Monday, July 5, 2021

जहां आज भी शिव प्रतिदिन करते हैं संगीत साधना



अगर हम आपसे यह कहें कि एक ऐसा पर्वत है जहां आज भी प्रतिदिन शिव संगीत साधना करते हैं तो संभवत: आप विश्वास नहीं करेंगे। आप विश्वास करें या ना करें पर स्थानीय लोगों और उस पर्वत पर स्थित शिव मंदिर के पुजारी का तो यही दावा है। हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड अंचल के बांदा जिला की। बांदा जिले में केन (जिसका एक नाम कर्णवती भी है और जो यमुना की उपनदी है) नदी के किनारे वामदेवेश्वर नाम का एक पर्वत है। इस पर्वत पर एक प्राचीन शिवमंदिर है जिसे सतयुग काल का बताया जाता है। इसी में स्थापित शिवलिंग के बारे में कहा जाता है कि मध्यरात्रि के बाद आज भी वहां एक काला नाग आता है। कुछ देर तक शिवलिंग पर लिपटा रहता है और फिर जाने कहां गायब हो जाता है। इस यूट्यूबर ने 2016 की अपनी वामदेवेश्वर यात्रा के दौरान इस शिव मंदिर के दर्शन किये। वहां पुजारी ने गुफा की दीवार पर एक छेद दिखाया जो शायद पीछे कहीं पहाड़ पर खुलता होगा। उन्होंने बताया कि उसी छेद से नाग आता है। पुजारी ने बताया कि उन्होंने स्वयं भी कई बार नाग को देखा है। अब पहाड़ की उन चमत्कारी चट्टानों की कहानी पर आते हैं। इन चट्टानों से सात प्रकार के  स्वर निकलते हैं। किसी में मृदंग की ध्वनि, किसी में घड़ियाल की, किसी में पीतल की कलशी पीटने पर निकलनेवाली आवाज तो किसी से कोई और ध्वनि। कुल मिला कर सात तरह की ध्वनि निकलती है ठीक संगीत के सात सुरों की तरह। लोगों की धारणा है कि यह शिव की संगीत साधना की स्थली है जहां वे रोज आकर संगीत साधना करते हैं, तांडव नृत्य करते हैं। दिल्ली के एक टीवी चैनल की टीम ने चट्टानों से मधुर ध्वनि निकलने और मध्यरात्रि में शिवलिंग से नाग के लिपटने की घटना की परीक्षा ली थी। टीम ने पहले तो चट्टानों से निकलने वाले सात सुरों की परीक्षा की जो एकदम सही निकली।


उसके बाद उन्होंने गो प्रो कैमरा मंदिर के गर्भ गृह में शिवलिंग के सामने लगा दिया और मध्यरात्रि बीतने की प्रतीक्षा गर्भ गृह से बाहर बैठ कर करने लगे। उन्होंने अपने मोबाइल में गो प्रो कैमरा को इस तरह कनफिगर कर लिया था कि जिससे गर्भ गृह में कैमरा जो भी दृश्य कैप्चर करे वह तत्क्षण उन्हें मोबाइल में दिखाई दे। ठीक मध्यरात्रि के बाद उनके मोबाइल ने ऐसा दृश्य कैप्चर किया जिससे उनके होश उड़ गये। वे दौड़े-दौड़े गर्भगृह के अंदर गये उन्होंने देखा कि गो प्रो कैमरा उलटा पड़ा है। वे गो प्रो कैमरा बाहर लाकर उसमें कैप्चर हुआ दृश्य देखने लगे। उनके आश्चर्य का ठिकाना ना रहा जब उन लोगों ने देखा कि कैमरा दिखा रहा है कि कहीं से काला नाग आया, वह थोड़ी देर शिवलिंग से लिपटा रहा और फिर कहीं गायब हो गया। 

अब पत्थर की चट्टानों से होने वाली सात तरह की ध्वनि पर आते हैं जिसके बारे में वैज्ञानिकों का कहना है कि यह ध्वनि चट्टानों में स्थित धातु के तत्व के कारण हो सकती है। मान लिया तो फिर हर चट्टान की ध्वनि में विविधता क्यों है। 

अब वामदेवेश्वर पर्वत और बांदा शहर के पुराने नाम और वहां स्थापित शिवलिंग के बारे में कुछ जान लेते हैं। कहते हैं कि यह पर्वत और यहां का वामदेवेश्वर (स्थानीय लोग इसे बांबेश्वर भी कह कर पुकारते हैं) मंदिर रामचंद्र भगवान के काल का है। इस पर्वत पर कभी वामदेव ऋषि तपस्या करते थे जिन्हें सप्तऋषियों में एक माना जाता है। वे गौतम ऋषि के पुत्र थे। वे राम के कुलगुरुओं में से एक थे। कहते हैं कि पर्वत की गुफा में वामदेवेश्वर  शिवलिंग की स्थापना स्वयं वामदेव ऋषि ने ही की थी। यही नहीं बांदा शहर का नाम भी उन्हीं के नाम पर वामदा था जो अपभ्रंश होते-होते बांदा हो गया। इसका उल्लेख बांदा के गजेटियर के चैप्टर एक में है जिसका गवाह है इस वीडियो के साथ दिया गया गजेटियर के पहले चैप्टर में वामदेव ऋषि के नाम पर बांदा का नाम होने का स्पष्ट उल्लेख करता चित्र। चित्र के लाल रंग से घिरे हिस्से को गौर से देखिए।

कहते हैं राम वनवास काल में जब चित्रकूट में निवास कर रहे थे उस समय वे अपने गुरु से मिलने वामदा (तब बांदा इसी नाम से जाना जाता था) आये थे। यह भी कहा जाता है कि उस समय जिन-जिन चट्टानों में प्रभु राम के चरण पड़े इनसे संगीतमय ध्वनियां आने लगीं। पहाड़ की चट्टानों से निकलने वाली धुन का कुछ भी रहस्य हो लेकिन यह सच है इस यूट्यूबर ने स्वयं वहां पर इसका अनुभव किया है।

 पहाड़ से भी धुन निकल सकती है यह बात किसी को  भी हैरान कर देगी पर यह अद्भुत करिश्मा बांदा जिले के वामदेवेश्वर पर्वत पर कोई भी देख सकता है। जो भी इस धुन को सुनता है आश्चर्य चकित हो जाता है। वहीं वैज्ञानिकों के अपने तर्क हैं। 

यह भी मान्यता है कि केवल राम ही नहीं उनके साथ माता जानकी, भाई लक्ष्मण भी चित्रकूट से यहां वामदेव के दर्शन करने यहां आये थे। भगवान राम ने यहां आकर शिव की आराधना की थी।  ऐसी मान्यता है कि यहां शिव पूजा का सबसे अच्छा फल मिलता है। यहां महामृत्युंजय का जाप भी बहुत ही पलदायी होता है। वैज्ञानिक मानते हैं कि संगीत निकालनेवाली चट्टानें करोड़ों साल पुरानी हैं। 

वामदेवेश्वर पहाड़ के पत्थरों से निकलने वाले संगीत को लोग आस्था की दृष्टि से देखते हैं, लेकिन वैज्ञानिक इसे चमत्कार नहीं मानते। 

वैज्ञानिक मानते हैं कि यहां की चट्टानों में डोलोमाइट अर्थाच चूने और आयरन की मात्रा ज्यादा है। जब चूने और आयरन की मात्रा ज्यादा हो जाती है, तब पत्थरों से आवाज निकलने लगती हैं। 

 वैज्ञानिक कारण हो या कोई दूसरा चमत्कार, लेकिन यह पर्वत लंबे समय से लोगों के लिए कौतूहल का केंद्र बना हुआ है। लोग दूर-दूर से इस पर्वत की धुन सुनने के लिए आते हैं। 

यह भी कहा जाता है कि बांदा को महर्षि वामदेव ने बसाया था। कभी यहां वामदेव ऋषि के शिष्यों के रहने के आवास हुआ करते थे। 

 धीरे-धीरे यहां बस्ती बन गई और वामदेव के नाम पर इसका नाम वामदा पड़ गया। जो बाद में बिगड़ कर बांदा हो गया। यह जिला बुंदेलखंड के मुख्य जिलों में से एक है।

वैदिक काल के ऋषि वामदेव गौतम ऋषि के पुत्र थे इसीलिए उन्हें गौतम भी कहा जाता था। वामदेव जब मां के गर्भ में थे तभी से उन्हें अपने पूर्वजन्म आदि का ज्ञान हो गया था। उन्होंने सोचा, मां का पेट फाड़ कर बाहर निकलना चाहिए। वामदेव की मां को इसका आभास हो गया। अत: उन्होंने अपने जीवन को संकट में पड़ा जानकर देवी अदिति से रक्षा की कामना की। तब वामदेव ने इंद्र को अपने समस्त ज्ञान का परिचय देकर योग से श्येन अर्थात बाज पक्षी का रूप धारण किया तथा अपनी माता के उदर से बिना कष्ट दिए बाहर निकल आए। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि वे मां के मुख से निकले थे।

 वामदेव ने इस देश को सामगान (अर्थात् संगीत) दिया तथा वे जन्मत्रयी के तत्ववेत्ता माने जाते हैं। भरत मुनि द्वारा रचित भरत नाट्य शास्त्र सामवेद से ही प्रेरित है। हजारों वर्ष पूर्व लिखे गए सामवेद में संगीत और वाद्य यंत्रों की संपूर्ण जानकारी मिलती है।

 वामदेव ऋग्वेद के चतुर्थ मंडल के सूत्तद्रष्टा थे।

 एक बार इंद्र ने युद्ध के लिए वामदेव को ललकारा था तब इंद्रदेव परास्त हो गए। वामदेव ने देवताओं से कहा कि मुझे दस दुधारु गाय देनी होगी और मेरे शत्रुओं को परास्त करना होगा तभी मैं इंद्र को मुक्त करूंगा। इंद्र और सभी देवता इस शर्त से क्रुद्ध हो गये थे। बाद में वामदेव ने इंद्र की स्तुति करके उन्हें शांत कर दिया था।

वामदेव ने राजा के कर्तव्य आदि पर भी सम्यक विचार प्रस्तुत किये। उन्होंने कहा कि जिस राज्य में अन्यन्त बलवान राजा दुर्बल प्रजा पर अधर्म या अत्याचार करने लगता है, वहाँ उसके अनुचर भी उसी बर्ताव को अपनी जीविका का साधन बना लेते हैं। वे उस पाप प्रवर्तक राजा का ही अनुसरण करते हैं; अतः उदण्ड मनुष्यों से भरा हुआ वह राष्ट्र शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। अच्छी अवस्था में रहने पर मनुष्य के जिस बर्ताव का दूसरे लोग भी आश्रय लेते हैं, उस संकट में पड़ जाने पर उसी मनुष्य के उसी बर्ताव को उसके स्वजन भी नहीं सहन करते हैं। दुःसाहसी प्रकृति वाला जो राजा जहाँ कुछ उद्दण्डतापूर्ण बर्ताव करता है, वहाँ शास्त्रोक्त मर्यादा का उल्लंघन करने वाला वह राजा शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। जो क्षत्रिय राज्य में रहने वाले विजित या अविजित मनुष्यों को अपने परम्परागत आचार-विचार का पालन नहीं करने देता वह क्षत्रिय-धर्म से गिर जाता है। यदि कोई राजा पहले का उपकारी हो और किसी कारणवश वर्तमानकाल में द्वेष करने लगा हो तो उस समय जो राजा उसे युद्ध में बंदी बनाकर द्वेषवश उसका सम्मान नहीं करता, वह भी क्षत्रिय धर्म से गिर जाता है। राजा यदि समर्थ हो तो उत्तम सुख का अनुभव करे और कराये तथा आपत्तिमें पड़ जाय तो उसके निवारण का प्रयत्न करे।ऐसा करने से वह सब प्राणियों का प्रिय होता है और राजलक्ष्मी से भ्रष्ट नहीं होता। राजा को चाहिये यदि किसी का अप्रिय किया हो तो फिर उसका प्रिय भी करे। इस प्रकार यदि अप्रिय पुरुष भी प्रिय करने लगता है तो थोड़े ही समय में वह प्रिय हो जाता है। मिथ्या भाषण करना छोड़ दे, बिना याचना या प्रार्थना किये ही दूसरों का प्रिय करे। किसी कामना से, क्रोध से तथा द्वेष से भी धर्म का त्याग न करे। विद्वान् राजा छल-कपट छोड़कर ही बर्ताव करे। सत्य को कभी न छोड़े। इस तरह उन्होंने राजधर्म की सम्यक और विस्तृत व्याख्य़ा की।

 वामदेव की कथा आपने सुनी अब देखिए वह वीडियो जो हमने 2016 की वामदेवेश्वर पर्वत की यात्रा के दौरान बनाया था। इसमें आप वामदेवेश्वर पर्वत की चट्टानों से निकलती तरह-तरह की ध्वनियां सुन सकते हैं।

इस आलेख का वीडियो देखने के लिए कृपया यहां क्लिक कीजिए


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