अगर हम आपसे यह कहेंगे कि भगवान भी बीमार पड़ते हैं, तो शायद यह बात आपको अविश्वसनीय लगे लेकिन यह सच है कि भगवान भी बीमार पड़ते हैं वह भी पूरे पंद्रह दिन के लिए। हां पुरी के जगन्नाथ मंदिर में विद्यमान प्रभु जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा के विग्रह 15 दिनों तक अस्वस्थ रहते हैं और उनका आर्युवेदिक औषधियों काढ़े आदि से नियमित उपचार किया जाता है। उनकी सेवा ठीक बच्चों की तरह की जाती है। उनकी अस्वस्थता की इस अवधि को अंडसर की अवधि के नाम से जाना जाता है। अंडसर से यहां अर्थ संभवत: पीड़ा या कष्ट से हैं। इस दौरान पुरी के मंदिर के द्वार दर्शन के लिए बंद रहते हैं और जहां विग्रह विद्यमान हैं वहां पटचित्र लगा दिया जाता है. इस अवधि में भक्त प्रभु के दर्शन नहीं कर पाते। भगवान 15 दिन के एकांतवास में चले जाते हैं। हर वर्ष रथयात्रा से पहले ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा (जिसे स्नान पूर्णिमा कहते हैं और जिस दिन जगन्नाथ, बलराम, सुभद्रा के विग्रहों को गर्भ ग्रह से बाहर निकाल कर खूब स्नान कराया जाता है) से लेकर अमावस्या तक प्रभु जगन्नाथ बीमार पड़ते हैं। इसके चलते भक्तों के लिए मंदिर के कपाट एक पखवाड़े तक बंद कर दिए जाते हैं। भगवान जगन्नाथ बीमार क्यों पड़ते हैं इस कथा पर आने से पहले उस कथा पर आते हैं जब चैतन्य महाप्रभु भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए पुरी आये और उन्हें भगवान की मूर्तियों की जगह मात्र पटचित्र दिखा। वे घंटों एक खंबे का सहारा लेकर कड़े रहे पर प्रभु के दर्शन नहीं हुए. आप जब पुरी के जगन्नाथ मंदिर में जायेंगे तो संभव है वहां का कोई सेवक आपको खंबा और उसमें अंकित चैतन्य के हाथ का चिह्न भी दिखाये। वापस मूल कथा पर आते हैं। जब चैतन्य को नीलाचल या नीलाद्रि (जगन्नाध जहां विराजमान हैं उस क्षेत्र को इस नाम से भी जाना जाता है) में जगन्नाथ के दर्शन नहीं हुए तो उन्होंने निराश होकर पुरी के समुद्र में जल समाधि लेनी चाही। कहते हैं जब वे कंठ तक जल में डूब गये तभी आकाशवाणी हुई- निराश मत हो, अभी मैं दूसरे स्थान पर हूं जहां तुम मेरे दर्शन कर सकते हो। यह स्थान अल्लारनाथ के नाम से जाना जाता है जो पुरी से लगभग 60 किलोमीटर दूर है। वहां प्रभु जगन्नाथ का पूर्णांग विग्रह नारायण के रूप में है। चैतन्य दौड़े-दौड़े अल्लारनाथ गये और वहां प्रभु को देख भाव विभोर होकर उनके विग्रह के सामने लेट गये। उनकी इस मुद्रा की छाप आज भी अल्लारनाथ में भगवान जगन्नाथ के विग्रह के समक्ष देखी जा सकती है। अब भगवान जगन्नाथ के हर वर्ष बीमार होने की की कथा पर आते हैं।
ओड़ीसा प्रान्त में जगन्नाथ पुरी में एक भक्त रहते थे , जिनका नाम था माधव दास| वे अकेले रहते थे, संसार से उनका लेना-देना नहीं था| अकेले बैठे बैठे भजन किया करते थे, नित्य प्रति श्री जगन्नाथ प्रभु का दर्शन करते थे और उन्हीं को अपना सखा मानते थे, प्रभु के साथ खेलते थे।प्रभु इनके साथ अनेक लीलाएं किया करते थे। प्रभु इनको चोरी करना भी सिखाते थे| भक्त माधव दास जी अपनी मस्ती में मग्न रहते थे।
एक बार माधव दास जी को अतिसार का रोग हो गया। वह इतने दुर्बल हो गए कि उठ-बैठ नहीं सकते थे, पर जब तक इनसे बना ये अपना कार्य स्वयं करते थे और सेवा किसी से लेते भी नही थे।
कोई अगर कहे कि महाराज जी हम कर दें आपकी सेवा तो वे कहते नहीं मेरे तो एक जगन्नाथ ही हैं वही मेरी रक्षा करेंगे।ऐसी दशा में जब उनका रोग बढ़ गया वो उठने-बैठने में भी असमर्थ हो गये तब श्री जगन्नाथजी स्वयं सेवक बन कर इनके घर पहुंचे और माधवदासजी को कहा की हम आपकी सेवा कर दें|क्यूंकि उनका इतना रोग बढ़ गया था की उन्हें पता भी नहीं चलता था की कब मल मूत्र त्याग देते थे। वस्त्र गंदे हो जाते थे। उन वस्त्रों को जगन्नाथ भगवान अपने हाथों से साफ करते थे, उनके पूरे शरीर को साफ करते थे, उनको स्वच्छ करते थे।
कोई अपना भी इतनी सेवा नहीं कर सके, जितनी जगन्नाथ भगवान ने भक्त माधव दास जी की सेवा की। जब माधवदासजी को होश आया,तब उन्होंने तुरंत पहचान लिया कि यह तो मेरे प्रभु ही हैं।एक दिन श्री माधवदासजी ने पूछ लिया प्रभु से – “प्रभु आप तो त्रिभुवन के मालिक हो, स्वामी हो, आप मेरी सेवा कर रहे हो।| आप चाहते तो मेरा ये रोग भी तो दूर कर सकते थे, रोग दूर कर देते तो ये सब करना नही पड़ता।'
इस पर सेवक बने जगन्नाथ जी- देखो माधव! मुझसे भक्तों का कष्ट नहीं सहा जाता, इसी कारण तुम्हारी सेवा मैंने स्वयं की। जो भाग्य में लिखा होता है उसे तो भोगना ही पड़ता है। अगर उसको नहीं काटोगे तो इस जन्म में नहीं पर उसको भोगने के लिए फिर तुम्हें अगला जन्म लेना पड़ेगा। और मैं नहीं चाहता की मेरे भक्त को ज़रा से प्रारब्ध के कारण अगला जन्म फिर लेना पड़े, इसीलिए मैंने तुम्हारी सेवा की लेकिन अगर फिर भी तुम कह रहे हो तो भक्त की बात भी नहीं टाल सकता। भक्तों के सहायक बन उनको प्रारब्ध के दुखों से, कष्टों से सहज ही पार कर देते हैं प्रभु।अब तुम्हारे प्रारब्द्ध में ये १५ दिन का रोग और बचा है, इसलिए १५ दिन का रोग तू मुझे दे दे। १५ दिन का वो रोग जगन्नाथ प्रभु ने माधवदासजी से ले लिया।यही कारण है कि आज भी जगन्नाथ भगवान 15 दिन के लिए बीमार होते हैं। स्नान यात्रा करने के बाद हर साल १५ दिन के लिए जगन्नाथ भगवान आज भी बीमार पड़ते है।१५ दिन के लिए मंदिर बंद कर दिया जाता है। कभी भी जगनाथ भगवान की रसोई बंद नहीं होती। मुख्य मंदिर बंद रहता है किंतु मंदिर परिसर में अन्य मंदिरों में दर्शन जारी रहते हैं। बीमारी के दौरान भगवान को ५६ भोग नही खिलाया जाता, बीमार हैं तो परहेज़ तो रखना पड़ेगा।१५ दिन जगन्नाथ भगवान को काढ़े का भोग लगता है। इस दौरान भगवान को आयुर्वेदिक काढ़े का भोग लगाया जाता है। जगन्नाथ धाम मंदिर में तो भगवान की बीमारी की जांच करने के लिए हर दिन वैद्य भी आते हैं।काढ़े के अलावा फलों का रस भी दिया जाता है। वहीं रोज शीतल लेप भी लगाया जाता है। बीमारी के दौरान उन्हें फलों का रस, छेना का भोग लगाया जाता है और रात में सोने से पहले मीठा दूध अर्पित किया जाता है। जिस दिन वे पूरी तरह से ठीक होते है उस दिन जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा निकाली जाती है जिसे देखने के लिए सभी जगह से लाखों श्रद्धालु आते हैं। भगवान का बीमार होना यह सब एक परंपराका हिस्सा है, जिसे प्राचीन काल से निभाया जा रहा है। ज्येष्ठ पूर्णिमा की सुबह 5 बजे से भगवान को हल्का ज्वर आने के बाद वे बीमार हो गए। भगवान जगन्नाथ, भाई बलराम और बहन सुभद्रा के मुकुट उतार दिए गए और अब वह 17 दिनों के लिए शयन करेंगे। इसके बाद 18 वें दिन यानि 12 जुलाई को स्वास्थ्य ठीक होने के बाद नगर भ्रमण पर निकलेंगे। बीमारी के दौरान भगवान को दलिया, खिचड़ी व मूंग की दाल सहित हल्के खाद्य पदार्थों का भोग लगाया जाएगा। ठीक होने तक प्रभु एकांतवास में रहेंगे। कोरोना काल में 2021 की रथयात्रा किस तरह की होगी कहा नहीं जा सकता यह निश्चित है कि इसमें भीड़ के जुटने पर प्रतिबंध संभव है।
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