Friday, August 20, 2021

क्या लक्ष्मी ने किया था रक्षा बंधन का प्रारंभ?




प्रति वर्ष श्रावण पूर्णिमा को रक्षा बंधन का पर्व मनाया जाता है। भाई-बहन के स्नेह के इस पर्व के बारे में कई तरह की कहानियां प्रचलित हैं। जो कथा सर्वाधिक प्रचलित है वह द्रौपदी और कृष्ण से संबंधित है। कहते हैं जब एक बार श्रीकृष्ण की उंगली सुदर्शन चक्र से आहत हो गयी तो वहां उपस्थित द्रौपदी ने अपनी साड़ी का कोना फाड़ कर कृष्ण की उंगली में बांध दिया था। उस दिन श्रावण पूर्णिमा थी। कहते हैं कृष्ण ने कहा था कि वे यह ऋण चुकायेंगे। द्रौपदी चीरहरण के समय उनकी लज्जा बचा कर कृष्ण ने वह ऋण चुका दिया था। कुछ लोग मानते हैं कि रक्षाबंधन का प्रारंभ उसी घटना को लेकर हुआ था।

   हर वर्ष श्रावण माह की पूर्णिमा को यह पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष 22 अगस्त 2021 रविवार को है यह पावन पर्व। एक कथा ऐशी बी सुनी जाती है कि माता लक्ष्मी के कारण मनाया जाने लगा रक्षा बंधन का पर्व।

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रक्षा बंधन तिथि: - 22 अगस्त 2021, रविवार

पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: - 21 अगस्त 2021,

शाम 3:45 मिनट

पूर्णिमा तिथि समाप्त : - 22 अगस्त 2021, शाम 5:58 मिनट

शुभ मुहूर्त: - सुबह 5:50 मिनट से शाम 6:03 मिनट

रक्षा बंधन की समयावधि: - 12 घंटे 11 मिनट

रक्षा बंधन के लिए दोपहर में समय: - 1:44

से 4:23 मिनट तक

अभिजीत मुहूर्त: - दोपहर 12:04 से 12:58 मिनट तक

अमृत काल: - सुबह 9:34 से 11:07 तक

ब्रह्म मुहूर्त: - 4:33 से 5:21 तक

भद्रा काल: - 23 अगस्त, 2021 सुबह 5:34 से 6:12 तक

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रक्षाबंधन पर भद्राकाल और राहुकाल का विशेष ध्यान रखा जाता है। भद्राकाल और राहुकाल में राखी नहीं बांधी जाती है क्योंकि इन काल में शुभ कार्य वर्जित है। इस साल भद्रा की छाया रक्षाबंधन पर्व पर नहीं है। भद्रा काल 23 अगस्त, 2021 सुबह 5:34 से 6:12 तक होगा और 22 अगस्त को सारे दिन राखी बांधी जा सकेगी।

 कुछ लोग मानते हैं कि वृत्तासुर से युद्ध करने जब इंद्र जा रहे थे तो इंद्र की पत्नी शची ने उन्हें रक्षा सूत्र बांधा था। तभी से रक्षा बंधन का त्योहार मनाया जाने लगा, परंतु यह त्योहार भाई बहन का तब बना जब माता लक्ष्मी का इस सूत्र से संबंध जुड़ा।

 स्कंद पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार जब भगवान वामन ने महाराज बलि से तीन पग भूमि मांगकर उन्हें पाताललोक का राजा बना दिया तब राजा बलि ने भी वर के रूप में भगवान से रात-दिन उनके यहां प्रहरी के रूप में रहने का वचन ले लिया।

 भगवान को वामनावतार के बाद पुन: लक्ष्मी के पास जाना था परंतु भगवान ये वचन देकर फंस गए और वे वहीं रसातल में बलि की सेवा में रहने लगे।

उधर, इस बात से माता लक्ष्मी चिंतित हो गयीं। ऐसे में नारदजी ने लक्ष्मीजी को एक उपाय बताया। उन्होंने कहा कि आप राजा बलि को भाई बना लें और उनसे रक्षा का वचन ले लें।

 नारदजी की सलाह पर माता लक्ष्मी ने एक साधारण महिला का रूप धरा और रोते हुए राजा बलि के दरबार में पहुंच गयीं। राजा बलि ने महिला से रोने का कारण पूछा। माता लक्ष्मी ने कहा कि मेरा कोई भाई नहीं और मुझे कोई बहन नहीं बनाना चाहता क्या करूं महाराज।

 महिला की व्यथा सुनकर राजा बलि ने उन्हें अपनी धर्म बहन बनाने का प्रस्ताव रखा। तब साधारण महिला रूप माता लक्ष्मी ने राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधा और वचन लिया कि बहन की रक्षा करोगे और उससे दक्षिणा भी दोगे।

 राजा बालि ने वचन दे दिया। तब माता लक्ष्मी ने असली रूप में आकर कहा कि यदि आपने मुझे अपनी बहन माना है तो दक्षिणा के रूप में आप मुझे मरे पति को लौटा दें।

 इस प्रकार माता लक्ष्मी ने बलि को अपना भाई बनाया और श्रीहरि को भी वचन से मुक्ति कराकर अपने साथ ले गयीं। जिस दिन यह घटना घटी थी उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। तभी से यह रक्षा बंधन का त्योहार प्रचलन में हैं। इसीलिए रक्षा बंधन पर महाराजा बलि की कथा सुनने का प्रचलन है।

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