Kalam Ka Sipahi /a blog by Rajesh Tripathi

साहित्य, समसामयिक, सामाजिक सरोकार

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Wednesday, March 23, 2022

 

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सत्यानारायण व्रत कथा भाग-1
सत्यनारायण व्रत कथा भाग-2
सत्यनारायण व्रत कथा भाग-3
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About Me/ मेरे बारे में

 मेरे बारे में

राजेश त्रिपाठी, कोलकाता, भारत



उत्तर प्रदेश के बांदा जिले की बबेरू तहसील के ग्राम जुगरेहली में जन्म। शिक्षा-दीक्षा उत्तरप्रदेश, कोलकाता में। चार दशक से भी अधिक समय पत्रकारिता में बीता।शुरुआत आनंद बाजार प्रकाशन समूह के लोकप्रिय हिंदी साप्ताहिक ‘रविवार’ में उपसंपादक के रूप में। तत्पश्चात इंडियन एक्सप्रेस के हिंदी दौनिक ‘जनसत्ता’ के कोलकाता एडीशन में 10 साल तक उप संपादक रहा। फिर प्रभात खबर हिंदी दैनिक के वेब एडीशन www.prabhatkhabar.com में कंटेट चीफ के रूप में कार्य। इसके बाद पूर्वी भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय हिंदी दैनिक ‘सन्मार्ग’ के उड़ीसा एडीशन में स्थानीय संपादक (भुवनेश्वर, उड़ीसा) रहा। पूर्व संपादक ‘सन्मार्ग’ हिंदी दैनिक, कोलकाता । अनेक सम्मान और प्रशंसापत्र। लायंस क्लब आफ कोलकाता की ओर से श्रेष्ठ पत्रकार के रूप में सम्मानित। लाला लाजपत राय विचारमंच (कटक, उड़ीसा) की ओर से श्रेष्ठ हिंदी पत्रकार के रूप में सम्मान। विक्रमशिला विद्यापीठ, भागलपुर, बिहार (भारत) से विद्यावाचस्पति की मानद उपाधि। उपन्यासकार, कवि। सैकड़ों बाल उपन्यास, दर्जर्नों कहानियां, कविताएं, आलेख व रिपोर्ताज प्रकाशित। साहित्य अकादमी की Who’s Who Of Indian Writers में लेखक के रूप में परिचय का प्रकाशन।

मेरे Mail ID tripathirajesh2008@gmail.com

tripathirajesh2014@yahoo.co.in

पताः- 30, रामकृष्ण समाधी रोड, ब्लाक-एच, फ्लैट-2 कोलकाता-700054

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             मन्ना दे का जाना संगीत के एक युग का अंत
गुरुवार 24 अक्तूबर की सुबह भारतीय संगीत जगत के लिए एक दुखद खबर लेकर आयी। लंबी बीमारी झेलने के बाद इसी दिन भारत के महान संगीत शिल्पी, जनप्रिय गायक मन्ना दे ने बेंगलूरु में अंतिम सांस ली। वे 94 वर्ष के थे। उन्हें पिछले जून महीने में फेफड़े के संक्रमण और किडनी की तकलीफ के लिए बेंगलूरु के नारायण हृदयालय में भरती किया गया था। वहीं हृदयाघात से उनकी मृत्यु हुई। मन्ना दे सशरीर हमारे बीच भले न हों लेकिन अपने गाये अमर गीतों में वे हमेशा जीवित रहेंगे और अपने चाहने वालों के दिलों में घोलते रहेंगे संगीत के मधुर रंग। आगे पढ़ें

                         धाकड़ पत्रकार मसत्मौला हंसमुख इनसान थे उदयन शर्मा
एक दिन की बात है (सन और तारीख अब याद नहीं) कलकत्ता स्थित आनंद बाजार पत्रिका के भवन में हम आनंद बाजार प्रकाशन समूह के चर्चित हिंदी साप्ताहिक `रविवार' के कार्यालय में कार्य कर रहे थे कि तभी हमारे संपादक सुरेंद्र प्रताप सिंह (एसपी के नाम से परिचितों में जो ख्यात थे) एक हट्टे-कट्टे औसत कद के व्यक्ति के साथ कार्यालय में दाखिल हुए। उस व्यक्ति की हंसती आंखें और चेहरे पर घनी-काली रौबीली दाढ़ी उसे भीड़ में अलग साबित कर रही थी। उनकी भावभरी प्यारी हंसी लिए आंखें बरबस सबका ध्यान उनकी ओर खींच रही थीं। वे हलके नीले रंग की जीन पैंट और एक सफेद नीली धारी वाली कमीज पहने हुए थे। गेंहुआं रंग अच्छी कद-काठी और प्रभावी व्यक्तित्व। हम सबको आगंतुक से अपरिचय का भाव ज्यादा सताने लगे इससे पहले एसपी ने मुसकराते हुए कहा-`अरे भाई ये उदयन शर्मा हैं।आगे पढ़ें

सचमुच ही मीडिया महानायक थे एसपी सिंह

हिंदी साप्ताहिक `रविवार' में तकरीबन 10 साल तक उनके साथ काम करने और सार्थक पत्रकारिता से जुड़ने का अवसर मुझ जैसे कई पत्रकारों को मिला और हमने उस व्यक्तित्व को समीप से जाना-पहचाना जो साहसी था, सुलझा हुआ था और जिसमें खबरों की सटीक और अच्छी पहचान थी। सामाजिक सरोकार की पत्रकारिता की उन्होंने जो शुरुआत इस साप्ताहिक से की, वह पूरे देश में प्रशंसित और समादृत हुई। यह उनकी सशक्त पत्रकारिता का ही परिणाम था कि `रविवार' ने सत्ता के उच्च शिखरों तक से टकराने तक में हिचकिचाहट नहीं दिखायी। इसके चलते `रविवार' पर कोई न कोई मामला होता ही रहता था। लेकिन विश्ववसनीयता इतनी थी कि विधानसभाओं तक में इसके अंक प्रमाण के तौर पर लहराये जाते थे। खबरों की उनकी पकड़ का एक प्रमाण भागलपुर आंखफोड़ कांड की घटना से समझा जा सकता है। यह खबर `आर्यावर्त' के भीतरी पृष्ठ पर इस तरह से उपेक्षित ढंग से छपी थी कि कहीं किसी की नजर न पड़ सके। एसपी को यह बहुत खराब लगा। पत्रकार धर्म की यह उदासीनता उन्हें भीतर तक कचोट गयी। आगे पढ़ें

कहानी / पगली
बांसुरी की मीठी आवाज सावन की रिमझिम बरसात वाली उस रात को जैसे दुख के सागर में डुबो रही थी। रोज की तरह बिंदा ने फिर कोई दुख भरी तान बांसुरी पर छेड़ दी थी। उसके स्वरों से जैसे उसका दर्द बोल रहा था। पिछले तीन साल से वह दिन-रात जंगलों की खाक छानता फिर रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे उसका कुछ खो गया है, जिसकी तलाश में वह पेड़-पौधों, खेत-खलिहानों में मारा-मारा फिरता है। उसे न तन की फिक्र है, न मन की। खाना कोई सामने रख दे तो एक-दो कौर मुंह में डाल लेता और फिर अपनी बांसुरी और अपने गम में मस्त हो जाता। कुछ लोग उसकी बांसुरी की तान सुन उसके दर्द से जुड़ जाते, भगवान को कोसते जिन्होंने इतने अच्छे कलाकार को आज लोगों के उपहास का विषय बना दिया था। आगे पढ़ें

कलकत्ता का गांधी भवन जहां गांधी ने कहा था- खून का बदला खून नहीं हो सकता
देश जब आजादी से सिर्फ तीन कदम दूर था, पश्चिम बंगाल का कलकत्ता महानगर मानवता से कोसों दूर जा चुका था। हिंदू-मुसलिम दंगों का दावानल नगर के कोने-कोने को भस्म कर रहा था और हर तरफ हो रहा था मानवता का हनन। यह 1947 के अगस्त महीने की बात है। देश के इस पूर्वी भाग को अंधी हिंसा ने अपनी गिरफ्त में ले लिया था। मानवता को इस कदर वहशी होते देख अंतर तक विचलित हो गये थे शांति के हिमायती, अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी। वे अपने सारे कार्यक्रम छोड़ कलकत्ता दौड़े आये ताकि दंगों की आग को ठंडा किया जा सके। हिंसा में बौराये लोगों को अपने ही भाई-बहनों की जान लेने से रोका जा सके। 1947 के अगस्त में पूर्वी कलकत्ता के बेलियाघाटा अंचल के जिस भवन में गांधी जी ठहरे थे, उसका नाम तब हैदरी मैन्सन था। आगे पढ़े

सावधान! कहीं आप भी न बन जायें इंटरनेट से ठगी के शिकार
आपको अगर इंटरनेट से प्यार है तो यह अच्छी बात है। ज्ञान के इस सागर में आप जितना अवगाहन कर सकें. इससे ज्ञान के जितने मोती चुन सकें वह और भी उत्तम है। अगर आप इसकी गंदगी से बच कर इसके उपयोगी अंश को देखते-पढ़ते हैं तो आप अपने ज्ञान की वृद्धि कर रहे होते हैं। आपका पैर तनिक फिसला नहीं कि आप इसकी गंदगी में धंस जायेगे और वहां जो पायेंगे उसमें ज्ञान तो कहीं होगा नहीं, बस आपके समय की बरबादी ही होगी क्योंकि ऐसी साइट्स जुगुप्सा जगाने, विकृति फैलाने के अलावा और कुछ नहीं कर सकतीं। यह तो रही इंटरनेट के अपार संसार के भले-बुरे की बात अब जरा इसके एक और खराब पक्ष की भी सुनते चलिए। आजकल अक्सर आपको ऐसे मेल आते होंगे कि आपने याहू की प्रोमोशन लाटरी जीत ली है। इस लाटरी में लाखों डालर आपके होने को बेताब हैं। बस आपकी ओर से पहल की देर है और आप करोड़पति यहां तक कि अरबपति भी पलक झपकते हो जायेंगे और वह भी बिना कोई श्रम किये। आगे पढ़ें

    कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् -
पुण्य धरा भारत भूमि में भगवान ने समय-समय पर विविध अवतार ग्रहण कर सज्जनों के कष्टों का निवारण और दुर्जनों का संहार किया है। इन अवतारों में कृष्णावतार की महत्ता कहीं अधिक है क्योंकि इसमें प्रभु श्रीकृष्ण ने अर्जुन को धर्म युद्ध के लिए प्रवृत्त करने हेतु जिस गीता का गान किया, उसका दर्शन विश्व के लिए एक पाथेय बन गया। उसके आलोक में विश्व को इस बात का ज्ञान हुआ कि जीवन-धर्म क्या है, सत्य क्या है, जीवन क्या है, मृत्यु क्या है। स्वजन क्या हैं और मानव का कर्तव्य क्या है। एक प्रकार से कहें तो जीवन-दर्शन है प्रभु की वाणी से निस्सृत अमृतमयी गीता। इसका मनन-चिंतन और सम्यक अध्ययन मानव को मोह से निवृत्त और सत्कर्म पर प्रवृत्त करता है। कृष्ण कई अर्थों में विश्व को अन्याय के विरुद्ध खड़े होने, अपने कर्तव्य के प्रति सचेत होने और धर्माचरण में प्रवृत्त करने हेतु धरा पर आये थे।कृष्ण का जन्म कारा में हुआ, शैशव और किशोरावस्था तक वे बाधाएं झेलते रहे। कंस ने उन्हें समाप्त करने के कितने प्रयत्न किये पर विजय अंततः श्रीकृष्ण की हुई। आगे पढ़ें

'जय माता दी' के जयकारे के बीच देवा की वैष्णोधाम यात्रा
वर्षों से मां वैष्णो देवी धाम की यात्रा की उत्कट अभिलाषा थी। सहधर्मिणी भी मां की अनन्य भक्त है, उसे भी उनके दर्शन की लालसा थी। वर्षों से जिस माता के स्टिकर गाड़ियों, दूकानों व अन्यत्र देखता आ रहा था, उसके दरबार में पहुंच कर शिर नवाने को मन कर रहा था। कुछ ऐसा संयोग बन गया कि कुछ पहचान वालों ने एक टूर बनाया जिसमें वैष्णोदेवी धाम भी शामिल था। हमें लगा कि यह मां की ही प्रेरणा है वरना अकेले तो हम वहां क्या जा पाते। मां का धाम कटरा के त्रिकूट पर्वत है। हम लोगों ने जम्मू से कटरा के लिए बस से यात्रा की। हमारी टीम में कुल40 लोग थे। मेरे अपने परिवार से मेरी पत्नी, दामाद, बेटी और नाती देवांश (यानी हमारा देवा था)। यात्रा में सबसे ज्यादा उत्साह देवा में ही दिख रहा था। दो साल एक माह का बच्चा पहली बार इतनी लंबी यात्रा में निकला था। घर-आंगन के बाहर की दुनिया से यह उसका पहला साक्षात्कार था।जम्मू स्टेशन के पास ही वह बस स्टेशन है जहां से कटरा के लिए बसें या फिर सुमो या अन्य गाड़ियां जाती हैं। हम लोग संख्या में ज्यादा थे इसलिए बस में ही समा सके। जम्मू से कटरा की हमारी बस सर्पीली घुमावदार पहाड़ी सड़क पर दौड़ पड़ी। पहाड़ी रास्ते की मुश्किलों का सामना तो मसूरी यात्रा के दौरान भी हो चुका था लेकिन इधर का सफर कहीं उससे भी कठिन था। आगे पढ़ें

स्वतंत्रता संग्राम के सच्चे महानायक सुभाष
देश को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त करने के लिए हजारों देशभक्तों ने अपने प्राण न्योछावर किये। उनमें से किसी के भी बलिदान को कम कर के नहीं आंका जा सकता। लेकिन भारत माता के वीर सपूत सुभाषचंद्र बोस ही ऐसे एक राष्ट्रनायक थे जिन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए बाकायदा युद्ध लड़ा। अपने सीमित साधनों से उन्होंने अंग्रेजों की महान शक्ति से लोहा लिया। देश के लिए जो शहीद हुए उनका बलिदान किसी तरह से कम नहीं था लेकिन सुभाष उनमें अनन्य और अनोखे थे। भारतमाता के लिए उनका बलिदान बहुत बड़ा और सराहनीय था। सुभाष जैसे सपूत बिरले ही होते हैं। जिन शहीदों ने देश के लिए बलिदान किया उनका यह बलिदान स्वार्थ या स्वहित से प्रेरित नहीं था। यह परहित आकांक्षा के लिए था। उस मातृभूमि के लिए था जिसमें वे जनमे थे और जो अंग्रेजों की गुलामी में सिसक रही थी, जिसके वासियों पर अगणित जुल्म ढाये जा रहे थे। लोगों के बोलने-लिखने की आजादी छीन ली गयी थी। आगे पढ़ें

घुट रहा है गंगा का दम
पुण्य सलिला सुरसरी, पतितपावनी, जगउद्धारिणी गंगा जिसका हर भारतवासी से जन्म से लेकर मरण तक का अटूट नाता है। जिसे श्रद्धा से गंगा मैया कह कर बुलाते हैं और जो जाने कितनी संस्कृतियों की साक्षी और इतिहास की गवाह है। जिसके तट पर संस्कृतियां जन्मी, जिसने सदियों से जमाने का हर दर्द सहा फिर भी लोगों में बांटती रही अमृत। वह गंगा जिसके बारे में कहा जाता है-गंगा ही हिंदुस्तान, हिंदुस्तान है गंगा, सच पूछो तो इस देश की पहचान है गंगा। आज उसी गंगा की पहचान खो रही है। सदियों से भारतवर्ष की जीवनरेखा रही सुरसरी की अपनी सांसें फूल रही हैं, घुट रहा है उसका दम। गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक उसमें घोला रहा है जहर और वह अब प्रदूषण के पंक में डूब कर अपनी पहचान ही खोती जा रही है। साल दर साल सिकुड़ता जा रहा है उसका आंचल। अपने किनारे उग आयी जाने कितनी औद्योगिक इकाइयों के गलीज, विषैले कचड़े को लीलने को विवश है हमारी मां गंगा। आगे पढ़ें

छोटी-सी गुड़िया की सुनो लंबी कहानी
जिंदगी में जो पहली हिंदी फिल्म ‘सीमा’ देखी थी उसमें लता मंगेशकर का गाया एक प्यारा गीत था- ‘ छोटी-सी गुड़िया की सुनो लंबी कहानी।’ लता का अपना लंबा सुरीला सफर , एक गुड़िया-सी बच्ची के जिंदगी के जद्दोजेहद में अपनी प्रतिभा के बलबूते नाकुछ से लोकप्रियता के शिखर तक पहुंचने की दास्तान है। इस दास्तान में जहां लोकप्रियता, नाम-दाम और शोहरत की तड़क-भड़क है, वहीं है पल-पल काटता अकेलापन, तरह-तरह के विवाद और उदासियों के अनगिनत लमहे। इस सबसे लड़ कर , दर्द को खामोशी से पीकर लता भारतीय पार्श्वगायन की अदम्य, अनुपमेय साम्राज्ञी बन गयीं।
जीते-जी किंवदंती बन जाने वाली लता की लोकप्रियता देश की सीमाएं लांघ विदेश तक जा पहुंची। 1962 में दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में ‘ ऐ मेरे वतन के लोगो जरा आंख में भर लो पानी’ गाकर पंडित जवाहरलाल नेहरू तक को द्रवित कर देने वाली लता के गायन में एक खास गुण है।आगे पढ़ें


इन दिनों कुछ तो हिंदी में बुरी तरह से घुसपैठ कर रही अंग्रेजियत और कुछ भाषा के अज्ञान के चलते बड़ा अनर्थ हो रहा है। हमारी वह भाषा जो एक तरह से हमारी मां है, हमारी अभिव्यक्ति का जरिया है और जिसकी बांह थाम हम अपनी जीविका चलाते हैं आज उसका जाने-अनजाने घोर निरादर और अपमान हो रहा है। भाषा भदेस हो रही है या की जा रही है और उसके साथ जम कर छेड़छाड़ और खिलवाड़ हो रहा है। चाहे प्रिंट मीडिया से जुड़े लोग हों या इलेक्ट्रानिक मीडिया के लोग, शिक्षक हों या आलोचक और कथाकार सब इस बात से सहमत होंगे कि उनकी अभिव्यक्ति का आधार सिर्फ और सिर्फ भाषा है। उसका ज्ञान उनसे छीन लिया जाये तो वे मूक और लाचार हो जायेंगे। आज उसी भाषा के साथ जिस तरह से छेड़छाड़ हो रही है वह चिंता का विषय है। ऐसे में जिन्हें भाषा से प्यार है, यह जिनकी अन्नदाता है उनका यह कर्तव्य बनता है कि वे पल भर रुकें और भाषा पर कुछ विमर्श करें। जो गलत प्रयोग हो रहे हैं, उन्हें रोकने के लिए सक्रिय और सचेष्ट हों। आज बड़े-बड़े विद्वानों तक को धड़ल्ले से भाषा का गलत इस्तेमाल करते देखा जाता है।  आगे पढ़े

कथा सौ साल पुराने शंख की
अपने पूर्वजों की वस्तुओं को सहेज, संभाल कर रखना अपने आप में एक सुखद और गौरवपूर्ण एहसास होता है। उन वस्तुओं को देखते ही आपका पुरानी यादों में खो जाना, उन क्षणों को महसूस करना जो बहुत-बहुत पीछे छूट चुके हैं, स्वाभाविक है।आज मैं यहां अपने पिता जी के द्वारा प्रयुक्त जिस चतुर्मुखी शंख की कहानी सुनाने जा रहा हूं, वह अब एक शताब्दी पुराना हो चुका है। आप जब अपनी जड़ों से उखड़ कर कहीं और बसने जाते हैं तो अपने पीछे कई खट्टी-मीठी यादों के साथ कुछ वस्तुएं भी छोड़ जाते हैं जिन्हें साथ लाना संभव नहीं होता। जब गांव गया था तो यह देख कर बहुत खुशी हुई कि वर्षों पहले मैंने जिस घर में जन्म लिया था, वह अब एक परिवार का आसरा बना हुआ है। उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के बबेरू तहसील के उस गांव से मेरा पूरी तरह से नाता उस वक्त टूटा जब 95 वर्ष की उम्र में पिता जी का देहावसान हो गया। मां अकेली पड़ गयीं तो उन्हें अपने साथ रखने के लिए कोलकाता लाना पड़ा। उस वक्त पिता जी के स्मृति चिह्न के रूप में मैं जिस शुभ और मंगलकारी वस्तु को ला पाया, वह है एक चतुर्मुखी शंख। वह शंख अब भी मेरे पास पिता जी की पावन स्मृति के रूप में विद्यमान है। आगे पढ़ें

एस. पी.सिंह - सोद्देश्य, सशक्त, सामाजिक सरोकार की पत्रकारिता के सारथी
कुछ वयक्तित्व ऐसे होते हैं जो इतने महान, इतने जनप्रिय और अपने हो जाते हैं कि उनका जाना उनके परिजनों को तो मर्माहत करता ही है, उनसे जुड़े, उन्हें चाहने वालों को भी ऐसा दर्द दे जाता है जो भुलाये नहीं भूलता। उनकी भावनाएं, संवेदना से भरा उनका दिल, सबको साथ लेकर चलने और सबको परिजन जैसा मानने का उनका भाव हर एक को उनसे आत्मीयता के बंधन से जोड़ देता है। ऐसे ही थे इस सदी के महान पत्रकार, मीडिया महानायक सुरेंद्र प्रताप सिंह, दोस्तों के एसपी और हमारे प्यारे एसपी दा। पिछली 27 जून को उनकी पुण्य तिथि गुजरी है। राज्यसभा टीवी ने उन पर एक घंटे से भी ज्यादा समय की एक डाक्युमेंटरी बनायी जिसमें उनके परिजनों व सहयोगियों, सहकर्मियों ने उनसे जुड़ी अपनी यादें साझा की हैं।  आगे पढ़ें
कहानी/ पड़िए गर बीमार...
नरेंद्र ने नर्सिंग होम के अपने बेड में आंखें खोलीं तो अपने सामने पत्नी आराधना, बेटे सूरज और चंद्रभान को पाया। दोनों बेटे नरेंद्र के साथ आपरेशन थियेटर तक गये थे वे भी बहुत चिंतित थे कि डाक्टर ने जिस आपरेशन को आधा घंटे में पूरा होने की बात की थी वह सवा घंटे तक क्यों खिंच गया। आपरेशन के पहले दिये गये एनीस्थीसया के चलते नरेंद्र बेहोशी से पूरी तरह उबर नहीं पाया था लेकिन अपनों को देख और उनकी बातें सुन पा रहा था।एनीस्थीसिया के चलते उसके पूरे शरीर में एक अजीब-सी कंपन लगातार हो रही थी।    उसने सामने खड़े बेटे सूरज से पूछा-‘बेटे डाक्टर कुमार कहां हैं?’    बेटा उत्तर देता इससे पहले नरेंद्र के बेड के सिरहाने खड़े डाक्टर कुमार ने उत्तर दिया-‘नरेंद्र जी, मैं यहां हूं। आपका आपरेशन सफल रहा। आगे पढ़ें

नीचे क्लिक कर सुनें सत्यनारायण कथा

गुरुजनों, बंधुजनों, प्रियजनों, विद्वदजनों  आपको एक शुभ संदेश देने का मोह संवरण नहीं कर पा रहा। सत्यदेव की कृपा, जगन्नियंता की महती अनुकंपा से आज मेरी एक अभिलाषा पूर्ण हुई। यह प्रभु की ही कृपा थी कि उन्होंने एक भगीरथ कार्य का संपादन मुझ दास से कराने की कृपा की वह है सत्यनारायण व्रत कथा के संपूर्ण पांच अध्यायों का राधेश्याम तर्ज में पद्यानुवाद। इस कार्य में मुझे अपने भैया और गुरु दिवंगत रामखिलावन त्रिपाठी 'रुक्म' का प्रोत्साहन और सहयोग मिला जिसके बिना शायद ही यह कार्य संपन्न हो पाता। कथा के पांच अध्यायों को आप यहां क्लिक कर सुन सकते  हैं। आपकी टिप्पणियों की प्रतीक्षा रहेगी।
 सत्यनारायण व्रत कथा सुनने के 
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सत्यानारायण व्रत कथा भाग-1
सत्यनारायण व्रत कथा भाग-2
सत्यनारायण व्रत कथा भाग-3
सत्यनारायण व्रत कथा भाग-4
सत्यनारायण व्रत कथा भाग-5

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