उनाकोटि
पर्वत पर कुल 99 लाख 99 हजार 999 मूर्तियां हैं। पर्वत पर बसी मूर्तियों की इस दुनिया
का रहस्य देख कर वैज्ञानिक तक हैरान हैं। अब तक इसकी गुत्थी कोई नहीं सुलझा पाया।
ऐसा भी नहीं है कि, इन उलझी हुई गुत्थियों को सुलझाने की
किसी ने कोशिश नहीं की। दरअसल वैज्ञानिक या शोधकर्ता जितनी बार भी इन रहस्यों के
पीछे का सच जानने की कोशिश करते हैं, वो
उतना ही उलझ जाते हैं।
उनाकोटि पर्वत त्रिपुरा की राजधानी अगरतल्ला से
लगभग 145 किलोमीटर दूर है। ऐसा माना जाता है कि यहां कुल 99 लाख 99 हजार 999 पत्थर
की मूर्तियां हैं। इनका रहस्य कोई अब तक नहीं जान पाया। ये मूर्तियां किसने बनायीं, कब बनायीं और क्यों बनायीं और सबसे
जरूरी कि एक करोड़ में एक कम ही क्यों बनायीं। इसके पीछे कई कहानियां प्रचलित हैं।
इन रहस्यमय मूर्तियों के कारण ही इस जगह का नाम
उनाकोटी पड़ा है, जिसका अर्थ होता है करोड़ में एक कम। इस
जगह को पूर्वोत्तर भारत के सबसे बड़े रहस्यों में से एक माना जाता है। कई सालों तक
तो इस जगह के बारे में किसी को पता ही नहीं था। हालांकि अभी भी बहुत कम लोग ही
इसके बारे में जानते हैं।
आखिर यह स्थान इतना रहस्यपूर्ण क्यों है। उनाकोटि
को रहस्यों से भरी जगह इसलिए कहते हैं, क्योंकि
एक पहाड़ी इलाका है जो दूर-दूर तक घने जंगलों और दलदली इलाकों से भरा है। अब ऐसे
में जंगल के बीच में लाखों मूर्तियों का निर्माण कैसे किया गया होगा, क्योंकि इसमें तो सालों लग जाते और
पहले तो इस इलाके के आसपास कोई रहता भी नहीं था। यह लंबे समय से शोध का विषय बना
हुआ है।
उनाकोटि की सबसे खास बात यहां मौजूद असंख्य
हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं। जो इस स्थान को सबसे अलग बनाती हैं। इन भव्य मूर्तियों के निर्माण के पीछे
पौराणिक तथ्य भी रखा गया है। यहां की मूर्तियां पत्थरों को काट कर बनायी गयी हैं।कुछ मूर्तियां
पत्थरों पर उकेरी गईं हैं। यहां ज्यादातर हिन्दू धर्म से जुड़ी प्रतिमाएं हैं, जिनमें भगवान शिव, देवी दुर्गा, भगवान विष्णु, और गणेश भगवान आदि की मूर्तियां हैं।
इस स्थान के मध्य में भगवान शिव की एक विशाल प्रतिमा मौजूद है, इन्हें उनाकोटेश्वर के नाम से जाना जाता है। भगवान शिव की यह मूर्ति
लगभग 30 फीट ऊंची है। इसके अलावा भगवान
शिव की विशाल प्रतिमा का साथ दो अन्य मूर्तियां भी मौजूद हैं, जिनमें से एक मां दुर्गा की मूर्ति है।
साथ ही यहां नंदी की तीन मूर्तियां भी हैं। इसके अलावा यहां और भी ढेर सारी मूर्तियां
हैं।इस स्थान के मुख्य आकर्षणों में भगवान
गणेश की अद्भुत मूर्तियां भी हैं। जिसमें गणेश की चार भुजाएं और बाहर की तरफ निकले
तीन दांत को दर्शाया गया है। भगवान गणेश की ऐसी मूर्ति बहुत ही कम देखी गई हैं।
इसके अलावा यहां भगवान गणेश की चार दांत और आठ भुजाओं वाली दो और मूर्तियां भी
हैं। इन अद्भुत मूर्तियों के कारण यह स्थान बहुत चर्चित है। इस स्थान के बारे में
पौराणिक मान्यताएं हैं। लोगों का मानना है
कि इन मूर्तियों का निर्माण कभी किसी
शिल्पकार ने किया था। माना जाता है कि यह शिल्पकार भगवान शिव और माता पार्वती
के साथ कैलाश पर्वत जाना जाता था, लेकिन
यह मुमकिन नहीं था। शिल्पकार की जाने की हठ के कारण यह शर्त रखी गई कि अगर वह एक
रात में एक करोड़ अर्थात एक कोटि मूर्तियों का निर्माण कर देगा तो वह भगवान शिव और
पार्वती के साथ कैलाश जा पाएगा। यह बात सुनते ही शिल्पकार काम में जुट गया, उसने पूरी रात मूर्तियों का निर्माण
किया। लेकिन सुबह जब गिनती हुई तो पता चला उसमें एक मूर्ति कम है। यानी एक कम 1 करोड़
मूर्ति ही बन पाईं। और इस तरह वह शिल्पकार धरती पर ही रह गया। स्थानीय भाषा में एक
करोड़ में एक कम संख्या को उनाकोटि कहते हैं।इसलिए इस जगह का नाम उनाकोटि पड़ा।
आसपास के लोग यहां आकर इन मूर्तियों की पूजा भी करते हैं। यहां हर साल अप्रैल
महीने के दौरान अशोकाष्टमी मेले का आयोजन किया जाता है। जिसमें शामिल होने के लिए
दूर-दूर से हजारों श्रद्धालु यहां आते हैं। इसके अलावा यहां जनवरी के महीने में एक
और छोटे त्योहार का आयोजन किया जाता है। यह स्थान अब एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल बन
चुका है। यहां की अद्भुत मूर्तियों को देखने के लिए अब देश-विदेश तक से लोग आते
हैं। उनाकोटि सड़क मार्ग के द्वारा पहुंचा जा सकता है। त्रिपुरा के बड़े शहरों से
यहां तक के लिए बस सेवा उपलब्ध है। यहां का नजदीकी हवाई अड्डा अगरतला/कमलपुर
एयरपोर्ट है। रेल मार्ग के लिए आप कुमारघाट रेलवे स्टेशन का सहारा ले सकते हैं।
उनाकोटि में पत्थरों के रूप में स्वयं भगवान
रहते हैं।
उनाकोटि की पहाड़ियां रहस्य छुपाये हैं जिनका
जवाब आर्कियोंलॉजिस्ट तक नहीं खोज पाये।त्रिपुरा
की राजधानी अगरतला पहुंचने पर यहां के एक छोटे से शहर कैलाशहर पहुंचना होता है। इस
छोटे से शहर से 10 किमी की दूरी पर है उनाकोटि की पहाड़ियां हैं। पहाड़ी पर मकर पर
सवार देवी गंगा,जमीन पर आधी उकेरी गई नंदी बैल की छवि, भगवान गणेश की तीन बेहद शानदार
मूर्तियां, चार-भुजाओं वाले गणेशजी की दुर्लभ
नक्काशी, उसके बगल में तीन दांत वाले साराभुजा
गणेश और चार दांत वाले अष्टभुजा गणेशजी की दो मूर्तियां हैं। साथ ही, तीन आंखों वाला एक शिल्प भी है, जिसके बारे में माना जाता है कि, वह भगवान सूर्य या विष्णु भगवान का है।
वहीं पास में एक झरने से पानी गिरता है जिसे सीता कुंड के नाम से जाना जाता है।
पहाड़ों पर यह वे प्रतिमाएं हैं जो हमें दिखाई दे रही हैं। लेकिन माना जाता है कि, यहां बहुत सी प्रतिमाएं हैं। इन
प्रतिमाओं को देखने के बाद मन रोमांचित तो होता ही है साथ ही कई तरह के प्रश्न भी
उठते हैं।
लेकिन इसके अलावा एक और कहानी है। इस कहानी के
अनुसार, एक बार भगवान शिव 1 करोड़ देवी देवताओं
के संग काशी यानी आज की वाराणसी की ओर जा रहे थे। इसी दौरान रास्ते में रघुनंदन
पहाड़ से गुजर रहे थे। रघुनंदन पहाड़ को ही आज उनाकोटी कहा जाता है देवता थक गए थे
तो शिव से उन्होंने यहीं आराम करने की बात कही। भगवान माने लेकिन साथ ही कहा कि, सभी लोग सुबह उठ जाएंगे। लेकिन ऐसा
नहीं हुआ देवता थके हुए थे सो सोए रह गए। ऐसे में वो सभी देवता पत्थर में
परिवर्तित हो गए। ऐसे में यह कहा जाता है कि, त्रिपुरा
की उनाकोटी पहाड़ी असल में भगवान का दूसरा घर है। इसी कारण यहां लोगों की अस्था भी
है। हर साल यहां अशोकाष्टमी मेला लगता है। इस जगह को कई तांत्रिक गतिविधियों का
गढ़ भी माना जाता है।
उनाकोटि की इन मूर्तियों का निर्माणकाल 7वीं – 9वीं शताब्दी ईसवी, या उस से भी पहले, बंगाल व पड़ोसी क्षेत्रों में पाल वंश
के शासनकाल के दौरान हुआ माना जाता है।
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