड़ता है। आभामंडल क्षीण या धुंधला होने से व्यक्ति के जीवन पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन, पूजापाठ, यज्ञ आदि से कोई भी अपने आभामंडल को सुधार सकता है। इसके अतिरिक्त त्राटक का अभ्यास भी इसमें सहायक हो सकता है। त्राटक अभ्यास में दीपक जला कर उसकी लौ पर त्राटक लगाया जाता है। त्राटक अर्थात अपलक लौ को निहारना। अगर नित्य नियम और श्रद्धा से गायत्री मंत्र का जाप किया जाये तो यह भी आभामंडल को सशक्त बनाने में काफी सहायक हो सकता है। प्रात: उठ कर शुद्ध होकर नियमित ऊंचे स्वर में ओम का जाप करना भी आभामंडल को सशक्त बनाने में सहायक हो सकता है।आभामंडल को सशक्त बना कर कोई भी असाध्य साधन कर सकता है। ब्रह्मचर्य का पालन कर के कोई भी अपने आभामंडल को इतना सशक्त बना सकता है कि वह असाध्य साधन कर सके और उसका जीवन दिव्य हो सके।
मनुष्य के सातों चक्रों से सकारात्मक ऊर्जा प्रकट होती है तो वह उक्त
व्यक्ति का भामंडल कहलाता है। यदि सातों चक्रों से नकारात्मक ऊर्जा प्रकट होती है
तो वह निष्प्रभ मंडल कहलाता है। शास्त्रों के अनुरूप
एक साधारण व्यक्ति का आभामंडल 2
से 3 फीट तो महापुरुषों व संतों का आभामंडल 30 से 60 मीटर तक का होता है। आभामंडल जितनी दूर तक होगा
उसे उतना ही उत्तम माना जाता है।
संसार के समस्त
प्राणियों और ब्रह्याण्ड के समस्त ग्रह-नक्षत्र, समुद्र, सितारों में व्याप्त विद्युत चुंबकीय आभामण्डल की आकर्षण शक्ति के
मध्य किसी न किसी प्रकार का घनिष्ठ संबंध अवश्य है। निष्कर्ष यह निकलता है कि
सर्वव्यापक अतींद्रिय शक्तियां आभामण्डल मनुष्य के मन को प्रभावित करती हैं।
वैज्ञानिकों ने गहन शोध के बाद यह सिद्ध किया है कि मनुष्य का मात्र एक शरीर ही
नहीं होता है अपितु इस भौतिक शरीर के अतिरिक्त प्रकाशमय और ऊर्जावान एक शरीर और
होता है जिसे सूक्ष्म शरीर अथवा आभामण्डल औरा कहते हैं। प्रत्येक मनुष्य का अपना
एक आभामण्डल या औरा होता है। जिसके कारण से ही दूसरे अन्य मनुष्य उससे प्रभावित
होते हैं। यह आभा मनुष्य के संपूर्ण शरीर से सतरंगी
किरणों के रूप में अंडाकार रूप में उत्सर्जित होती रहती है। यह दिव्य प्रकाष युक्त
आभा हमें नंगी आंखों से दिखाई नहीं देती है। एक शोध के अनुसार व्यक्ति में आत्मबल
का इस आभामंडल से सीधा संबंध है। इस आभामंडल औरा में कमी व वृद्धि के अनुसार
व्यक्ति के आत्मबल में भी वृद्धि या कमी आती रहती है। इस दिव्य प्रकाशयुक्त
आभामंडल को वैज्ञानिक यंत्रों से स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है या उसका फोटो लिया जा सकता है तथा इसे नापा जा सकता है। आभामण्डल के फोटोग्राफ पोली
फोटोग्राफी से लिए जा सकते हैं जिसे किरलोन फोटोग्राफी कहते
हैं। जिस प्रकार से वस्त्राच्छादित होने के बावजूद मनुष्य के भीतरी अंगों का चित्र
एक्सरे द्वारा किया जा सकता है। ठीक उसी प्रकार से मनुष्य किरलोन फोटोग्राफी में
एक विषेष प्रकार के कैमरा द्वारा मनुष्य के शरीर से उत्सर्जित प्रकाश किरणों
आभामण्डल या ओरा चक्र अर्थात् सूक्ष्म शरीर का चित्र खींचा जा सकना भी संभव हो गया
है। इस कैमरे की फोटोग्राफी के चित्र में मनुष्य की प्रभामण्डल का स्पष्ट दर्शन किया
जा सकता है। ये सात रंग कभी भी एक जैसी स्थिति में नहीं रहते हैं।
प्रत्येक
मनुष्य का आभामण्डल या औरा अलग होता है। आभा मंडल की सात रंगों की स्थिति कहीं
ज्यादा गहरी कहीं हल्की उसकी मोटाई कहीं कम-ज्यादा, कहीं नियमित-अनियमित एवं
मनुष्य की स्थिति के अनुसार बदलती रहती है। व्यक्ति के सुख व प्रसन्नता के समय आभा
मण्डल औरा भी अधिक पुष्ट हो जाता है वहीं व्यक्ति के कष्ट व परेशानी में आभामण्डल
कम हो जाता है। इस आभामंडल या औरा से व्यक्ति के आने वाले समय में कौन सी बिमारी
होने वाली है इसे पूर्व ही जाना जा सकता है और जानकर समय से पहले चिकित्सा कर उस
रोग से बचा जा सकता है।एक शोध में पाया गया है कि व्यक्ति के रोगी होने पर आभा
मण्डल सुप्त अवस्था में रहता है। आने वाले समय में रोग की परीक्षा का सबसे अच्छा
तरीका आभामण्डल से विश्लेषण साबित होगा। मानव जीवन में जब परेशानी और समस्याओं का
दौर आता है तो उसका कारण आभामण्डल में नकारात्मक ऊर्जा का अधिक संचार होना होता
है। आभामण्डल को मजबूत कर नकारात्मक ऊर्जा के दुष्प्रभाव को हटाया जा सकता है।
धीरे-धीरे इस ऊर्जा का प्रभाव हमारे शरीर व मन-मस्तिष्क पर होता रहता
है। मैग्नेटिक ऊर्जा भी नकारात्मक ऊर्जा का भंडार है। परंतु इस नकारात्मक ऊर्जा को
सही मायने में मार्ग परिवर्तन कर दे तो यह ऊर्जा भी सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित
हो जाती है।
अच्छे महापुरूषों,
उच्चाधिकारियों, उद्योगपतियों, आर्थिक विष्लेशकों, अध्यात्मवेत्ताओं का आभा
मण्डल 10 से 15 फीट तक पाए जाते हैं।वास्तव
में मानव का आभामण्डल का सीधा संबंध उसके कर्मों से जुड़ा हुआ है। काम, क्रोध, मोह, लोभ, मद, अहंकार छः मनुष्य के शत्रु हैं। व्यक्ति द्वारा इन
छः कर्मों में संलग्न होने से आभामण्डल क्षीण या कम होता जाता है। एक साधारण इंसान का औरा या आभामण्डल 2 से 3 फीट तक माना जाता है। गायत्री मंत्र या अन्य मंत्र ध्वनि के उच्चारण
या श्रवण मात्र से आभामण्डल में वृद्धि होती है। संध्या काल में मंदिर में आरती के
समय भाग लेने से वहां शंख, गरूड़ गंटी तथा मंत्रोचार ध्वनि से मन व आत्म शांति
मिलती है। उस शांति से तात्पर्य आभामण्डल में वृद्धि का होना। आभामंडल केवल सिर पर
ही नहीं बल्कि पूरे शरीर के चारों तरफ होता है। और यही उसका अपना ऊर्जा क्षेत्र
हैं। प्रत्येक पदार्थ इलेक्ट्रॉन व प्रोटॉन से बना होता हैं। अर्थात निटिव विद्युत
अणु और पॉजिटिव विद्युत अणु ये कण निरंतर गतिमान
रहते हैं। जड़ पदार्थ में इनमें गति कम होती हैं। जीवित में ज्यादा सक्रिय व कम्पायमान रहते हैं। इसलिए पेड़ पौधों जानवरों व व्यक्तियों में
ऊर्जा क्षेत्र को आसानी से देखा जा सकता हैं।
प्राचीन काल से भौतिक शास्त्री यह कहते आये हैं कि बुनियादी स्तर से
देखें तो हमारा यह शरीर शुद्ध रूप से सिर्फ एक ऊर्जा है। उन्होंने शरीर के बहुस्तरीय ऊर्जा क्षेत्र के अस्तित्व को सिद्ध किया
है। इसे प्रभा-मण्डल, आभा-मण्डल या ओरा कहते हैं।
वर्षों शोध करके इस ऊर्जा-चिकित्सा या औरा हीलिंग से दैहिक
और भावनात्मक विकारों के उपचार की विधि की विकसित की गयी।
कोई भी व्यक्ति अपना आभामंडल विकसित कर भौतिक
और आध्यात्मिक सुख-समृद्धि आसानी से प्राप्त कर सकता है। दरअसल, व्यक्ति के शरीर से निकलने
वाली प्रज्जवलित शक्ति किरणें हैं, जिसकी ऊर्जा हर व्यक्ति में रहती है। इसी ऊर्जा
को विकसित कर व्यक्ति के समूचे जीवन में आमूल-चूल परिवर्तन लाया सकता है।
आभामण्डल
में सात चक्र समेत कई परतें होती हैं। इसकी किसी भी परत या चक्र में कोई गड़बड़ी, असंतुलन या रुकावट आने से वह भौतिक देह में प्रतिबिम्बित और एकत्रित
हो जाती है, जिससे भावनात्मक या दैहिक रोग हो जाता है। हर
व्यक्ति चाहे तो अपने देखने और सुनने की क्षमता और सीमा को बढ़ा सकता है। मनुष्य का ऊर्जा क्षेत्र हमेशा ब्रह्माण्ड से ऊर्जा ग्रहण करता है।
शरीर में रोग आने से पहले हमारे शरीर के औरा में वह बहुत पहले आ चुका होता हैं और
ओरा का रंग बदलने लगता है।
आभामंडल का यह कवच हमारे शरीर में रोगों को, नकारात्मक ऊर्जा को आने से रोकता हैं। हमारी देह, मन और भावना का अस्तित्व इसी ऊर्जा के कारण है। आभामण्डल हमारा आवरण
है जो हमारे आंतरिक ऊर्जा पिण्ड और बाहरी देह को लपेट कर रखता है। हमारे चक्र इस ऊर्जा आवरण के छिद्र हैं जो शरीर में बाहर से अन्दर और
अन्दर से बाहर इस अनंत ऊर्जा के प्रवाह और परिवहन को संतुलित रखते हैं।
यही
ऊर्जा क्षेत्र आरोग्य और रोग के कारक हैं। यह जरूरी है कि हम रोग को गहराई से
समझें। हम विश्लेषण करें कि इस रोग का क्या अभिप्राय है? इसका संकेत क्या है?
व्यक्ति की प्रत्येक भावना
का, संकल्प का, व मानसिक स्थिति का प्रभाव तुरंत आभामंडल पर पड़ता है। वह जैसी भावना करता है
आभामंडल उसी से घटता बढ़ता रहता है। अब आबामंडल के त रंगो की व्याख्या करते हैं।
आभामंडल में सात रंग होते हैं जो कभी एक जैसी स्थिति में नहीं होते।
जैसे सबका डीएनए अलग होता है,
उसी तरह सबका आभामण्डल भी अलग-अलग होता है। आभा मण्डल की सात रंगों की स्थिति कहीं ज्यादा
गहरी कहीं हल्की, उसकी मोटाई कहीं कम कहीं ज्यादा, कहीं नियमित कहीं अनियमित एवं इन्सान की स्थिति व भावों के अनुसार
बदलती रहती है।
आभामंडल के रंगों से हमें कुछ सामान्य जानकारी मिल सकती है। रंग, आकार और रंगों के संयोजन आबामंडल की व्याख्या में
अहम भूमिका निभाते हैं। जिस ओर का आभामंडल अधिक चमकीला होता है उसका प्रभाव व्यक्ति में अधिक पाया जाता है। अब आभामंडल के रंगों और
उनकी विशेषता पर गौर करते हैं।
आभामंडल के लाल रंग से इच्छा शक्ति, जीवनी शक्ति, जीतने की शक्ति,
सफलता, अनुभव, कार्य की तीव्रता, नेतृत्व की शक्ति, साहस, संपत्ति की इच्छा, साहस की भावना, अस्तित्व वृत्ति का पता चलता हैं।
युवा अवस्था में आभामंडल चमकदार लाल रंग का होता है।आभामंडल के
नारंगी रंग से व्यक्ति की रचनात्मकता, भावनात्मकता, आत्मविश्वास,मित्रता, सुशील भाव, अंतर्ज्ञान या दूसरों को परखने की क्षमता का पता चलता है।
आभामंडल के पीले रंग से नए विचारों, खुशी, गर्मी, विश्राम, मनोरंजन, आशावादिता, खुलेपन, उत्साह, उज्ज्वल, महान भावना, समस्याओं से मुक्ति, आशा और उम्मीद,
प्रेरणा का पता चलता है।
पीले रंग के आबामंडल ओरा वाले लोग दूसरे लोगों को प्रोत्साहित करते हैं। पीले रंग
के आभामंडल वालों में किसी भी वस्तु का तत्पर विश्लेषण की क्षमता होती है।
हरे रंग
के आबामंडल वाले लोगों में दृढ़ता, दायित्व और सेवा की दृढ़ता, धैर्य, समझ, स्वयं मुखरता, उच्च आदर्शों और आकांक्षाओं के लिए समर्पण, काम और कैरियर पर उच्च मूल्य वाला, सम्मान और व्यक्तिगत
उपलब्धि के लिए महत्वाकांक्षी इच्छा, गहराई से ध्यान केंद्रित
करने और अनुकूलनीयता का पता चलता हैं। विकास की और दुनिया में सकारात्मक बदलाव
बनाने पर ध्यान केंद्रित करने वाले होते हैं। माता पिता को समर्पित, सामाजिक कार्यकर्ता,
सलाहकार, वैज्ञानिकों, जैसे व्यक्तियों का आभामंडल हरे रंग का होता है।
आभामंडल के नीले रंग से भावना की गहराई, भक्ति, निष्ठा, विश्वास, संवाद करने की इच्छा, व्यक्तिगत संबंधों पर काफी
महत्व रखना, मित्रता रखना, सपने देखने वाले, या कलात्मक क्षमता वाले, खुद से पहले दूसरों की
जरूरतों पूरी करने वाले, एकांतप्रिय, इच्छा शक्ति वाले, शांति, प्रेम और दूसरों के साथ रिश्तों में स्नेह बनाने
वाले, सहज, भावनात्मक रूप से संवेदनशील
हो लोंगो का पता चलता है।
बैंगनी रंग के आभामंडल से असीमित मानसिक क्षमता, असामान्य कार्य और आकर्षण वाले, सपनों को बनाने के लिए
असामान्य क्षमता वाले, या भौतिक संसार में प्रकट अपनी इच्छाओं, आकर्षण और खुशी दूसरों के लिए चाहने वाले, आसानी से चेतना के उच्च स्तरो के साथ जुड़ने वाले, दयालु होने के भाव का पता चलता है। बैंगनी रंग के आभामंडल वाले लोग
दूसरों में कोमलता और दया की सराहना करते हैं।
सफेद रंग के आभामंडल वाले आध्यात्मिक, प्रेरित करने वाले, परमात्मा या आध्यात्मिक दुनिया को स्वीकार करने की क्षमता वाले, सब से मिलनसार,
सांसारिक मामलों या
महत्वाकांक्षाओं से उदासीन होते हैं। इन्हें रोशनी, अलौकिक ज्ञान, परमात्मा से प्रेम,
शांति, आनंद, अपने में रहना पसंद होता है। संत महात्मा, साधु, योगियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं का
आभामंडल सफेद रंग का होता है।
मनुष्य
का आभा-मण्डल उसके स्थूल शरीर में फैला और समाया रहता है। यह शरीर, मन और आत्मा को एकाकार रखता है। यह हमेशा गतिशील रहता है आभा-मण्डल
के चक्र द्वारा स्पन्दन ऊर्जा का आवागमन निरन्तर चलता रहता है। उसके कर्म, विचार तथा भावना और साथ में वातावरण तथा जीवनशैली के आधार पर शरीर
में ऊर्जा का प्रवाह होता है। यदि जीवन प्रेम और आनन्द से परिपूर्ण है तो अपार
ऊर्जा का प्रवाह होता है तथा जीवन निरामय हो जाता है। यह प्रेम की शक्ति है जो
चक्रों को खोल देती है और ऊर्जा का बहाव उन्मुक्त होता है। जब वह भय, अहंकार, नकारात्मकता या स्वार्थ के वश में हो जाता है तो ऊर्जा का बहाव थम जाता है। तब ऊर्जा प्रवाह में
असन्तुलन और रुकावट के कारण शरीर तथा मन में रोग जन्म लेता है। इस रुकावट से शरीर
के कुछ हिस्सों को ऊर्जा प्रवाह रुक जाता है। लेकिन क्योंकि शरीर में कई चक्र होते
हैं इसलिए रुकावट होने के बाद भी तन और मन को कुछ ऊर्जा तो मिलती रहती है। लेकिन
रुकावट की जगह शरीर में गड़बड़ हो जाती है। रेकी चिकित्सा से भी इस गड़बड़ी को ठीक
किया जा सकता है।
रेंकी हमारे शरीर मन आत्मा तीनों पर समान रूप से कार्य करती हैं।
हमारे मन के दूषित होने से हमारा आभामंडल दूषित हो जाता हैं। और फिर रोग शरीर में
पनपने लगते हैं। नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने का एक उपाय यह है कि
कपूर जला कर उसमें दो लौंग उस में डाल दें इससे नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाएगी
और सकारात्मक ऊर्जा का प्रसार हो जाएगा आप जो कुछ भी हैं, आभामंडल उसकी एक सूक्ष्म अभिव्यक्ति है। अगर आप किसी के आभामंडल को
देखें, तो आप उसके शारीरिक स्वास्थ्य, उसके मानसिक स्वास्थ्य, उसका कार्मिक ढांचा यानी
उसके अतीत और वर्तमान, और भविष्य भी स्पष्ट जान सकते हैं। आप अपने शरीर
और मन को शुद्ध करने के लिए बहुत से तरीके सीख सकते हैं - योगिक क्रियाओं से लेकर
सही ढंग से भोजन करने तक। जिस तरह आप जल से स्नान करते हैं,आप वायु-स्नान भी कर सकते हैं। मान लीजिए मन्द हवा बह रही है। अगर आप
पतला कपड़ा पहन कर उस हवा में खड़े हो जाएं, तो कुछ देर बाद आपको बहुत
साफ. सुथरा और पारदर्शी महसूस होगा।आभामंडल क्षेत्र के दुर्बल होने के कारण कई बार
ऐसा होता है की हम किसी से बातचीत के दौरान स्वयं में कमजोरी और निर्बलता का अनुभव
करने लगते हैं।
कई बार तो हम अस्वस्थ भी हो जाते हैं।आभामंडल क्षेत्र के दुर्बल होने
का कारण खानपान में अनियमितता,व्यायाम में कमी या अस्वच्छ वातावरण में रहना, आराम की कमी, तनाव उत्तेजक और नशे के पदार्थों का सेवन, गलत आदतें,शारीरिक श्रम ना करना।आभामंडल को दुर्बल होने से
बचाने के लिए आप कुछ उपाय कर सकते हैं जिससे आभामंडल सशक्त, सुरक्षित रहेगा।
सुखासन अर्थात सामान्य रूप से पालथी मार कर बैठ जायें और दोनों पैरों
को घुटने तक मोड़ लें। इसके बाद दोनों हाथो को अपनी गोद में रखें और अंगूठे तथा अनामिका
अंगुली (कनिष्ठा यानी छोटी अंगुली के बाद वाली अंगुली) आपस में जोड़ लें। यह तरीका
आपके आपके ऊर्जा तंत्र को बंद करने के काम आता है इससे आपके आभामंडस क्षेत्र को हम
खुद तक सीमित रखने और घनत्व प्रदान करने में मदद मिलती है।प्राणायाम की क्रिया से
अनुलोम और विलोम विधि पूर्वक करने से प्राण ऊर्जा को बढ़ा कर व्यक्ति अपने आभामंडल
क्षेत्र को सशक्त कर सकता है। स्नान से शरीर तो शुद्ध होता ही है इससे नकारात्मक
ऊर्जा भी समाप्त होती है।
जिनकी जीवनशैली जितनी ज्यादा धार्मिक, सात्विक और आध्यात्मिक होती है उनका आभामंडल उतना ही मजबूत सुरक्षित
शांत पवित्र दिव्य सौम्य और ईश्वर तत्व से भरा हुआ होता है ऐसे लोगों के आभामंडल
मे दिव्य ऊर्जा का वास होता है। रोज पूजा पाठ और मंत्र जाप करके भी आप आभामंडल को स्वच्छ और सशक्त
बना सकते हैं।
हमारे आभामंडल की बनने वाली ऊर्जा का मूल स्त्रोत क्या है?यह उस भोजन से उस ऊर्जा से आता है जो भोजन हम ग्रहण करते हैं उससे
मिलने वाली ऊर्जा से अता है।
अगर हम सात्विक आहार लें तो
उर्जा भी सात्विक प्राप्त करेंगे अगर राजसिक तामसिक
आहार लें तो उर्जा भी राजसिक तामसिक या इन तीनो ऊर्जा के कम या ज्यादा मात्रा के
मेल से ही प्राप्त करेंगे भोजन से मिलने वाली ऊर्जा अत्याधिक मायने रखती है।
आभामंडल को शुद्ध सशक्त रखने के लिए पहले अपनी दोनो हथेलियों को आपस में तब तक रगड़ना है जब तक वह गर्म न हो जाए फिर दोनों हाथों को आगे पीछे हिलाना है तथा हाथों की मुठ्ठियों को खोलना व बंद करना है फिर दोनो हाथो की अंगुलियों को मिलाकर अंगुठे को दुर रखकर उस व्यक्ति के सिर से छाती,पेट आदि पर से उतारते हुए पैर के एक तरफ हाथों को इस प्रकार झटक देना है जैसे हाथ में कोई द्रवित द्रव्य चिपक गया है तथा आप छुड़ा रहे हो यदि व्यक्ति पुरूष है तो उसके दाहिनी ओर तथा स्त्री है तो उसके बांयी ओर हाथ झटकना चाहिये।यही क्रिया दोहरायें।नीम के पत्तों में औरा शुद्ध करने की शक्ति होती है तथा आप सिर से पैर तक नीम की पत्तियों का झाड़ा लगाये तो औरा शुद्ध होने से व्यक्ति स्वस्थ महसूस करता है।आग तापने से भी आभामंडल शुद्ध होता है संभवत: इसीलिए हमारे यहां होली तापने का विधान है। मोर पंख से झाड़ने से भी आभामंडल का शुद्धिकरण होता है। जिसका आभामंडल देखना है उसे एक कमरे में एक सफेद दीवार के सामने खड़ा करें जहाँ बहुत तेज़ प्रकाश न हो। व्यक्ति के पीछे की दीवार और उसके शरीर से दो इंच दूर देखेँ। उस व्यक्ति को न देखें, वरना आप आभामंडल की छवि खो देंगे। वह जहां खड़ा है और उस व्यक्ति के आस-पास के क्षेत्र को पहचानने का प्रयास करें जहां पृष्ठभूमि की दीवार बाकी की तुलना में हल्की दिख सकती है। रंग देखने की कोशिश करें; स्वयं से पूछें कि आप इस क्षेत्र का वर्णन करने के लिए किस रंग का उपयोग करेंगे।एक बार जब आप रंग की पहचान कर लें, तो आप व्यक्ति से हिलने-डुलने के लिए कह सकते हैं। उनके ऊर्जा क्षेत्र को उनके साथ आगे बढ़ना चाहिए।यदि आपने व्यक्ति के आभामंडल के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग रंग देखे हैं तो आपकी आंखें आपको धोखा नहीं दे रही थीं; किसी व्यक्ति के शरीर के विभिन्न क्षेत्रों में क्या हो रहा है, इस पर निर्भर करता है कि आभामंडल निश्चित रूप से अलग-अलग रंग का हो सकता है।ऐसा कहा जाता है कि मृत्यु के कई घंटे पहले ऑरा सफ़ेद हो जाता है तथा इसकी तीव्रता बहुत अधिक बढ़ जाती है। जिन लोगों का आभामंडल अपने विचार और कर्मों के द्वारा नकारात्मक हो चला है उनके पास बैठने या उनसे मिलने की भी अच्छे आदमी की इच्छा नहीं होती है। आप खुद अनुभव करते होंगे कि कुछ लोगों से मिल कर हमें आत्मिक शांति का अनुभव होता है तो कुछ से मिल कर उनसे जल्दी से छुटकारा पाने का दिल करता है, क्योंकि उनमें बहुत ज्यादा नकारात्मक ऊर्जा होती है।
आइए अब एक विदेशिनी साधिका के प्रसंग में आते हैं जिनके शरीर से निकलते आभामंडल से प्रभावित होकर एक महान भारतीय योगी परमहंस योगानंद ने उनको अपनी शिष्या बना लिया था।बाद में वे योगानंद जी की संस्था संघमाता की अध्यक्ष रहीं। भारतीय योगी और साधक परमहंस योगानंद जी से पहली मुलाकात से ही भारतीय योग व साधना से प्रभावित थीं। उनका मूल नाम रैकेल फे राइट था जिसे परिवर्तित कर योगानंद जी ने दया माता कर दिया। रैकेल ने योगानंद जी से अपनी पहली भेंट के बारे मे कभी इस तरह बताया था-'अमरीका के साल्टलेक सिटी के एक हाल में गुरु जी (योगानंद जी) के व्यायाख्यान का कार्यक्रम था। मेरी एक सहेली ने मुझे उसमें चलने को कहा मेरा आग्रह नहीं था लेकिन मैं गयी। मैं हाल में गयी तो मुझे लगा जैसे मेरी सारी इच्छाएं समाप्त हो गयी हों। जब गुरु जी पर मेरी दृष्टि पड़ी तो मुझे सुनहले प्रकाश का अनुभव हुआ। गुरु जी ईश्वर के बारे में बता रहे थे। वे अपने अनुभव और साधना से सिद्धि के बारे में बता रहे ते जिससे उन्हें ईश्वर तत्व का ज्ञान हुआ। मैं मंत्रमुग्ध सी उनको सुने जा रही थी और उन्हीं के विचार प्रभाव में डूब गयी थी।' उसके बाद वे योगानंद जी की शिष्या बन गयीं। वे भारत आयीं तो वे उनको पुरी ले गये। पुरी के जगन्नाथ मंदिर में हिंदू धर्म से इतर धर्म वालों और विदेशियों का प्रवेश वर्जित था। योगानंद जी दया माता को जगन्नाथ जी का दर्शन कराना चाहते थे। यह 1958 की बात है। वे उनको गोवर्धन मठ के तत्कालीन शंकराचार्य भारती कृष्ण तीर्थ जी के पास ले गये। वहां उपस्थित भक्तजनों और स्वयं शंकराचार्य जी ने दया माता के स्पष्ट आभामंडल को देखा। इसके बाद कहते हैं कि स्वयं शंकराचार्य ने कहा कि अगर ये प्रभु के दर्शन नहीं करेंगी तो और कौन करेगा। शंकराचाचार्य जी के आग्रह से उन्हें श्रीमंदिर में प्रवेश मिला। दया माता जी ने प्रभु जगन्नाथ जी के दर्शन किये। वे पहली अमेरिकन थीं जिसको मंदिर के गर्भग्रह में प्रवेश की अनुमति मिली। वे विग्रहों के सामने ही ध्यान मुद्रा में जो बैठीं तो ध्यान में जैसे खो गयीं। उनके साथ उस दिन योगानंद सत्संग सोसाइटी इंडिया के महासचिव स्वामी श्यामानंद जी भी थे। उसके बाद से विदेशियों के मंदिर प्रवेश पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया। दया माता का निधन 20 नवंबर 2010 को लास एंजिल्स में हो गया।
हमारे
प्रभामंडल की शक्तिशाली नलिकाओं से है। इसके असंतुलित होने के कारण, इंसान का भाग्य साथ नहीं देता। पैसों की कमी रहती है। दमा, यक्ष्मा और फेफड़े से संबंधित बीमारियों से सामना करना पड़ सकता है।
हमारे शरीर की रीढ़ की हड्डी में मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र,
नाभि चक्र,अनहद चक्र, विशुद्धि चक्र, आज्ञा चक्र और सहस्रार चक्र
होते हैं।
अब यह भी जान लेना आवश्यक है कि कौन-सा चक्र किस रंग का प्रतिनिधित्व
करता है। मूलाधार चक्र : इसका रंग लाल है और इसका संबंध हमारी शारीरिक अवस्था से होता
है। इस चक्र के ऊर्जा तत्व में असंतुलन, रीढ़ की हड्डी में दर्द
होना, रक्त और कोशिकाओं पर तथा शारीरिक प्रक्रियाओं पर
गहरा असर डालता है।
स्वाधिष्ठान
चक्र : इसका रंग नारंगी माना जाता है और इसका सीधा संबंध प्रजनन अंगों से है। इस
चक्र की ऊर्जा असंतुलन के कारण इंसान के आचरण, व्यवहार पर प्रभाव पड़ता
है।
मणिपुर
चक्र : इसका रंग पीला है और यह बुद्धि और शक्ति का निर्धारण करता है। इस चक्र में
असंतुलन के कारण व्यक्ति उदासी में चला जाता है। उसकी दिमागी स्थिरता नहीं रहती।
अनाहत चक्र : इसका रंग हरा है और इसका संबंध हमारे प्रभामंडल की
शक्तिशाली नलिकाओं से है। इसके असंतुलित होने के कारण, इंसान का भाग्य साथ नहीं देता। पैसों की कमी रहती है। दमा, यक्ष्मा और फेफड़े से संबंधित बीमारियों से सामना करना पड़ सकता है।
विशुद्ध चक्र : इसका रंग हल्का नीला है और इसका संबंध गले से और वाणी
से होता है। इसमें असंतुलन के कारण वाणी में ओज नहीं रह पाता।आवाज ठीक नहीं होती।
टांसिल, थायराइड जैसी बीमारियों से सामना करना पड़ता है।
आज्ञा चक्र : गहरा नीले रंग का ये चक्र दोनों भवों के बीच में तिलक
लगाने की जगह स्थित है। इसका सीधा संबंध दिमाग से है। इस चक्र को सात्विक ऊर्जा का
पट भी मानते हैं। अगर परेशानियां बहुत ज्यादा हों तो सीधे आज्ञा चक्र पर ऊर्जा
देने से सभी चक्रों को संतुलन में लाया जा सकता है।
सहस्रार
चक्र : यह चक्र सभी चक्रों का स्वामी माना जाता है। कुंडलिनी शक्ति जागरण में इस
चक्र की अहम भूमिका होती है।
मनुष्य का शरीर मनुष्य का शरीर उसके आभामंडल से घिरा रहता है।
आभामंडल एक ऐसी कॉस्मिक एनर्जी है जिसका संबंध कहीं ना कहीं आधात्मिक जगत से है।
हमारे आभामंडल के जरिए हम ब्रह्मांड के साथ अपना रिश्ता कायम कर पाते हैं। आप
मानें या ना मानें लेकिन आपका आभामंडल आसपास एक ऐसा घेराव कर पाने में सक्षम होता
है जो शरीर को मजबूत और सुरक्षित करता है।
कोविड 19 का कहर वर्तमान समय में बेहद कठिन है।चारों तरफ
कोरोना वायरस कोविड 19 का कहर नजर आ रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि मनुष्य के शरीर की इम्यूनिटी पॉवर ही इस वायरस से बचाव का रास्ता है। निश्चित तौर पर शारीरिक स्वच्छता और खानपान का ध्यान रख हम अपने शरीर की इम्यूनिटी को बढ़ा सकते हैं। लेकिन शरीर की इम्यूनिटी पॉवर को बढ़ाने का एक तरीका यह भी है कि हम अपने आभामंडल को मजबूत और स्वच्छ रखें। ताकि हमारा आभामंडल एक शक्तिशाली ढाल बनकर इस खतरनाक वायरस से हमारी रक्षा कर सकें।प्राणिक चिकित्सा भी उपचार की एक विधा है। इसके अन्तर्गत ऊर्जा को आधार बनाते हुए बीमार व्यक्ति के शरीर की नकारात्मक ऊर्जा तथा बीमारी पैदा करने वाले कारकों को दूर किया जाता है और रोग से मुक्ति दिलायी जाती है। प्राणिक हीलिंग का आधार व्यक्ति के आस-पास के आभामंडल को माना जाता है।
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