काशी विश्वनाथ का नवनिर्मित परिसर |
14 दिसंबर 2021
का दिन काशी के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ गया। भारत के आस्थावान प्रधानमंत्री ने काशी में
भव्य, नव्य विश्वनाथ मंदिर कोरीडोर का लोकार्पण कर काशी वासियों और देशवासियों की
बहुप्रतीक्षित आकांक्षा पूरी कर दी। मोदी ने पावन गंगा में डुबकी लगा कर पहले काशी के कोतवाल माने जानेवाले
कालभैरव की पूजा करने के पश्चात रेवती नक्षत्र के शुभ मुहूर्त में बाबा विश्वनाथ का
जलाभिषेक और षोडशोपचार से विधिवत पूजा कर नवनिर्मित सुविधाजनक कोरीडोर काशी और देश
को समर्पित किया। इस शुभ अवसर पर देश के कई प्रमुख संत और आस्थावान जन उपस्थित थे।
इस समारोह में मोदी जी के कई भाव और भूमिकाएं तो हृदयस्पर्शी थीं। जब
उन्होंने खून-पसीना बहा कर प्रधानमंत्री
के सपने को पूरा करनेवाले श्रमिकों के सम्मान में मोदी जी ने उन पर पुष्प वर्षा की
और अपने लिए तय आसन को हटा कर सीढ़ियों पर
उनके मध्य बैठ कर फोटो खिंचवाया तो यह दृश्य हर आस्थावान भारतीयों के हृदय में एक
अमिट स्मृति के रूप में अंकित हो गया। इतना ही नहीं मोदी और योगी जी ने इन
श्रमिकों के साथ बैठ कर भोजन ग्रहण किया।
इस अवसर अपने सारगर्भित, श्लोकों से समृद्ध
उद्बोधन में मोदी जी ने विश्वनाथ मंदिर पर आक्रांताओं द्वारा किये गये आक्रमण और
फिर उस वक्त के हिंदू शासकों द्वारा इसके पुनरुद्धार और पुनर्निर्माण कराये जाने
का भी उल्लेख किया। इनके इस ओजस्वी भाषण का उल्लेख किये बगैर काशी विश्वनाथ के
भव्य, नव्य पुनर्निर्माण की यह गाथा अधूरी रह जायेगी। काशी की इस अपूर्व घटना के
साक्षी वहां उपस्थित लोग तो बने ही देश-विदेश में लाखों लोगों ने टीवी पर इस महत्वपूर्ण
कार्यक्रम को देखा।
पहले संकरी
गलियों से होते हुए भक्तों को गंगा तट से बाबा विश्वनाथ के मंदिर तक जाने में बहुत
असुविधा होती थी लेकिन अब वे गंगा तट से सीधे नये कोरीडर के द्वारा बाबा विश्वनाथ
मंदिर आसानी से जा सकते हैं। यहां तक कि दिव्यांगों को भी बाबा विश्वनाथ के दर्शन
में सुविधा होगी। इसके अतिरिक्त बाबा विश्वनाथ मंदिर के आसपास यात्रियों के निवास
की व्यवस्था, बड़ा सभास्थल व अन्य सुविधाएं उपलब्ध करायी गयी हैं। इस नवनिर्माण के
लिए जाने कितने घरों को हटाना पड़ा जिनके लिए आर्थिक मुआवजा भी देना पड़ा। कोरीडोर के सारे अवरोध हटाये गये और
छोटे-छोटे मंदिरों का भी सुधार-संस्कार किया गया। इस अवसर पर काशी को दुलहन की तरह
सजाया गया था और रात को लेजर शो और दीपक प्रज्ज्वलित किये गये।
काशी विश्वनाथ
धाम के नवीनीकरण में 900 करोड़ की लागत आयी है। इसके निर्माण में 33
महीने का समय लगा। अब इससे मुट्ठी भर
लोगों को कष्ट है तो यह उनकी प्रवृत्ति और मनोवृत्ति का दोष है इस पर कोई क्या कर
सकता है। जो इसे राजनीति से जोड़ते हैं तो प्रदेश में इतने मुख्यमंत्री, इतने
प्रधानमंत्री हुए उन्हें यह पावन कार्य करने के लिए किस विवशता ने अब तक रोक रखा
था। अब मोदी ने कर दिया तो कौन-सा पहाड़ टूट पड़ा। किस बात का डर।
बाबा विश्वनाथ
के कोरीडोर के अतिरिक्त काशी शहर में भी कई विकास कार्य किये गये हैं। सड़कें
चौड़ी की गयी हैं। सहर को ऊपर झूलते बिजली के तारों से मुक्ति मिली है। सारे बिजली
के तार अंडरग्राउंड कर दिये गये हैं इसके अतिरिक्त शहर को और भी कई सुविधाओं से
युक्त किया गया है।
241 साल बाद बाबा
धाम का नवीकरण हुआ है। इतिहासकारों के अनुसार श्री काशी विश्वनाथ मंदिर पर वर्ष
1194 से लेकर 1669 तक कई बार हमले हुए। 1777 से 1780 के बीच मराठा साम्राज्य की
महारानी अहिल्याबाई होलकर ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। मोदी जी ने आठ मार्च
2019 को मंदिर के इस भव्य दरबार का शिलान्यास किया था।
औरंगजेब के
फरमान पर मुगल सेना ने ध्वस्त किया था विश्वनाथ मंदिर।
लोकार्पण
कार्यक्रम के लाइव प्रसाद की व्यवस्था हजारों जगह थी।
शहर को दुल्हन
की सजाया गया था।
प्रधानमंत्री के
आगमन को सड़क-चौराहे, बनारस की गलियों से लकर शहर को रंग बिरंगी
झालरों से सजाया गया। सरकारी भवनों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों की सजावट की गई।
कैंट रेलवे स्टेशन, मंडुवाडीह, रोडवेज बस
स्टैंड, बीएलडब्ल्यू को सजाया गया है। इसके अलावा लोगों ने स्वयं से अपने घरों पर
सजावट की है। घाटों पर रंगोली बनाई गई।
उमरहा स्थित स्वर्वेद
मंदिर के वार्षिकोत्सव में भी प्रधानमंत्री शामिल हुए।
तीन लोक से
न्यारी है काशी। मान्यता है यह शिव के त्रिशूल पर बसी है। वर्तमान मंदिर का निर्माण महारानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा1780
में करवाया गया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह ने 1853 में 22 मन शुद्ध सोने
द्वारा शिखर को मंडित कराया और कलश स्थापित कराया।
काशी के विस्तार का
वर्णन पुराणों में है।
स्कन्दपुराण के अनुसार पापियों की खोटी बुद्धि का खण्डन करने वाली महान असि (तलवार)
रूप असि नदी काशी के दक्षिण में तथा विघ्ननिवारण करने वाली तथा क्षेत्र के मोक्ष
रूपी धन की रक्षा करने वाली वरणा नदी काशी के उत्तर में है। वरणा एवं असि नदी के मध्य
होने से काशी का एक नाम
वाराणसी भी है।
ऐसा मानते हैं
कि काशी का नाम एक प्राचीन
राजा काशा के नाम पर पड़ा, जिनके साम्राज्य में बाद में प्रसिद्ध और प्रतापी राजा दिवोदासा
हुए। काशी को कई बार काशिका भी कहा गया.
पौराणिक कथाओं
के अनुसार, काशी नगर की स्थापना भगवान शिव ने लगभग ५००० वर्ष पूर्व की थी, जिस कारण ये आज एक
महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। ये हिन्दुओं की पवित्र सप्तपुरियों में से एक माना
जाता है। स्कन्द पुराण, रामायण एवं महाभारत सहित प्राचीनतम ऋग्वेद में नगर का उल्लेख
आता है।
यह विश्व के प्राचीन नगरों में से एक है।
पुराणों के अनुसार मनु से 11वीं पीढ़ी के राजा काश के नाम पर काशी बसी।
सम्राट अशोक के समय में इसकी राजधानी का नाम
पोतलि था। जातक कथाओं के अनुसार ही इसका एक नाम रामनगर भी है। एक ऐसा शहर जहां सब
कुछ सुंदर और आनंददायक है। पतंजलि के महाभाष्य अष्टाध्यायी के सूत्र पतंजलि में भी
इसका उल्लेख है।
अमेरिकी लेखक लेखक मार्क ट्वेन ने भी
लिखा है कि बनारस इतिहास से भी पुरातन है। सबसे प्राचीन उपनिषद जाबालोपनिषद में
काशी को अविमुक्त नगर कहा गया है। काशी शब्द सबसे पहले अथर्ववेद की पैप्पलाद शाखा
से आया है और इसके बाद शतपथ में भी उल्लेख है। स्कंद पुराण के काशी खंड में नगर की
महिमा 15 हजार श्लोकों में कही गई है। काशीखंड, स्कंद महापुराण का एक खंड जिसमें काशी का परिचय, माहात्म्य तथा उसके आधिदैविक
स्वरूप का विशद वर्णन है। काशी को आनंदवन एंव वाराणसी नाम से भी जाना जाता है।
इसकी महिमा का आख्यान स्वयं भगवान विश्वनाथ ने एक बार भगवती पार्वती जी से किया था, जिसे उनके पुत्र कार्तिकेय
(स्कंद) ने अपनी माँ की गोद में बैठे-बैठे सुना था। उसी महिमा का वर्णन कार्तिकेय
ने कालांतर में अगस्त्य ऋषि से किया और वही कथा स्कंदपुराण के अंतर्गत काशीखंड में
वर्णित है।
काशीखंड में १०० अध्याय तथा ११,००० से ऊपर श्लोक हैं। इसके
माध्यम से काशी के तत्कालीन भूगोल, पुरातन मंदिरों के निर्माण की
कथाएँ, मंदिरों
में स्थित देवी-देवताओं के परिचय, नगरी के इतिहास और उसकी परंपराओं को भली-भाँति समझा जा सकता
है।
मत्स्य
पुराण में भगवान शिव वाराणसी का वर्णन करते हुए कहते हैं वाराणस्यां नदी पु
सिद्धगन्धर्वसेविता। प्रविष्टा त्रिपथा गंगा तस्मिन क्षेत्रे मम प्रिये।। अर्थात
हे प्रिये, सिद्ध गंधर्वों से सेवित वाराणसी में
जहां पुण्य नदी त्रिपथगा गंगा बहती है वह क्षेत्र मुझे प्रिय है।
काशी विश्वनाथ मंदिर बारह
ज्योतिर्लिंगों में से एक है। हजारों साल पुराने इस मंदिर का हिंदू धर्म में एक
विशिष्ट स्थान है। ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा
में स्नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। काशी में बाला भोलेनाथ के दर्शन
के लिए देश के कोने-कोने से लोग आते हैं।
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